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गुरुवार, 30 जनवरी 2020

10:04 pm

दुष्यन्त_कुमार जी की हिंदुस्तानी ज़बान वाली शायरी ...डॉ_निशान्त_असीम

#हिंदुस्तानी_ग़ज़ल  #ہندوستانی_غزل
की ये सीरीज फेसबुक अकाउन्ट पर जारी है। जिसमें शायरों/ग़ज़लकारों की आसान हिन्दुस्तानी ज़बान में कही गयीं, उनकी चुनिंदा ग़ज़लें और शे'र हाज़िर हैं। ताकि वे एक आम हिन्दुस्तानी तक आराम से पहुँच सकें। हमें ख़ुशी है कि ये कोशिश आपको पसन्द आ रही है।
आज लेकर आये हैं #दुष्यन्त_कुमार जी की हिंदुस्तानी ज़बान वाली शायरी  ...
दुष्यन्त जी बेहद संजीदा शायर थे, उन्हें हिन्दी और ऊर्दू का सेतु भी कहा जाता है। दुष्यन्त उन चंद ग़ज़लकरों में शामिल हैं जिन्हें पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा कोड किया जाता है।
दुष्यन्त जी का जन्म 1933 में बिजनौर के रजपुरा में हुआ था और अल्पायु में ही 1975 में वे संसार से विदा हो गये।
उनका एक मात्र ग़ज़ल संग्रह #साये_में_धूप प्रकाशित है। यक़ीनन उन्होंने ग़ज़ल को नये तेवर दिए और आज की जदीद और हिंदुस्तानी शायरी के वास्तविक प्रेरणाश्रोत दुष्यन्त जी ही थे।

#दुष्यन्त_जी_की_कुछ_ग़ज़लें

/ 01 /

कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये

यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है
चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिये

न हो क़मीज़ तो घुटनों से पेट ढक लेंगे
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिये

ख़ुदा नहीं न सही आदमी का ख़्वाब सही
कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिये

वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता
मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिये

/ 02/

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी
शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए

/ 03 /

ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो
अब कोई ऐसा तरीका भी निकालो यारो

दर्दे दिल वक़्त पे पैग़ाम भी पहुँचाएगा
इस क़बूतर को ज़रा प्यार से पालो यारो

आज सीवन को उधेड़ो तो ज़रा देखेंगे
आज संदूक से वो ख़त तो निकालो यारो

रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो

कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो

/ 04 /

ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दोहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था आप को धोखा हुआ होगा

यहाँ तक आते-आते सूख जाती है कई नदियाँ
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा

ग़ज़ब ये है की अपनी मौत की आहट नहीं सुनते
वो सब के सब परेशाँ हैं वहाँ पर क्या हुआ होगा

कई फ़ाक़े बिता कर मर गया जो उस के बारे में
वो सब कहते हैं अब ऐसा नहीं ऐसा हुआ होगा

यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बस्ते हैं
ख़ुदा जाने यहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा

प्रस्तुति
#डॉ_निशान्त_असीम

बुधवार, 29 जनवरी 2020

7:10 am

वसीम_बरेलवी साहब की हिंदुस्तानी ज़बान वाली शायरी ...डॉ_निशान्त_असीम

#हिंदुस्तानी_ग़ज़ल  #ہندوستانی_غزل
की ये सीरीज फेसबुक अकाउन्ट पर जारी है। जिसमें शायरों/ग़ज़लकारों की आसान हिन्दुस्तानी ज़बान में कही गयीं, उनकी चुनिंदा ग़ज़लें और शे'र हाज़िर हैं। ताकि वे एक आम हिन्दुस्तानी तक आराम से पहुँच सकें। उम्मीद है यह कोशिश आपको पसन्द आ रही होगी।
आज पेश कर रहे हैं  #वसीम_बरेलवी साहब की हिंदुस्तानी ज़बान वाली शायरी ...
वसीम बरेलवी साहब का वास्तविक नाम ज़ाहिद हसन है, वे बरेली में फूटे दरवाज़े के पास रहते है।
उ0 प्र0 विधान परिषद के वे आजकल सदस्य भी हैं।
आप  बरेली कालेज, बरेली के उर्दू विभाग में प्रोफ़ेसर रहे हैं मगर उनकी शायरी हिंदुस्तानी ज़बान का प्रतिनिधित्व करती है। यही कारण है कि दुनिया में उन्हें और उनकी ग़ज़लों को बहुत प्यार मिलता है।

#ग़ज़लें

/ 01 /

आते आते मिरा नाम सा रह गया
उस के होंटों पे कुछ काँपता रह गया

वो मिरे सामने ही गया और मैं
रास्ते की तरह देखता रह गया

झूट वाले कहीं से कहीं बढ़ गए
और मैं था कि सच बोलता रह गया

आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे
ये दिया कैसे जलता हुआ रह गया

उस को काँधों पे ले जा रहे हैं 'वसीम'
और वो जीने का हक़ माँगता रह गया

/ 02 /

उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है
जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है

नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है

थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटें
सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है

सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है

मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो
कि इस के बाद भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है

/ 03 /

क्या ग़म है, समंदर को बता भी नहीं सकता
आँसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता

तू छोड़ रहा है, तो ख़ता इसमें तेरी क्या
हर शख़्स मेरा साथ, निभा भी नहीं सकता

प्यासे रहे जाते हैं जमाने के सवालात
किसके लिए ज़िन्दा हूँ, बता भी नहीं सकता

घर ढूँढ रहे हैं मेरा , रातों के पुजारी
मैं हूँ कि चराग़ों को बुझा भी नहीं सकता

वैसे तो एक आँसू ही बहा के मुझे ले जाए
ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता

#चन्द_शेर_और_समात_फ़रमाइये


अपने हर हर लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा
उस को छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा

जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा
किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता

आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है
भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है

ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहीं
तेरा होना भी नहीं और तेरा कहलाना भी

ग़म और होता सुन के गर आते न वो 'वसीम'
अच्छा है मेरे हाल की उन को ख़बर नहीं

जो मुझ में तुझ में चला आ रहा है बरसों से
कहीं हयात इसी फ़ासले का नाम न हो

किसी ने रख दिए ममता भरे दो हाथ क्या सर पर
मेरे अंदर कोई बच्चा बिलक कर रोने लगता है

किसी से कोई भी उम्मीद रखना छोड़ कर देखो
तो ये रिश्ता निभाना किस क़दर आसान हो जाए

कुछ है कि जो घर दे नहीं पाता है किसी को
वर्ना कोई ऐसे तो सफ़र में नहीं रहता

उसी को जीने का हक़ है जो इस ज़माने में
इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए

बहुत से ख़्वाब देखोगे तो आँखें
तुम्हारा साथ देना छोड़ देंगी

दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता
तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता

न पाने से किसी के है न कुछ खोने से मतलब है
ये दुनिया है इसे तो कुछ न कुछ होने से मतलब है

तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना खो चुका हूँ मैं
कि तू मिल भी अगर जाए तो अब मिलने का ग़म होगा

हर शख़्स दौड़ता है यहाँ भीड़ की तरफ़
फिर ये भी चाहता है उसे रास्ता मिले

रात तो वक़्त की पाबंद है ढल जायेगी
देखना ये है चराग़ों का सफ़र कितना है

शराफ़तों की यहाँ कोई अहमियत ही नहीं
किसी का कुछ न बिगाड़ो तो कौन डरता है

अपने अंदाज़ का अकेला था
इसलिए मैं बड़ा अकेला था

हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें
ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें

कौन सी बात कहाँ कैसे कही जाती है
ये सलीक़ा हो तो हर बात सुनी जाती है

प्रस्तुति
#डॉ_निशान्त_असीम
7:08 am

दिवाकर_राही जी की हिंदुस्तानी ज़बान वाली शायरी ...डॉ_निशान्त_असीम

#हिंदुस्तानी_ग़ज़ल  #ہندوستانی_غزل
की ये सीरीज फेसबुक अकाउन्ट पर जारी है। जिसमें शायरों/ग़ज़लकारों की आसान हिन्दुस्तानी ज़बान में कही गयीं, उनकी चुनिंदा ग़ज़लें और शे'र हाज़िर हैं। ताकि वे एक आम हिन्दुस्तानी तक आराम से पहुँच सकें। उम्मीद है यह कोशिश आपको पसन्द आ रही होगी।
आज पेश है #दिवाकर_राही जी की हिंदुस्तानी ज़बान वाली शायरी ...
रामपुर से ताल्लुक रखने वाले #राही जी पेशे से वकील थे। हिन्दी और उर्दू पर उनका समान रूप से अधिकार था, अपितु उनकी पहचान एक शायर के तौर पर बनी और उर्दू अदब में उन्हें खासी तबज्जो मिली।
1984 में आयी फ़िल्म शराबी में जब अमिताभ बच्चन जी ने #राही जी का ये शे'र पढा, तो राही जी की पॉपुलरटी में चार चाँद लग गये -
अब तो उतनी भी मयस्सर नहीं मयख़ाने में
जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में

#ग़ज़ल_का_मतला_और_तीन_शेर_देखिए ...

ज़रा भी शोर मौजों का नहीं है
सफ़ीना तो कोई डूबा नहीं है

तुम्हारा हुस्न क्या है क्या नहीं है
तुम्हें ख़ुद इस का अंदाज़ा नहीं है

तिरी महफ़िल का किस से हाल पूछें
वहाँ जा कर कोई पल्टा नहीं है

वो इस पर हो गए हैं और बरहम
कि 'राही' को कोई शिकवा नहीं है

#चन्द_शेर_और_समाअत_फ़रमाइये ...


इस इंतिज़ार में बैठे हैं उन की महफ़िल में
कि वो निगाह उठाएँ तो हम सलाम करें


वो अपने हाथ से सागर न दे, शराब न दे
निगाह फेर ले लेकिन, हमें जवाब न दे


अगर मौजें डुबो देतीं तो कुछ तस्कीन हो जाती
किनारों ने डुबोया है मुझे इस बात का ग़म है


ख़ुद को जो लोग समझते हैं सियासी
उनके ये बताने की ज़रूरत है सियासत क्या है


इस दौरे तरक़्क़ी के अंदाज़ निराले हैं
ज़ेहनों में अँधेरे हैं सड़कों पे उजाले हैं


हज़ारों बार कह कर बेवफ़ा को बा-वफ़ा मैंने
बताया है ज़माने को वफ़ा का रास्ता मैंने


कुछ आदमी समाज पे बोझल हैं आज भी
रस्सी तो जल गई है मगर बल हैं आज भी


सोचने की ये बात है 'राही'
सोचते ही रहे तो क्या होगा


इस से पहले कि लोग पहचानें
ख़ुद को पहचान लो तो बेहतर है


मैंने आवाज़ तुम्हे दी है बड़े नाज़ के साथ
अब तो आवाज़ मिलाओ मेरी आवाज़ के साथ


दोस्तों से बचाइये 'राही'
दुश्मनों से मैं ख़ुद निपट लूँगा

प्रस्तुति :
#डॉ_निशान्त_असीम
7:06 am

जॉन_एलिया साहब की हिंदुस्तानी ज़बान वाली शायरी ...डॉ_निशान्त_असीम

#हिंदुस्तानी_ग़ज़ल  #ہندوستانی_غزل
की ये सीरीज फेसबुक अकाउन्ट पर जारी है। जिसमें शायरों/ग़ज़लकारों की आसान हिन्दुस्तानी ज़बान में कही गयीं, उनकी चुनिंदा ग़ज़लें और शे'र हाज़िर किये जा रहे हैं।
ताकि वे एक आम हिन्दुस्तानी तक आराम से पहुँच सकें। उम्मीद है यह कोशिश आपको पसन्द आएगी।
आज पेश हैं #जॉन_एलिया साहब की हिंदुस्तानी ज़बान वाली शायरी ...
जॉन एलिया का जन्म 1931 को अमरोहा में हुआ था और  2002 में वे दुनिया से रुखसत हो गये।
उनकी ज़िंदगी जज़्बाती संघर्ष और निराशा में डूबी रही, जो उनकी शायरी में बखूबी नज़र भी आता है। वे उर्दू अदब के बड़े और बेहतरीन शायर थे। शायरी में आसान लफ़्ज़ों के इस्तेमाल की वजह से वे सीधे दिल में उतर जाते हैं, इसीलिये वे आज भी लोगों के दिलों पर राज करते हैं।
...तो समाअत फ़रमाइये उनकी कुछ ग़ज़लें और कुछ शे'र ...

#ग़ज़लें

/ 01/

उम्र गुज़रेगी इम्तहान में क्या
दाग़ ही देंगे मुझको दान में क्या

मेरी हर बात बेअसर ही रही
नुक्स है कुछ मेरे बयान में क्या

मुझको तो कोई टोकता भी नहीं
यही होता है खानदान मे क्या

यूँ जो तकता है आसमान को तू
कोई रहता है आसमान में क्या

ये मुझे चैन क्यो नहीं पड़ता
एक ही शख्स था जहान में क्या

/ 02 /

एक हुनर है जो कर गया हूँ मैं
सब के दिल से उतर गया हूँ मैं

कैसे अपनी हँसी को ज़ब्त करूँ
सुन रहा हूँ के घर गया हूँ मैं

क्या बताऊँ के मर नहीं पाता
जीते जी जब से मर गया हूँ मैं

अजब इल्ज़ाम हूँ ज़माने का
के यहाँ सब के सर गया हूँ मैं

तुम से जानां मिला हूँ जिस दिन से
इस तरह खुद से डर गया हूँ मैं

#चन्द_शेर


बिन तुम्हारे कभी नहीं आयी
क्या मेरी नींद भी तुम्हारी है

मैं ख़ुद नहीं हूं और कोई है मेरे अंदर
जो तुम को तरसता है, अब भी आ जाओ

कोई नहीं यहां खामोश, कोई पुकारता नहीं
शहर में एक शोर है और कोई सदा नहीं

अब हमारा मकान किस का है
हम तो अपने मकां के थे ही नहीं

जा रहे हो तो जाओ लेकिन अब
याद अपनी मुझे दिलाइयो मत

हम आंधियों के बन में किसी कारवां के थे
जाने कहां से आए थे, जाने कहां के थे

और तो हमने क्या किया अब तक
ये किया है कि दिन गुज़ारे हैं

मेरी जां अब ये सूरत है कि मुझ से
तेरी आदत छुड़ाई जा रही है

कभी-कभी तो बहुत याद आने लगते हो
कि रूठते हो कभी और मनाने लगते हो

मैं अब हर शख़्स से उकता चुका हूं
फ़क़त कुछ दोस्त हैं, और दोस्त भी क्या

आप बस मुझ में ही तो हैं, सो आप
मेरा बेहद ख़याल कीजिएगा

बहुत नज़दीक आती जा रही हो
बिछड़ने का इरादा कर लिया क्या

मुझ से बिछड़ कर भी वो लड़की कितनी ख़ुश ख़ुश रहती है
जिस लड़की ने मुझ से बिछड़ कर मर जाने की ठानी थी

तू भी चुप है मैं भी चुप हूँ ये कैसी तन्हाई है
तेरे साथ तेरी याद आई क्या तू सचमुच आई है

बिन तुम्हारे कभी नहीं आई
क्या मेरी नींद भी तुम्हारी है

सोचता हूँ कि उस की याद आख़िर
अब किसे रात भर जगाती है

कैसे कहें कि तुझ को भी हम से है वास्ता कोई
तू ने तो हम से आज तक कोई गिला नहीं किया

ज़िंदगी किस तरह बसर होगी
दिल नहीं लग रहा मोहब्बत में

प्रस्तुति
#डॉ_निशान्त_असीम
7:04 am

कृष्ण_बिहारी_नूर साहब की हिंदुस्तानी ज़बान वाली कुछ ग़ज़लें ...डॉ_निशान्त_असीम

#हिंदुस्तानी_ग़ज़ल  #ہندوستانی_غزل
की ये सीरीज फेसबुक अकाउन्ट पर जारी है। इसमें शायरों/ग़ज़लकारों की आसान हिन्दुस्तानी ज़बान में कही गयीं, उनकी चुनिंदा ग़ज़लें और शे'र हाज़िर किये जा रहे हैं। ताकि वे एक आम हिन्दुस्तानी तक आराम से पहुँच सकें। उम्मीद है यह कोशिश आपको पसन्द आ रही होगी।
आज लेकर आये हैं #कृष्ण_बिहारी_नूर साहब की हिंदुस्तानी ज़बान वाली कुछ ग़ज़लें ...

#ग़ज़लें ...

/ 1 /

ज़िन्दगी से बड़ी सज़ा ही नहीं,
और क्या जुर्म है पता ही नहीं

इतने हिस्सों में बट गया हूँ मैं,
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं

ज़िन्दगी मौत तेरी मंज़िल है
दूसरा कोई रास्ता ही नहीं

सच घटे या बढ़े तो सच न रहे,
झूठ की कोई इन्तहा ही नहीं

ज़िन्दगी अब बता कहाँ जाएँ
ज़हर बाज़ार में मिला ही नहीं

जिसके कारण फ़साद होते हैं
उसका कोई अता-पता ही नहीं

धन के हाथों बिके हैं सब क़ानून
अब किसी जुर्म की सज़ा ही नहीं

चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो
आईना झूठ बोलता ही नहीं

अपनी रचनाओं में वो ज़िन्दा है
‘नूर’ संसार से गया ही नहीं

/ 2 /

नज़र मिला न सके उससे उस निगाह के बाद
वही है हाल हमारा जो हो गुनाह के बाद

मैं कैसे और किस सिम्त मोड़ता ख़ुद को
किसी की चाह न थी दिल में, तिरी चाह के बाद

ज़मीर काँप तो जाता है, आप कुछ भी कहें
वो हो गुनाह से पहले, कि हो गुनाह के बाद

गवाह चाह रहे थे, वो मिरी बेगुनाही का
जुबाँ से कह न सका कुछ, ख़ुदा-गवाह के बाद

/ 3 /

आग है, पानी है, मिट्टी है, हवा है, मुझमें
और फिर मानना पड़ता है के ख़ुदा है मुझमें

मेरा ये हाल उभरती हुई तमन्ना जैसे,
वो बड़ी देर से कुछ ढूंढ रहा है मुझमें

जितने मौसम हैं सब जैसे कहीं मिल जायें,
इन दिनों कैसे बताऊँ जो फ़ज़ा है मुझमें

आईना ये तो बताता है के मैं क्या हूँ लेकिन,
आईना इस पे है ख़मोश के क्या है मुझमें

अब तो बस जान ही देने की है बारी ऐ 'नूर'
मैं कहाँ तक करूँ साबित के वफ़ा है मुझमें

प्रस्तुति
#डॉ_निशान्त_असीम
7:00 am

निश्तर_ख़ानक़ाही साहब की हिंदुस्तानी ज़बान वाली शायरी के साथ ... डॉ_निशान्त_असीम


#हिंदुस्तानी_ग़ज़ल  #ہندوستانی_غزل
की ये सीरीज फेसबुक अकाउन्ट पर प्रस्तुत है। जिसमें शायरों/ग़ज़लकारों की आसान हिन्दुस्तानी ज़बान में कही गयीं, उनकी चुनिंदा ग़ज़लें और शे'र हाज़िर हैं। ताकि वे एक आम हिन्दुस्तानी तक आराम से पहुँच सकें। उम्मीद है यह कोशिश आपको पसन्द आएगी।
आगाज़ कर रहे हैं #निश्तर_ख़ानक़ाही साहब की हिंदुस्तानी ज़बान वाली शायरी के साथ ...

#ग़ज़लें ...

/01/

बच्चे डरे-डरे से ये क्या पूछते हैं आज
अख़बार के हिसाब से कितने मरे हैं आज

हँस हँस के यूँ तो सबसे मिला हूँ मगर ये क्या
झूठी हँसी से होंठ बहुत दुख रहे हैं आज

चमका न अब भी मास के अन्तिम दिनों का चाँद
या हम समय से पहले ही सोने लगे हैं आज

टायर कहीं फ़टे तो ये लगता है कुछ हुआ
आहट भी हो ज़रा सी तो हम काँपते हैं आज

/02/

अपने ही खेत की मिट्टी से जुदा हूँ मैं तो ।
इक शरारा हूँ कि पत्थर से उगा हूँ मैं तो ।

मेरा क्या है कोई देखे या न देखे, मुझको
सुब्ह के डूबते तारों की ज़िया हूँ मैं तो ।

अब ये सूरज मुझे सोने नहीं देगा शायद
सिर्फ़ इक रात की लज़्ज़त का सिला हूँ मैं तो ।

कौन रोकगा तुझे दिन की दहकती हुई धूप
बर्फ़ के ढेर पे चुपचाप खड़ा हूँ मैं तो ।

/03/

रात एक पिक्चर में, शाम एक होटल में, बस यही बसीले थे
मेज़ के किनारे पर, चाय की पियाली में, उसकें होंठ रक्खे थे

दस्तख़त नहीं बाक़ी, बस हरुफ़ टाइप के क़ाग़ज़ों में ज़िंदा हैं
याद भी नहीं आता, प्यार के ये ख़त जाने, किसने किसको लिक्खे थे

दर्द-खानादारी का, हमको क्या पता क्या है, हम जवान शहरों के
होटलों में रहते थे, हॉट-डाग खाते थे, काकटेल पीते थे

आज का भी दिन गुज़रा, डाकतार वालों की कल से कामबंदी है
जाने किन उमीदों पर हमने रात काटी थी, गिन के पल गुजारे थे।

#चन्द_शेर ...

रूह के ज़ख़्मों से छनती रोशनी अच्छी लगी
थी बहुत बेदर्द लेकिन ज़िन्दगी अच्छी लगी

दिल किसी के दर्द में रोता नहीं पत्थर हुआ
आदमी अब आदमी के वास्ते बंजर हुआ

मीर कोई था मीरा कोई लेकिन उनकी बात अलग
इश्क न करना इश्क में प्यारे पागल बनना पड़ता है

घट के इतनी रह गयी है ज़िन्दगी
घर बसाया, घूस दी, नौकर हुए

कहता है आज दिन में उजाला बहुत है यार
शायद ये शख़्स रात में जागा बहुत है यार

दस्तक पे दोस्तों की भी खुलते नहीं हैं दर
हर वक़्त एक अजीब सी वहशत घरों में है

हाल शासन का लिखा जनता की लाचारी लिखी
अंत में बारूद पर माचिस की निगरानी लिखी

कुछ न पूछो क्या हुआ क्यों इतने दिन ग़ायब रहे
बात बस इतनी थी हम मर गये थे बीच में

प्रस्तुति
#डॉ_निशान्त_असीम

शनिवार, 25 जनवरी 2020

2:38 am

हम जहाँ भी मुहब्बत निभाने गए।

आदरणीय जी सादर नमन👏👏
*"हिंदी साहित्य वैभव "* मासिक  पत्रिका के लिए रचना स्वीकार करें।
         मैं ..चन्द्रभान सिंह 'चाँद'........ घोषणा करता/करती हूँ कि पत्रिका में प्रकाशन हेतु  भेजी गयी रचना मेरे द्वारा लिखित और पूर्णतः मौलिक हैं। इसके प्रकाशन से यदि कोप्पीराइट का उल्लंघन होता हैं तो इस दशा में उसकी पूरी जिम्मेदारी मेरी होगी।

        ★★ग़ज़ल★★

हम जहाँ भी मुहब्बत निभाने गए।
लोग हमको वहाँ आजमाने गए।।

पीठ खंजर उसी ने दिया भौंक था।
राह जिसकी गुलों से सजाने गए।।

आज मिलती उसे यार बदनामियाँ।
मुल्क पर जान को जो लुटाने गए।।

मौत से आज पर्दा नहीं उठ सका।
देशहित जो लहू को बहाने गए।।

देश के ओ लुटेरों सुनो गौर से।
ख्याल उनका रखो सिर कटाने गए।।


आज उनको नमन आप करते नहीं।
जान पर खेल डायर उड़ाने गए।।

याद उनको करो साथ मिलकर सभी।
'चाँद' जो भी गुलों को खिलाने गए।।

 ✍🏻✍🏻


🌙🌙🌙🌙🌙🌙
◆◆◆स्व-परिचय◆◆◆

नाम - चंद्रभान सिंह 'चाँद'
पत्नी- श्रीमती पूनम शाक्य
पिता - श्री कालीचरन शाक्य
माता - श्रीमती महादेवी शाक्य
शैक्षिक योग्यता- M.A.(edu.),M.Sc.(chem.),B.T.C.&B.Ed.( edu.training course),DOAP (com.Dp.)
जन्मतिथि-05-09-1989
गाँव - अखतऊ
पत्रालय- सींगपुर
शहर- गंजडुंडवारा
तहसील-पटियाली
जनपद- कासगंज
पिन-207242 (उ. प्र.)
सम्पर्क सूत्र-9719815279
Fb id- चंद्रभान सिंह 'चाँद'
Fb page-  कवि सी.बी.सिंह गंजडुंडवारा
 प्रकाशित पुस्तक-'महफ़िल-ए-गज़ल' , त्रिवेणी , बज़्म-ए-हिन्द, वतन के रखवाले(साझा काव्य-संग्रह )
प्राप्त सम्मान- 
१-काव्य_सागर सम्मान(राजस्थान )
२- हिन्दी साहित्य सम्मान (बिहार)
३- हिन्दी साहित्य मंच सम्मान (बिहार)
४- वर्तमान अंकुर साहित्य सम्मान (नोएडा, उ. प्र.)
५- कलमवीर सम्मान अलीगढ़(उ. प्र.)
६- हिन्दी साहित्य समृध्दि रत्न सम्मान मुफ्फफरपुर(बिहार)
७- साहित्य साधना सम्मान बदायूँ (उ. प्र.)
८- हिन्दी साहित्य रत्न सम्मान मुजफ्फरपुर (बिहार)
९- हिन्दी साहित्य सरिता सम्मान अररिया (बिहार)
१०- हिन्दी साहित्य अँचल सम्मान अररिया (बिहार)
११- हिन्दी गौरव सम्मान अररिया (बिहार)
१२- साहित्य सारथी गौरव सम्मान-२०१९ ( नई दिल्ली  )

वर्तमान पद-जनता इंटर कॉलेज कैल्ठा,अलीगंज 'एटा (उत्तर-प्रदेश) में  रसायन विज्ञान के पद पर कार्यरत।

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

चंद्रभान सिंह 'चाँद'
कासगंज (उ. प्र.)

शुक्रवार, 24 जनवरी 2020

10:33 pm

आजादी


आज़ादी

शहीद दिवस को याद करें उन वीरों का बलिदान है।
आजादी उनकी ही देन है, मेरा भारत देश महान है।

चल पड़े थे प्रगति पथ पर ना देखा पीछे मुड़कर,
ये थे भारत के वीर जवान, तर्पण उनके प्राण हैं।

शत शत नमन उन्हें रखते हमको जो महफूज़ हैं,
सुभाष,भगत,सुखदेव,राजगुरु हुए देश के लिए कुर्बान हैं।

उन वीर योद्धाओं को हम कभी भी भुला न पाएंगे,
वतन पर मिटने वालों का बस बाकी यही निशान हैं।

अपने देश के खातिर उन्होंने जान कर दी कुर्बान,
यही कहलाये अपने मुल्क के सच्चे वीर जवान हैं।

हँसते-हँसते वीर जवान फाँसी के फंदे पर झूल गए,
देश की आजादी इन्ही की देन है, ये इनकी पहचान हैं।

सुमन अग्रवाल "सागरिका"
        आगरा

Sent from Samsung Mobile

गुरुवार, 16 जनवरी 2020

6:34 am

पत्रिकाओं के ईमेल की एक और सूची

पत्रिकाओं के ईमेल की एक और सूची इनको सेव जरूर कर लें
==================

1. हंस, संजय सहाय (संपादक), editorhans@gmail.com

2 himprasthahpGmail.com

3. बया, गौरीनाथ (संपादक), rachna4baya@gmail.com
4. पहल, ज्ञानरंजन (संपादक), edpahaljbp@yahoo.co.in, editorpahal@gmail.com
5. अंतिम जन- दीपक श्री ज्ञान (संपादक)- antimjangsds@gmail.com, 2010gsds@gmail.com
6. समयांतर- पंकज बिष्ट (संपादक)- samayantar.monthly@gmail.com, samayantar@yahoo.com
7. लमही- विजय राय (संपादक)- vijayrai.lamahi@gmail.com
8. पक्षधर- विनोद तिवारी (संपादक)- pakshdharwarta@gmail.com
9. अनहद- संतोष कुमार चतुर्वेदी (संपादक)- anahadpatrika@gmail.com
10. नया ज्ञानोदय- लीलाधर मंडलोई (संपादक)- nayagyanoday@gmail.com, bjnanpith@gmail.com
11. स्त्रीकाल, संजीव चन्दन (संपादक), themarginalized@gmail.com,
12. बहुवचन- अशोक मिश्रा (संपादक)- bahuvachan.wardha@gmail.com
13. अलाव- रामकुमार कृषक (संपादक)- alavpatrika@gmail.com
14. बनासजन- पल्लव (संपादक)- banaasjan@gmail.com
15. व्यंग्य यात्रा, प्रेम जनमेजय (संपादक), vyangya@yahoo.com, premjanmejai@gmail.com
16. अट्टहास (हास्य व्यंग्य मासिक), अनूप श्रीवास्तव (संपादक), anupsrivastavalko@gmail.com
17. उद्भावना- अजेय कुमार (संपादक)- udbhavana.ajay@yahoo.com
18. समकालीन रंगमंच- राजेश चन्द्र (सम्पादक)- samkaleenrangmanch@gmail.com
19. वीणा-राकेश शर्मा,veenapatrika@gmail.com
20. मुक्तांचल-डॉ मीरा सिन्हा,muktanchalquaterly2014@gmail.com,
21. शब्द सरोकार-डॉ हुकुमचन्द राजपाल,sanjyotima@gmail.com,
22. लहक-निर्भय देवयांश,lahakmonthly@gmail.com
23. पुस्तक संस्कृति। संपादक पंकज चतुर्वेदी।editorpustaksanskriti@gmail.com
24. प्रणाम पर्यटन हिंदी त्रैमासिक संपादक प्रदीप श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश
1. PRANAMPARYATAN@YAHOO.COM
25. समालोचन वेब पत्रिका, अरुण देव (सम्पादक), www.samalochan.com, devarun72@gmail.com
26. वांग्मय पत्रिका, डॉ. एम. फ़िरोज़. एहमद, (सम्पादक), vangmaya@gmail.com
27. साहित्य समीर दस्तक (मासिक), कीर्ति श्रीवास्तव (संपादक), राजकुमार जैन राजन (प्रधान सम्पादक), licranjan2003@gmail.com
28. कथा समवेत (ष्टमासिक), डॉ. शोभनाथ शुक्ल (सम्पादक), kathasamavet.sln@gmail.com
29. अनुगुंजन (त्रैमासिक), डॉ. लवलेश दत्त (सम्पादक), sampadakanugunjan@gmail.com
30. सीमांत, डॉ. रतन कुमार (प्रधान संपादक), seemantmizoram@gmail.com
31. शोध-ऋतु, सुनील जाधव (संपादक), shodhrityu78@yahoo.com
32. विभोम स्वर, पंकज सुबीर (संपादक), vibhomswar@gmail.com, shivna.prakashan@gmail.com
33. सप्तपर्णी, अर्चना सिंह (संपादक), saptparni2014@gmail.com
34. परिकथा, parikatha.hindi@gmail.com
35. लोकचेतना वार्ता, रवि रंजन (संपादक), lokchetnawarta@gmail.com
36. युगवाणी, संजय कोथियल (संपादक), Yugwani@gmail.com
37. गगनांचल,डॉक्टर हरीश नवल (सम्पादक), sampadak.gagnanchal@gmail.com
38. अक्षर वार्ता, प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा (प्रधान संपादक), डॉ मोहन बैरागी (संपादक) aksharwartajournal@gmail.com
39. कविकुंभ, रंजीता सिंह (संपादक), kavikumbh@gmail.com
40. मनमीत, अरविंद कुमार सिंह(संपादक), manmeetazm@gmail.com
41. पू्र्वोत्तर साहित्य विमर्श (त्रैमासिक), डॉ. हरेराम पाठक (संपादक), hrpathak9@gmail.com
42. लोक विमर्श, उमाशंकर सिंह परमार (संपादक), umashankarsinghparmar@gmail.com
43. लोकोदय, बृजेश नीरज (संपादक), lokodaymagazine@gmail.com
44. माटी, नरेन्द्र पुण्डरीक (संपादक), Pundriknarendr549k@gmail.com
45. मंतव्य, हरे प्रकाश उपाध्याय (संपादक), mantavyapatrika@gmail.com
46. सबके दावेदार, पंकज गौतम (संपादक), pankajgautam806@gmail.com
47. जनभाषा, श्री ब्रजेश तिवारी (संपादक), mumbaiprantiya1935@gmail.com, drpramod519@gmail.com
48. सृजनसरिता (हिंदी त्रैमासिक), विजय कुमार पुरी (संपादक), srijansarita17@gmail.com
49. नवरंग (वार्षिकी), रामजी प्रसाद ‘भैरव’ (संपादक), navrangpatrika@gmail.com
50. किस्सा कोताह (त्रैमासिक हिंदी), ए. असफल (संपादक), a.asphal@gmail.com, Kotahkissa@gmail.com
51. सृजन सरोकार (हिंदी त्रैमासिक पत्रिका), गोपाल रंजन (संपादक), srijansarokar@gmail.com, granjan234@gmail.com
52. उर्वशी, डा राजेश श्रीवास्तव (संपादक), urvashipatrika@gmail.com
53. साखी (त्रैमासिक), सदानंद शाही (संपादक), Shakhee@gmail.com
54. गतिमान, डॉ. मनोहर अभय (संपादक), manohar.abhay03@gmail.com
55. साहित्य यात्रा, डॉ कलानाथ मिश्र (संपादक), sahityayatra@gmail.com
56. भिंसर, विजय यादव (संपादक), vijayyadav81287@gmail.com
57. सद्भावना दर्पण, गिरीश पंकज (संपादक), girishpankaj1@gmail.com
58. सृजनलोक, संतोष श्रेयांस (संपादक), srijanlok@gmail.com
59. समय मीमांसा, अभिनव प्रकाश (संपादक), editor.samaymimansa@gmail.com
60. प्रवासी जगत, डॉ. गंगाधर वानोडे (संपादक), gwanode@gmail.com pravasijagat.khsagra17@gmail.com
61. शैक्षिक उन्मेष, प्रो. बीना शर्मा (संपादक), dr.beenasharma@gmail.com
62. पल प्रतिपल, देश निर्मोही (संपादक), editorpalpratipal@gmail.com
63. समय के साखी, आरती (संपादक), samaysakhi@hmail.in
64. समकालीन भारतीय साहित्य, ब्रजेन्द्र कुमार त्रिपाठी (संपादक), secretary@sahitya-akademi.gov.in
65. शोध दिशा, डॉ गिरिराजशरण अग्रवाल (संपादक), shodhdisha@gmail.com
66. अनभै सांचा, द्वारिका प्रसाद चारुमित्र (संपादक), anbhaya.sancha@yahoo.co.in
67. आह्वान, ahwan@ahwanmag.com, ahwan.editor@gmail.com
68. राष्ट्रकिंकर, विनोद बब्बर (संपादक), rashtrakinkar@gmail.com
69. साहित्य त्रिवेणी, कुँवर वीरसिंह मार्तण्ड (संपादक), sahityatriveni@gmail.com
70. व्यंजना, डॉ रामकृष्ण शर्मा (संपादक), shivkushwaha16@gmail.com
71. एक नयी सुबह (हिंदी त्रैमासिक), डॉ. दशरथ प्रजापति (संपादक), dasharathprajapati4@gmail.com
72. समकालीन स्पंदन, धर्मेन्द्र गुप्त 'साहिल' (संपादक), samkaleen.spandan@gmail.com
73. साहित्य संवाद , संपादक - डॉ. वेदप्रकाश, sahityasamvad1@gmail.com
74. भाषा विमर्श ( अपनी भाषा की पत्रिका), अमरनाथ (प्रधान संपादक), अरुण होता (संपादक), amarnath.cu@gmail.com
75. विश्व गाथा, पंकज त्रिवेदी (संपादक), vishwagatha@gmail.com
76. भाषिकी अंतरराष्ट्रीय रिसर्च जर्नल, प्रो. रामलखन मीना (संपादक), prof.ramlakhan@gmail.com
77. समवेत, संपादक-डॉ.नवीन नंदवाना,
78-editordeskudr@gmail.com
79-hindipatahar@gmail.com

80-bajpaikailash51@gmail.com

81 बोहल शोध मंजूषा
सम्पादक डॉ नरेश सिहाग एडवोकेट
grsbohal@gmail.com






शनिवार, 4 जनवरी 2020

8:10 pm

राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मान 2019 हेतु बालकहानियां आमंत्रित

राष्ट्रीय बालसाहित्य सम्मान 2019 हेतु बालकहानियां आमंत्रित 
 सभी बाल साहित्यकारों से बालकहानी आमंत्रित है. बाल कहानी संदेशप्रद होनी चाहिए. मगर, संदेश या उपदेश सीधा व्यक्त न हो, इस बात का ध्यान रखते हुए दिनांक 25 फरवरी 2020 तक बाल कहानियाँ सादर आमंत्रित है.
1— बालकहानियां पशुपक्षी, जीवजंतु, मूर्तअमूर्त वस्तु के पात्र ले कर रची गई हो.
2— कहानी में सरस, सरल और सहज वाक्यों को समावेश हो, इस बात का ध्यान रखिएगा. वाक्य छोटेछोटे हो.
3— मंनोरंजक और उद्देश्यपरक कहानियों को प्राथमिकता दी जाएगी.
3— बालकहानी में कथातत्व का समावेश हो.
4— आप की सर्वश्रेष्ठ एक बालकहानी की तीन प्रतियां ए—4 आकार के कागज पर एक ओर लिख कर या टाईप करवा कर भेजे. उस में कहीं नाम,पता या कोई पहचान चिह्न अंकित न हो इस बात का ध्यान रखे. अपना संक्षिप्त परिचय व एड्रेस अलग से A-4 साइज कागज पर लिख भेजे जिसमे कहानी का शीर्षक लिखते हुए मौलिकता की घोषणा भी अंकित करें
5— इसे पंजीकृत डाक या कूरियर से — राजकुमार जैन राजन,
चित्रा प्रकाशन,
आकोला -312205 (चित्तौड़गढ़) राजस्थान
के पते पर अंतिमतिथि के पूर्व प्रेषित कर दें. ताकि समय सीमा में यह प्राप्तकर्ता को मिल सकें.
6— एक प्रति जिस में पूरा नाम, पता, मोबाइल नंबर और मेल आईडी लिखा हो. उसे
Rajkumarjainrajan@gmail.com  मेल  पर भेजे
के विषय में — राष्ट्रीय बालसाहित्य सम्मान 2019 हेतु बालकहानियां , लिख कर संलग्नक के साथ पहुंचा दे.
7- कहानी यूनीफॉण्ट या मंगलफोंट में  टाइप कर के वर्ड फ़ाईल में भेजे।
8- प्रतियोगिता में स्वीकृत और मापदंड पर खरी उतरी  बालकहानियों का एक संकलन प्रकाशित कर, उनके रचनाकारों को समारोह में स्मृति चिह्न, नगद राशि के साथ ससम्मान पुरस्कार के साथ प्रदान किया जाएगा। पुरस्कार प्रथम ₹. 3100/-, द्वितीय ₹.2100/-, तृतीय ₹.1100 एवम 5 प्रोत्साहन पुरस्कार देय होंगे।

संपादक/ संयोजक
-ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश
-राजकुमार जैन राजन


सूचना साभार :- स्वैच्छिक दुनिया समाचार पत्र
8:07 pm

ग़ज़ल - वीगा जमीन यूँ मकानों में बंट गया।


वीगा जमीन यूँ मकानों में बंट गया।
फिर यूँ हुआ चंद ठिकानों में बंट गया।

बेसबब मुझसे कोई आकर कह गया,
जमीन के टुकड़े विवादों में बंट गया।

भाई ही भाई का दुश्मन बन बैठा,
कोर्ट में पेश संवादों में बंट गया।

आपस में झगड़ते रहते थे नित रोज,
भाई का प्यार दीवारों में बंट गया।

आपसी मनमुटाव बढ़ गया इसकदर,
बड़ा सा गोदाम दुकानों में बंट गया।

सुमन अग्रवाल 'सागरिका'
         आगरा
5:39 am

दुख की बदली

छंद मुक्त कविता

मैं अक्सर भीग जाता हूँ ,
दुखों की बदली में,
उसके प्रवाह का आतप,
जब आफ़त बन जाता ,
मुश्किल हालात भी,
जब मुश्किल हो जाते ,
सिहर जाता तन-मन,
समस्या से भय खाता हूँ,
भूल जाता सुकूँ के पल,
बस सोचता ये ही,
हाय!जीवन, कैसा जीवन? 
मैं तुझसे हार गया ,
ये कहकर जीवन,
धिक्कार दिया, 
क्षुब्ध,लुब्ध, कुंठित हो,
स्वयं को कोसता हूँ ,
भूल जाता पतझड़ के बाद,
सावन तो आएगा,
बाद कोहरे के फिर ,
लालिमा भी आएगी,
अमावस-अंधेरे जीवन में,
पूर्णिमा का चंद्र भी होगा,
ज़िंदगी ज़िंदादिली का नाम है,
दुख में धैर्य की परीक्षा होती,
सुख-दुख आना-जाना है,
ये बातें जब-जब सुनता हूँ,
पढ़ता हूँ, लिखता हूँ ।
तब सुख झरोखे से झाँकता,
कुछ इशारा करता हुआ,
मंद- मंद हँसी से खिलखिलाता,
और फिर कहता भी है,
तेरे संग रहकर दुख को,
कितना सुख मिला रे ।
धैर्य तेरा देखकर,
धैर्य और धीर बना,
ये देखकर मुग्ध हूँ मैं,
अब मैं भी आना चाहता,
दुख जैसा गले मिलकर तुझसे,
मैं भी मुस्काना चाहता,
पावन होना चाहता हूँ ,
आह! मुझे भी तो,
कितना प्यार मिलेगा? 
कितना सुख मिलेगा? 
कितना सम्मान मिलेगा? 

कवि - सुनील नागर " सरगम "

3:12 am

Re: chhod de nasha.....poem


मान्यवर  मित्रों ,
लो क्ल लो बात ...

मेरे  दिल से  निकले  नए  भाव ... आपके  साथ  साँझा कर रहा हूँ ...

छोड़  दे  नशा ...नई  इबादत लिख दे ....

नशे की  आड़ में  गुनाह  होते  देखें हैं 
फिर  जीवन भर अपने  आह  ढ़ोते  देखें हैं 
नशे की  गिर्रफत  में  होने का  कारण  तो  बता 
छोड़  दे  नशा एक  नया  वातावारण  बना 
कर  नशा  गर  करना  तो   किसी अच्छी  चीज़  का 
तरेगा  जीवन  गर  पीया  अमृत  सहित्य  बीज  का 
लिखना  हैं तो  लिख  दर्द  जवानी  का 
दूसरों के  ज़ुल्मों  की  मनमानी  का 
नशा  तो  नाश  और रास्ता  उदास  है 
लेकिन  जीवन में  फिर भी  आस  हैं 
छोड़ नशा  खेल  अपनी  तकदीर  से 
लिख अपनी  नई  कहानी अपनी  तदबीर से 
नशा  कर  खुलकर  तू  देश  भक्ति  रानी का 
गर्व  कर  पूरा  अपना होने  हिन्दुस्तानी  का 
बदल  देश की  तस्वीर  अपने  नेक इरादों  से 
छीन  दुख  दर्द  दुनियां  के सच्चे  वादों  से 
भर  दे  रंग नए  नई   तिज़ारत  लिख दे 
छोड़  दे  नशा  नई  इबादत  लिख दे 
छोड़  दे  नशा .......

आपका अपना ,
वीरेन्द्र  कौशल
3:11 am

Re: betian voh prindey......


मान्यवर  मित्रों ,

लो क्ल लो बात ......

बेटियां  वो  परिन्दे  हैं  ज़िनके  पर  नहीं  होते 
कहने  को  ठिकाने  दो  मगर  घर  नहीं  होते 

बेटे  माने नीव सदा और बेटियां  कमजोर  कड़ी 
बेटे  बांटे  जमीन  बेटियां  दर्द  में  पास  खड़ी 
सिक्का  एक  पेहलू  दो  कभी  जाना  मेरे दोस्त 
दिवारें  चाहे  कितनी  बिन  इनके  पूरे  घर  नहीं  होते 
बेटियां  वो  परिन्दें .......

कलाई  का बंधन ये  अटूट  हैं  ज़िनका  विश्वास 
रहती  सदा  अंगसंग  खुशियां  लिए  अपनें  साथ 
चाहे  कितनी  रहे  दूर  कभी  समझा  इन्हें  प्यारे 
यह  ऐसे  रिश्ते  हैं  जिन  में  ड़र  नहीं  होते 
बेटियां  वो  परिन्दे .......

प्यार से  जीते  जग सारा  ये  लक्ष्मी  रूप 
ममतामयी  मुरत  हमें  लगने  न  दे कभी   धूप 
स्वारें  जीवन  को  सदा  सोचा  कभी  क्या  तुमने 
कितनी कठिन  रहे परिस्तिथियां  हौंसले  कम नहीं  होते 
बेटियां  वो  परिन्दें ....

आपका अपना ,
वीरेंद्र  कौशल
3:09 am

Jaagte rahiye


मान्यवर  मित्रों ,

लो क्ल लो बात ....

चैंन  की नींद  सोना है तो  जागते  रहिये .....

कौन  कहता है कि  मौत  नहीं  बिकती ......

मौत के  तो  बड़े  बड़े  सौदे  होते हैं  और  वो भी  स्टेंप  पेपर  पर ...
ज़िन्दगी का  ड़र  दिखा कर  बीमें  वाले  बेहिसाब  कमा  रहें हैं ...
क्योंकि  आजकल ज़िन्दगी  ही  हारती  हैं  इसी लिए  मौत  बिकती  हैं  ......
यह  बता  कर  कि  ज़िन्दगी  रहते  किशत  भरो ...कुछ  अनहोनी  होने पर  भरी  हुई  किशत  नहीं  आपितु   पूर्ण बीमा  राशि  का  भुगतान  होगा ....

क्योंकि  चैन  की  नींद  सोना है तो  जागते  रहिये ....

आपका अपना ,
वीरेन्द्र  कौशल
3:09 am

Aapke aagan mein...



मान्यवर  मित्रों ,

लो क्ल लो बात ....

मेरे  नए  विचार  शब्दों  के  सहारे ...आपके  द्वारे ..

आपके  आंगन  में ...हमारे  आंगन  से ....

ख़ुशियां आपके  आंगन  में ..शुभकामनाएं हमारे  आंगन  से ....
ऊँचाईयां आपके  आंगन  में ...हौंसलें हमारे  आंगन  से ....
विचार आपके  आंगन  में ...प्रयास हमारे  आंगन  से ....
उड़ान आपके  आंगन  में ...ज़ज्बा हमारे  आंगन  से ....
पुष्प आपके  आंगन  में ...ख़ुशबू हमारे  आंगन  से ....
आपके  आंगन  में ...हमारे  आंगन  से ....

आपका अपना ,
वीरेन्द्र  कौशल
3:08 am

mubaarak nya saal. ...poem


मान्यवर  मित्रों ,


लो क्ल लो बात ......


मुबारक  हो  नया  साल ...


नया  साल 

रहे  सब  खुशहाल 

आने  वाला  हर  पल  हो लक्की 

करें  जीवन  में  खूब   तरक्की  

बच्चे  करे मौज़ 

वो  भी  हर  रोज़ 

युवा की  भी  हर  उम्मीद  हो  पूरी 

कोई   भी  इच्छा  न  रहे अधूरी 

बड़े  भी  खूब   करे  मस्ती 

हालात  महंगी  चीजें  करें  सस्ती 

बुजुर्गों  का  सिर  पर रहे आशिर्वाद  का  हाथ  

कोई  न  समझे  अपने  को  अनाथ 

सभी  मिलकर  रहे 

कोई  बुराई  न  पनपे 

न  निर्भया   या  फिर  कोई  हैदराबाद  

न  धर्म की चिंगारी या   दंगे    फसाद 

न कोई  दारिन्दगी  न  उन्नाव 

पुरंतया  सफल  हो  ध्येय    बेटी  बचाओ 

हर  तरफ  अमन  चैन  और  भाईचारा 

खूब    तरक्की करें  हिन्दुस्तान    हमारा 

हर  व्यक्ति   साधन  सम्पन  और  खुशहाल 

सभी  को  दिल  की  गहराईयों से सभी को 

मुबारक  हो  नया  साल .......

मुबारक  हो  नया  साल .......


आपका अपना ,

वीरेन्द्र  कौशल
3:07 am

New poem MEHNAT KAR...ROZI KMA. ...

लो  क्ल लो बात ...

एक बार फिर  ताज़ा अल्फाज़ सहारे .... आप के  द्वारे 

मेहनत  कर और   रोजी  कमा 
खुश  रह हर  त्योहार  मना 

हर  त्योहार  अपार खुशीयाँ  देता
गरीब का  पेटा भर  देता 
यही है  सब की  पुंजी 
हर  सफलता  की  खालिस कुंजी 
कर  भला  और फिर भूलजा 
चाहे  कोई  ख़ुशी  फिर  गुनगुना 
मेहनत  कर .......
खुश रह हर ......

आचरण  खातिर  बनवास  भी  प्यारा 
सीताहरण कारण  विद्वान  भी  मारा 
सदा  भाईयों  संग  बांटा प्यार 
त्याग  खातिर  सदा  रहे  तैयार 
संस्कारों  को  सदा  सार्वोपरि  माना 
फिर  चाहे होली -दीपवली  साथ  मना 
मेहनत  कर .......
खुश रह हर .......

सदा  अपनो  ही सहारे जीत 
न  कोई  दुशमन  सारे  मीत 
झूठ  फरेब  अपवाद  से  बच 
ईमानदारी  विश्वास ही  केवल  सच 
सभी  संग  अपना  व्यवहार  जता 
फिर  चाहे  मोहर्ररम   ईद  मना 
मेहनत  कर .....
खुश रह हर .....

सवा लाख से  एक  लड़ाया 
अपने  शेहजादों  को  भी  चिनवाया 
सदा खुशहाली खातिर  विनती कीती 
नहीं  बखारी  अपनी  आप  बीती 
गैरों खातिर  दिया  लंगर  लगा 
फिर  चाहे  शहीदीदिवस  गुरूपर्व  मना 
मेहनत  कर .....
खुश रह हर .....

सच्चाई  खातिर  सूली  पर  चढ़ 
नहीं  कबूला कभी  दूसरा  गढ़ 
प्रेम  संदेशा  ही  दिया  हर  लम्हां 
कभी  संता  बन  दिये  उपहार 
मन में  धारा  सदा  उपकार 
फिर  चाहे  गुड-फराईड़े  क्रिसमस  मना 
मेहनत  कर .....
खुश रह हर .....

कभी  न  कर  नीयत  खोटी 
हर  मेहनत  पर  मिले  रोटी 
नीयत  साफ  तो  डर  नहीं 
कोई भी  एक  आडम्बर नहीं 
सदा  सभी का  चाह  भला 
फिर  चाहे  कोई  उत्सव  मना 
मेहनत  कर .....
खुश रह हर .....

आपका अपना ,
वीरेन्द्र  कौशल
12:49 am

इक अजब सा है सिलसिला अपना

रचना प्रकाशन हेतु प्रमाण पत्र
सेवा में,
     सम्पादक महोदय
     हिंदी साहित्य वैभव पत्रिका
श्रीमान जी,
      सविनय निवेदन यह है कि मेरी यह रचना(ग़ज़ल) नितांत मौलिक,अप्रकाशित और अप्रसारित है और मैं इसके प्रकाशन का अधिकार हिंदी साहित्य वैभव पत्रिका को देता हूँ!आशा है मेरी इस रचना का यथासम्भव उपयोग आपकी पत्रिका में हो सकेगा!
           धन्यवाद
          भवदीय
         बलजीत सिंह बेनाम
        103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी
        हाँसी(हिसार)
        मोबाईल:9996266210
ग़ज़ल
इक अजब सा है सिलसिला अपना
मंज़िलें उसकी रास्ता अपना

रोकते भी किसी को क्या आख़िर
हर किसी का था देवता अपना

ज़िक्र जितना बयां किया हमने
दर्द उतना ही है बढ़ा अपना

ज़िंदगी पर बहुत भरोसा था
इसने भी ख़ूँ फ़क़त पिया अपना

हाँ ख़ुदा ने बहुत दिया लेकिन
फिर भी क्यों जी नहीं भरा अपना
12:21 am

ऊना (हिमाचल प्रदेश) में षटवदन शंखधार की कविता ने जगाई राष्ट्र भक्ति की अलख

राष्ट्रीय एकता शिविर में बदायूं से प्रतिभाग करने पहुंचे कवि षटवदन शंखधार ने *एक शाम विभिन्न प्रदेशों के नाम*
कार्यक्रम में काव्य पाठ किया तो उत्तर प्रदेश बदायूं की ओर से उनको बहुत सराहा गया |
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि आईएस संदीप कुमार (जिला उपायुक्त ऊना), आईपीएस अधिकारी शालिनी अग्निहोत्री , जिला समन्वयक डॉ लाल सिंह ने बदायूं की धरती को खड़े होकर अभिवादन किया |
और कहा आज समाज में तुम जैसे लाखों युवाओं की आवश्यकता है जो समाज में अपनी संस्कृति को बढ़ावा देने का काम कर सकते हैं बदलते हुए परिवेश में जहां युवा आज नशा खोरी,चोरी , डकैती में लगा है वहीं आप जैसे लोग समाज को जागरूक करने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर रहे हैं हमें इस बात की खुशी है कि आप समाज का आदर्श बने हुए हैं 
कार्यक्रम में 15 प्रदेशो ने प्रतिभागाता की जिसमें उत्तर प्रदेश की ओर से षटवदन शंखधार ने प्रतिनिधित्व किया और उनका सम्मान भी किया गया |

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