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शनिवार, 1 फ़रवरी 2020

प्यासों को भटकाते दर दर प्यास नहीं तो देते सागर

रचना प्रकाशन हेतु प्रमाण पत्र
सेवा में,
     सम्पादक महोदय
     हिंदी साहित्य वैभव पत्रिका
श्रीमान जी,
      सविनय निवेदन यह है कि मेरी यह रचना(ग़ज़ल) नितांत मौलिक,अप्रकाशित और अप्रसारित है और मैं इसके प्रकाशन का अधिकार हिंदी साहित्य वैभव पत्रिका को देता हूँ!आशा है मेरी इस रचना का यथासम्भव उपयोग आपकी पत्रिका में हो सकेगा!
           धन्यवाद
          भवदीय
         बलजीत सिंह बेनाम
        103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी
        हाँसी(हिसार)
        मोबाईल:9996266210
ग़ज़ल
प्यासों को भटकाते दर दर
प्यास नहीं तो देते सागर
मैं घुट घुट कर जब जीता था
हाल किसी ने पूछा आकर
जिस भी धरती में कुछ बोया
वो ही धरती निकली बंजर
कोई तो खुश है दुःख देकर
कोई खुश सबके दुःख हर कर
चैन मिलेगा इससे पहले
अश्कों का तू जुर्माना भर

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