देश प्रेम से बढ़कर कोई प्रेम नहीं -
उस माटी का मान बढ़ाओ
जिस माटी का खाते हो ।
जिस माटी में रहकर
तुम आगे बढ़ते जाते हो ।।
उससे बढ़कर और
भी गौरव क्या होगा ।
देश प्रेम से ज्यादा
गौरव क्या होगा ।।
जिस देश में राम जन्मे
जिस देश में कृष्ण जन्मे ।
धर्म की रक्षा के खातिर
अवतारी तक दुख सहते ।।
हम क्यों भूल रहे है फिर
विधि के, निर्धारित विधान को ।
इस देश के खातिर दे गए वीर
अपनी अपनी जान को ।।
जिसे निज मिट्टी से प्रेम नहीं
उसको गद्दार समझिए ।
भारत में उसका रहना
हरदम बेकार समझिए ।।
धन की या सत्ता की लालच
में जो देश गंवा बैठे ।
वीर नहीं वो कायर है
जो निज मिट्टी को खो बैठे ।।
देश में रहकर जो भी
देश विरोधी बीज बोता ।
ऐसा मानव
मानव कहलाने के योग्य नहीं ।।
देश के लिए जो मिट जाए
उससे बढ़कर धर्म नहीं ।
इससे बढ़कर कोई पुण्य नहीं
इससे बढ़कर संयोग नहीं ।।
दानव हैं ये कुटिल कपटी
जो वीरों का अपमान करे ।
ऐसे अपराधी पर क्या
हम भारतवासी अभिमान करें ।।
सुन लो प्यारे भारत वासी -
जहां ब्रम्हा विष्णु शिव की
गाथाएं गाई जाती है
माटी की पवित्रता, उस देश से ज्यादा
कहीं न पाई जाती है ।।
लेखक कवि एवं कहानीकार -
जीतेन्द्र कानपुरी (टैटू वाले)
9118937179
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