ग़ज़ल 1
बह्र- 2122 1212 22
क़ाफ़िये - ई ( स्वर )
रदीफ - नहीं आयी
क़ाफ़िये - ई ( स्वर )
रदीफ - नहीं आयी
ठोकरों में कमी नहीं आयी ।
यूँ खुशी की घड़ी नहीं आयी ।।
यूँ खुशी की घड़ी नहीं आयी ।।
दूर तक फैला दर्द का सागर ।
मस्तियों की नदी नहीं आयी ।।
मस्तियों की नदी नहीं आयी ।।
सोचते हैं झुकें सदा हम ही ।
पर हमें बंदगी नहीं आयी ।।
पर हमें बंदगी नहीं आयी ।।
ऊबकर बारहा पुकारा है ।
मौत लेकिन कभी नहीं आयी ।।
मौत लेकिन कभी नहीं आयी ।।
लोग यूँ तो बहुत मिले हमको ।
जिसको चाहा वही नहीं आयी ।।
जिसको चाहा वही नहीं आयी ।।
दें सहारा हमीं गरीबों को ।
मन - उमंगें तभी नहीं आयीं ।।
मन - उमंगें तभी नहीं आयीं ।।
दर्द के माहो - साल आते हैं ।
बस खुशी की सदी नहीं आयी ।।
बस खुशी की सदी नहीं आयी ।।
उनसे मिलते हैं इसलिए अब तक ।
बदमिज़ाज़ी अभी नहीं आयी ।।
बदमिज़ाज़ी अभी नहीं आयी ।।
जिसको चाहा था दिल ही दिल हमने ।
' रश्मि ' सुन वो खुशी नहीं आयी ।।
' रश्मि ' सुन वो खुशी नहीं आयी ।।
© रवि रश्मि ' अनुभूति '
ग़़जल 2
बह्र - 1222 1222 1222 1222
काफिया - आ
रदीफ - होगा
काफिया - आ
रदीफ - होगा
उसी माँ की दुआओं से हमारा हर भला होगा ।
कि जिस आँचल में हर औलाद का सपना पला होगा ।।
कि जिस आँचल में हर औलाद का सपना पला होगा ।।
सुकूं मिलता नहीं है दीन दुनिया में कभी उसको ।
कि जिस औलाद की हरक़त से माँ का दिल दुखा होगा ।।
कि जिस औलाद की हरक़त से माँ का दिल दुखा होगा ।।
बहुत ही खूबसूरत जीवन मैंने माँ संग गुज़रा है ।
जिगर का ख़ून का रिश्ता , कभी कैसे जुदा होगा ।।
जिगर का ख़ून का रिश्ता , कभी कैसे जुदा होगा ।।
कभी वो बद्दुआ करती नहीं , औलाद को अपनी ।
हमेशा माँ के होंठों पर सदा बच्चों दुआ होगा ।।
हमेशा माँ के होंठों पर सदा बच्चों दुआ होगा ।।
सुनो माँ की खुशी में है , खुदा की हर खुशी शामिल ।
कि जब नाराज़ होगी माँ , खुदा फिर तब ख़फ़ा होगा ।।
कि जब नाराज़ होगी माँ , खुदा फिर तब ख़फ़ा होगा ।।
खुशी अपनी हरेक क़ुर्बान कर दी , माँ की खुशियों पर ।
यही कुछ सोच कर ' रश्मि ' , कि हक़ माँ का अदा होगा ।।
यही कुछ सोच कर ' रश्मि ' , कि हक़ माँ का अदा होगा ।।
© रवि रश्मि ' अनुभूति '
मुंबई
मुंबई
ग़ज़ल 3
बह्र - 2122 1212 22
काफिया - आला
रदीफ - हैं
काफिया - आला
रदीफ - हैं
काम उनका , बहुत निराला है ।
पुलिस का , दे दिया हवाला है ।।
पुलिस का , दे दिया हवाला है ।।
जान - पहचान , जो कभी होती ।
तो नहीं निकलता , दिवाला है ।।
तो नहीं निकलता , दिवाला है ।।
रख लिया था , सभी छुपाकर तो ।
क्यों ख़बर का बना मसाला है ।।
क्यों ख़बर का बना मसाला है ।।
कब ख़बर हो गयी अच्छी बोलो ।
फक़्त बेकार सा रसाला है ।।
फक़्त बेकार सा रसाला है ।।
अब जाने हम, मदद वही करता ।
वो भी निकला पुलिस का साला है ।।
वो भी निकला पुलिस का साला है ।।
मुश्किलों से , नहीं हटेगें हम ।
माँ ने ऐसा हमें यूं ढाला है ।।
माँ ने ऐसा हमें यूं ढाला है ।।
डर हमें तो नही सुनो दोस्तों ।
आँधियों में , दीपक ही बाला है ।।
© रवि रश्मि 'अनुभूति'
आँधियों में , दीपक ही बाला है ।।
© रवि रश्मि 'अनुभूति'
ग़ज़ल 4
वज़्न - 1222 1222 1221
अरकान - मफ़ाईलुन, मफ़ाईलुन, मफ़ाईल
क़ाफ़िया - आरे
रदीफ़ - देख हर रोज़
अरकान - मफ़ाईलुन, मफ़ाईलुन, मफ़ाईल
क़ाफ़िया - आरे
रदीफ़ - देख हर रोज़
बहकते हैं सहारे , देख हर रोज़ ।
दहकते हैं अँगारे , देख हर रोज़ ।।
दहकते हैं अँगारे , देख हर रोज़ ।।
विभागों में करे कोई, न अफ़सोस ।
दलाली के पहाड़े, देख हर रोज़ ।।
दलाली के पहाड़े, देख हर रोज़ ।।
किसी के भी ज़माना , अब न हो साथ ।
कटी - सी हैं बहारें , देख हर रोज़ ।।
कटी - सी हैं बहारें , देख हर रोज़ ।।
किसी पर क्यूं हमीं , बोझा बनें आज ।
सभी बोझे उतारे, देख हर रोज़ ।।
सभी बोझे उतारे, देख हर रोज़ ।।
किनारे कर तू अपने , ग़म सभी दिल से ।
क्यों दुख में भी दहाड़ें , देख हर रोज़ ।।
क्यों दुख में भी दहाड़ें , देख हर रोज़ ।।
दिखी हैं दिलक़शी अब तो खुदा खोज ।
निहारें रहमतें हम, देख हर रोज़ ।।
निहारें रहमतें हम, देख हर रोज़ ।।
सुहानी चांदनी हैं रश्मि, अब रात ।
चमकते हैं सितारे , देख हर रोज़ ।।
© रवि रश्मि ' अनुभूति '
चमकते हैं सितारे , देख हर रोज़ ।।
© रवि रश्मि ' अनुभूति '
ग़ज़ल 5
वज़्न- 1212 1122 1212 22
अरकान - मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ैलुन
क़ाफ़िये - आन
रदीफ़ - जैसा है
अरकान - मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ैलुन
क़ाफ़िये - आन
रदीफ़ - जैसा है
हरेक पल क्यों मेरा इम्तिहान जैसा है ।
जहां नसीब खुले तो आसमान जैसा है ।।
जहां नसीब खुले तो आसमान जैसा है ।।
फ़कीर है मेरा दिल तो , कहाँ नसीबा है ।
सुनों ये दिल मेरा प्राणी , महान जैसा है ।।
सुनों ये दिल मेरा प्राणी , महान जैसा है ।।
लिखा नहीं सितारे बाम पर आये होंगे ।
ख़याल मेरा बोला ये ग़ुमान जैसा है ।।
ख़याल मेरा बोला ये ग़ुमान जैसा है ।।
फाके पड़े तो जाना भूख होती हैं क्या अब ।
भरता हुआ पेट , सायबान जैसा है ।।
भरता हुआ पेट , सायबान जैसा है ।।
न छोड़ता आस पर मैं , ज़िंदा रहना है ।
ये मुद्दा इश्क़ चढ़ा आशियान जैसा है ।।
ये मुद्दा इश्क़ चढ़ा आशियान जैसा है ।।
कि प्यार की तो अभी आज़माइशें छोड़ो ।
ये इश्क़ मेरा सनम अब मकान जैसा है ।।
ये इश्क़ मेरा सनम अब मकान जैसा है ।।
ये इश्क़ तो रश्मि अब तो दीवानी करता है ।
लगे यही अभी तक सब अंजान जैसा है ।।
© रवि रश्मि ' अनुभूति '
लगे यही अभी तक सब अंजान जैसा है ।।
© रवि रश्मि ' अनुभूति '
ग़ज़ल 6
वज़्न - 212 1212 12
अरकान - फ़ाइलुन मफ़ाइलुन फ़अल
क़ाफ़िया - आल
रदीफ़ - मत करो
अरकान - फ़ाइलुन मफ़ाइलुन फ़अल
क़ाफ़िया - आल
रदीफ़ - मत करो
गुज़रे हो तो ख़्याल मत करो ।
इस तरह सवाल मत करो ।।
इस तरह सवाल मत करो ।।
जात - पात देखना नहीं ।
चैन अब हलाल मत करो ।।
चैन अब हलाल मत करो ।।
रात भर कही गयी , तभी ।
छोड़ दो, बवाल मत करो ।।
छोड़ दो, बवाल मत करो ।।
मैं तुम्हीं से प्यार कर रही ।
बातों से धमाल मत करो ।।
बातों से धमाल मत करो ।।
कह लिया कहन जभी- तभी ।
बाद में ज़वाल मत करो ।।
बाद में ज़वाल मत करो ।।
ज़हमतें बहुत उठा चुके ।
नष्ट अब ज़लाल मत करो ।।
नष्ट अब ज़लाल मत करो ।।
लड़ चुके कभी तो ' रश्मि ' अब ।
इस तरह मलाल मत करो ।।
© रवि रश्मि ' अनुभूति '
इस तरह मलाल मत करो ।।
© रवि रश्मि ' अनुभूति '
ग़ज़ल 7
वज़्न - 1222 1222 1222 122
अरकान - मफ़ाईलुन × 4
क़ाफ़िये - अत
रदीफ़ - की कसम खाओ
अरकान - मफ़ाईलुन × 4
क़ाफ़िये - अत
रदीफ़ - की कसम खाओ
बचाया हैं तुम्हें तो उस अमानत की कसम खाओ ।
न भूलेंगें शहीदों की शहादत की कसम खाओ ।।
न भूलेंगें शहीदों की शहादत की कसम खाओ ।।
हमारे जन्म की ही भूमि है ये जान से प्यारी ।
करें कुछ भी बचाना है मुहब्बत की कसम खाओ ।।
करें कुछ भी बचाना है मुहब्बत की कसम खाओ ।।
हमारा देश है आज़ाद हम भूलें नहीं बातें ।
चलो अब हम करें इसकी हिफ़ाज़त की कसम खाओ ।।
चलो अब हम करें इसकी हिफ़ाज़त की कसम खाओ ।।
लुटाते जान सरहद पर उन्हें हम सब नमन कर लें ।
बदल दें हम भ्रष्ट होती सियासत को कसम खाओ ।।
बदल दें हम भ्रष्ट होती सियासत को कसम खाओ ।।
रंगीं मौसम हमें मदहोश हैं करता हुआ भाता ।
रहें यूँ ही बहारें अब सलामत को कसम खाओ ।।
रहें यूँ ही बहारें अब सलामत को कसम खाओ ।।
क़दम जो भी रखे दुश्मन , यहाँ की सरज़मीं पर तो ।
भरो सब जोश बाँहों में बगावत को कसम खाओ ।।
भरो सब जोश बाँहों में बगावत को कसम खाओ ।।
शहर में ' रश्मि ' होते मज़हबी दंगे कैसे अब तो ।
समझ लो तुम मिटाने की अदावत को कसम खाओ ।।
© रवि रश्मि ' अनुभूति '
समझ लो तुम मिटाने की अदावत को कसम खाओ ।।
© रवि रश्मि ' अनुभूति '
ग़़जल 8
वज़्न- 2122 2122 212
काफिया - ऊ
रदीफ - है आज फिर
काफिया - ऊ
रदीफ - है आज फिर
चल माँ घूमें चार सू है आज फिर ।
दृश्य मोहक चार सू है आज फिर ।।
दृश्य मोहक चार सू है आज फिर ।।
मेरे दिल के हो गये अरमां दफन ।
होती दिल भर गुफ़्तगू है आज फिर ।।
होती दिल भर गुफ़्तगू है आज फिर ।।
तुझसे मिलकर दिल मेरा भरता नहीं ।
मुझको दिखता तू ही तू है आज फिर ।।
मुझको दिखता तू ही तू है आज फिर ।।
गोद में तेरी रखूं सर अपना फिर ।
के आँचल की छाँव तू है आज फिर ।।
के आँचल की छाँव तू है आज फिर ।।
आज मौसम की बहारों में जादू ।
हर दिली तमन्ना पूर्ण है आज फिर ।।
हर दिली तमन्ना पूर्ण है आज फिर ।।
तेरे हाथों की रोटीयां मिल जाये ।
पेट भरना, आरज़ू है आज फिर ।।
पेट भरना, आरज़ू है आज फिर ।।
तब की अब तू न कोई बात कर ।
के उजाला चार सू है आज फिर ।।
के उजाला चार सू है आज फिर ।।
आज जीवन में छा जाये खुशियाँ फिर ।
ज़िंदगी की जुस्तजू है आज फिर ।।
ज़िंदगी की जुस्तजू है आज फिर ।।
दिल कभी कोई न ज़ख़्मी 'रश्मि' हो ।
ख़ून मेरा उबला सा है आज फिर ।।
ख़ून मेरा उबला सा है आज फिर ।।
© रवि रश्मि 'अनुभूति'
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