की ये सीरीज फेसबुक अकाउन्ट पर जारी है। जिसमें शायरों/ग़ज़लकारों की आसान हिन्दुस्तानी ज़बान में कही गयीं, उनकी चुनिंदा ग़ज़लें और शे'र हाज़िर हैं। ताकि वे एक आम हिन्दुस्तानी तक आराम से पहुँच सकें। खुशी है यह कोशिश आपको पसन्द आ रही है।
आज लेकर आये हैं #उर्मिलेश जी की हिंदुस्तानी ज़बान वाली शायरी ...
डॉ उर्मिलेश ( 1951-2005 ) का ताल्लुक बदायूँ से था। वे मूलतः गीतकार थे लेकिन उनकी ग़ज़लें भी काफ़ी लोकप्रिय हुईं। उनकी ग़ज़लों में सामाजिक सम्बन्धों की न सिर्फ़ तस्वीर नज़र आती है बल्कि इन्सानी जज़्बात भी उभरते हैं।
उनकी चन्द ग़ज़लें और शे'र समआत फ़रमाये ...
#ग़ज़लें
/ 01 /
रिश्तों की भीड़ में भी वो तन्हा खड़ा रहा
नदियाँ थी उसके पास वो प्यासा खड़ा रहा
सब उसको देख देख के बाहर चले गए
वो आईना था घर में अकेला खड़ा रहा
इस दौर में उस शख्स की हिम्मत तो देखिये
अपनों के बीच रहके भी ज़िन्दा खड़ा रहा
मेरे पिता की उम्र से कम थी न उसकी उम्र
वो गिर रहा था और मैं हँसता खड़ा रहा
बारिश हुई तो लोग सभी घर में छुप गए
वो घर की छत था इसलिए भीगा खड़ा रहा
/ 02 /
अब बुज़ुर्गों के फ़साने नहीं अच्छे लगते
मेरे बच्चों को ये ताने नहीं अच्छे लगते
बेटियाँ जब से बड़ी होने लगी हैं मेरी,
मुझको इस दौर के गाने नहीं अच्छे लगते
उम्र कम दिखने के नुस्खे तो कई हैं लेकिन,
आइनों को ये बहाने नहीं अच्छे लगते
अब वो मँहगाई को फैशन की तरह लेता है,
अब उसे सस्ते ज़माने नहीं अच्छे लगते
अपने ही शोर में डूबा हुआ हूँ मैं इतना
अब मुझे मीठे तराने नहीं अच्छे लगते
/ 03 /
पूरी हिम्मत के साथ बोलेंगे
जो सही है वो बात बोलेंगे
साहिबों,हम क़लम के बेटे हैं
कैसे हम दिन को रात बोलेंगे
पेड़ के पास आँधियाँ रख दो
पेड़ के पात पात बोलेंगे
'ताज' को मेरी नज़र से देखो
जो कटे थे वो हाथ बोलेंगे
उनको कुर्सी पे बैठने तो दो
वो भी फिर वाहियात बोलेंगे
#चन्द_शेर_और_देखिए
बेवजह दिल पे कोई बोझ न भारी रखिये
ज़िन्दगी जंग है इस जंग को जारी रखिये
◆
वो जिसका तीर चुपके से जिगर के पास होता है
वो कोई ग़ैर क्या अपना ही रिश्तेदार होता है
◆
तू इन बूढ़े दरख्तों की हवाएँ साथ रख लेना
सफ़र में काम आयेंगी दुआएँ साथ रख लेना
◆
चोट मौसम ने दी कुछ इस तरह गहरी हमको।
अब तो हर सुबह भी लगती है दुपहरी हमको।।
◆
परिन्दों के यहाँ फ़िरकापरस्ती क्यों नहीं होती
कभी मन्दिर पे जा बैठे कभी मस्जिद पे जा बैठे
◆
किसी से अपने दिल की बात कहना तुम न भूले से
यहाँ ख़त भी ज़रा सी देर में अखबार होता है
◆
कितने दिन ज़िन्दा रहे इसको न गिनिये साहिब
किस तरह ज़िन्दा रहे इसकी शुमारी रखिये
◆
देख कर बच्चों का फैशन वो भी नंगा हो गया
ये इज़ाफ़ा भी हुआ इस दौर की रफ़्तार में
◆
मेरी टाँगे मांग कर मेरे बराबर हो गये,
यानी मेरे शेर पढ कर वो भी शायर हो गये
◆
अपनी शादी पे छपाए उसने अंग्रेज़ी में कार्ड
वो जो हिन्दी बोलता था रोज़ के व्यवहार में
प्रस्तुति
#डॉ_निशान्त_असीम
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