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शुक्रवार, 11 मई 2018

मुहब्बत ग़ज़ल संग्रह में बृजमोहन श्रीवास्तव 'साथी' की कुछ ग़ज़लें

नाम- बृजमोहन श्रीवास्तव
साहित्यिक नाम- साथी
पिता का नाम- श्री राधाकृष्ण श्रीवास्तव
माता का नाम- श्रीमति मथुरा बाई
जन्मतिथि - 20/08/1976
निवासी- वार्ड. नं. 25 मोती अपार्टमेन्ट के बगल में ठाकुर बाबा मन्दिर के पास डबरा जिला ग्वालियर (म.प्र.)
शिक्षा- बी.काँम, एम.काँम, एल.एल.बी.
पुरूस्कार/सम्मान  -वागेश्वरी पुँज अंलकरण ,श्रेष्ठ कलमवीर सम्मान ,जनचेतना मंच बीसलपुर (उ.प्र.)
प्रकाशन विवरण -काव्य नंदिनी मे गीत ,अखबार और पत्रिकाओ गीत कविताओ का प्रकाशन ,sr chenal 84 lndore पर काव्य पाठ प्रसारण 9/6/18 शाम 8.00 बजे

गजल  1
बहर - 22, 22, 22 ,22 ,22 ,22, 22, 2
रदीफ- लगता है ।
काफियाँ- आ

अपने रंग लगाते है तो, दिल को अच्छा लगता है ।
अपने रंग दिखाते है तो, दिल को धक्का लगता है ।।

विष घोले जो मन ही मन मे, बाते मन माफिक करता ।
सच  कहने  मादा जिसमे  क्यो  वो  झूठा  लगता  है ।।

जो  खाते  मेहनत  से रोटी,  जीवित  बस  ईमान रखा ।
वे तो भृष्ट दिखे जन जन को , माल्या सच्चा लगता है ।।

देश चलाओ मोदी जी तुम, बहुमत खूब दिया जन ने ।
मँहगाई  मे  दबती जनता, आज  छलावा  लगता  है ।।

आगे भी सत्ता आऐगी, बस  जनता  का ध्यान रखो ।
जीत सुनिश्चत है हरदम ही, राहुल बबुआ लगता है ।।

बीबी चाहे कितनी सुन्दर, आँख  टिकाते  साली पर ।
साली जब घर में आ जाये , मजनू जीजा लगता है ।।

सोच बहूँ की सब जन रखते, बेटी  से  क्यो  डरते हो ।
बेटी  चाहे  कुछ  भी  कर  ले, बेटा  प्यारा  लगता है ।।

होली  है  त्यौहार  मिलन  का,  सारे  रंग  लगा  देना ।
हिन्दु मुस्लिम गले है मिलते, उत्सव न्यारा लगता है ।।

© बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"

गजल 2
बहर -212 , 212 , 212 ,212
काफियाँ -आन
रदीफ -है

चंद पैसो मे  बिकता ये  ईमान है ।
लोग इसमें समझते क्यूँ शान है ।।

प्यार के नाम पर बस छलावा  दिखा ।
हो  रहा  हीर  राँझा  का  अपमान  है ।।

क्या  हुऐ  आज  नेता  बताये  किसे  ।
हर गली हो रहा सच का बलिदान  है ।।

खो रही संस्कृति सादगी सभ्यता ।
आज नंगे बदन का ही सम्मान है ।।

मंदिरो  में  कहाँ  अब  ईश्वर  है   रहे  ।
फिर  भी  देते  वही  पर  सब  दान है ।।

मस्जिदो में खुदा आज बंदी बना ।
कर खुदा पर रहे बंदे अहसान है ।।

भूख उसकी मिटाओ जो भूखा दिखे ।
फिर खुदा आप पर खुद मेहरबान है ।।

लड़ रहे मंदिरो मस्जिदो के लिऐ ।
राम का दूसरा  नाम  रहमान है ।।

आज सिक्को में बिकता है जग देखिऐ ।
हाथ जिसके है पावर वो दीवान है ।।

दुख  करो  मत कभी  जिन्दगी  मे  सनम ।
हमसाथी के पास खुशियो का सामान है ।।

बोल मीठे ही *साथी* सदां बोलना ।
बोल कड़वे से मिलता कहाँ मान है ।।

© बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"          
   
गजल    3
बहर-212,212,212,212
काफियाँ -आ
रदीफ-पड़ा

प्यार करना हमें तुमसे मँहगा पड़ा ।
जेब का खर्च सारा ही भरना पड़ा ।।

जिदंगी  में  थी  आयी दिवाली लगी ।
आज मेंरा दिवाला है निकला पड़ा ।।

सीदा  सादा  था  मार्ग  प्रिये   प्यार  का ।
नाज  नखरो  से  सपनो  में  रोना  पढ़ा ।।

सोचता   हूँ   बचा  लू   मैं   पैसे  अभी ।
आयी जी. एस. टी. है तबसे सूखा पड़ा ।

आज   बरबाद   होकर   खड़ा   सामने ।
फिर भी मुँह तेरा ये क्यो  है लटका पड़ा ।।

खर्च  तूने  किया  इतना  जानू  मेरा ।
तेरे श्रंगार पर मुझको बिकना पड़ा ।।

प्यार  तुमसे  करू  या  तुम्हे  छोड़  दू ।
आज संशय में *साथी* बिचारा पड़ा ।।

कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"

गजल  4
बहर -2122 , 1212 , 22
काफिया - आब
रदीफ - होती है

जिंदगी इक  किताब  होती  है ।
खूबसूरत   जबाब   होती   है ।।

आईने  पर  यकींन  कर  लेना ।
हर कली ही  गुलाब  होती है ।।

प्यार मिलता नही यहाँ सच्चा ।
हुश्न  जग  में शबाब  होती  है ।।

मत पियो जाम मँहगा है यारो ।
इससे तबियत खराब होती है ।।

नैन  तुमसे मिले  है  अब  शामें ।
बिन  पिये  बेहिसाब  होती   है ।।

आदते गम भुलाने की सीखो ।
यादें मीठा ही ख्वाब होती है ।।

आज *साथी* चले आओ दिल में ।
कब मुहब्बत  हिसाब  होती  है ।।

कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"

गजल 5
बहर-2122  1212   22
काफियाँ-  ईर
रदीफ- बनता है

प्यादा जब भी वजीर बनता है ।
देख  लेना  नजीर   बनता  है ।।

तोड़   डाली  कमर  गरीबी  ने  ।
कौन  वरना  फकीर  बनता  है ।।

जो मिला है सबक अमल करना ।
कौन  वरना  कबीर   बनता   है ।।

बिछ रही है बिसात धोखे  की ।
राजनेता   अमीर   बनता   है ।।

क्यो किया है  गुरूर काया पर  ।
माँस  से  ही  शरीर  बनता  है ।।

जी रहे  आज किस वहम में हो ।
दूध  फटकर  पनीर  बनता  है ।।

सत्य असहाय सा खड़ा दिखता ।
झूठ  हरदम  अबीर  बनता  है ।।

देख लो सरहदो को अब *साथी* ।
प्यार से  कब  जमीर  बनता है ।।

कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"

गजल 6
बहर-1222 ,1222 ,122
काफियाँ-  आ
रदीफ-   दो

लगे जो हमसफर अपना पता दो ।
पकड़कर हाथ थोड़ा सा दबा दो ।।

नशे में झूमने  का शौक  जिनको ।
पता मत पूछना उनको पिला दो ।।

पहनकर  बैठते  जामा  सियासी ।
हकीकत से उन्हे वाकिफ करा दो ।।

बने  बैठे  है  जो  गामा  फिरोजी ।
बिना पूछे सिरो को अब उडा़ दो ।।

गरीबों  की  बनी  है  ठंड  दुश्मन ।
बदन पर आज तुम कम्बल उढ़ा दो ।।

मिटा दो आज नफरत को दिलो से ।
सभी का धर्म हो भारत सिखा दो ।।

नशे  *साथी*  बुरे  सब  छोड़  देना ।
युवा  तस्वीर  भारत  की सजा दो ।।

कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"

गजल  7
बहर-212 , 212 ,212
काफियाँ -  आना
रदीफ-  नही

बेबसो  को  सताना नही ।
डूबते  को  बहाना  नही ।।

रूठने की है आदत बुरी ।
रात में अब सताना नही ।।

हाल दिल का तो हम जानते ।
बात  हमसे  छुपाना  नही ।।

ज़िन्दगी से तू लेना सबक ।
दिल किसी का दुखाना नही ।।

आज दिल की ही सुनना *साथी*।
पर  किसी  को   बताना   नही  ।।

कवि बृजमोहन  श्रीवास्तव "साथी"

गजल  8
बहर- 212, 212, 212, 212
रदीफ- कर दिया
काफियाँ- आ

हाथ मेने जो पकड़ा मना कर दिया ।
गैर बाँहो में झूली ये क्या कर दिया ।।

आँख  मुझसे  कभी  भी  मिलायी नही ।
डूब आँखो में किसकी भला कर दिया ।।

प्यास  मिलने  की तुमसे बहुत थी मुझे ।
हमको आँसू दिखा कर विदा कर दिया ।।

आँखो  में था  बसाया खुशी से सनम ।
अश्क हमको बनाकर दगा कर दिया ।।

प्यार  पावन  मेरा  यार  लज्जा  नही ।
मेरी चाहत को तुमने जफा कर दिया ।।

मत  कराओ  कभी  अपना दीदार तुम ।
आज सजदे में तुमको खुदा कर दिया ।।
 
जी  नही  सकते  साथी  तुम्हारे  बिना ।
जानकर भी हमें क्यूँ  जुदा कर दिया ।।

कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"
डबरा

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