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रविवार, 6 मई 2018

मुहब्बत ग़ज़ल संग्रह में रवि रश्मि ' अनुभूति ' की कुछ ग़ज़लें

ग़ज़ल  1
बह्र- 2122    1212    22
क़ाफ़िये -   ई  ( स्वर )
रदीफ -   नहीं आयी

ठोकरों  में  कमी नहीं आयी ।
यूँ खुशी की घड़ी नहीं आयी ।।

दूर तक फैला दर्द का सागर ।
मस्तियों की नदी नहीं आयी ।।

सोचते हैं झुकें सदा हम ही ।
पर  हमें  बंदगी नहीं आयी ।।

ऊबकर   बारहा   पुकारा   है ।
मौत लेकिन कभी नहीं आयी ।।

लोग  यूँ  तो बहुत मिले हमको ।
जिसको चाहा वही नहीं आयी ।।

दें  सहारा  हमीं   गरीबों  को ।
मन - उमंगें तभी नहीं आयीं ।।

दर्द   के   माहो - साल  आते  हैं ।
बस खुशी की सदी नहीं आयी ।।

उनसे मिलते हैं इसलिए अब तक ।
बदमिज़ाज़ी  अभी  नहीं  आयी ।।

जिसको चाहा था दिल ही दिल हमने ।
' रश्मि ' सुन  वो  खुशी  नहीं आयी ।।

© रवि रश्मि ' अनुभूति '

ग़़जल   2
बह्र - 1222    1222    1222    1222
काफिया -  आ
रदीफ -  होगा

उसी माँ की दुआओं से हमारा हर भला  होगा ।
कि जिस आँचल में हर औलाद का सपना  पला  होगा ।।

सुकूं मिलता नहीं है दीन दुनिया में कभी उसको ।
कि जिस औलाद की हरक़त से माँ का  दिल दुखा होगा ।।

बहुत ही खूबसूरत जीवन मैंने माँ संग गुज़रा है ।
जिगर का ख़ून का रिश्ता , कभी कैसे जुदा होगा ।।

कभी वो बद्दुआ करती नहीं , औलाद को अपनी ।
हमेशा माँ के होंठों पर सदा बच्चों दुआ होगा ।।

सुनो माँ की खुशी में है , खुदा की हर खुशी शामिल ।
कि जब नाराज़ होगी माँ , खुदा फिर तब ख़फ़ा होगा ।।

खुशी अपनी हरेक क़ुर्बान कर दी , माँ की खुशियों पर ।
यही कुछ सोच कर ' रश्मि ' , कि हक़ माँ का अदा  होगा ।।

© रवि रश्मि ' अनुभूति '
       मुंबई

ग़ज़ल  3
बह्र - 2122    1212   22
काफिया - आला
रदीफ - हैं

काम उनका , बहुत निराला है ।
पुलिस का , दे दिया हवाला है ।।

जान - पहचान , जो कभी होती ।
तो  नहीं निकलता , दिवाला है ।।

रख लिया था , सभी छुपाकर तो ।
क्यों ख़बर  का  बना मसाला है ।।

कब ख़बर हो गयी अच्छी बोलो ।
फक़्त   बेकार   सा  रसाला  है ।।

अब जाने हम, मदद वही करता ।
वो भी निकला पुलिस का साला है ।।

मुश्किलों  से , नहीं  हटेगें  हम ।
माँ  ने  ऐसा  हमें  यूं  ढाला है ।।

डर हमें  तो नही  सुनो  दोस्तों ।
आँधियों में , दीपक ही बाला है ।।
         
© रवि रश्मि 'अनुभूति'

ग़ज़ल  4
वज़्न     -  1222     1222    1221
अरकान - मफ़ाईलुन, मफ़ाईलुन, मफ़ाईल
क़ाफ़िया  -  आरे
रदीफ़    -  देख हर रोज़

बहकते हैं सहारे , देख हर रोज़ ।
दहकते हैं अँगारे , देख हर रोज़ ।।

विभागों में करे कोई, न अफ़सोस ।
दलाली के पहाड़े, देख हर रोज़ ।।

किसी के भी ज़माना , अब न हो साथ ।
कटी - सी  हैं  बहारें ,   देख हर रोज़ ।।

किसी पर क्यूं हमीं , बोझा बनें आज ।
सभी बोझे उतारे, देख हर रोज़ ।।

किनारे कर तू अपने , ग़म सभी दिल से ।
क्यों दुख में भी दहाड़ें , देख हर रोज़ ।।

दिखी हैं दिलक़शी अब तो खुदा खोज ।
निहारें रहमतें हम, देख हर रोज़ ।।

सुहानी चांदनी हैं रश्मि, अब रात ।
चमकते हैं सितारे , देख हर रोज़ ।।
                
© रवि रश्मि ' अनुभूति '

ग़ज़ल 5
वज़्न-  1212   1122   1212   22
अरकान - मुफ़ाइलुन  फ़इलातुन  मुफ़ाइलुन  फ़ैलुन
क़ाफ़िये -  आन
रदीफ़   -   जैसा है

हरेक पल क्यों मेरा इम्तिहान जैसा है ।
जहां नसीब खुले तो आसमान जैसा है  ।।

फ़कीर है मेरा दिल तो , कहाँ नसीबा  है ।
सुनों ये दिल  मेरा प्राणी , महान जैसा है ।।

लिखा नहीं सितारे बाम पर आये होंगे ।
ख़याल मेरा बोला ये ग़ुमान जैसा है ।।

फाके पड़े तो जाना भूख होती हैं क्या अब ।
भरता  हुआ  पेट ,  सायबान  जैसा  है ।।

न छोड़ता आस पर मैं , ज़िंदा रहना है ।
ये मुद्दा इश्क़ चढ़ा  आशियान जैसा है ।।

कि प्यार की तो अभी आज़माइशें छोड़ो ।
ये इश्क़ मेरा सनम अब मकान जैसा है ।।

ये इश्क़ तो रश्मि अब तो दीवानी करता है ।   
लगे यही अभी तक सब अंजान जैसा है ।।
         
© रवि रश्मि ' अनुभूति '

ग़ज़ल  6
वज़्न      -  212    1212    12
अरकान  -  फ़ाइलुन  मफ़ाइलुन  फ़अल
क़ाफ़िया   - आल
रदीफ़     -  मत करो

गुज़रे हो तो ख़्याल मत करो ।
इस  तरह  सवाल  मत करो ।।

जात  -  पात   देखना   नहीं ।
चैन  अब  हलाल  मत  करो ।।

रात  भर  कही  गयी ,  तभी ।
छोड़  दो,  बवाल  मत  करो ।।

मैं  तुम्हीं  से  प्यार  कर  रही ।
बातों  से   धमाल  मत  करो ।।

कह  लिया  कहन  जभी- तभी ।
बाद   में   ज़वाल   मत   करो ।।

ज़हमतें   बहुत    उठा   चुके ।
नष्ट  अब  ज़लाल  मत  करो ।।

लड़ चुके कभी तो ' रश्मि ' अब ।
इस   तरह  मलाल   मत   करो ।।
           
© रवि रश्मि ' अनुभूति '

ग़ज़ल 7
वज़्न -  1222  1222  1222  122
अरकान -  मफ़ाईलुन   ×  4
क़ाफ़िये  -   अत
रदीफ़    -   की कसम खाओ

बचाया हैं तुम्हें तो उस अमानत की कसम खाओ ।
न भूलेंगें शहीदों की शहादत की कसम खाओ ।।

हमारे जन्म की ही भूमि है ये जान से प्यारी ।
करें कुछ भी बचाना है मुहब्बत की कसम खाओ ।।

हमारा देश है आज़ाद हम भूलें नहीं बातें ।
चलो अब हम करें इसकी हिफ़ाज़त की कसम खाओ ।।

लुटाते जान सरहद पर उन्हें हम सब नमन कर लें ।
बदल दें हम भ्रष्ट होती सियासत को कसम खाओ ।।

रंगीं मौसम हमें मदहोश हैं करता  हुआ भाता ।
रहें यूँ ही बहारें अब सलामत को कसम खाओ ।।

क़दम जो भी रखे दुश्मन , यहाँ की सरज़मीं पर तो ।
भरो सब जोश बाँहों में बगावत को कसम खाओ  ।।

शहर में ' रश्मि ' होते मज़हबी दंगे   कैसे अब तो ।
समझ लो तुम मिटाने की अदावत को कसम खाओ ।।
                  
© रवि रश्मि ' अनुभूति '

ग़़जल 8
वज़्न- 2122    2122    212 
काफिया - ऊ
रदीफ -  है आज फिर

चल माँ घूमें चार सू है आज फिर ।
दृश्य मोहक चार सू है आज फिर ।।

मेरे दिल के हो गये अरमां दफन ।
होती दिल भर गुफ़्तगू है आज फिर ।।

तुझसे मिलकर दिल मेरा भरता नहीं ।
मुझको दिखता तू ही तू है आज फिर ।।

गोद में तेरी रखूं सर अपना फिर ।
के आँचल की छाँव तू है आज फिर ।।

आज  मौसम  की  बहारों  में  जादू ।
हर दिली तमन्ना पूर्ण  है आज फिर ।।

तेरे हाथों की रोटीयां मिल जाये ।
पेट भरना, आरज़ू है आज फिर ।।

तब की अब तू न कोई बात कर ।
के उजाला चार सू है आज फिर ।।

आज जीवन में छा जाये खुशियाँ फिर ।
ज़िंदगी की जुस्तजू है आज फिर ।।

दिल कभी कोई न ज़ख़्मी 'रश्मि' हो ।
ख़ून मेरा उबला सा है आज फिर ।।

©  रवि रश्मि  'अनुभूति'

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