हे सखे,
युद्ध की विभ्रान्तियाँ कब तक रहेंगी.
ये निरर्थक क्रान्तियाँ कब तक रहेंगी.
यह अथक मन्थन हमें क्या दे सकेगा.
अंततः संसार जिस पथ पर चलेगा.
वह सुनिश्चिततः हमारा प्रेम होगा.
सार इस संसार का फिर क्षेम होगा.
युद्ध का यह वृक्ष सदियों तक फले पर,
क्रोध का उन्माद यह वर्षों चले पर,
एकदिन आख़िर हमें झुकना पड़ेगा.
हारकर उस मोड़ पर रुकना पड़ेगा.
तब अनर्गल चाहना तजनी पड़ेगी.
प्रीति की दुनिया नई रचनी पड़ेगी.
-
आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ.
ये निरर्थक क्रान्तियाँ कब तक रहेंगी.
यह अथक मन्थन हमें क्या दे सकेगा.
अंततः संसार जिस पथ पर चलेगा.
वह सुनिश्चिततः हमारा प्रेम होगा.
सार इस संसार का फिर क्षेम होगा.
युद्ध का यह वृक्ष सदियों तक फले पर,
क्रोध का उन्माद यह वर्षों चले पर,
एकदिन आख़िर हमें झुकना पड़ेगा.
हारकर उस मोड़ पर रुकना पड़ेगा.
तब अनर्गल चाहना तजनी पड़ेगी.
प्रीति की दुनिया नई रचनी पड़ेगी.
-
आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे
भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400