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शनिवार, 4 जनवरी 2020

इक अजब सा है सिलसिला अपना

रचना प्रकाशन हेतु प्रमाण पत्र
सेवा में,
     सम्पादक महोदय
     हिंदी साहित्य वैभव पत्रिका
श्रीमान जी,
      सविनय निवेदन यह है कि मेरी यह रचना(ग़ज़ल) नितांत मौलिक,अप्रकाशित और अप्रसारित है और मैं इसके प्रकाशन का अधिकार हिंदी साहित्य वैभव पत्रिका को देता हूँ!आशा है मेरी इस रचना का यथासम्भव उपयोग आपकी पत्रिका में हो सकेगा!
           धन्यवाद
          भवदीय
         बलजीत सिंह बेनाम
        103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी
        हाँसी(हिसार)
        मोबाईल:9996266210
ग़ज़ल
इक अजब सा है सिलसिला अपना
मंज़िलें उसकी रास्ता अपना

रोकते भी किसी को क्या आख़िर
हर किसी का था देवता अपना

ज़िक्र जितना बयां किया हमने
दर्द उतना ही है बढ़ा अपना

ज़िंदगी पर बहुत भरोसा था
इसने भी ख़ूँ फ़क़त पिया अपना

हाँ ख़ुदा ने बहुत दिया लेकिन
फिर भी क्यों जी नहीं भरा अपना

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