न जाने कौन था जिसकी तलाश करता था
मैं इक हुजूम में रहकर भी कितना तन्हा था।
जब अपने आप की मुझको बहुत ज़रूरत थी
मैं अपने आप से उस मरहले पे बिछड़ा था।
अजीब वक़्त है अब ख़्वाब में भी आता नहीं
वो एक शख़्स जो आँखों में जागा करता था।
न जाने क्या हुआ दरिया की शोख़ लहरों को
गुज़िश्ता साल तो ये साहिलों से लिपटा था।
चराग़ रक्खा था गुमनामी के अँधेरे में
हरेक सम्त मगर रौशनी का चर्चा था।
रघुनंदन शर्मा "दानिश"
Raghunandan Sharma Danish
Raghunandan Sharma Danish
मैं इक हुजूम में रहकर भी कितना तन्हा था।
जब अपने आप की मुझको बहुत ज़रूरत थी
मैं अपने आप से उस मरहले पे बिछड़ा था।
अजीब वक़्त है अब ख़्वाब में भी आता नहीं
वो एक शख़्स जो आँखों में जागा करता था।
न जाने क्या हुआ दरिया की शोख़ लहरों को
गुज़िश्ता साल तो ये साहिलों से लिपटा था।
चराग़ रक्खा था गुमनामी के अँधेरे में
हरेक सम्त मगर रौशनी का चर्चा था।
रघुनंदन शर्मा "दानिश"
Raghunandan Sharma Danish
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