हिंदी साहित्य वैभव

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रविवार, 1 नवंबर 2020

7:43 pm

सत्यमेव जयते संगठन द्वारा जीतेन्द्र कानपुरी सम्मान पत्र -

सत्यमेव जयते संगठन मध्य प्रदेश ने  - "कानपुर अध्यक्ष कवि जीतेन्द्र कानपुरी जी" - को हिंदी साहित्य का श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान भेंट किया , और उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष किशन झा जी ने जीतेन्द्र कानपुरी जी से  प्रार्थना की , कि आप निरंतर हिन्दी साहित्य को यूं ही बढ़ावा देते रहे जिससे मात्र भाषा निरंतर विकसित होती रहे , बताते चलें लेखक एवं कवि जीतेन्द्र कानपुरी जी हिन्दी के लिए एक समर्पित
लेखक है जिनकी रचनाओं में गांव की बोली से लेकर शहर की वर्तमान दशा भी झलकती नजर आती है
कविता पर एक अलग छाप छोड़ने वाले और जीतेन्द्र कानपुरी जी पैना अंदाज उनकी कविताओं में खुद ही दिख जाता है । ज्यादातर प्रेरणा दायक कविताओं को लिखकर इन्होंने कविता के माध्यम से  समाज को हरदम कुछ न कुछ संदेश दिया है ।
आज विद्यार्थी वर्ग इनकी कविता पढ़कर भटकाव से अपने आप बच जाता है ।

12:34 am

जीतेन्द्र कानपुरी की कविता

कविता -
इंसान वही है जो अपना नाम अमर करता जाए -

जो लड़कर अपवादों से
जीवन जीते ।
जो हालातों से हरदम
लड़ना सीखे ।।
जो घबराकर कष्टों से
विश्राम करे न ।
सपना जब तक न हो पूरा
आराम करे न ।।

ये समय उसी का है
जो आगे बढ़ जाए ।
ये दुनिया उसी की है
जो कुछ कर जाए ।।......

जो टकराकर बड़े पहाड़ों से
अपनी जगह बनाए ।
जो खुद ही अपना झंडा
हरदम लहराए ।।
जो रहे भरोसे में न 
दुनिया वालों के ।
जो पड़े न चक्कर में 
धोखेबाजों के ।।

ये समय उसी का है
जो आगे बढ़ जाए ।
ये दुनिया उसी की है
जो कुछ कर जाए ।।.......

जो, अपना स्थान बनाए वहां
जहां कोई पहुंच न पाए ।
जिसका दमखम दुनिया वाले
देख देख मजबूर हो जाएं ।।
जिसका अस्तित्व अंत तक 
मिटा न पाए कोई ।
वो जो चाहे बस उसकी
इच्छा से सब  होई ।।

ये समय उसी का है
जो आगे बढ़ जाए ।
ये दुनिया उसी की है
जो कुछ कर जाए ।।........

जिसको तलवार का भय न हो
चाकू से जो डर न जाए ।
तब तक वो हल्का न हो 
जो सोचे, जब तक कर न जाए ।।
जब तक लक्ष्य न पूरा हो
अथक परिश्रम करता जाए ।
इंसान वही है जो अपना
नाम अमर करता जाए ।।

ये समय उसी का है
जो आगे बढ़ जाए ।
ये दुनिया उसी की है
जो कुछ कर जाए ।।........

लेखक कवि एवं गीतकार -
जीतेन्द्र कानपुरी (टैटू वाले)
9118837179

शनिवार, 31 अक्टूबर 2020

2:49 am

कविता

यारो अपनी फिजा खुद बनानी पड़ती है -

ओला गिरे या आग बरसे फसल उगानी पड़ती है ।
यारो अपनी फिजा खुद बनानी पड़ती है ।।
जिंदगी भर आते है कई मोड़ जिंदगी में ।
हर बार किस्मत आजमानी पड़ती है ।।


हार हो या जीत योजना बनानी पड़ती है ।
रोशनी के  लिए आदमी को जोत जलानी पड़ती है ।।
हजारों प्रयास कर डालता है आदमी उन्नति के वास्ते ।
हर हाल में आदमी को कुछ न कुछ जोखिम उठानी पड़ती है ।।

ओला गिरे या आग बरसे फसल उगानी पड़ती है ।
यारो अपनी फिजा खुद बनानी पड़ती है ।।.......
लेखक एवं देश कवि
जीतेन्द्र कानपुरी (टैटू वाले)
9118837179

मंगलवार, 13 अक्टूबर 2020

6:50 am

जीतेन्द्र कानपुरी की कविता -


- गांधी जैसा हर कोई जो चलने लग जाए -

जब देश गुलामी पर जकड़ा
महिलाओं पर अत्याचार हुए ।
तब गांधी ने आवाज़ उठाई
जब भारत मा पर वार हुए ।।
थक गए गोरे, रंग बदलकर
नए नए तैयार हुए ।
गांधी के सम्मुख गोरों के
सब सपने बेकार हुए ।।

सत्य अहिंसा के दीपक सदा जलाए जाएंगे ।
संसद की दीवारों पर उनके चित्र लगाएं जाएंगे ।।
कितना भी बदनाम करे कोई देश के संत गांधी को।
फिर भी इस भारत भूमि में, यस गांधी के गाए जाएंगे ।।

लाल किले में गांधी की
तस्वीर लगाई जाएगी ।
आंदोलन की बाते भी 
सदा बताई जाएंगी ।।
कैसे एक कमजोर व्यक्ति 
दुश्मन पर भारी पड़ता है ।
ये दुनिया भर को सदा
सीख सिखलाई जाएगी ।।

भारत में जन्मा ये वीर ,इसका अभिमान रहेगा ।
गांधी का सदियों तक ,सदा सम्मान रहेगा ।।
गांधी जैसा हर कोई जो चलने लग जाए ।
सच कहता हूं देश ,सदा खुशहाल रहेगा ।।
लेखक एवं देश कवि -
जीतेन्द्र कानपुरी (टैटू वाले)
9118837179

मंगलवार, 6 अक्टूबर 2020

10:05 pm

जीतेन्द्र कानपुरी की कविता - भारतीय पुलिस .....

भारतीय पुलिस के उत्साह के लिए मेरी पंक्तियां - 

हमको है रातों में ,दम से सोने की बीमारी ।
जाग रही है मगर देश में, पुलिस हमारी ।।
तब काहे की चिंता, जय जयकार करो ।
कानून व्यवस्था अच्छी है ,स्वीकार करो ।।

रातों में पहरे है देती, सब कुछ उसके ध्यान में ।
उसे पता है कौन है, अपराधी उसके संज्ञान में ।।
तोड़ तोड़के कुचल कुचल के,अधमरा कर देती है।
जिसने पुलिस किनहीं सुनी,क्रिया कर्म कर देती है।।

हूटर वाली गाड़ी, आती है अब सारी ।
देखकर लाल नीली बत्ती, टिकते नहीं जुआरी ।।
अच्छा है बिन भय के, अब जीते हैं व्यापारी ।
क्योंकि भारत देश में, चल रहा प्रशासन भारी ।।

अच्छा है स्वच्छ करो, भारत को पवित्र करो ।
छोटा हो या बड़ा ,अपराधी को बंद करो  ।।
एक ही बात आती है, बस मेरे अब ध्यान में ।
कानून व्यवस्था अच्छी है, मेरे हिंदुस्तान में ।।
लेखक कवि एवं गीतकार -
 जीतेन्द्र कानपुरी (टैटू वाले)
9118837179
9:46 pm

कवि जीतेन्द्र कानपुरी की कविता -

देखो जहां मै रहता हूं खुशहाली ही खुशहाली है -

उन गलियों को छोड़ दिया
जिन पर दुष्ट रहा करते थे ।
जिनको ज्ञान नहीं था बिल्कुल
लड़ाई ही लड़ा करते थे ।।
बे मतलब में लोगों को
खूब सताने वालों का ।
आधी रात को बेफिजूल में
आने जाने वालों का ।।
वो जगह ही छोड़ दी मैंने 
उन गलियों को और लोगों को।
जिनके घर में कुछ न था
 खुद को शेर कहा करते थे ।।
नए शहर में नई जगह में
नई हवा चलाई है ।
मुझको मेरे इष्टदेव ने 
मंजिल यहीं दिलाई है ।।
न गुंडा न कोई मवाली
न ही कोई बवाली है ।
देखो जहां मै रहता हूं
खुशहाली ही खुशहाली है ।।
लेखक कवि -
जीतेन्द्र कानपुरी (टैटू वाले)
9:37 pm

कवि जीतेन्द्र कानपुरी की कविता -

हर समय इंसानों का घमंड नहीं रहता -

चाहे जितना हो बलवान
वो बलवंत नहीं रहता ।
हर समय इंसानों का 
घमंड नहीं रहता ।।
करले मन की मर्जी
जितने दिन कर पाए तू ।
कुछ दिन के महमानों
सबका अंत लिखा रहता ।।
कोई मन का राजा है
कोई खुद को खुदा समझता ।
संसार के स्वामी के आगे
कोई खुदा नहीं रहता ।।
अच्छे अच्छे बिखर गए 
समय के तूफानों से ।
समय की गहरी चाल से
कोई जुदा नहीं रहता ।।
सबपे नजर है उसकी
इतना रखना ध्यान ।
पन्ना जब वो फाड़ डालता
फिर, कोई बचा नहीं रहता ।।
जो जलता है आदि अंत तक
वो भी धीमा हो जाता है ।
सूरज भी देखो सर्दी में
प्रचण्ड नहीं रहता ।।
चाहे जितना हो बलवान
वो बलवंत नहीं रहता ।
हर समय इंसानों का 
घमंड नहीं रहता ।।
लेखक कवि -
जीतेन्द्र कानपुरी (टैटू वाले)
9118837179
9:28 pm

जीतेन्द्र कानपुरी कविता - सफलता के सूत्र

सफलता का सूत्र -


आगे बढ़ने वालो
तुम इतना जोश भर लो ।
कि सामने वालों को
सबको खामोश कर दो ।।

यही एक उपाय है
जो तुम्हे बदल देगा ।
तुम्हारा जोश ही
तुम्हारी कहानी बदल देगा ।।

तुम न देखो किसी को
तुम अपनी परवाह करो ।
तुम इस बहते हुए
सागर को पार करो ।।
तुम्हारे लिए
जमाना एक चुनौती है ।
तुम सिद्ध करो खुद को बस
सिद्धि से ही सफलता मिलती है ।।
लेखक कवि -
जीतेन्द्र कानपुरी (टैटू वाले)
सबको खामोश कर दो ।।

यही एक उपाय है
जो तुम्हे बदल देगा ।
तुम्हारा जोश ही
तुम्हारी कहानी बदल देगा ।।

तुम न देखो किसी को
तुम अपनी परवाह करो ।
तुम इस बहते हुए
सागर को पार करो ।।
तुम्हारे लिए
जमाना एक चुनौती है ।
तुम सिद्ध करो खुद को बस
सिद्धि से ही सफलता मिलती है ।।
लेखक कवि -
जीतेन्द्र कानपुरी (टैटू वाले)
9118837179
9:22 pm

जीतेन्द्र कानपुरी कविता

 शीर्षक - बदलाव 
चलो उठो न , अब कैसी मज़बूरी है ??
बदलाव के लिए बदलना बहुत जरूरी है ।
उम्र कितनी भी हो खुद को बूढ़ा मत समझो ।
राह बदलो ,राह बदलनी बहुत जरूरी है ।।
देखो सुनो खेलो कूदो मगर
लक्ष्य का चयन भी करो ।
जिंदगी जंग है 
मैदान में उतरना बहुत जरूरी है ।।
नहीं तो दुनिया तुम्हे पीछे धकेल देगी ।।
तरक्की करना है तो चलना बहुत जरूरी है ।।
लेखक कवि -
जीतेन्द्र कानपुरी (टैटू वाले)

शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

10:38 am

कवि जीतेन्द्र कानपुरी

स्वच्छ भारत अभियान - जीतेन्द्र कानपुरी

हमको हर दम कुछ ,कर्तव्य निभाना है ।
चाहे कुछ भी हो ,हमें स्वच्छ भारत बनाना है ।।
गांवों से शहरों तक ,पेड़ लगाना है।
चाहे कुछ भी हो, हमें स्वच्छ भारत बनाना है ।।
जनता को जागरूक कर ,सोया भाग्य जगाना है ।
चाहे कुछ भी हो ,हमें स्वच्छ भारत बनाना है ।।
बूढ़ों, बच्चों ,महिलाओं ,सबको हाथ बटाना है ।
चाहे कुछ भी हो ,हमें स्वच्छ भारत बनाना है ।। 
सुन लो अब भारत से ,भ्रष्टाचार मिटाना है ।
चाहे कुछ भी हो, हमें स्वच्छ भारत बनाना है ।।
लेखक कवि एवं गीतकार -
जीतेन्द्र कानपुरी (टैटू वाले)
10:34 am

कवि जीतेन्द्र कानपुरी

देश प्रेम से बढ़कर कोई प्रेम नहीं -

उस माटी का मान बढ़ाओ
जिस माटी का खाते हो ।
जिस माटी में रहकर
तुम आगे बढ़ते जाते हो ।।

उससे बढ़कर और 
भी गौरव क्या होगा ।
देश प्रेम से ज्यादा
 गौरव क्या होगा ।।

जिस देश में राम जन्मे
जिस देश में कृष्ण जन्मे ।
धर्म की रक्षा के खातिर
अवतारी तक दुख  सहते ।।

हम क्यों भूल रहे है फिर
विधि के, निर्धारित विधान को ।
इस देश के खातिर दे गए वीर
अपनी अपनी जान को ।।

जिसे निज मिट्टी से प्रेम नहीं
उसको गद्दार समझिए ।
भारत में उसका रहना
हरदम बेकार समझिए ।।

धन की या सत्ता की लालच
में जो देश गंवा बैठे ।
वीर नहीं वो कायर है 
जो निज मिट्टी को खो बैठे ।।

देश में रहकर जो भी
देश विरोधी बीज बोता ।
ऐसा मानव
मानव कहलाने के योग्य नहीं ।।

देश के लिए जो मिट जाए 
उससे बढ़कर धर्म नहीं ।
इससे बढ़कर कोई पुण्य नहीं
इससे बढ़कर संयोग नहीं ।।


दानव हैं ये कुटिल कपटी
जो वीरों का अपमान करे ।
ऐसे अपराधी पर क्या
हम भारतवासी अभिमान करें ।।

सुन लो प्यारे भारत वासी -

जहां ब्रम्हा विष्णु शिव की
 गाथाएं गाई जाती है
माटी की पवित्रता, उस देश से ज्यादा
कहीं न पाई जाती है ।।
लेखक कवि एवं कहानीकार -
जीतेन्द्र कानपुरी (टैटू वाले)
9118937179
10:20 am

कवि जीतेन्द्र कानपुरी

खबरों में रहो और खबरदार रहो-

लड़ भिड़ कर स्वयं न बेकार रहो ।
मौज में रहो मजेदार रहो ।।
जिंदगी भर असरदार रहो ।
खबरों में रहो ,खबरदार रहो ।।

जिंदगी है जूझने का नाम ,
जूझते रहो ।
जूझने से बनते हैं काम,
जूझते रहो ।।
इसलिए ,खून पसीना बहा ओ
जनाब ,किसी के बहकावे में न आओ ।।

खाली न बैठो, न बेकार रहो ।
न किसी के भरोसे , न लाचार रहो ।।
हरदम घोड़े की चाल पे सवार रहो ।
लहराती नदी को हर संभव पार करो ।।

जो खाली है वो तुम्हीं से लड़ जाएंगे ।
तुम्हारा समय भी नष्ट कर जायेंगे ।।
लड़ाकू लोगों से न बात करो ।
गधों और मूर्खों का न साथ करो ।।

जिंदगी है छोटी अपनी उन्नति को सोचो ।
सर्वगुण सम्पन्न होके अवगुणों को रोको ।।
तरक्की के लिए बस जीवन झोकों ।
फ़ालतू में इधर उधर किसी को न टोंको ।।


लड़ भिड़ कर स्वयं न बेकार रहो ।
मौज में रहो मजेदार रहो ।।
जिंदगी भर असरदार रहो ।
खबरों में रहो ,खबरदार रहो ।।

लेखक कवि एवं कहानीकार
जीतेन्द्र कानपुरी ( टैटू वाले)
10:08 am

जीतेन्द्र कानपुरी के उपन्यास का आखिरी भाग -

 - जीतेन्द्र कानपुरी के उपन्यास का आखरी भाग -
               (मिस्टर आरके सिंह ) 

तुम अपने बच्चो को पुलिस में भर्ती करवा देना फिर मेरी पिटाई करवाना ।
 और मुझसे मेरी मत पूछो ? 
"मै जब चाहूंगा तभी तोड़ दूंगा तुम्हे ।"
मेरा नाम है "आनंद सिंह राणा"
तुम्हारे जैसे कानून को जेब में डाल के घूमता हूं ।
जितने तुम्हारे रिश्तेदार हो मिलने वाले दोस्त यार हो सबको बुला लेना 
मेरे बार बनवा लेना ।
मै अकेला ही तुम्हारे खानदान की धज्जियां उड़ा ने में सक्षम हूं ।

और सुनो तुम आज से कल तक 
कल तक का मतलब है जिंदगी भर के लिए चुनौती देता हूं जो उखाड़ना हो उखाड़ लेना ।
मेरा नाम तो जानते ही हो - आनंद सिंह राणा है ।
मैंने किताबों में पढ़ा था  - अपराधी बनते नहीं है बनाए जाते है ।
लो आज देख भी लिया , मुझे मजबूरन तुम जैसे दुष्ट लोगों के खिलाफ हाथ उठाना पड़ रहा है 
क्योंकि मैं कानून के सहारे नहीं बैठ सकता , दस बीस साल तक इंसाफ होने में उसकी राह नहीं तक सकता ।
अब मै स्वयं ही इंसाफ करूंगा ।
मेरे भाइयों के कातिलों का मै सर्वनाश कर दूंगा ।
ये तुम्हे चेतावनी देने आया हूं मिस्टर आरके सिंह ।
तुमने अभी वो नजारा नहीं देखा 
जिसे आंखों देखी कतल कहते है 
उसे देखने में कुछ वक़्त लग सकता है मगर जो देखने को तुम्हारी आंखें तरस रही हैं वो तुम्हे देखने को अवश्य मिलेगा ।
अभी जिसके जिसके दूध के दांत उखड़ने बाकी है वो आज से "आनंद सिंह राणा" का इंतजार करना शुरू करे ।
दूध के दांत गिरेंगे  और छठी के चावल याद आ जाएंगे ।
तुम्हारे दिन ऐसे बहुरेंगे रॉकी, कि तुम्हारी  लाश को कुत्ते ही खा जाएंगे ।। 

आज से तुम अपनी जिंदगी बचाने का इंतजाम करो 
नहीं तो  मै तुम्हे जहन्नुम के दरवाजे में भेज दूंगा ।

रॉकी सिंह - तुम अभी अपने खाने पीने का इंतजाम करो राणा ।
घर में बच्चे भूख से बिलबिला रहे होगें ।
और ये कहावत तो सुनी ही होगी तुमने कि जो लोग ज्यादा बकबक करते है वो तो वैसे भी कुछ नहीं कर पाते । 
मुझे ज्यादा बोलने का शौक नहीं है ।
मुझे जो करना है वो मै करूंगा 
तुम अपना परिवार बचा सको तो बचा लेना राणा ।

आनंद सिंह राणा - मिस्टर अब तुम अपनी ओर अपने बीबी बच्चो की फिकर करो ।
मै तो तुम्हे बस इतना ही बताने आया था ।
बाकी का नजारा तुम खुद देखोगे ।
वो आदमी भी क्या जो सरेआम बेज्जत होता रहे और कुछ न कर सके ।
मै अपने भाइयों कि कसम खा के कहता हूं 
तुम्हारा अंत बिल्कुल निकट है ,
मुझे ये भी मालूम है कि तुम अपने बचने के बहुत सारे उपाय भी करोगे मगर याद रखना बच नहीं सकोगे ।
शहर का चप्पा चप्पा मैंने लॉक करवा दिया है मिस्टर आरके सिंह
तुम यूं ही नादान बच्चे की तरह ख्वाबों में उड़ रहे हो ।
अब इस वक्त कानून और कानून की वर्दी पहनने वाले वो सब सिपाही मेरी जेब में है मिस्टर रॉकी ।
देखो तुम्हारे महल के पीछे वाले दरवाजे में बंदूक की नोक दिख रही है ।
न न न न अभी नहीं 
अभी नहीं मारूंगा तुम्हे
अभी तो तुम्हे बताने आया था 
वैसे भी तुम बहुत चालाक बनते हो मिस्टर आरके ।
आरके - मुझे विश्वाश नहीं हो रहा 
ये क्या मजाक कर रहे हो तुम राणा ।
अगर तुम मुझे चेतावनी देने  आए थे तो फिर ये कानून के सिपाही लेकर क्यों आए हो ।
ये कहां का इंसाफ है ।
चेतावनी देने वाला व्यक्ति पहले अकेले आता है ।

आनंद सिंह राणा - वाह आरके वाह !
भाषण अच्छा दे लेते हो 
मतलब मै जो कुछ करूं तो तुम्हारे हिसाब से करूं 
मै चेतावनी देने अकेले आऊं वो भी तेरे घर ! जिससे कि तू मुझे भी मौत के घाट उतार सके ।
वाह बहुत खूब !
मुझे तो हंसी आ गई रे तेरे ऊपर ।
क्या बच्चों जैसी बात कर रहा है ।
लगता है बंदूक देख के सेठेया गया तू आरके ।
अब तेरे पास दम नहीं बची ।
तू कैसे सम्हालेगा परिवार अपना 
जब तू खुद ही इतना डर रहा है आरके ।
आरके - आरके ने नौकर को आवाज़ लगाई -
भोला जरा मंत्री जी को फोन मिला ओ ।
आनंद सिंह राणा - मिला लो -  मिला लो  ,  सबको मिला लो 
देखता हूं आज कौन मंत्री तुम्हारे डेरे में आता है ।
सारा डेरा तो इस मुल्क के सिपाहियों के कब्जे में है आरके ।
करलो तुम्हे पन्द्रह मिनट का मौका और देता हूं  क्योंकि समय समाप्त होने वाला है ।
 ये मानो कि तुम्हारी जिंदगी सिर्फ अब पन्द्रह मिनट कि बची है  ।
इसमें चाहे अपनी हिफाजत कर लो या अपने सगे संबंधियों की ।
कुल मिलाकर तुम्हारा विनाश निश्चित है ।
देखो चारो तरफ सिपाही खड़े है 
कहा था न मैंने कानून को अपने जेब में डाल रक्खा है ।
क्योंकि ईंट का जवाब मै पत्थर से देना जानता हूं मिस्टर आरके ।
असत्य आखिर कब तक और किसके बल पर टिकेगा आरके सिंह ।मिस्टर आरके सिंह - उपन्यास का आखरी भाग -

तुम अपने बच्चो को पुलिस में भर्ती करवा देना फिर मेरी पिटाई करवाना ।
 और मुझसे मेरी मत पूछो ? 
"मै जब चाहूंगा तभी तोड़ दूंगा तुम्हे ।"
मेरा नाम है "आनंद सिंह राणा"
तुम्हारे जैसे कानून को जेब में डाल के घूमता हूं ।
जितने तुम्हारे रिश्तेदार हो मिलने वाले दोस्त यार हो सबको बुला लेना 
मेरे बार बनवा लेना ।
मै अकेला ही तुम्हारे खानदान की धज्जियां उड़ा ने में सक्षम हूं ।

और सुनो तुम आज से कल तक 
कल तक का मतलब है जिंदगी भर के लिए चुनौती देता हूं जो उखाड़ना हो उखाड़ लेना ।
मेरा नाम तो जानते ही हो - आनंद सिंह राणा है ।
मैंने किताबों में पढ़ा था  - अपराधी बनते नहीं है बनाए जाते है ।
लो आज देख भी लिया , मुझे मजबूरन तुम जैसे दुष्ट लोगों के खिलाफ हाथ उठाना पड़ रहा है 
क्योंकि मैं कानून के सहारे नहीं बैठ सकता , दस बीस साल तक इंसाफ होने में उसकी राह नहीं तक सकता ।
अब मै स्वयं ही इंसाफ करूंगा ।
मेरे भाइयों के कातिलों का मै सर्वनाश कर दूंगा ।
ये तुम्हे चेतावनी देने आया हूं मिस्टर आरके सिंह ।
तुमने अभी वो नजारा नहीं देखा 
जिसे आंखों देखी कतल कहते है 
उसे देखने में कुछ वक़्त लग सकता है मगर जो देखने को तुम्हारी आंखें तरस रही हैं वो तुम्हे देखने को अवश्य मिलेगा ।
अभी जिसके जिसके दूध के दांत उखड़ने बाकी है वो आज से "आनंद सिंह राणा" का इंतजार करना शुरू करे ।
दूध के दांत गिरेंगे  और छठी के चावल याद आ जाएंगे ।
तुम्हारे दिन ऐसे बहुरेंगे रॉकी, कि तुम्हारी  लाश को कुत्ते ही खा जाएंगे ।। 

आज से तुम अपनी जिंदगी बचाने का इंतजाम करो 
नहीं तो  मै तुम्हे जहन्नुम के दरवाजे में भेज दूंगा ।

रॉकी सिंह - तुम अभी अपने खाने पीने का इंतजाम करो राणा ।
घर में बच्चे भूख से बिलबिला रहे होगें ।
और ये कहावत तो सुनी ही होगी तुमने कि जो लोग ज्यादा बकबक करते है वो तो वैसे भी कुछ नहीं कर पाते । 
मुझे ज्यादा बोलने का शौक नहीं है ।
मुझे जो करना है वो मै करूंगा 
तुम अपना परिवार बचा सको तो बचा लेना राणा ।

आनंद सिंह राणा - मिस्टर अब तुम अपनी ओर अपने बीबी बच्चो की फिकर करो ।
मै तो तुम्हे बस इतना ही बताने आया था ।
बाकी का नजारा तुम खुद देखोगे ।
वो आदमी भी क्या जो सरेआम बेज्जत होता रहे और कुछ न कर सके ।
मै अपने भाइयों कि कसम खा के कहता हूं 
तुम्हारा अंत बिल्कुल निकट है ,
मुझे ये भी मालूम है कि तुम अपने बचने के बहुत सारे उपाय भी करोगे मगर याद रखना बच नहीं सकोगे ।
शहर का चप्पा चप्पा मैंने लॉक करवा दिया है मिस्टर आरके सिंह
तुम यूं ही नादान बच्चे की तरह ख्वाबों में उड़ रहे हो ।
अब इस वक्त कानून और कानून की वर्दी पहनने वाले वो सब सिपाही मेरी जेब में है मिस्टर रॉकी ।
देखो तुम्हारे महल के पीछे वाले दरवाजे में बंदूक की नोक दिख रही है ।
न न न न अभी नहीं 
अभी नहीं मारूंगा तुम्हे
अभी तो तुम्हे बताने आया था 
वैसे भी तुम बहुत चालाक बनते हो मिस्टर आरके ।
आरके - मुझे विश्वाश नहीं हो रहा 
ये क्या मजाक कर रहे हो तुम राणा ।
अगर तुम मुझे चेतावनी देने  आए थे तो फिर ये कानून के सिपाही लेकर क्यों आए हो ।
ये कहां का इंसाफ है ।
चेतावनी देने वाला व्यक्ति पहले अकेले आता है ।

आनंद सिंह राणा - वाह आरके वाह !
भाषण अच्छा दे लेते हो 
मतलब मै जो कुछ करूं तो तुम्हारे हिसाब से करूं 
मै चेतावनी देने अकेले आऊं वो भी तेरे घर ! जिससे कि तू मुझे भी मौत के घाट उतार सके ।
वाह बहुत खूब !
मुझे तो हंसी आ गई रे तेरे ऊपर ।
क्या बच्चों जैसी बात कर रहा है ।
लगता है बंदूक देख के सेठेया गया तू आरके ।
अब तेरे पास दम नहीं बची ।
तू कैसे सम्हालेगा परिवार अपना 
जब तू खुद ही इतना डर रहा है आरके ।
आरके - आरके ने नौकर को आवाज़ लगाई -
भोला जरा मंत्री जी को फोन मिला ओ ।
आनंद सिंह राणा - मिला लो -  मिला लो  ,  सबको मिला लो 
देखता हूं आज कौन मंत्री तुम्हारे डेरे में आता है ।
सारा डेरा तो इस मुल्क के सिपाहियों के कब्जे में है आरके ।
करलो तुम्हे पन्द्रह मिनट का मौका और देता हूं  क्योंकि समय समाप्त होने वाला है ।
 ये मानो कि तुम्हारी जिंदगी सिर्फ अब पन्द्रह मिनट कि बची है  ।
इसमें चाहे अपनी हिफाजत कर लो या अपने सगे संबंधियों की ।
कुल मिलाकर तुम्हारा विनाश निश्चित है ।
देखो चारो तरफ सिपाही खड़े है 
कहा था न मैंने कानून को अपने जेब में डाल रक्खा है ।
क्योंकि ईंट का जवाब मै पत्थर से देना जानता हूं मिस्टर आरके ।
असत्य आखिर कब तक और किसके बल पर टिकेगा आरके सिंह ।

उपन्यासकार - कवि जीतेन्द्र कानपुरी ( टैटू वाले)

(विशेष सूचना - उपन्यास में लिखे हुए सभी पात्रों के नाम एवं कहानी काल्पनिक है इस कहानी का किसी के निजी जीवन से कोई संबंध नहीं है )

बुधवार, 16 सितंबर 2020

2:42 am

लुग़ात-ए-फ़िक्री: वो अनूठा ‘शब्दकोश’ जो लफ़्ज़ों का कुछ अलग ही अर्थ बताता है

फ़िक्र नामा, fikr nama, फ़िक्र तोनस्वी, fikr taunsvi


फ़िक्र तोनस्वी, जिनका अस्ल नाम राम लाल भाटिया था, उर्दू के विख्यात हास्य और व्यंग्य लेखक थे। 12 सितंबर 1987 को उनका निधन हुआ। फ़िक्र अपनी दीगर मज़ाहिया तहरीरों के साथ अपने अख़बारी कॉलम ‘प्याज़ के छिलके’ और विभाजन के समय के क़तल-ओ-ख़ून की रूदाद पर मुश्तमिल किताब ‘छटा दरिया’ के लिए जाने जाते हैं।

नीचे पेश की गई तहरीर फ़िक्र तोनस्वी की किताब ‘फ़िक्र-नामा’ से ली गई है। आप इसे पढ़ें, लुत्फ़-अंदोज़ हों, कुछ सीख हासिल करें और अगर किसी शब्द के बारे में आपका कोई ज़ाती ख़्याल हो तो कमेंट बॉक्स में लिख कर हमारे साथ साझा करें।

लुग़ात-ए-फ़िक्री

इलेक्शन: एक दंगल जो वोटरों और लीडरों के दरमियान होता है और जिसमें लीडर जीत जाते हैं, वोटर हार जाते हैं।

वोट: चियूंटी के पर, जो बरसात के मौसम में निकल आते हैं।

वोटर: आँख से गिर कर मिट्टी में रुला हुआ आँसू जिसे इलेक्शन के दौरान मोती समझ कर उठा लिया जाता है और इलेक्शन के बाद फिर मिट्टी में मिला दिया जाता है।

वोटर लिस्ट: जौहरी की दुकान पर लटकी हुई मोतियों की लड़ियाँ।

उम्मीदवार: बड़े-बड़े अक़लमंदों को भी बेवक़ूफ़ बनाने वाला अक़लमंद।

चुनावी  सभा: एक तम्बूरा जिस पर बेसुरे गाने गाये जाते हैं।

चुनावी घोषणापत्र: जिसमें बाद में तोड़ने के लिए वादे किए जाते हैं।

चुनावी भाषण: इलेक्शन के जंगल में गीडड़ों का नग़मा कि ‘मेरा बाप बादशाह था।’

चुनावी झण्डे: रंगा-रंग पतंगों की दुकान।

चुनावी पोस्टर: उम्मीदवार का शजरा-ए-नसब। उसके ख़ानदान की मुकम्मल तारीख़।

पोलिंग एजेंट: उम्मीदवार का चमचा।

इलेक्शन का ख़र्चा: जूए पर लगाई हुई नक़दी।

Fikr Taunsvi, Ram Lal Bhatia
फ़िक्र तोनस्वी, जिनका अस्ल नाम राम लाल भाटिया था, उर्दू के विख्यात हास्य और व्यंग्य लेखक थे।

महबूबा: एक क़िस्म की गै़र-क़ानूनी बीवी।

बीवी: महबूबा का अंजाम।

इश्क़: ख़ुदकुशी करने से पहले की हालत।

रिश्तेदार: एक रस्सी जो टूट कर भी सिर पर लटकती रहती है।

दिल्ली: जहाँ मकान बड़े हैं इन्सान छोटे।

बंबई: एक मंदिर जहाँ से भगवान निकल गया है।

साईकिल: क्लर्क बाबू की दूसरी बीवी।

क्लर्क: एक गीदड़ जो शेर का जामा पहन कर कुर्सी पर बैठता है।

बूढ़े: दीवालिया दुकान के बाहर लटका हुआ पुराना साइनबोर्ड।

अवाम: चौपाल पर रखा हुआ एक हुक़्क़ा जिसे हर राहगीर आकर पीता है।

बीवी: महबूबा की बिगड़ी हुई शक्ल।

ख़ुदा: वहम और हक़ीक़त के दरमियान डोलता हुआ पेन्डुलम।

बेरोज़गारी: इज़्ज़त हासिल करने से पहले बेइज़्ज़ती का तजुर्बा।

क्रप्शन: एक ज़हर जिसे शहद की तरह मज़े ले-ले कर चाटा जाता है।

सियासत: पैसे वालों की अय्याशी और बिन पैसे वालों के गले का ढोल।

बीवी: एक लतीफ़ा जो बार-बार दोहराने से बासी हो जाता है।

सच्चाई: एक चोर जो डर के मारे बाहर नहीं निकलता।

झूट: एक फल जो देखने में हसीन है। खाने में लज़ीज़ है। लेकिन जिसे हज़म करना मुश्किल है।

लोकतंत्र: एक मंदिर जहां भगत लोग चढ़ावा चढ़ाते हैं और पुजारी खा जाते हैं।

सूद: दूसरों का भला करने के लिए एक बुराई।

ग़रीबी: एक कश्कोल जिसमें अमीर लोग पैसे फेंक कर अपने गुनाहों की तादाद कम करते हैं।

शायर: एक परिंदा जो उम्र-भर अपना गुम-शुदा (खोया हुआ) आशियाना ढूंढता रहता है।

लीडर: दूसरों के खेत में अपना बीज डाल कर फ़सल उगाने और बेच खाने वाला।

क़ब्रिस्तान: मुर्दा इन्सानों का हाल ) वर्तमान(, ज़िंदा इन्सानों का मुस्तक़बिल (भविष्य)।

उम्मीद: एक फूल जो कभी बंजर ज़मीन को ज़रख़ेज़ बना देता है और कभी ज़रख़ेज़ ज़मीन को बंजर।

ये तहरीर फ़िक्र तोनस्वी की किताब ‘फ़िक्र-नामा’ से ली गई है।

ख़ुशामद: कमज़ोर की ताक़त और ताक़तवर की कमज़ोरी।

शराफ़त: एक ऐनक जिसे अंधे लगाते हैं।

तालीम: अनपढ़ लोगों को बेवक़ूफ़ बनाने का हथियार।

बहादुर: आग को पानी समझ कर पी जाने वाला कम-इल्म।

अंधेरा: शैतान का घर जिसे ख़ुदा अपने हाथ से तामीर करता है।

रसोई घर: गृहस्ती औरतों की राजधानी।

गृहस्ती औरत: गृहस्ती मर्द की गाड़ी का पैट्रोल पंप।

महल: झोंपड़ी के मुक़ाबले पर खींची हुई बड़ी लकीर।

छात्र: एक प्यासा जिसे समुंद्र में धक्का दे दिया जाता है और वो उम्र-भर डुबकियाँ खाता रहता है।

जेब-कतरा: एक शरारती छोकरा जो दूसरों की साईकिल में पिन चुभोकर उस की हवा निकाल देता है और भाग जाता है।

सड़क: एक रास्ता जो जन्नत को भी जाता है और जहन्नुम को भी।

जन्नत: एक ख़्वाब।

जहन्नुम: इस ख़्वाब की ताबीर।

पैसा: एक छिपकली जो इन्सान के मुँह में आ गई है। और अब उसे खाए तो कोढ़ी, छोड़े तो कलंकी।

दरिया: जिसके किनारे घर बनाओ तो उसे जोश आ जाता है और घर को बहा ले जाता है। लेकिन अगर इसमें डूबने के लिए जाओ तो हमेशा सूखा मिलता है।

ख़ुदकुशी: जायज़ चीज़ का नाजायज़ इस्तिमाल।

कुर्सी: जिस पर बैठ कर अक़लमंद आदमी बेवक़ूफ़ बन जाता है।

नेकी: जिसे पहले ज़माने में लोग दरिया में डाल देते थे। आजकल मंडी में बराए फ़रोख़्त (बेचने के लिए) भेज देते हैं।

अख़बार: एक फल जो सुकून के लिए खाया जाता है। मगर खाते ही बेचैनी पैदा कर देता है।

मय-गुसार (शराबी): रात का शहंशाह, सुबह का फ़क़ीर।

तवाइफ़: डिस्पोज़ल का माल जिसे औने-पौने दाम पर नीलाम कर के बेच दिया जाता है।

ख़ुदा: इन्सान की वो कमज़ोरी जिससे वो ताक़त हासिल करता है।

मेहमान: जिसके आने पर ख़ुशी और जाने पर और ज़्यादा ख़ुशी होती है।

ड़ॉक्टर: जो बीमारों से हंस-हंस कर बातें करता है मगर तंदरुस्तों को देखकर मुँह फेर लेता है।

जज: इन्साफ़ करने में आज़ाद मगर क़ानून का ग़ुलाम।

गवाह: झूट और सच्च के दरमियान लटकता हुआ पेन्डुलम।

कोशिश: अंधेरे में तीर चलाना। लग जाये तो वाह वाह, चूक जाये तो आह आह।

अंधेरा: बिजली कंपनी का सिर दर्द।

बिजली: चोरों का सिर दर्द।

चोर: एक जेब का माल दूसरी जेब में मुंतक़िल करने वाला आर्टिस्ट।

अंजान: जो वो चीज़ें ना जानता हो, जिन्हें जानने से दुख पैदा होते हैं।

उस्ताद: बेवक़ूफ़ों को अक़लमंद बनाकर अपने दुश्मन बनाने वाला बेवक़ूफ़।

कूड़ा कर्कट: इस्तेमाल शूदा चीज़ों का जनाज़ा।

कमज़ोरी: एक मुर्दा जिस पर ज़िंदा लोग हमला कर देते हैं और बड़े ख़ुश होते हैं।

क़त्ल: आँखों वालों की अंधी हरकत।

मकान: चिड़ियों, मक्खियों और इन्सानों का मुश्तर्का (साझा) रैन-बसेरा।

मुफ़्लिस: जो अगर मौजूद ना हो तो अहल-ए-दौलत ख़ुदकुशी कर लें।

लफ़्ज़: जो मुँह से अदा हो जाए तो बाहर जंग छिड़ जाये, अदा ना हो सके तो अंदर जंग छिड़ जाये।

मरीज़: जिसके बलबूते पर दुनिया-भर की मेडिकल कंपनियाँ चलती हैं।

क़ब्रिस्तान: लाशों का सोशलिस्ट स्टेट।

बदसूरत औरत: हसीनाओं को परखने का आला।

आदम: ख़ुदा की वो ग़लती जिसे वो आज तक ठीक नहीं कर सका।

ग़लती: माफ़ कर देने वालों के लिए एक नादिर (दुर्लभ) मौक़ा।

सरमाया-दार (पूंजीवादी): दूसरों की कतरनों से अपने लिए पतलून तैयार करने वाला एक माहिर टेलर मास्टर।

अमन: वह्शी लोगों की नींद का ज़माना।

बकरी: जिसकी अक़्ल ज़्यादा है दूध कम।

नंगा: टेक्सटाइल मिलों का मज़ाक़ उड़ाने वाला।

मक़रूज़: एक शहंशाह जो दूसरों की कमाई पर ऐश करता है।

हुकूमत: काँटों का ताज जिसे हर गंजा पहनना चाहता है।

अक़्ल: मुहब्बत और ख़ुलूस का क़ब्रिस्तान।

बेवक़ूफ़ी: एक ख़ज़ाना जो कभी ख़ाली नहीं होता।

विवाह: इश्क़ का अंजाम, बच्चों का आग़ाज़।

दिल: एक क़ब्र जिसके नीचे अक्सर ज़िंदा मुर्दे दफ़न कर दिए जाते हैं।

दिमाग़: शैतान और ख़ुदा दोनों का मुश्तरका (साझे का) घर।

पाँव: जो दूसरों को ठोकर मारता है, ख़ुद ठोकर खाता है।

काग़ज़: कोरा हो तो बे-ज़रर, लिखा जाये तो ज़रर-रसाँ।

ख़ुश-क़िस्मत: एक लाठी जो जिसके हाथ लग जाये उसी की हो जाती है।

विदेशी क़र्ज़: एक डायन जो बच्चे पैदा करती है, उन्हें खिलाती और पालती-पोस्ती है। और फिर ख़ुद ही उन्हें खा जाती है।

हिल स्टेशन: सेहत-मंद मरीज़ों का अस्पताल।

मंगलवार, 1 सितंबर 2020

4:03 am

जीतेन्द्र कानपुरी

शहरों में गांव वाली बात कहां ?? -

गमों की धूप में, साए ढूंढता हूं ।
मै पागल ही हूं,सूरज में तारे ढूढ़ता हूं ।।

शहरों में गांव की, नमी नहीं मिलती ।
वो पेड़ नहीं मिलते, वो जमीं नहीं मिलती ।।
महलों में कांश का ,छप्पर  ढूंढता हूं ।
मै पागल ही हूं, गुड़ में शक्कर ढूंढता हूं ।।

महानगरों में असली वाले, दोस्त नहीं मिलते ।
इंजेक्शन की सब्जी से,कभी चेहरे नहीं खिलते।।
मै व्यापार के ढेर में, व्यवहार ढूढता हूं ।
मै पागल ही हूं, दुश्मनों में प्यार ढूढता हूं ।।


मॉल मिलते है, मन्दिर नहीं मिलते ।
इस भीड़ भरे शहर में, खुशदिल नहीं मिलते ।।
पत्थरों में दिल के, अहसास ढूढता हूं ।
मै पागल ही हूं, धुएं में सांस ढूढता हूं ।।

और सुनो बसें, भरी है खचाखच ।
एक दूसरे को दाब कर ,चले हैं मचामच ।।
पसीने की बदबू में ,सुगंध ढूढता हूं ।
मै पागल ही हूं, जो आनंद ढूढता हूं ।।
लेखक कवि एवं कहानीकार -
जीतेन्द्र कानपुरी ( टैटू वाले)

सोमवार, 24 अगस्त 2020

6:39 pm

पाखी पब्लिशिंग हाउस' द्वारा पुस्तकाकार लाया जाएगा

 सूचनार्थ : 

#देश_विशेषांक एवं #पुरस्कार_योजना


'पाखी' का दिसम्बर अंक 2020 'देश' नामक संस्था को केंद्र बिंदु बनाते हुए लिखी गई नई कहानियों, कविताओं, गीत, ग़ज़ल , निबंध, लेख आदि पर केंद्रित विशेषांक होगा। सभी नवोदित एवं वरिष्ठ रचनाकारों से आग्रह है कि मौजू समय में सर्वाधिक ज्वलंत हो उठे विषय 'देश विशेष' पर अपनी रचनाएं भेजें।


इस अंक में प्रकाशित सभी सामग्री को 'पाखी पब्लिशिंग हाउस' द्वारा पुस्तकाकार लाया जाएगा तथा सर्वश्रेष्ठ तीन रचनाओं पर क्रमशः प्रथम पुरस्कार 21 हजार, द्वितीय  11 हजार एवं तृतीय 5 हजार रुपये सम्मान धनराशि होगी। साथ ही नए लेखकों के लिए यानी ऐसे लेखक जिनकी बीज रचना होगी, दो सांत्वना पुरस्कार 2100 रुपयों की धनराशि के होंगे।


रचनाएं भेजें - pakhimagazine@gmail.com

संपादक के नाम चिट्ठी लिखें - editor@pakhi.in

संपर्क हेतु: 

फोन : 0120- 4692200

व्हाट्सएप - 7860920421


(पाखी के ऑफिसियल पेज से)


बुधवार, 19 अगस्त 2020

6:11 am
कविता
        POEM
                   खुशी
                   KHUSHI



मेरी ज़िंदगी में खुशी बहुत कम है, 
जो खुशी उसमे खुश बहुत हम है, 
मेरी गम भी बहुत बेरहम है
खुशी के सामने दिखाती बहुत दम है।
मेरी ज़िन्दगी में ख़ुशी बहुत कम है, 
जो खुशी है उसमे खुश बहुत हम है।



हार जाती है मेरी गम, 
मेरी खुशी में हैं इतनी दम, 
 किसी की खुशी की मोहताज नहीं हम, 
जो खुशी है उसमे खुश रहते हैं हरदम। 
मेरी ज़िन्दगी में खुशी बहुत कम है, 
जो खुशी है उसमे खुश बहुत हम है।


नहीं रहते उदास कभी हम, 
खुशी के सामने हार गई गम, 
 खुद से उम्मीद रखते हैं हम, 
दूसरों से उम्मीद रखते हैं कम, 
मेरी ज़िंदगी में खुशी बहुत कम है, 
जो खुशी है उसमे खुश बहुत हम है।।

             लेखक
           डॉ. रवि कुमार रंजन
        DR.RAVI KUMAR RANJAN
    बेलसंड 

मंगलवार, 11 अगस्त 2020

5:33 pm

राहत इंदौरी सहाब आपने ही कहा था। बुलाती है मगर जाने का नही औऱ खुद चल दिये..

शायरी के एक युग का अंत हो गया 😭 भावभीनी शायरी के एक युग का अंत हो गया 😭 भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
✨स्वर्गीय राहत इंदौरी जी श्रद्धांजलि अर्पित💐💐
✨ इंदौर के रहने वाले मशहूर शायर राहत इंदौरी का मंगलवार की शाम को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वो 70 साल के थे। सोमवार को ही उन्हें इलाज के लिए अरविंदो अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। राहत इंदौरी बॉलीवुड गीतकार और उर्दू भाषा के मशहूर कवि थे। वो उर्दू भाषा के पूर्व प्रोफेसर और चित्रकार भी रहे।
  ✨हम आपको बताएंगे राहत कुरैशी के राहत इंदौरी बनने और देश दुनिया में नाम कमाने की पूरी कहानी। साथ ही राहत इंदौरी के जीवन से जुड़ी हर खास जानकारी।उनका जन्म 1 जनवरी 1950 को इंदौर में हुआ था। उनका पूरा नाम राहत कुरैशी था। उनके पिता का नाम रफतुल्लाह कुरैशी और मॉ का नाम मकबूल उन निसा बेगम है। वो इनकी चौथी संतान थे। उनकी 2 बड़ी बहनें हैं जिनका नाम तकीरेब और तहज़ीब है। उनका एक बड़ा भाई है जिसका नाम एक्विल और एक छोटा भाई है जिसका नाम आदिल है। 
उनकी शिक्षा दीक्षा भी मध्य प्रदेश में ही हुई थी। ✨आरंभिक शिक्षा देवास और इंदौर के नूतन स्कूल से प्राप्त करने के बाद इंदौर विश्वविद्यालय से उर्दू में एम.ए. और उर्दू मुशायरा शीर्षक से पीएच.डी. की डिग्री हासिल की। उसके बाद 16 वर्षों तक इंदौर विश्वविदायालय में उर्दू साहित्य के अध्यापक के तौर पर अपनी सेवाएं दी और त्रैमासिक पत्रिका शाखें का 10 वर्षों तक संपादन किया। पिछले 40-45 वर्षों से राहत साहब राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर मुशायरों की शान बने हुए थे।

 ✨राहत इंदौरी उर्फ राहत कुरैशी ने दो शादियां की थी। उन्होंने पहली शादी 27 मई 1986 को सीमा रहत से की। सीमा से उनको एक बेटी शिबिल और 2 बेटे जिनका नाम फैज़ल और सतलज राहत है, हुए हैं। ✨उन्होंने दूसरी शादी अंजुम रहबर से साल 1988 में की थी। अंजुम से उनको एक पुत्र हुआ, कुछ सालों के बाद इन दोनों में तलाक हो गया था।राहत इंदौरी के शायर बनने की कहानी भी दिलचस्प है।
 वो अपने स्कूली दिनों में सड़कों पर साइन बोर्ड लिखने का काम करते थे। बताया जाता है कि उनकी लिखावट काफी सुंदर थी। वो अपनी लिखावट से ही किसी का भी दिल जीत लेते थे लेकिन तकदीर ने तो उनका शायर बनना मुकर्रर किया हुआ था। ✨एक मुशायरे के दौरान उनकी मुलाकात मशहूर शायर जां निसार अख्तर से हुई। बताया जाता है कि ऑटोग्राफ लेते वक्त राहत इंदौरी ने खुद को शायर बनने की इच्छा उनके सामने जाहिर की। तब अख्तर साहब ने कहा कि पहले 5 हजार शेर जुबानी याद कर लें फिर वो शायरी खुद ब खुद लिखने लगेंगे।

 तब राहत इंदौरी ने जबाव दिया कि 5 हजार शेर तो मुझे पहले से ही याद है। इस पर अख्तर साहब ने जवाब दिया कि फिर तो तुम पहले से ही शायर हो, देर किस बात की है स्टेज संभाला करो। उसके बाद राहत इंदौरी इंदौर के आस पास के इलाकों की महफिलों में अपनी शायरी का जलवा बिखेरने लगे। धीरे-धीरे वो एक ऐसे शायर बन गए जो अपनी बात अपने शेरों के जरिए इस कदर रखते हैं कि उन्हें नजरअंदाज करना नामुमकिन हो जाता।
 राहत इंदौरी की शायरी में जीवन के हर पहलू पर उनकी कलम का जादू देखने को मिलता था। बात चाहे दोस्ती की हो या प्रेम की या फिर रिश्तों की, राहत इंदौरी की कलम हर क्षेत्र में जमकर चलती थी।शायरी लिखने से पहले वह एक चित्रकार बनना चाहते थे और जिसके लिए उन्होंने व्यावसायिक स्तर पर पेंटिंग करना भी शुरू कर दिया था। 
इस दौरान वह बॉलीवुड फिल्म के पोस्टर और बैनर को चित्रित करते थे। यही नहीं, वह पुस्तकों के कवर को डिजाइन करते थे। उनके गीतों को 11 से अधिक ब्लॉकबस्टर बॉलीवुड फिल्मों में इस्तेमाल किया गया। जिसमें से मुन्ना भाई एमबीबीएस एक है। वह एक सरल और स्पष्ट भाषा में कविता लिखते थे। वह अपनी शायरी की नज़्मों को एक खास शैली में प्रस्तुत करते थे, इसलिए उनकी अलग ही पहचान थी।

 संकलनकर्ता!!!
💞साजिद इकबाल 
      राष्ट्रीय अध्यक्ष 
जी.डी फाउंडेशन लखनऊ ,भारत
7033066062

रविवार, 9 अगस्त 2020

6:23 am

प्रकाशन हेतु: बताने लगे हैं (नज़्म)


जब से आईने से नज़र मिलाने लगे हैं 
अपनी ही बातों से वो उकताने लगे हैं

अपने भी घर में जब होने लगा हादसा
वाइज़ नफरत की दीवार गिराने लगे हैं

अकेलेपन से जब घिर गए हर ओर से
फिर अपने पराए सबको मनाने लगे हैं

मन्दिर मस्जिद से जब  बात नहीं बनी
तब इन  किताबों से धूल हटाने लगे हैं

सब दंगे- फसाद जब हो गए  नाकाम  
बात-चीत को समाधान बताने लगे हैं

समझे जब देश बना है हर आदमी से
तो हर इंसान को इंसान बताने लगे हैं

वाइज़-उपदेश देने वाला

सलिल सरोज
नई दिल्ली

सोमवार, 3 अगस्त 2020

10:20 pm

कुछ दाग़ रह गए है धुलाई के बाद भी

अफसोस है कि इतनी सफाई के बाद भी
कुछ दाग़ रह गए है धुलाई के बाद भी

दुनिया तिरी लिखाई समझ मे न आ सकी
अनपढ़ रहे हम इतनी पढ़ाई के बाद भी

डाली थी तुमने पाओ में जंजीर जिस जगह
बैठे है हम वहीं पे रिहाई के बाद भी

ये हौसला भी इश्क़ ने हमको अता किया
ज़िन्दा है देख तेरी जुदाई के बाद भी

सहरा तिरा मिज़ाज समझना है इसलिए
हम चल रहे है आबला पाई के बाद भी

दिल को जकड़ के बैठा है ये कोन सा मलाल
हम खुश नही है तेरी बधाई के बाद भी


वसीम नादिर 
बदायूँ 
1:22 pm

शकील बदायूँनी के जन्मदिन पर विशेष लेख

बदायूँ...
   यूं तो बदायूँ हमेशा से इल्म ओ अदब की खुशबू से मुअत्तर सरज़मीं रही है,ये महबूबे इलाही ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया की जाए पैदाइश (जन्मस्थान), और शहज़ादाए यमन हज़रत सुल्तानुल आरफीन और हज़रत शाह विलायत (छोटे -बड़े सरकार) और तमाम औलिया अल्लाह का मैदाने अमल रहने के सबब इल्म ओ मारिफ़त की निगाह से मदीनतुल औलिया कहा गया,दूसरी तरफ मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूँनी(अकबर के नवरत्नों में से एक), फानी बदायूँनी,महशर बदायूँनी,अदा जाफरी,जीलानी बानो,शकील बदायूँनी,इरफान सिद्दीकी ब्रजेन्द्र अवस्थी,उर्मिलेश शंखधार जैसे अदब के नायाब नगीनों ने इस शहर की अज़मत को चार चांद लगाए।
    इनमें से एक शकील बदायूँनी जिनका आज यानी 3 अगस्त को यौम ए पैदाइश है,इनका कुछ ज़िक्र किया जाए।
  ग़फ़्फ़ार अहमद जिन्हें दुनिया ने शकील बदायूँनी नाम से जाना,बदायूँ में 3 अगस्त 1916 को पैदा हुए, इस्लामिया मिस्टन हाई स्कूल(अब इस्लामिया इण्टर कॉलेज )बदायूँ से 1935 में हाई स्कूल और अलीगढ़ से 1939 में एफ.ए.(इण्टर),यहीं से 1942 में बी.ए. किया। 
   अपने शेरी सफर की शुरुआत में इन्होंने सबा, फ़रोग़ और फिर बाद में शकील तखल्लुस इख़्तेयार किया। फिल्मों में इनकी नग़मा निगारी की शुरुआत 1948 में फ़िल्म दर्द के साथ हुई, शकील बदायूँनी ने तक़रीबन 100 फिल्मों में गीत लिखे जिनमे दर्द,मेला,दुलारी,दीदार,बैजू बावरा,उड़न खटोला,अमर,शबाब,मदर इंडिया,सोहनी महिवाल, चौदहवीं का चांद,कोहनूर,मुग़ल ए आज़म,घराना,गंगा जमुना,बीस साल बाद,साहब बीबी और ग़ुलाम,सन ऑफ इण्डिया, मेरे महबूब,दूर की आवाज़, लीडर,दिल दिया दर्द लिया,राम और श्याम,आदमी वगैरह कुछ बेहद मक़बूल फिल्में हैं जिनमे शकील बदायूनी के गीतों ने अपना जादू बिखेरा है।
   शकील बदायूँनी की शायरी के मजमूए 'रानाइयाँ','सनम व हरम", 'शबिस्तान', 'नग़मा ए फिरदौस'(नात व मनकबत),और उनके ज़रिए लिखे गए फिल्मी गीतों के मजमूए  'धरती को आकाश पुकारे'और 'कहीं दीप जले कहीं दिल' बेहद मक़बूल हुए।


   आइए इनके कुछ अशआर के साथ जुड़ा जाए और इस अज़ीम शायर और गीतकार को खिराज ए अकीदत पेश किया जाए-

      अक्सर तो दिल की गिरफ्तगी ए शौक़ की कसम
      मुझ  तक  वो  आ   गए   हैं  इरादा  किये   बग़ैर

      वो  अगर  बुरा न माने तो जहाने रंग ओ बू में
      मैं सुकूने दिल की खातिर कोई ढूंढ लूं सहारा

     आप  ख़ूने   इश्क़  का  इल्ज़ाम  अपने  सर न लें
     आप का दामन सलामत, अपने क़ातिल हम सही

      ज़िंदगी   के   आईने   को  तोड़   दो
      इसमें अब कुछ भी नज़र आता नहीं

      देखूं  उन्हें  तो  ताब ए नज़ारा  नहीं  मगर
      उनको न देखना भी क़यामत है क्या करूँ

      दीदा ओ दिल की तबाही मुझे मंज़ूर मगर
      उनका उतरा हुआ चेहरा नहीं देखा जाता
     
     ज़िंदगी आ तुझे क़ातिल के हवाले कर दूं
     मुझसे अब ख़ूने तमन्ना नहीं देखा जाता

     वही  कारवां,   वही  रास्ते,     वही  ज़िंदगी,   वही  मरहले
    मगर अपने अपने मक़ाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं
   
     ग़मे आशिक़ी से कह दो रहे आम तक न पहुंचे
    मुझे खौफ है ये तोहमत मेरे नाम तक न पहुंचे


                  --------**********-----------
                               -शराफ़त समीर
                               दातागंज-बदायूँ
                              9058033485

शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

7:17 pm

मोहब्बत की दुनिया बसाने से पहले

रचना प्रकाशन हेतु प्रमाण पत्र
सेवा में,
       सम्पादक महोदय
        हिंदी साहित्य वैभव वेब पत्रिका
        
        

श्रीमान जी,
         सविनय निवेदन यह है कि मेरी यह ग़ज़ल नितांत मौलिक,अप्रकाशित और अप्रसारित है और मैं इसके प्रकाशन का अधिकार हिंदी साहित्य वैभव वेब पत्रिका को देता हूँ! आशा है मेरी इस रचना का यथासंभव उपयोग आपकी पत्रिका में हो सकेगा!
           धन्यवाद
          भवदीय
         बलजीत सिंह बेनाम
       जन्म तिथि:23/5/1983
       शिक्षा:स्नातक
        सम्प्रति:संगीत अध्यापक
        उपलब्धियां:विविध मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित
विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित
सम्पर्क सूत्र: 103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी, हाँसी
ज़िला हिसार(हरियाणा)
मोबाईल नंबर:9996266210

ग़ज़ल

मोहब्बत की दुनिया बसाने से पहले
न लेंगे इजाज़त ज़माने से पहले

बहुत बदतमीज़ी से वो पेश आया
अदब के तरीके सिखाने से पहले

अमीरों का दिल काँपता ही नहीं है
ग़रीबों की हस्ती मिटाने से पहले

किसी शख्स को खोने का खौफ़ भी है
उसे अपने जीवन में लाने से पहले

कभी मैं बशर सीधा साधा बहुत था
जहां की निग़ाहों में आने से पहले

गुरुवार, 30 जुलाई 2020

5:46 am

जीतेन्द्र कानपुरी की कविता - "संघर्ष करो फांसी मत लगाओ" -

 . कविता -
संघर्ष करो फांसी मत लगाओ

जिंदगी बहुत कीमती है
इसे समझो और दूसरे को समझाओ ।
अवसर पाए हो तो कुछ इसका लाभ उठाओ ।।
चलो फिरो लोगों से मिलो 
समय ब्यर्थ मत गवाओ ।
आदमी हो आदमी 
कुछ कर्तव्य निभाओ ।।
जरा सी बात में आवेश में जो आओगे ।
वक्त से पहले ही मिट जाओगे ।।
मेरी बात मानो 
मेहनत करो कुछ यस कमाओ ।
जिंदगी का भार उठाओ 
संघर्ष करो फांसी मत लगाओ ।।
लेखक एवं राष्ट्रीय कवि
जीतेन्द्र कानपुरी

बुधवार, 29 जुलाई 2020

3:32 am

कविता - जीतेन्द्र कानपुरी की

"एक बार सोचो बस कर डालो"

एक बार सोचो 
बस कर डालो ।
अपने आप को
 पल में बदल डालो ।।
वरना वक्त कम है 
ये भी निकल जाएगा ।
दीप जो तुझमें जलता है
वो भी बुझ जाएगा ।।
लेखक एवं राष्ट्रीय कवि
जीतेन्द्र कानपुरी

मंगलवार, 28 जुलाई 2020

5:24 am

दानवीर सही भी हो ,जरूरी तो नहीं।



कर्ण की छवि आज भी भारतीय जनमानस में एक ऐसे महायोद्धा की है जो जीवनभर प्रतिकूल परिस्थितियों से लड़ता रहा। बहुत से लोगों का यह भी मानना है कि कर्ण को कभी भी वह सब नहीं मिला जिसका वह वास्तविक रूप से अधिकारी था। तर्कसंगत रूप से कहा जाए तो हस्तिनापुर के सिंहासन का वास्तविक अधिकारी कर्ण ही था क्योंकि वह कुरु राजपरिवार से ही था और युधिष्ठिर और दुर्योधन से ज्येष्ठ था, लेकिन उसकी वास्तविक पहचान उसकी मृत्यु तक अज्ञात ही रही। कर्ण को एक दानवीर और महान योद्धा माना जाता है। उन्हें दानवीर कर्ण भी कहा जाता है।भगवान् कृष्ण ने भी कर्ण को सबसे बड़ा दानी माना है। अर्जुन ने एक बार कृष्ण से पूछा की सब कर्ण की इतनी प्रशांसा क्यों करते हैं? तब कृष्ण ने दो पर्वतों को सोने में बदल दिया और अर्जुन से कहा के इस सोने को गांव वालों में बांट दो। अर्जुन ने सारे गांव वालों को बुलाया और पर्वत काट-काट कर देने लगे और कुछ समय बाद थक कर बैठ गए।तब कृष्ण ने कर्ण को बुलाया और सोने को बांटने के लिए कहा, तो कर्ण ने बिना कुछ सोचे समझे गांव वालों को कह दिया के ये सारा सोना गांव वालों का है और वे इसे आपस में बांट ले। तब कृष्ण ने अर्जुन को समझाया के कर्ण दान करने से पहले अपने हित के बारे में नहीं सोचता। इसी बात के कारण उन्हें सबसे बड़ा दानवीर कहा जाता है।

रश्मिरथी में रामधारी सिंह दिनकर ने बखूबी लिखा है कि प्रतिभा किसी भी जाति में बँध कर नहीं रह सकती,लेकिन छोटे जाती में पैदा होने का दंश हमेशा झेलते रहना पड़ता है  -
'कौन जन्म लेता किस कुल में? आकस्मिक ही है यह बात,
छोटे कुल पर, किन्तु यहाँ होते तब भी कितने आघात!
हाय, जाति छोटी है, तो फिर सभी हमारे गुण छोटे,
जाति बड़ी, तो बड़े बनें, वे, रहें लाख चाहे खोटे।'

अपनी विपत्तियों का जवाब ढूँढने कर्ण जब कृष्ण के पास पहुँचते हैं तो वह संवाद कई अनछुए पहलुओं पर से पर्दा उठाता है।

कर्ण: हे कृष्ण, जन्म लेते ही मेरी माँ ने मुझे छोड़ दिया, गरीब घर में होते हुए भी मैं शूरवीर पैदा हुआ तो इसमें मेरा क्या दोष है? गुरु द्रोणाचार्य ने पांडवों और कौरवों को शिक्षा दी लेकिन मुझे शिक्षा नहीं दी क्यूंकि मैं क्षत्रिय नहीं था। मैंने परशुराम से शिक्षा ली, लेकिन यह जानने के पश्चात् की मैं क्षत्रिय नहीं हूँ, मुझे सब शिक्षा भूल जाने का श्राप दिया। द्रौपदी के स्वयंवर में मेरा सिर्फ इसलिए अपमान हुआ क्यूंकि मैं क्षत्रिय नहीं था। मेरी माता ने भी सिर्फ अपने पांच पुत्रों की रक्षा करने के लिए यह सत्य बताया की मैं उनका पुत्र हूँ। जो कुछ आज मैं हूँ वो सब दुर्योधन की देन है। तो फिर मैं उसके पक्ष में युद्ध करके भी क्यों गलत हूँ?

श्री कृष्ण : हे कुंती पुत्र कर्ण, हाँ तुम्हारे साथ बहुत बुरा हुआ। लेकिन मेरी कहानी तुमसे कुछ ज्यादा अलग नहीं है। मेरा जन्म कारागार में हुआ और जन्म के तुरंत बाद ही माँ बाप से बिछड़ गया।मेरी मृत्यु जन्म से पहले ही तय कर दी गयी। तुम कम से कम धनुष वाण और घोड़े और रथ के साथ खेलते हुए बड़े हुए, लेकिन मैं गाय, बछड़े, गोबर और झोपडी में बड़ा हुआ। चलना सीखने से पहले ही मुझ पर कई प्राणघातक हमले हुए. कभी पूतना तो कभी बकासु। मैं सोलहवें साल में गुरु संदीपनी के पास शिक्षा लेने जा पाया। लेकिन हमेशा ही लोगों को यह लगता था की मैं उनके कष्ट हरने के लिए पैदा हुआ हूँ। तुमने कम से कम अपने प्रेम को पा लिया और उस कन्या से विवाह किया जिसे तुम प्रेम करते थे। लेकिन मैं अपने प्रेम को विवाह में नहीं बदल पाया। और तो और  मुझे उन सब गोपियों से विवाह करना पड़ा जो मुझसे प्रेम करती थी या जिन्हें मैंने राक्षसों से मुक्त कराया। इतना सब कुछ होने के बावजूद तुम शूरवीर कहलाये जबकि मुझे भगोड़ा कहा गया। इस महाभारत के युद्ध में अगर दुर्योधन जीता तो तुम्हें इसका बड़ा श्रेय मिलेगा लेकिन अगर पांडव युद्ध जीते भी तो मुझे क्या मिलेगा। सिर्फ यही की इतने विनाश का कारण मैं हूँ। इसलिए हे कर्ण! हर किसी का जीवन हमेशा चुनौतियों भरा होता है। हर किसी के जीवन में कहीं न कहीं अन्याय होता है। न सिर्फ दुर्योधन बल्कि युधिष्ठिर के साथ भी अन्याय हुआ है। किन्तु सही क्या है ये तुम्हारे अंतर्मन को हमेशा पता होता है। इसलिए हे कर्ण अपने जीवन में हुए अन्याय की शिकायत करना बंद करो और खुद का विवेचन करो। तुम अगर सिर्फ जीवन में अपने साथ हुए अन्याय की वजह से अधर्म के रास्ते पर चलोगे तो यह सिर्फ तुम्हें विनाश की तरफ ले जाएगा। अधर्म का मार्ग केवल और केवल विनाश की तरफ जाता है।

कुछ मतों के अनुसार कर्ण अपने पूर्व जन्मों का ही पाप भोग रहा था और इसलिए उसे हर प्रकार की बाधा का सामना करना पड़ा। सहस्रकवच नामक राक्षस के नाम का वर्णन पुराणों में मिलता है। यह इतना खतरनाक असुर था कि स्वयं भगवान विष्णु को इसके अंत के लिय नर और नारायण के रूप में जन्म लेना पड़ा था। असल में हुआ ये था कि दंबोधव नाम के एक असुर ने सूर्यदेव की घोर तपस्या कि जिससे प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने उसे वरदान मांगने को कहा इस पर दंबोधव ने उनसे 1000 रक्षा कवच मांग लिये और यह वरदान भी मांगा कि वही इन कवच को नष्ट कर सके जिसने हजारों साल तक तपस्या की हो। और साथ ही यह भी कहा कि अगर कभी कोई कवच को नष्ट करने में कामयाब हो भी जाये तो तुरंत उसकी मौत हो जाये। हजार कवच वाला होने के कारण दंबोधव ही सहस्रकवच हुआ। इसके बाद उसके ऋषि-मुनियों से लेकर जीव-जन्तुओं तक पर उसके अत्याचार बढ़ गये जिस कारण भगवान विष्णु को स्वंय इसका अंत करने के लिये हस्तक्षेप करना पड़ा। उन्होंने नर व नारायण के रूप में लगातार बारी-बारी से आक्रमण कर उसके 999 कवच धवस्त कर दिये अब केवल एक कवच शेष था कि उसने सूर्यलोक में सूर्यदेव की शरण ली। नर उसकी हत्या के लिये उसके पिछे-पिछे सूर्यलोक पंहुच गये। तब सूर्यदेव ने उनसे उनकी शरण में आये को बख्शने की याचना की। इस पर नर ने अगले जन्म में उन दोनों को इसका दंड भुगतने का श्राप दिया।मान्यता है कि सूर्यपुत्र कर्ण के रूप में दंबोधव नामक असुर ने ही कुंती की कोख से जन्म लिया। उसका बचा हुआ एक कवच और कानों में कुंडल जन्म के समय से उसके साथ थे। इनके रहते कर्ण को मार पाना असंभव था। इसलिये इंद्र जो कि अर्जुन के पिता भी थे ने अर्जुन की सहायता के लिये ब्राह्मण के भेष में सूर्य उपासना के दौरान कर्ण से उसके कवच व कुंडल को दान स्वरूप मांग लिया। हालांकि इंद्र के इस षड़यंत्र से सूर्यदेव ने कर्ण को अवगत भी करवा दिया था लेकिन कर्ण सूर्य उपासना के दौरान किसी के कुछ भी मांगने पर उसे देने के लिये स्ववचनबद्ध था। इसलिये उसने मना नहीं किया। साथ ही गुरु परशुराम, धरती माता, गऊ आदि द्वारा दिये गये श्रापों के कारण ही कर्ण युद्धभूमि में असहाय हो गया और अर्जुन उसका वध करने में सक्षम हो सका।

कर्ण को मित्र बनाकर दुर्योधन ने उसे अंग प्रदेश का नरेश भी बनाया जिसने उसकी प्रतिभा को निखारने और दिखाने का उत्तम स्थान प्रदान किया। दुर्योधन के लिए कर्ण साँसों में आती जाती हवा की तरह था और जिसके भरोसे दुर्योधन महाभारत जैसे युद्ध के लिए तैयार हो गया था ,परन्तु कर्ण के पास जितनी क्षमताएँ थी , उसका सही उपयोग नहीं हो पाया।  एक सूतपूत के राजा बनने के बाद भी कर्ण ने कभी दूसरे सूतों  को उठाने का काम नहीं किया।  हालाँकि इसका उत्तर हो सकता है कि अंग स्वत्नत्र प्रदेश नहीं था अतः दुर्योधन के अनुमति के बिना यह करना असंभव था।  लेकिन कर्ण और दुर्योधन की दोस्ती ऐसी थी कि कर्ण,दुर्योधन की पत्नी भानुमति के साथ अकेले कमरे में बैठ कर शतरंज खेल सकता था और इस बात से दुर्योधन को कभी आपत्ति नहीं हुई।  तो आखिर क्या वजह थी कि कर्ण कभी भी भुक्तभोगी होकर और एकलव्य की कहानी जानने  के बाद भी  जाति -व्यवस्था पर चोट नहीं कर पाया ? दुर्योधन की दोस्ती उसकी अपनी विवेक शक्ति पर हावी हो गई थी या खुद राजा बन कर उसे सूत का दर्द दिखना ख़त्म हो गया।  कहते हैं कि किसी बलशाली को ग़ुलाम बनाना हो तो कोई पुरस्कार या उपहार दे दो और वह ज़िंदगी भर आपके अहसानों के तले दबा रहेगा। हालाँकि अंतिम क्षणों में उसके कौशल और दानवीरता से प्रसन्न श्रीकृष्ण ने तीन वरदान मांगने को कहा। ज्ञानी कर्ण ने पहले वरदान में कृष्ण से अगले जन्म में अपनी तरह के लोगों के उत्थान के लिए कुछ विशेष करने का वरदान मांगा क्योंकि सूतपुत्र होने के कारण ही पूरा जीवन उसे छल और दुखों का सामना करना पड़ा था। परन्तु जीवन रहते यह कार्य ,कर्ण कभी नहीं कर पाया।

कर्ण की दो पत्नियां हुईं और दोनों ही सूतकन्याएं थीं-दुर्योधन के विश्वास पात्र सारथी सत्यसेन की बहन रुषाली और राजा चित्रवत की बेटी असांवरी की दासी ध्यूमतसेन की सूत कन्या पद्मावती (जिसे लोगों ने सुप्रिया नाम भी दिया है। )  एक राजा से शादी के बाद भी दोनों पत्नियों को सूत की तरह ज़मीन पर सोना पड़ता था और उनकी तरह का ही जीवन गुजारना पड़ता था।  जब अपने घर में स्त्रियों की दशा में कर्ण सुधार नहीं ला पाए तो फिर समाज की अन्य महिलाओं की बात दूर की है। लोग कह सकते हैं कि समानता का भाव रखने के लिए कर्ण ने अपनी पत्नियों को ऐसा जीवन जीने दिया।  परन्तु हो तो यह भी सकता था कि औरों का जीवन  स्तर ऊँचा किया जाता ना कि दूसरों का नीचा। और यही गलती कर्ण ने भरी  द्रौपदी के साथ की।  धर्म का साथ ना दे कर अपने अधर्मी और नीच मित्र का साथ देने वाला भी अधर्मी ही होता है। विकर्ण के नीतियुक्त वचनों को सुनकर दुर्योधन के परम मित्र कर्ण ने कहा था , "विकर्ण! तुम अभी कल के बालक हो। यहाँ उपस्थित भीष्म, द्रोण, विदुर, धृतराष्ट्र जैसे गुरुजन भी कुछ नहीं कह पाये, क्योंकि उन्हें ज्ञात है कि द्रौपदी को हमने दाँव में जीता है। क्या तुम इन सब से भी अधिक ज्ञानी हो? स्मरण रखो कि गुरुजनों के समक्ष तुम्हें कुछ भी कहने का अधिकार नहीं है।" भले ही कर्ण स्त्री का अपमान स्वयं के द्वारा होने से जीवन भर अपमानित रहा। पश्चाताप की अग्नि में वह जीवन भर जलता रहा। कर्ण कभी नहीं समझ पाया कि उसके जिह्वा ने किसी स्त्री का अपमान कैसे किया ? इसी अपराध बोध के कारण वह कभी द्रौपदी के सम्मुख खड़ा नहीं हो सका।

कर्ण दानवीर अवश्य थे लेकिन गलत भी थे।

सलिल सरोज
नई दिल्ली

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