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बुधवार, 23 मई 2018

मुहब्बत ग़ज़ल संग्रह में डॉ0 लियाकत अली की कुछ ग़ज़लें

ग़ज़ल 1
बह्र- 1222 1222 1222
काफ़िया - आने
रदीफ़ - को

तुम्हारी ये अदा अच्छी नही हैं दिल लुभाने को ।
मेरा मन आज भी कहता तुम्हे अपना बनाने को ।।

तेरी जुल्फों के' साये में कभी जब नींद आती थी ।
होठों पर होठ रख देना मुझे जल्दी जगाने को ।।

तुम्हारे गीत को सुनकर विहग भी पास आते थे ।
छेड़ो तुम आज भी प्रीतम उसी मीठे तराने को।।

मैं दौड़ा पास आता था मगर तुम रूठ जाती थी ।
चले आओ कभी तुम ही सनम मिलने मिलाने को ।।

लियाकत  है  खड़ा  उस  मोड़  पर  प्यारे ।
जहां तुम छोड़ कर लौटे थे अपने उस फ़साने को।।

डॉ0 लियाकत अली

ग़ज़ल 2
बह्र - 212 212 212 212
काफ़िया - आ
रदीफ़ - हो गयी

देखते-देखते जब  प्रभा हो गयी ।
नींद आई नही ओ जुदा हो गयी ।।

तेरे दर पे मैं आया था जिसके लिए।
ओ न मुझको मिली बेवफा हो गयी।।

लेके हाथो में गजरा निहारा किये।
चांदनी चाँद से फिर जुदा हो गयी।।

छोटी सी भूल हम जो किये थे कभी।
आज मुझको वही तो सजा हो गयी।।

ख्वाब में जिसको देखा जलज ने कभी ।
आँख  मेरी  खुली  तो  कज़ा  हो  गयी।।

डा लियाकत अली 'जलज'

ग़ज़ल 3
वज़न - 2122 122 12
काफ़िया - अन
रदीफ़  -  हो गया

आज कैसा चलन हो गया ।
रीतियों का पतन हो गया ।।

प्रेम लोगो में कम हो गये ।
सारा रिश्ता ग्रहन हो गया।।

 खूँ  के  रिश्ते  कहाँ खो गये ।
 रिश्ते में अब जलन हो गया।।

सहमी-सहमी ज़मी चुप हुई।
तपता सूरज गगन हो गया।।

बेटा  मायूस  था  मेरा  पर  ।
देख खिलौना मगन हो गया।।

फूल चुन कर के लाये थे जो ।
खुशबुओं सा बदन हो गया ।।

प्यार से उसने देखा जलज ।
खूबसूरत  चमन  हो  गया ।।

डा० लियाक़त अली ''जलज''

ग़ज़ल 4
वज्न  - 2212 1221 221 212
काफ़िया  - आन
रदीफ़     -  पर

उड़ता   रहा   परिंदा   सदा  आसमान  पर ।
कौवे को था गुमान फक्त अपनी उडान पर ।।

धरती   पे   हो   निगाहें  भले  आसमान  हों ।
फख्र क्यूँ न हम करें आज अपने जहान पर ।।

जो   प्यार   और  सम्मान  है  तेरे  गांव  में ।
भूला  नही  हूँ   मैं   यार आकर मकान पर ।।

कितना सरस है इस गांव बीसल की ये सरज़मी ।
चर्चा -ए - आम   होने   लगी   हर   जुबान  पर ।।

जलता रहा तपिश में जलज कोई गम नही ।
कुर्बान  मेरी  जां  दोस्त  ऐसे  सम्मान  पर ।।

डॉ० लियाकत अली "जलज"

ग़ज़ल 5
बह्र - 212  122  212 1222
काफिया - ई
रदीफ़ - है

इस नये ज़माने में ,कौन चीज असली है।
तेल,दूध घी आदि अब तो मिलते नकली है ।।

झूठ रूपी खेतों में फसल जो भी उगते है,
यकीन कैसे करले हम शुध्द सभी फ़सली है।।

प्यार को परखने का माप भी नही मिलता,
लूट के बाज़ारो में इश्क़ भी तो मचली है।।

रब बचाये हकीमो से, दर्द बढ़ा देते है,
ज़ख़्म तो पुराने है,दवा कैसी निकली है।।

इनकी क्या लियाकत है,कौन सा तजुर्बा है।
इनकी मुंसिफ़ि देखो,नियत कैसी बदली है।।

डॉ0  लियाकत अली

ग़ज़ल  6
बह्र- 2122    222    2122   222
काफ़िया - आरा
रदीफ़ - हैं

सरपतो  के  झुरमुट में, गांव कितना प्यारा है ।
हर तरफ है हरियाली,तालाबो का किनारा है ।।

मिटटी खेत की लेकर,हर किसान कहता है ।
माथे की ये चन्दन है,नदी तिलक की धारा है ।।

गांव के तालाबों में,नीलकमल खिलते है ।
बेटी घर की लक्षमी है,बेटा राम सा प्यारा है ।।

अमृत की बूंदे भी,गंगा जल में मिलती है ।
स्वच्छ अपना हृदय है,मन में निर्मल धारा है ।।

आज भी बुजुर्गो की,गांव में लियाकत है ।
हम अदब से रहते है,संस्कार ये हमारा है ।।

जब दिल कभी घबराये,गांव में चले आना ।
छांव   बूढ़े  बरगद की,हर दवा से प्यारा है  ।।

डा लियाकत अली

ग़ज़ल  7
बह्र- 2122   2122    2122  22
काफ़िया - अन
रदीफ़ -  देखा क्या

कैसे होती है किसी दिल में चुभन देखा क्या।
आँख रोती है मगर मन की जलन देखा क्या।।

फूट होती है अगर तो लोग विखर जाते है।
इस तरह होते हुए घर का  पतन देखा क्या।।

जो  बयां करती है सच्चाई यहाँ बिकती नही।
ऐसे भी  जांबाज दिलावर का फन देखा क्या।।

एक  हार में गुंथ कर  जो साथ रहते है सदा।
ऐसे रंगीन गुलो का सबने चमन  देखा क्या।।

अब किसी किसान के घर भगत सिंह नही होते।
जहाँ   बन्दूको  के   बोने  का  चलन देखा क्या ।।

 देश   में   बहती   है  देखा प्यार की गंगा बहुत ।
हिन्दू ओ मुस्लिम का  वो गंगो जमन देखा क्या ।।

देश पर अपने जो मर मिट जाये हँसकर के जलज।
ऐसे   वीर  सपूतो  के  तिरंगे का कफ़न देखा क्या।।

डॉ० लियाकत अली 'जलज'

ग़ज़ल  8
बह्र - 212   212   212   212
काफ़िया  - आन
रदीफ़  - हैं काशी की बेटियां

आन, बान ओ शान है, काशी की बेटियां।
लक्ष्मी बाई महान है,काशी की बेटियां।।

लाई है स्वर्ण मेडल कामनवेल्थ  जीतकऱ ।
देश  की  शान हैं   काशी   की   बेटियां ।।

हर साँस में बसती है गन्ध माटी की प्यारे ।
खुसबू   है  फूलदान है काशी की बेटियां ।।

बेटा - बेटी   में   तो   कोई   फर्क  है  नही  ।
होती ये कुल की मान है, काशी की बेटियां।।

काशी की हर गली ही लियाकत है प्यार की।
इस देश की पहचान है, काशी की बेटियां।।

डॉ0 लियाकत अली

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