नाम- पारस वार्ष्णेय
साहित्यिक नाम- पारस गुप्ता शायर दिल से
पिता का नाम- श्री प्रेमहंस गुप्ता
माता का नाम- स्व0 श्रीमति राधा वार्ष्णेय
जन्मतिथि - 6 दिसम्बर 1995
निवासी- कैथल गेट चन्दौसी जिला- सम्भल
शिक्षा- बीएससी , एमएससी०(गणित)
समप्रति - अध्ययनरत्
ग़ज़ल क्र 1
बहर- १२२२,१२२२,१२२२,१२२२
काफिया- आ
रदीफ- देना
अगर हमसे मुहब्बत हैं सनम हमको बता देना ।
मिटा देना बसी नफरत गिलें शिकवें मिटा देना ।।
अगर तुम कर सको इतना तो करना सिर्फ इतना तुम ।
करो जो प्यार तुम हमसे तो हमदम जाँ लुटा देना ।।
भला कैसे कहूं तुमको हैं कितना प्यार अब तुमसे ।
हैं चाहत अब यहीं तुमसे कसम खुद ही बता देना ।।
करें ऐसी मुहब्बत जो कि हम तुम इस जहां पर ही ।
करेंगी याद जब दुनिया कहानी तुम सुना देना ।।
न किस्सा ये मुहब्बत का, सुनाना अब किसी से तुम ।
करेंगे लोग जब चर्चे, तो किस्सा तुम सुना देना ।।
अगर हमसे मोहब्बत हैं सनम हमको बता देना ।
मिटा देना बसी नफरत गिलें शिकवें मिटा देना ।।
© पारस गुप्ता
चंदौसी (सम्भल)
ग़ज़ल क्र 2
बहर- १२२२,१२२२,१२२२,१२२२
काफिया- आना
रदीफ- बना डाला
मोहब्बत के ख़यालों ने हमें काना बना डाला ।
कभी बिकते कभी मिटते कभी आना बना डाला ।।
करें किससे शिकायत हम ज़माने की बताओ तुम ।
शिकायत को मेरी तुमने कैसे नाना बना डाला ।।
सुनो हम आज भी तुमसे मोहब्बत खूब करते हैं ।
मोहब्बत की बीमारी ने हमें साना बना डाला ।।
गिले शिकवे सभी इतने सुहाने से लगे मुझको ।
कि शिकवों ने तेरे फिर तो हमें ताना बना डाला ।।
नशा दुनिया में हैं इतने लगें मुझको सभी फीकें ।
यूं उसकी एक नज़र नें हमको दीवाना बना डाला ।।
करेंगे हम नशा इतना उन्हीं की आँख में गिरकर ।
उन्हीं की आँख को शायर ने मैखाना बना डाला ।।
1.काना= मोहब्बत में डूबे रहना
2.आना= पैसा
3.नाना= जिसको कोई सुनने वाला नहीं
4.साना=आशिक
© पारस गुप्ता
चंदौसी (सम्भल)
ग़ज़ल क्र 3
बहर-१२२२,१२२२,१२२२,१२२२
काफिया - आनी
रदीफ - हैं
नादाने दिल हमारा हैं तिरी कातिल जवानी हैं ।
हुआ फिर चांद भी बेकल परी तू आसमानी हैं.....
कई शायर चलें आए ग़ज़ल कहने अदाओं पर ।
लचकती जब क़मर तेरी हुई दुनिया दिवानी हैं ।।
खिलें गुलशन बहारों में फिजाओं में नशा छाया ।
हवा चल दी मुहब्बत की हवाओं में रवानी हैं ।।
उठा पर्दा छुपे रुख से हुआ पहरा सितारों पर ।
घटा छाई हैं काली सी कि आई शब सुहानी हैं ।।
नही दिल्ली नही पटना नही रांची नही जम्मू ।
मेरा दिल तो बना डिस्ट्रिक बनी तू राजधानी हैं ।।
जरा इक बार तो कह दो सनम झूठा सही लेकिन ।
नही हमसे मुहब्बत हैं तुम्हें नफरत निभानी हैं ।।
पकड़कर हाथ जब बोले कहाँ जाते हो तुम जानम ।
नही कटते सहर-शामौ बनी हर शब विरानी हैं ।।
चलें महफ़िल में *पारस* भी लिखें जातें जहाँ किस्सें ।
नहीं किस्सा लिखा हमने लिखी तुमपे कहानी हैं ।।
© पारस गुप्ता
चंदौसी (सम्भल)
ग़ज़ल क्र 4
बह्र - 2122 2122 2122
काफ़िया - अत
रदीफ- हो गयी तिरछी नज़र से
इक इनायत हो गयी तिरछी नज़र से ।
दिल में चाहत हो गयी तिरछी नज़र से ।।
गिर के फिर से उठ गयी उनकी नज़र जो ।
दिल में आफ़त हो गयी तिरछी नज़र से ।।
क्या कहें दिल घायल अब हो गया हैं ।
इक शरारत हो गयी तिरछी नज़र से ।।
क्यों रखें दिल अब गिले शिकवों की चाहत ।
हाँ इज़ाजत हो गयी तिरछी नज़र से ।।
आइने की दीद हसरत क्यों करें दिल ।
अब कयामत हो गयी तिरछी नज़र से ।।
© पारस "दिलसे"
ग़ज़ल क्र 5
बह्र - 1222 1222 1222 1222
रदीफ- से
काफिया- आने
मिलें तुझको सितम कितने, बता उनके सुहाने से ।
लगें कितने वो अपने से, सुना सब कुछ ज़माने से ।।
सुनाऊँ हाल क्या दिल का, किसी से यार अपना मैं ।
नहीं लगता हैं दिल मेरा, किसी का दिल दुखाने से ।।
लिखूं किस्सा मुहब्बत का, मैं दिल के खून से अपने ।
लिखूंगा प्यार के किस्से, हमेशा दिल चुराने से ।।
ग़ज़ल से गीत से दुनिया, सदा आबाद हैं अपनी ।
सुनें हैं गीत अपने भी, जुबां उनकी भी गाने से ।।
मिला जो आज अबतक हैं, न ग़म उसका भी करना तुम ।
तसल्ली हैं मुझें उसमें, मिला जितना ख़जाने से ।।
मिज़ाजे - दिल रखा अपना, सदा मैंने गरीबों सा ।
कभी हासिल तुम्हें होगा, न कुछ मेरे ठिकाने से ।।
हुई किस्मत मिरी रुकसत कहूं क्या यार मैं उनसे ।
बड़े मगरूर से वो बेवफा शायर दिवाने से ।।
© पारस गुप्ता
चंदौसी (सम्भल)
ग़ज़ल क्र 6
2122 2122 2122 212
काफिया- आर
रदीफ- है
दिल्लगी का दौर हैं और प्यार में तकरार है ।
प्यार में तकरार ही अब प्यार का इकरार है ।।
हुस्न उसका लग रहा हैं मानो जैसे चाँद सा ।
चाँद का देखो जमीं पर हो गया दीदार है ।।
जुल्फ़ें हैं उसकी सुनहरी आँखें कातिल भी लगें ।
जब हयाँ करती हैं वो नख़रा बना अगियार है ।।
कशमकश में हैं जो देखें चांदनी का नूर सब ।
हुस्न उनका लग रहा अब दो-धारी तलवार है ।।
ऐ खुदा कर देना बरकत जाए मिल बाजार में ।
देख कर नज़रें मिली थी फिर हुआ इज़हार है ।।
वो हमें भी देखकर यूं मुस्कुराकर चल दिये ।
हो गया हो जैसे उसको भी तो मुझसे प्यार है
1. अगियार - दुश्मन
2. कशमकस - आन्तरिक संघर्ष
© पारस गुप्ता
चंदौसी (सम्भल)
ग़ज़ल क्र 7
बहर- २१२२,२१२२,२१२२,२१२
रदीफ- के लिये
काफिया- आने
वो मिलें हैं सिर्फ हमको आजमाने के लिये ।
ज़ख्म क्या काफ़ी नहीं थे दिल दुखाने के लिये ।।
जब मिलें तब मुस्कुराने की वजह को पूछते ।
मुस्कुराता हूं मैं अक्सर ग़म छिपाने के लिये ।।
क्या कमी हैं इस जहां में आशिकों की भी कहो ।
सैकड़ों आशिक पड़े हैं, दिल लगाने के लिये ।।
क्या कहें तुमको बताओ मैखाने का पैमाना ।
जानता हूं, वो मिलें हैं, दिल जलाने के लिये ।।
नाम क्या आया ग़ज़ल में ऐसा आलम हो गया ।
हो गया, मशहूर मैं भी, अब ज़माने के लिये ।।
आजमाने को पड़ी थी, दुनिया पूरी क्यों मगर ।
उनको पारस ही मिला फिर आजमाने के लिये ।।
© पारस गुप्ता
चंदौसी (सम्भल)
ग़ज़ल क्र० 8
बह्र- १२२२,१२२२,१२२२,१२२२
काफिया- आज
रदीफ- कहता हूं
कहा तुमने नहीं अब तक चलो मैं आज कहता हूं ।
हमें तुमसे मोहब्बत है मैं दिल का राज कहता हूं ।।
लिखा था ख़त मैंने तुमको पढ़ा तुमने नहीं दिलवर ।
चलो अब ख़त की छोड़ो तुम दिलों अल्फ़ाज़ कहता हूं ।।
मोहब्बत की कहानी क्या दिवानी क्या जवानी क्या ।
निशानी हो अनूठी तुम तुम्हें मैं ताज कहता हूं ।।
बदल बेशक गये हो तुम मगर खोये नहीं हो तुम ।
तलाशें क्यूं तुम्हें अब हम तुम्हें मैं बाज कहता हूं ।।
ग़ज़ल गाकर सुनाना तुम लिखीं हमने जो तुम पर हैं ।
सुना देना सभी गजलें के सरगम साज कहता हूं ।।
जमाना क्या कहेगा अब न सोचो तुम सनम इतना ।
बनोगी तुम मेरी दुल्हन फक़्त दिल राज कहता हूं ।।
हमें तुमसे मोहब्बत हैं चलो मैं आज कहता हूं ।
कहां तुमने नहींं अबतक मैं दिल का राज कहता हूं ।।
© पारस "दिल से"
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