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सोमवार, 6 अप्रैल 2020

ग़ज़ल :- मेरी आँखों को गर पढ़ा होता - सना परवीन

2122 1212 22

मेरी आँखों को गर पढ़ा होता
इतना दावा है तू मिरा होता ।

और करता यकीं अगर मुझपर
तू मेरे दिल से न जुदा होता।

खत मुहब्बत के हम भी लिखते पर
तेरे घर का पता मिला होता।

बेवफ़ा मुझको कहने से पहले
मशवरा दिल से कर लिया होता 

फासले दरमियाँ न होते गर 
कुछ सुना और कुछ कहा होता।

मौला तुझको  मुआफ़ कर देते 
तूने छोंटों को जो किया होता

ऐ *सना* काश जीते जी उससे
हक़ मुहब्बत का भी अदा होता।

सना
हरदोई

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