ग़ज़ल :-
हमीं तो डूबे किसी ने डुबोया थोड़ई है
ये सानेहा है ख़ुदा का इशारा थोड़ई है।
किसी का अक्स किसी में तलाश क्या करते
कोई जहान में अपने इलावा थोड़ई है।
अभी मकान की चीज़ों पे हक़ है मेरा भी
अभी मकान से मुझको निकाला थोड़ई है।
किसे ये गिरते हुए बामो-दर नज़र आएं
कि इस मकां में कोई आता -जाता थोड़ई है।
जिसे ये दुनिया मिरा कह रही है अब तक वो
नज़र में रहता है दिल में समाया थोड़ई है।
तुम्हारे बाद ज़माने का क्या करें "दानिश"
हमारा ख़्वाब तो तुम थे ज़माना थोड़ई है।
#@रघुनंदन शर्मा "दानिश"@#
हमीं तो डूबे किसी ने डुबोया थोड़ई है
ये सानेहा है ख़ुदा का इशारा थोड़ई है।
किसी का अक्स किसी में तलाश क्या करते
कोई जहान में अपने इलावा थोड़ई है।
अभी मकान की चीज़ों पे हक़ है मेरा भी
अभी मकान से मुझको निकाला थोड़ई है।
किसे ये गिरते हुए बामो-दर नज़र आएं
कि इस मकां में कोई आता -जाता थोड़ई है।
जिसे ये दुनिया मिरा कह रही है अब तक वो
नज़र में रहता है दिल में समाया थोड़ई है।
तुम्हारे बाद ज़माने का क्या करें "दानिश"
हमारा ख़्वाब तो तुम थे ज़माना थोड़ई है।
#@रघुनंदन शर्मा "दानिश"@#
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