बिलखते शब्दों की अंतिम आस है जनचेतना।
सिकुड़ते साहित्य की हर साँस है जनचेतना।
युग-तिमिर में भोर का प्रकाश है जनचेतना।
सबका ही तो साथ औ' विकास है जनचेतना।
हर कड़ी में काव्य का अनुप्रास है जनचेतना।
उन्मुक्त सा अहसास है, "आकाश" है जनचेतना।
शिल्प औ सर्जन की सु-सत्कार है जनचेतना।
काव्य से क्रीड़ा का इक अधिकार है जनचेतना।
भाव के बहाव की धारा प्रणोदित जो करे,
सृजन के संगम में वह जलधार है जनचेतना।
वारिधि का उरनिहित-उल्लास है जनचेतना।
उन्मुक्त सा अहसास है, "आकाश" है जनचेतना।
✍✍✍✍✍
~पं० सुमित शर्मा "पीयूष"
अलंकरण प्रमुख :
ज० सा० सा० समिति - 226
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