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मंगलवार, 11 फ़रवरी 2020

वशीर_बद्र साहब की हिंदुस्तानी ज़बान वाली शायरी ...डॉ_निशान्त_असीम

#हिंदुस्तानी_ग़ज़ल  #ہندوستانی_غزل
की ये सीरीज फेसबुक अकाउन्ट पर जारी है। जिसमें शायरों/ग़ज़लकारों की आसान हिन्दुस्तानी ज़बान में कही गयीं, उनकी चुनिंदा ग़ज़लें और शे'र हाज़िर हैं। ताकि वे एक आम हिन्दुस्तानी तक आराम से पहुँच सकें। खुशी है कि ये कोशिश आपको पसन्द आ रही है।
इस बार पढ़िये #वशीर_बद्र साहब की हिंदुस्तानी ज़बान वाली शायरी ...
पदमश्री डॉ बद्र साहब की ग़ज़लें सर्दी में खिली गुनगुनी धूप की तरह हैं जो सबको सुकून देतीं हैं। उनके शे'र किसी लिट्रेरी सोसाइटी के ड्राइंग-रूम की दीवार पर लिखे मिलते हैं तो कभी किसी रिक्शे के पीछे लिखे मिलते हैं तो कभी किसी जलसे में लोग बोलते दिख जाते हैं।
बद्र साहब का यही आम हिन्दुस्तानी ज़बान और नये ख्याल वाला अन्दाज़ उन्हें दुनिया भर में अपने दौर का सबसे कामयाब शायर बनाता है।
आज आप उनको पढ़ते-पढ़ते, उनकी सेहत के लिए दुआ  करना न भूलियेगा, क्योंकि वे आजकल गम्भीर बीमारी से जूझ रहे हैं। खुदा उन्हें शिफ़ा अता करे ...

#ग़ज़लें

/ 01 /

परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता

बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहां दरिया समन्दर में मिला, दरिया नहीं रहता

हजारों शेर मेरे सो गये कागज की कब्रों में
अजब मां हूं कोई बच्चा मेरा ज़िन्दा नहीं रहता

तुम्हारा शहर तो बिल्कुल नये अन्दाज वाला है
हमारे शहर में भी अब कोई हमसा नहीं रहता

मोहब्बत एक खुशबू है, हमेशा साथ रहती है
कोई इन्सान तन्हाई में भी कभी तन्हा नहीं रहता

कोई बादल हरे मौसम का फ़िर ऐलान करता है
ख़िज़ा के बाग में जब एक भी पत्ता नहीं रहता

/ 02 /

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा

हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा

कितनी सच्चाई से मुझ से ज़िन्दगी ने कह दिया
तू नहीं मेरा, तो कोई दूसरा हो जाएगा

मैं ख़ुदा का नाम लेकर पी रहा हूँ दोस्तो
ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा

सब उसी के हैं हवा, ख़ुश्बू, ज़मीनो-आसमाँ
मैं जहाँ भी जाऊँगा, उसको पता हो जाएगा

/ 03 /

मुझसे बिछड़ के ख़ुश रहते हो
मेरी तरह तुम भी झूठे हो

इक टहनी पर चाँद टिका था
मैं ये समझा तुम बैठे हो

उजले-उजले फूल खिले थे
बिल्कुल जैसे तुम हँसते हो

मुझ को शाम बता देती है
तुम कैसे कपड़े पहने हो

तुम तन्हा दुनिया से लड़ोगे
बच्चों सी बातें करते हो

#चन्द_शेर_और_देखिये

कुछ को मजबूरियाँ रहीं होंगी
यूँ कोई बेबफा नहीं होता


उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये


दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिन्दा न हों


जिस दिन से चला हूं मेरी मंज़िल पे नज़र है
आंखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा


शौहरत की बुलन्दी भी पल भर का तमाशा है
जिस डाल पर बैठे हो, वो टूट भी सकती है


लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में


मुहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला


उसे किसी की मुहब्बत का एतिबार नहीं
उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है


गुलाबों की तरह शबनम में अपना दिल भिगोते हैं
मुहब्बत करने वाले ख़ूबसूरत लोग होते हैं


चमकती है कहीं सदियों में आंसुओं से ज़मीं
ग़ज़ल के शेर कहां रोज़-रोज़ होते हैं


अबके आंसू आंखों से दिल में उतरे
रुख़ बदला दरिया ने कैसा बहने का


ज़हीन सांप सदा आस्तीन में रहते हैं
ज़बां से कहते हैं दिल से मुआफ़ करते नहीं


सात सन्दूकों में भर कर दफ़्न कर दो नफ़रतें
आज इन्सां को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत


खुले से लॉन में सब लोग बैठें चाय पियें
दुआ करो कि ख़ुदा हमको आदमी कर दे


लहजा कि जैसे सुब्ह की ख़ुशबू अज़ान दे
जी चाहता है मैं तेरी आवाज़ चूम लूं


इतनी मिलती है मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझको मेरा महबूब समझते होंगे


इस ख़ुशी में मुझे ख़याल आया
ग़म के दिन कितने ख़ूबसूरत थे


मुख़ालिफ़त से मेरी शख़्सियत संवरती है
मैं दुश्मनों का बड़ा एहतेराम करता हूं


सियासत की अपनी अलग इक ज़बाँ है
लिखा हो जो इक़रार, इनकार पढ़ना

प्रस्तुति
#डॉ_निशान्त_असीम

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