रचना प्रकाशन हेतु प्रमाण पत्र
सेवा में,
सम्पादक महोदय
हिंदी साहित्य वैभव पत्रिका
श्रीमान जी,
सविनय निवेदन यह है कि मेरी यह रचना(ग़ज़ल) नितांत मौलिक,अप्रकाशित और अप्रसारित है और मैं इसके प्रकाशन का अधिकार हिंदी साहित्य वैभव पत्रिका को देता हूँ!आशा है मेरी इस रचना का यथासम्भव उपयोग आपकी पत्रिका में हो सकेगा!
धन्यवाद
भवदीय
बलजीत सिंह बेनाम
103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी
हाँसी(हिसार)
मोबाईल:9996266210
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ग़ज़ल
इक अजब सा है सिलसिला अपना
मंज़िलें उसकी रास्ता अपना
इक अजब सा है सिलसिला अपना
मंज़िलें उसकी रास्ता अपना
रोकते भी किसी को क्या आख़िर
हर किसी का था देवता अपना
हर किसी का था देवता अपना
ज़िक्र जितना बयां किया हमने
दर्द उतना ही है बढ़ा अपना
दर्द उतना ही है बढ़ा अपना
ज़िंदगी पर बहुत भरोसा था
इसने भी ख़ूँ फ़क़त पिया अपना
इसने भी ख़ूँ फ़क़त पिया अपना
हाँ ख़ुदा ने बहुत दिया लेकिन
फिर भी क्यों जी नहीं भरा अपना
फिर भी क्यों जी नहीं भरा अपना
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