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रविवार, 6 मई 2018

मुहब्बत ग़ज़ल संग्रह में पारस गुप्ता की कुछ ग़ज़लें

नाम-   पारस वार्ष्णेय
साहित्यिक नाम- पारस गुप्ता शायर दिल से
पिता का नाम- श्री प्रेमहंस गुप्ता
माता का नाम- स्व0 श्रीमति राधा वार्ष्णेय 
जन्मतिथि - 6 दिसम्बर 1995
निवासी- कैथल गेट चन्दौसी जिला- सम्भल
शिक्षा- बीएससी , एमएससी०(गणित) 
समप्रति - अध्ययनरत् 

ग़ज़ल क्र 1
बहर- १२२२,१२२२,१२२२,१२२२
काफिया- आ
रदीफ- देना

अगर हमसे मुहब्बत हैं सनम हमको बता देना ।
मिटा देना बसी नफरत गिलें शिकवें मिटा देना ।।

अगर तुम कर सको इतना तो करना सिर्फ इतना तुम ।
करो  जो  प्यार  तुम  हमसे  तो हमदम जाँ लुटा देना ।।

भला कैसे कहूं तुमको हैं कितना प्यार अब तुमसे ।
हैं चाहत अब यहीं तुमसे कसम खुद ही बता देना ।।

करें ऐसी मुहब्बत जो कि हम तुम  इस जहां पर ही ।
करेंगी याद जब दुनिया कहानी तुम सुना देना  ।।

न किस्सा ये मुहब्बत का, सुनाना अब किसी से तुम ।
करेंगे लोग जब चर्चे, तो किस्सा तुम सुना देना ।।

अगर हमसे मोहब्बत हैं सनम हमको बता देना ।
मिटा देना बसी नफरत गिलें शिकवें मिटा देना ।।

©  पारस गुप्ता 
        चंदौसी (सम्भल)



ग़ज़ल क्र 2
बहर- १२२२,१२२२,१२२२,१२२२
काफिया- आना
रदीफ- बना डाला

मोहब्बत  के  ख़यालों ने हमें काना बना डाला ।
कभी बिकते कभी मिटते कभी आना बना डाला ।।

करें किससे शिकायत हम ज़माने की बताओ तुम ।
शिकायत को मेरी तुमने कैसे नाना बना डाला ।।

सुनो हम आज भी तुमसे मोहब्बत खूब करते हैं ।
मोहब्बत की बीमारी ने हमें साना बना डाला ।।

गिले शिकवे सभी इतने सुहाने से लगे मुझको ।
कि शिकवों ने तेरे फिर तो हमें ताना बना डाला ।।

नशा दुनिया में हैं इतने लगें मुझको सभी फीकें ।
यूं उसकी एक नज़र नें हमको दीवाना बना डाला ।।

करेंगे हम नशा इतना उन्हीं की आँख में गिरकर ।
उन्हीं की आँख को शायर ने मैखाना बना डाला ।।

1.काना= मोहब्बत में डूबे रहना 
2.आना= पैसा
3.नाना= जिसको कोई सुनने वाला नहीं
4.साना=आशिक

© पारस गुप्ता 
      चंदौसी (सम्भल)



ग़ज़ल क्र 3
बहर-१२२२,१२२२,१२२२,१२२२
काफिया - आनी
रदीफ - हैं

नादाने दिल हमारा हैं तिरी कातिल जवानी हैं ।
हुआ फिर चांद भी बेकल परी तू आसमानी हैं.....

कई शायर चलें आए ग़ज़ल कहने अदाओं पर ।
लचकती जब क़मर तेरी हुई दुनिया दिवानी हैं ।।

खिलें गुलशन बहारों में फिजाओं में नशा छाया ।
हवा चल दी मुहब्बत की हवाओं में रवानी हैं ।।

उठा पर्दा छुपे रुख से हुआ पहरा सितारों पर ।
घटा छाई हैं काली सी कि आई शब सुहानी हैं ।।

नही दिल्ली नही पटना नही रांची नही जम्मू ।
मेरा दिल तो बना डिस्ट्रिक बनी तू राजधानी हैं ।।

जरा इक बार तो कह दो सनम झूठा सही लेकिन ।
नही हमसे मुहब्बत हैं तुम्हें नफरत निभानी हैं ।।

पकड़कर हाथ जब बोले कहाँ जाते हो तुम जानम ।
नही कटते सहर-शामौ बनी हर शब विरानी हैं  ।।

चलें महफ़िल में *पारस* भी लिखें जातें जहाँ किस्सें ।
नहीं किस्सा लिखा हमने लिखी तुमपे कहानी हैं ।।

© पारस गुप्ता
       चंदौसी (सम्भल)


ग़ज़ल क्र  4

बह्र - 2122 2122 2122
काफ़िया - अत 
रदीफ- हो गयी तिरछी नज़र से

इक इनायत हो गयी तिरछी नज़र से ।
दिल में चाहत हो गयी तिरछी नज़र से ।।

गिर के फिर से उठ गयी उनकी नज़र जो ।
दिल में आफ़त हो गयी तिरछी नज़र से ।।

क्या कहें दिल घायल अब हो गया हैं ।
इक शरारत हो गयी तिरछी नज़र से ।।

क्यों रखें दिल अब गिले शिकवों की चाहत ।
हाँ   इज़ाजत  हो  गयी   तिरछी   नज़र  से ।।

आइने की दीद हसरत क्यों करें दिल ।
अब कयामत हो गयी तिरछी नज़र से ।।

© पारस "दिलसे"

ग़ज़ल क्र 5
बह्र - 1222   1222   1222    1222
रदीफ- से
काफिया- आने

मिलें तुझको सितम कितने, बता उनके सुहाने से ।
लगें कितने वो अपने से, सुना सब कुछ ज़माने से  ।।

सुनाऊँ हाल क्या दिल का, किसी से यार अपना मैं ।
नहीं लगता हैं दिल मेरा, किसी का दिल दुखाने से ।।

लिखूं किस्सा मुहब्बत का, मैं दिल के खून से अपने ।
लिखूंगा प्यार के किस्से, हमेशा दिल चुराने से  ।।

ग़ज़ल से गीत से दुनिया, सदा आबाद हैं अपनी ।
सुनें हैं गीत अपने भी, जुबां उनकी भी गाने से ।।

मिला जो आज अबतक हैं, न ग़म उसका भी करना तुम ।
तसल्ली हैं मुझें उसमें, मिला जितना ख़जाने से ।।

मिज़ाजे - दिल रखा अपना, सदा मैंने गरीबों सा ।
कभी हासिल तुम्हें होगा, न कुछ मेरे ठिकाने से ।।

हुई किस्मत मिरी रुकसत कहूं क्या यार मैं उनसे ।
बड़े  मगरूर  से  वो  बेवफा शायर दिवाने से ।।

© पारस गुप्ता 
    चंदौसी (सम्भल)

ग़ज़ल क्र 6
2122  2122  2122  212
काफिया- आर
रदीफ- है

दिल्लगी  का दौर हैं  और प्यार में तकरार है ।
प्यार में तकरार ही अब प्यार का इकरार है ।।

हुस्न उसका लग रहा हैं मानो जैसे चाँद सा ।
चाँद  का  देखो  जमीं पर हो गया दीदार है ।।

जुल्फ़ें हैं उसकी सुनहरी आँखें कातिल भी लगें ।
जब हयाँ करती हैं वो नख़रा बना अगियार है ।।

कशमकश में हैं जो देखें चांदनी का नूर सब  ।
हुस्न उनका लग रहा अब दो-धारी तलवार है ।।

ऐ खुदा कर देना बरकत जाए मिल बाजार में ।
देख कर नज़रें मिली थी फिर हुआ इज़हार है ।।

वो हमें भी देखकर यूं  मुस्कुराकर चल दिये ।
हो गया हो जैसे उसको भी तो मुझसे  प्यार है 

1. अगियार    -  दुश्मन
2. कशमकस -  आन्तरिक संघर्ष

©  पारस गुप्ता 
     चंदौसी (सम्भल)



ग़ज़ल क्र 7
बहर- २१२२,२१२२,२१२२,२१२
रदीफ- के लिये
काफिया- आने

वो मिलें हैं सिर्फ हमको आजमाने के लिये ।
ज़ख्म क्या काफ़ी नहीं थे दिल दुखाने के लिये ।।

जब मिलें तब मुस्कुराने की वजह को पूछते ।
मुस्कुराता हूं मैं अक्सर ग़म छिपाने के लिये ।।

क्या कमी हैं इस जहां में आशिकों की भी कहो ।
सैकड़ों आशिक पड़े हैं,  दिल लगाने के लिये ।।

क्या कहें तुमको बताओ मैखाने का पैमाना ।
जानता हूं, वो मिलें हैं,  दिल जलाने के लिये ।।

नाम क्या आया ग़ज़ल में ऐसा आलम हो गया ।
हो गया, मशहूर मैं भी, अब ज़माने के लिये ।।

आजमाने को पड़ी थी, दुनिया  पूरी क्यों  मगर ।
उनको पारस ही मिला फिर आजमाने के लिये ।।

© पारस गुप्ता 
चंदौसी (सम्भल)



ग़ज़ल क्र० 8
बह्र-  १२२२,१२२२,१२२२,१२२२
काफिया- आज
रदीफ- कहता हूं

कहा तुमने नहीं अब तक चलो मैं आज कहता हूं ।
हमें  तुमसे मोहब्बत है मैं दिल का राज कहता हूं ।।

लिखा  था  ख़त  मैंने  तुमको  पढ़ा  तुमने नहीं दिलवर ।
चलो अब ख़त की छोड़ो तुम दिलों अल्फ़ाज़ कहता हूं ।।

मोहब्बत की कहानी क्या दिवानी क्या जवानी क्या ।
निशानी हो अनूठी तुम तुम्हें मैं ताज कहता हूं ।।

बदल बेशक गये हो तुम मगर खोये नहीं हो तुम ।
तलाशें क्यूं तुम्हें अब हम तुम्हें मैं बाज कहता हूं ।।

ग़ज़ल गाकर सुनाना तुम लिखीं हमने जो तुम पर हैं ।
सुना   देना   सभी  गजलें के सरगम साज कहता हूं ।।

जमाना क्या कहेगा अब न सोचो तुम सनम इतना ।
बनोगी तुम मेरी दुल्हन फक़्त दिल राज कहता हूं ।।

हमें   तुमसे  मोहब्बत  हैं   चलो  मैं आज कहता हूं ।
कहां तुमने नहींं अबतक मैं दिल का राज कहता हूं ।।

© पारस "दिल से"

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