किसी को ज़ख़्म दिखाया नहीं बहुत दिन से
मज़ाक़ अपना बनाया नहीं बहुत दिन से।
न जाने किसकी नज़र लग गई मुसव्विर को
कुई भी नक़्श बनाया नहीं बहुत दिन से।
किसी के साथ में खिंचवा के तुमने तस्वीरें
हमारे जी को जलाया नहीं बहुत दिन से।
बदन तक आता है उर आ के लौट जाता है
कोई भी रूह तक आया नहीं बहुत दिन से।
मैं आइना हूँ उसे इल्म हो गया शायद
वो मेरे सामने आया नहीं बहुत दिन से।
#@रघुनंदन शर्मा "दानिश"@#
मज़ाक़ अपना बनाया नहीं बहुत दिन से।
न जाने किसकी नज़र लग गई मुसव्विर को
कुई भी नक़्श बनाया नहीं बहुत दिन से।
किसी के साथ में खिंचवा के तुमने तस्वीरें
हमारे जी को जलाया नहीं बहुत दिन से।
बदन तक आता है उर आ के लौट जाता है
कोई भी रूह तक आया नहीं बहुत दिन से।
मैं आइना हूँ उसे इल्म हो गया शायद
वो मेरे सामने आया नहीं बहुत दिन से।
#@रघुनंदन शर्मा "दानिश"@#
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे
भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400