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बुधवार, 16 मई 2018

मुहब्बत ग़ज़ल संग्रह में विश्वेश्वर शास्त्री 'विशेष' की कुछ ग़ज़लें

ग़ज़ल क्र० 1           

वज्न      -- 1222   1222  1222
काफिया - ए
 रदीफ  -  को

हमारा ही नशेमन था जलाने को ।
हमारा ही कलेजा था  दुखाने को ।।

हमीं से सीख के शोखी अजी देखो ।
हमारे  सामने  आये   दिखाने  को ।।

दिये  थे  फूल  हाथों  में  हसीं  तेरे ।
उसी  हाथों मिला खंजर चुभाने को ।।

दुआ  में  रोज  माँगी  थी खुशी तेरी ।
मिले ले किन हमीं  तुमको रुलाने को ।।

भुलाया था सभी को ही तिरी लौ में ।
हमी को आज कहते हो भुलाने को ।।

वफा  का  खूब  पाया  है सिला हमने ।
चले हो आज तुम खुद ही मिटाने को ।।

चले हो यूँ  कहाँ देखो  यहाँ मुड के ।
नहीं  यूँ  छोडता  कोई जमाने  को ।।

रहेंगे  हम  कहाँ  बोलो  बिना तेरे ।
जरा दो  बोल  बोले जा दिवाने को ।।

विश्वेश्वर शास्त्री 'विशेष'


ग़ज़ल   2       
वज्न -- १२२  १२२  १२२  १२
काफिया --  आ
रदीफ --    कर गया

गमे जाम ऐसा पिला कर गया ।
हमें मौत  से वो मिला कर गया ।।

रुलाया  उसी  की खुशी ने हमें  ।
नया  दर्द  ऐसा दिला कर गया ।।

किया  याद  हमने  हमेशा  उसे ।
उसे क्या हमें वो भुला कर गया ।।

हँसाया  हमीं   ने   हमेशा  जिसे ।
भला  हो  हमें वो रुला कर गया ।।

जगे  हम  तभी  से खुदा  खैर कर ।
हमें  बाजुओं  में  सुला  कर  गया ।।

उसे  ढूँढते  हैं  उसी की डगर  ।
जहाँ वो हमें कल बुला कर गया ।।

खुदा  जिंदगी  ये  हुई   बेवजह ।
नशेमन  हमारा मिटा कर गया  ।।

विश्वेश्वर शास्त्री 'विशेष'

 गजल  3
वज्न -- 122  122  122  122
काफिया --आर
रदीफ   --  दें

मिले जो  हमें  वो  गमों को भुला दें ।
खिजाँ जिन्दगी को गुलों से सजा दें ।।

जलाओ  हमेशा  शमा  हौसलों की ।
बुझायें  शमा  को  न ऐसी  हवा दें ।।

निभायें  हमेशा  किये  जो भी वादे ।
नहीं  जिंदगी  में किसी को  दगा दें |।

दुखायें नहीं दिल कभी भी किसी का ।
दुखी  जो  भी  आये मुहब्बत लुटा दें ।।

कभी  आँच  आये  वतन पे  हमारे ।
वतन के लिये हम खुदी को मिटा दें ।।

पढेंगे   हमेशा   अमन  के   तराने ।
चमन में अमन है सभी को बता दें ।।

झुकाना किसी को नहीं खंजरों से ।
झुकाना  वही  चाहतों से झुकादें ।।

मिरी आज दिल में तमन्ना यही है  ।
खुशी  सब  रहें ये हमेशा दुआ दें ।।

विश्वेश्वर शास्त्री 'विशेष'           


गजल  क्र 4
बहर- २१२२ २१२२ २१२२
काफिया --- आ
रदीफ -------रहा है
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
ये युवा किस राह चलता जा रहा है।
वे वजा ही आज बहका जा रहा है ।।

ढा रहे है रोज ही जुल्मो सितम को ।
बागवाँ कैसा ये उजडा जा रहा है ।।

हाथ बच्चों के थमा पत्थर रहे हैं ।
कौन कहता मुल्क पढता जा रहा है।।

टाँग खींची भाई ने ही भाई की है ।
भाई से ही भाई लड़ता जा रहा है ।।

दोगलों ने देश को ही खा लिया है ।
देश पर कर्जा ही बढता जा रहा है ।।

कौन कहता है गुलामी है नहीं अब ।
रंग दूजों का ही चढता जा रहा है ।।

आज नारी देश की महफूज क्या है ।
कोंख में खंजर ही गडता जा रहा है ।।

          विश्वेश्वर शास्त्री 'विशेष'

ग़ज़ल क्र 5

बहर- १२२२ १२२२ १२२२ १२२२

हमारे पास आ जाओ तुझे दिल ने पुकारा है ।
हमें अपना बना जाओ तुझे दिल ने पुकारा है ।।

हमेशा याद आती हैं अदायें झूमतीं तेरीं ।
जरा सा मुस्कुरा जाओ तुझे दिल ने पुकारा है ।।

सजाये ख्वाब थे हमने हसीं महफिल सजाने के ।
मुहब्बत को जगा जाओ तुझे दिल ने पुकारा है ।।

बनो हमराह तुम मेरे हमेशा साथ देने को ।
मेरे दिल में समा जाओ तुझे दिल ने पुकारा है ।।

सुनाये गीत जो तुमने दुनिया से छिपा कर के ।
वहीं फिर से सुना जाओ तुझे दिल ने पुकारा है ।।

भुलाते याद जब तेरी तो खुद को भूल जाते हैं ।   
घटा बन दिल पे छा जाओ तुझे दिल ने पुकारा है ।।

नहीं अब चैन आता है बड़ा बैचेन ए दिल है ।
दवा दर्दे पिला जाओ तुझे दिल ने पुकारा है ।।

जो कसमें हमने खाई थीं हमेशा जान देने की ।
वही वादा निभा जाओ तुझे दिल ने पुकारा है ।।

विश्वेश्वर शास्त्री 'विशेष'

गजल  7
वज्न - १२२२  १२२२  १२२२ १२२२
काफिया - ने
रदीफ    -  को

हमारे  पास आ जाओ हमारा गम भुलाने को ।
बना लो आज तुम अपना कलेजे से लगाने को ।।

जमाना आज का देखो बडा मुश्किल गुजारा है ।
यहाँ हर  शख्श बैठा है मुआ काँटा चुभाने को ।।

भरोसा कौन करता है किसी का भी जमाने में ।
लगे हैं  एक  दूजे  को   यहाँ  इन्शाँ  सताने को ।।

यहाँ  पर रोज  लुटते हैं यहाँ  पर रोज मरते हैं ।
मगर  कोई नहीं  आता  गरीबों के बचाने को ।।

करें जो बेइमानी बस उन्हीं का आज परचम है ।
सुने कोई  नहीं  भाई  शरीफों  के फसाने को ।।

बचाई जान थी जिसकी कि बाजी जान की देकर ।
वही   खोले   पिटारा   है  हमेशा   ही डसाने को ।।

रखे  जो  पास  हैं  ईमाँ  बने  मजबूर  बैठे हैं ।
यहाँ मक्कार जो जितना चलाता है जमाने को ।।

बताऊँ आप को कैसे बड़ा मजबूर 'विश्वेश्वर',
खड़े हैं घेर कर दुश्मन मुझे खंजर चुभाने को ||

-विश्वेश्वर शास्त्री 'विशेष'


गजल 8
बहर- २१२२ , २१२२, २१२२, २१२.
काफिया ----- आ
रदीफ -------- छोड दो

मुस्कुरा कर सामने से पास अाना छोड़ दो ।
देख कर हम को जरा नजरें मिलाना छोड़ दो ।।

देख कर हम पर गुजरती ए सनम हम क्या कहें ।
इश्क के मारे बहुत हम को सताना छोड़ दो ।।

खौफ लगता है सुनो तुम को जमाने से कहीं ।
तो ज़माने में रहो या फिर ज़माना छोड़ दो ।।

आज तक बोले नहीं बस ये चुभन दिल में रही ।
मौन रह कर भी हमें तुम अब रुलाना छोड़ दो ।।

कौन कहता है कि हम आशिक नहीं तेरे सनम ।
आइने   के  सामने  तुम   ए  बताना  छोड़  दो ।।

प्यार  में शम्मा   विचारी  देख तो पल पल जली ।
या तो तुम शम्मा बनो या फिर जलाना छोड़ दो ।।

जान तुम पर है फिदा जाने जिगर मैं क्या कहूँ ।
जान  न   दे  दूँ कहीं तुम आजमाना छोड़ दो ।।

चाँदनी में चाँद बन कर तुम नहीं आया करो ।
चाँद शरमाता बहुत है छत पे आना छोड़ दो ।।

  - विश्वेश्वर शास्त्री 'विशेष'

     राठ हमीरपुर (उ.प्र.)

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