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बुधवार, 29 जनवरी 2020

दिवाकर_राही जी की हिंदुस्तानी ज़बान वाली शायरी ...डॉ_निशान्त_असीम

#हिंदुस्तानी_ग़ज़ल  #ہندوستانی_غزل
की ये सीरीज फेसबुक अकाउन्ट पर जारी है। जिसमें शायरों/ग़ज़लकारों की आसान हिन्दुस्तानी ज़बान में कही गयीं, उनकी चुनिंदा ग़ज़लें और शे'र हाज़िर हैं। ताकि वे एक आम हिन्दुस्तानी तक आराम से पहुँच सकें। उम्मीद है यह कोशिश आपको पसन्द आ रही होगी।
आज पेश है #दिवाकर_राही जी की हिंदुस्तानी ज़बान वाली शायरी ...
रामपुर से ताल्लुक रखने वाले #राही जी पेशे से वकील थे। हिन्दी और उर्दू पर उनका समान रूप से अधिकार था, अपितु उनकी पहचान एक शायर के तौर पर बनी और उर्दू अदब में उन्हें खासी तबज्जो मिली।
1984 में आयी फ़िल्म शराबी में जब अमिताभ बच्चन जी ने #राही जी का ये शे'र पढा, तो राही जी की पॉपुलरटी में चार चाँद लग गये -
अब तो उतनी भी मयस्सर नहीं मयख़ाने में
जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में

#ग़ज़ल_का_मतला_और_तीन_शेर_देखिए ...

ज़रा भी शोर मौजों का नहीं है
सफ़ीना तो कोई डूबा नहीं है

तुम्हारा हुस्न क्या है क्या नहीं है
तुम्हें ख़ुद इस का अंदाज़ा नहीं है

तिरी महफ़िल का किस से हाल पूछें
वहाँ जा कर कोई पल्टा नहीं है

वो इस पर हो गए हैं और बरहम
कि 'राही' को कोई शिकवा नहीं है

#चन्द_शेर_और_समाअत_फ़रमाइये ...


इस इंतिज़ार में बैठे हैं उन की महफ़िल में
कि वो निगाह उठाएँ तो हम सलाम करें


वो अपने हाथ से सागर न दे, शराब न दे
निगाह फेर ले लेकिन, हमें जवाब न दे


अगर मौजें डुबो देतीं तो कुछ तस्कीन हो जाती
किनारों ने डुबोया है मुझे इस बात का ग़म है


ख़ुद को जो लोग समझते हैं सियासी
उनके ये बताने की ज़रूरत है सियासत क्या है


इस दौरे तरक़्क़ी के अंदाज़ निराले हैं
ज़ेहनों में अँधेरे हैं सड़कों पे उजाले हैं


हज़ारों बार कह कर बेवफ़ा को बा-वफ़ा मैंने
बताया है ज़माने को वफ़ा का रास्ता मैंने


कुछ आदमी समाज पे बोझल हैं आज भी
रस्सी तो जल गई है मगर बल हैं आज भी


सोचने की ये बात है 'राही'
सोचते ही रहे तो क्या होगा


इस से पहले कि लोग पहचानें
ख़ुद को पहचान लो तो बेहतर है


मैंने आवाज़ तुम्हे दी है बड़े नाज़ के साथ
अब तो आवाज़ मिलाओ मेरी आवाज़ के साथ


दोस्तों से बचाइये 'राही'
दुश्मनों से मैं ख़ुद निपट लूँगा

प्रस्तुति :
#डॉ_निशान्त_असीम

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