ग़ज़ल 1
वज्ऩ - 2122 2122 2122
काफिया - "म"
रदीफ़ - सताये
काफिया - "म"
रदीफ़ - सताये
रात में क्यों आरज़ू का गम सताये ।
ख्वाब मे आ कर हसीं बालम सताये ।।
ख्वाब मे आ कर हसीं बालम सताये ।।
हाल दिल का जान कर वो खूब रोये ।
बात कर लो गर वफ़ा का गम सताये।
बात कर लो गर वफ़ा का गम सताये।
जख्म जब तक इश्क का जाहिर नहीं हैं ।
प्यार में इक दर्द का आलम सताये ।।
प्यार में इक दर्द का आलम सताये ।।
इश्क अफसाना नहीं अब हैं फसाना ।
इश्क मे तेरी जफ़ा हम दम सताये ।।
इश्क मे तेरी जफ़ा हम दम सताये ।।
राज़ उल्फ़त का हमेशा राज़ 'त्यागी' ।
वस्ल की शब आज क्यों जानम सताये।
वस्ल की शब आज क्यों जानम सताये।
© हिम्मत सिंग त्यागी
ग़ज़ल 2
वज्ऩ - 1222 1222 1222 1222
काफिया - "ई"
रदीफ़ - है
वज्ऩ - 1222 1222 1222 1222
काफिया - "ई"
रदीफ़ - है
करम तेरा रहा साकी वही नाजुक मिजाजी है ।
ग़ज़ल का शौक बादाखार को अब ख़ुशगुवारी है ।।
ग़ज़ल का शौक बादाखार को अब ख़ुशगुवारी है ।।
सुराही को न खोलो तुम नशा मुझको गिरा देगा ।
यकीं कर हर सुहानी बज्म मे साकी दिवानी है ।।
यकीं कर हर सुहानी बज्म मे साकी दिवानी है ।।
जवां होती गई रातें रहे उस इश्क की खुश्बू ।
सहारा अब वही यादें, नशे की शब गुलाबी है ।।
सहारा अब वही यादें, नशे की शब गुलाबी है ।।
शराबी मैं नहीं तेरी निगाहों में कहां प्याले ।
मुझे समझा नहीं सकतीं नज़र ऐसे सवाली है ।।
मुझे समझा नहीं सकतीं नज़र ऐसे सवाली है ।।
मिली हैं इश्क मे तेरी वफ़ा क्यूं अब सताती है ।
कहां मांगें वफ़ा 'त्यागी' यहां तो सब भिखारी है ।।
कहां मांगें वफ़ा 'त्यागी' यहां तो सब भिखारी है ।।
© हिम्मत सिंग त्यागी
ग़ज़ल 3
वज्ऩ - 1222 1222 122
काफिया - "ना"
रदीफ़ - चाहता हूं
काफिया - "ना"
रदीफ़ - चाहता हूं
मुहब्बत का फ़साना चाहता हूं ।
समंदर में उतरना चाहता हूं ।।
जुदाई मे इबादत कर खुदा की ।
खुदा से आज मिलना चाहता हूं ।।
समंदर में उतरना चाहता हूं ।।
जुदाई मे इबादत कर खुदा की ।
खुदा से आज मिलना चाहता हूं ।।
गरीबी आज अपनी दूर होगी ।
वफ़ा अपनी दिखाना चाहता हूं ।।
वफ़ा अपनी दिखाना चाहता हूं ।।
अदीबो सा तजुर्बा है मुझे भी ।
बहर पर रोज लिखना चाहता हूं।।
बहर पर रोज लिखना चाहता हूं।।
रखा है राज़ उल्फ़त राज़ 'त्यागी' ।
लगी दिल की छुपाना चाहता हूं ।।
लगी दिल की छुपाना चाहता हूं ।।
© हिम्मत सिंग त्यागी
ग़ज़ल 4
बह्र - 212/212 /212 /212
काफिया - अर्द
रदीफ - हूं
काफिया - अर्द
रदीफ - हूं
वक़्त के साथ चलता हुआ दर्द हूं ।
वक़्त से सीखने आज शागिर्द हूं ।।
वक़्त से सीखने आज शागिर्द हूं ।।
जिस्त ने आज गम की तपिश को सहा ।
वक़्त है टूटती सांस पर मर्द हूं ।।
वक़्त है टूटती सांस पर मर्द हूं ।।
जिंदगी का पता क्या बताऊं तुम्हें ।
सांस आया नही तो बना गर्द हूं ।।
सांस आया नही तो बना गर्द हूं ।।
मुफलिसी तंग रोटी से कर दे जहां ।
मेरे "मुर्शिद" गरीबों का हम दर्द हूं ।।
मेरे "मुर्शिद" गरीबों का हम दर्द हूं ।।
इश्क के मकबरे खास होतें रहे ,
रात 'त्यागी' वहां रोशनी जर्द हूं ।
रात 'त्यागी' वहां रोशनी जर्द हूं ।
© हिम्मत सिंग त्यागी
ग़ज़ल 5
वज्ऩ - 2122 /2122
काफिया - "आ"
रदीफ़ - है
काफिया - "आ"
रदीफ़ - है
आप कहतें हो हुमा है ।
वक़्त का हाकिम खुदा है ।।
वक़्त का हाकिम खुदा है ।।
हम खता तो कर चलें है ।
आप जानों क्या हुआ है ।।
आप जानों क्या हुआ है ।।
दर्द अपना जान तुम से ।
हाल उलफ़त का पुछा है ।।
हाल उलफ़त का पुछा है ।।
इश्क को तामीर कर दे ।
वो मुहब्बत से जुदा है ।।
वो मुहब्बत से जुदा है ।।
लफ्ज 'त्यागी' बोलते है ।
ये ग़ज़ल रब की दुआ है।
ये ग़ज़ल रब की दुआ है।
हुमा = कल्पित पक्षी जिसकी
छाया मे रंक राजा हो जाता है।
छाया मे रंक राजा हो जाता है।
© हिम्मत सिंग त्यागी
ग़ज़ल 6
वज्ऩ - 212 212 212
काफिया "ता"
रदीफ़ - रहा
काफिया "ता"
रदीफ़ - रहा
आज को कल बदलता रहा ।
वक़्त को मैं समझता रहा ।।
वक़्त को मैं समझता रहा ।।
चुप रहा तो सिला ये मिला ।
दर्द दिल का यूं ही बढ़ता रहा ।।
दर्द दिल का यूं ही बढ़ता रहा ।।
दर्द निकला पुराना कभी ।
मर्ज को याद करता रहा ।।
मर्ज को याद करता रहा ।।
बेखुदी ने किया मस्त तो ।
रोज मय को तरसता रहा ।।
रोज मय को तरसता रहा ।।
राज़ की बात 'त्यागी' कहूं ।
हुस्न पे इश्क मरता रहा ।।
हुस्न पे इश्क मरता रहा ।।
© हिम्मत सिंग त्यागी
ग़ज़ल 7
वज्ऩ - 2122 /2122
काफिया - "ए"
रदीफ़ - है
काफिया - "ए"
रदीफ़ - है
दर्द जख्मों का बढ़े है ।
अश्क आंखों से बहे है ।।
अश्क आंखों से बहे है ।।
ना छुपाओ राज़ हमसे ।
राज़ आंखें सब कहे है ।।
राज़ आंखें सब कहे है ।।
तुम यकीनन इश्क मे हो ।
रुख की रंगत जो उड़े है ।।
रुख की रंगत जो उड़े है ।।
इश्क की बातें दबा दी ।
राज़ उल्फ़त का रखे है ।।
राज़ उल्फ़त का रखे है ।।
जख्म 'त्यागी' देख दिल का ।
आज दोबारा बहे है ।।
आज दोबारा बहे है ।।
© हिम्मत सिंग त्यागी
ग़ज़ल 8
वज्ऩ - 1212/1122/1212/22
काफिया - "आर"
रदीफ़ - हो जाये
काफिया - "आर"
रदीफ़ - हो जाये
नज़र कभी न मिले और प्यार हो जाये ।
पुनर्मिलन की जगी आस यार हो जाये ।
निबाह तो न किया जिंदगी रही तन्हा ।
न बागबां तो चमन सूख खार हो जाये ।।
पुनर्मिलन की जगी आस यार हो जाये ।
निबाह तो न किया जिंदगी रही तन्हा ।
न बागबां तो चमन सूख खार हो जाये ।।
फरेब तुम न करो जिंदगी बिगड़ती है ।
फरेब का हैं जहां तार तार हो जाये ।।
फरेब का हैं जहां तार तार हो जाये ।।
नसीब था न हुआ इश्क अंत तक तुम से ।
निक़ाब रूख न हो दिल निसार हो जाये ।।
निक़ाब रूख न हो दिल निसार हो जाये ।।
यकीन आज हुआ आंख मारती 'त्यागी' ।
जरा नज़र तू उठा तीर पार हो जाये ।।
जरा नज़र तू उठा तीर पार हो जाये ।।
© हिम्मत सिंग त्यागी
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