छंद मुक्त कविता
मैं अक्सर भीग जाता हूँ ,
दुखों की बदली में,
उसके प्रवाह का आतप,
जब आफ़त बन जाता ,
मुश्किल हालात भी,
जब मुश्किल हो जाते ,
सिहर जाता तन-मन,
समस्या से भय खाता हूँ,
भूल जाता सुकूँ के पल,
बस सोचता ये ही,
हाय!जीवन, कैसा जीवन?
मैं तुझसे हार गया ,
ये कहकर जीवन,
धिक्कार दिया,
क्षुब्ध,लुब्ध, कुंठित हो,
स्वयं को कोसता हूँ ,
भूल जाता पतझड़ के बाद,
सावन तो आएगा,
बाद कोहरे के फिर ,
लालिमा भी आएगी,
अमावस-अंधेरे जीवन में,
पूर्णिमा का चंद्र भी होगा,
ज़िंदगी ज़िंदादिली का नाम है,
दुख में धैर्य की परीक्षा होती,
सुख-दुख आना-जाना है,
ये बातें जब-जब सुनता हूँ,
पढ़ता हूँ, लिखता हूँ ।
तब सुख झरोखे से झाँकता,
कुछ इशारा करता हुआ,
मंद- मंद हँसी से खिलखिलाता,
और फिर कहता भी है,
तेरे संग रहकर दुख को,
कितना सुख मिला रे ।
धैर्य तेरा देखकर,
धैर्य और धीर बना,
ये देखकर मुग्ध हूँ मैं,
अब मैं भी आना चाहता,
दुख जैसा गले मिलकर तुझसे,
मैं भी मुस्काना चाहता,
पावन होना चाहता हूँ ,
आह! मुझे भी तो,
कितना प्यार मिलेगा?
कितना सुख मिलेगा?
कितना सम्मान मिलेगा?
कवि - सुनील नागर " सरगम "
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे
भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400