धर्म के नाम पे दंगे फ़सादात हुए
और निर्दोष निहत्थों पे जो आघात हुए
उनमें हिन्दू न मुसलमान मरा है यारों
मेरा कहना है कि इंसान मरा है यारों !
आज बिस्मिल औ’अशफाक़ की जोड़ी है कहाँ
उन शहीदों की देश भक्ति निगोड़ी है कहाँ
जो हुमायूँ ने बंधाई थी वो राखी है कहाँ
पद्मावत जायसी की ,कबिरा की साखी है कहाँ
कृष्ण का भक्त वो रसखान मरा है यारों
मेरा .............................................!
आज क्यों लाज से बेताज हुआ ताज महल
रो उठीं तुलसी की चौपाइयाँ, ग़ालिब की ग़ज़ल
होली में,ईद में मिलते हुए गले रोये
आज अकबर औ बीरबल के चुटकुले रोये
दीन ए इलाही का वो ईमान मरा है यारों
मेरा..............................................!
राम में और मुहम्मद में अदावत कब थी
फ़ातिमा बीबी की दुर्गा से ख़िलाफ़त कब थी
मूसा साहब को धन्वन्तरि से शिकायत कब थी
आयतों मन्त्रों ने की ऐसी शरारत कब थी
गीता कुरआन का सम्मान मरा है यारों
मेरा .............................................!
फूल तो हैं कई पर देखो चमन एक ही है
हैं सितारे कई पर देखो गगन एक ही है
तन तो सबके हैं अलग किंतु ये मन एक ही है
लाशें सबकी हैं अलग किंतु कफ़न एक ही है
आज गाँधी का ये अरमान मरा है यारों
मेरा...........................................!
गर ये दंगे यूँ सताते रहे भारत भर को
कौन पूजेगा लता और रफ़ी के स्वर को
इन फ़सादों से झुका भाल है भारत माँ का
जो भी दंगों में मरा ,लाल है भारत माँ का
राम के साथ ही रहमान मरा है यारों
मेरा............................................!
#डॉउर्मिलेश
१९८० में लिखी डॉ उर्मिलेश की ये कविता आज फ़िर प्रासंगिक है !एक बार फिर हम बेरहम वक़्त के साक्षी बने हैं !
#Delhi_Roits
और निर्दोष निहत्थों पे जो आघात हुए
उनमें हिन्दू न मुसलमान मरा है यारों
मेरा कहना है कि इंसान मरा है यारों !
आज बिस्मिल औ’अशफाक़ की जोड़ी है कहाँ
उन शहीदों की देश भक्ति निगोड़ी है कहाँ
जो हुमायूँ ने बंधाई थी वो राखी है कहाँ
पद्मावत जायसी की ,कबिरा की साखी है कहाँ
कृष्ण का भक्त वो रसखान मरा है यारों
मेरा .............................................!
आज क्यों लाज से बेताज हुआ ताज महल
रो उठीं तुलसी की चौपाइयाँ, ग़ालिब की ग़ज़ल
होली में,ईद में मिलते हुए गले रोये
आज अकबर औ बीरबल के चुटकुले रोये
दीन ए इलाही का वो ईमान मरा है यारों
मेरा..............................................!
राम में और मुहम्मद में अदावत कब थी
फ़ातिमा बीबी की दुर्गा से ख़िलाफ़त कब थी
मूसा साहब को धन्वन्तरि से शिकायत कब थी
आयतों मन्त्रों ने की ऐसी शरारत कब थी
गीता कुरआन का सम्मान मरा है यारों
मेरा .............................................!
फूल तो हैं कई पर देखो चमन एक ही है
हैं सितारे कई पर देखो गगन एक ही है
तन तो सबके हैं अलग किंतु ये मन एक ही है
लाशें सबकी हैं अलग किंतु कफ़न एक ही है
आज गाँधी का ये अरमान मरा है यारों
मेरा...........................................!
गर ये दंगे यूँ सताते रहे भारत भर को
कौन पूजेगा लता और रफ़ी के स्वर को
इन फ़सादों से झुका भाल है भारत माँ का
जो भी दंगों में मरा ,लाल है भारत माँ का
राम के साथ ही रहमान मरा है यारों
मेरा............................................!
#डॉउर्मिलेश
१९८० में लिखी डॉ उर्मिलेश की ये कविता आज फ़िर प्रासंगिक है !एक बार फिर हम बेरहम वक़्त के साक्षी बने हैं !
#Delhi_Roits
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