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बुधवार, 1 अप्रैल 2020

ग़ज़ल :- समन्दर इसलिए घबरा रहा है - रघुनंदन शर्मा "दानिश"

ग़ज़ल :-

समन्दर   इसलिए  घबरा  रहा है
नदी का  रस्ता रोका  जा रहा है।

जुदा  क्या  हो गए पंछी शजर से
लकड़हारा  बहुत  इतरा  रहा है।

उतर जाएंगे हम भी अब नज़र से
हमें जी भर के  देखा  जा रहा है।

मिरे  अंदर  कुई  तो है जो मुझको
मिरे बारे  में  ही  भड़का  रहा  है।

ख़मोशी  क्यूँ   न   टूटेगी  नदी  की
कि  उसमें  संग  फेंका जा  रहा है।

                       रघुनंदन शर्मा "दानिश"

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