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शनिवार, 28 दिसंबर 2019

6:33 pm

धारावाहिक रामायण रामानन्द सागर ने उस समय इतिहास रचा जब उन्होंने टेलीविज़न धारावाहिक "रामायण" बनाया


रामानन्द सागर
रामानन्द सागर Ramanand Sagar, जन्म: 29 दिसम्बर, 1917; मृत्यु: 12 दिसम्बर, 2005) एक भारतीय फ़िल्म निर्देशक थे। रामानन्द सागर सबसे लोकप्रिय धारावाहिक 'रामायण' बनाने के लिए प्रसिद्ध हैं। इनके कैरियर की शुरुआत "राइडर्स ऑफ़ द रैलरोड" (1936) नामक फ़िल्म के साथ हुई थी।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी रामानन्द सागर का जन्म अविभाजित भारत के लाहौर ज़िले के "असलगुरु" ग्राम नामक स्थान पर 29 दिसम्बर 1927 में एक धनी परिवार में हुआ था। उन्हें अपने माता-पिता का प्यार नहीं मिला, क्योंकी उन्हें उनकी नानी ने गोद ले लिया था। पहले उनका नाम चंद्रमौली चोपड़ा था लेकिन नानी ने उनका नाम बदलकर रामानंद रख दिया।
स्रोत- गूगल 

1947 में देश विभाजन के बाद रामानन्द सागर सबकुछ छोड़कर सपरिवार भारत आ गए। उन्होंने विभाजन की जिस क्रूरतम, भयावह घटनाओं का दिग्दर्शन किया, उसे कालांतर में "और इंसान मर गया" नामक संस्मरणों के रूप में लिपिबद्ध किया। यह भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है कि वे जब अपनी मातृभूमि से बिछुड़कर युवावस्था में शरणार्थी बन भारत आए, उनकी जेब में मात्र 5 आने थे, किन्तु साथ में था अपने धर्म और संस्कृति के प्रति असीम अनुराग-भक्तिभाव। शायद इसी का परिणाम था कि आगे चलकर उन्होंने रामायण, श्रीकृष्ण, जय गंगा मैया और जय महालक्ष्मी जैसे धार्मिक धारावाहिकों का निर्माण किया। दूरदर्शन के द्वारा प्रसारित इन धारावाहिकों ने देश के कोने-कोने में भक्ति भाव का अद्भुत वातावरण निर्मित किया।
स्रोत- गूगल 

मेधावी छात्र
16 साल की अवस्था में उनकी गद्य कविता श्रीनगर स्थित प्रताप कालेज की मैगजीन में प्रकाशित होने के लिए चुनी गई। युवा रामानंद ने दहेज लेने का विरोध किया जिसके कारण उन्हें घर से बाहर कर दिया गया। इसके साथ ही उनका जीवन संघर्ष आरंभ हो गया। उन्होंने पढ़ाई जारी रखने के लिए ट्रक क्लीनर और चपरासी की नौकरी की। वे दिन में काम करते और रात को पढ़ाई। मेधावी छात्र होने के कारण उन्हें पंजाब विश्वविद्यालय पाकिस्तान से स्वर्ण पदक मिला और फ़ारसी भाषा में निपुणता के लिए उन्हें मुंशी फ़ज़ल के ख़िताब से नवाज़ा गया। इसके बाद सागर एक पत्रकार बन गए और जल्द ही वह एक अखबार में समाचार संपादक के पद तक पहुंच गए। इसके साथ ही उनका लेखन कर्म भी चलता रहा।
स्रोत- गूगल 

सागर आर्ट कॉरपोरेशन
रामानंद सागर का झुकाव फ़िल्मों की ओर 1940 के दशक से ही था। लेकिन उन्होंने बाक़ायदा फ़िल्म जगत में उस समय एंट्री ली, जब उन्होंने राज कपूर की सुपरहिट फ़िल्म 'बरसात' के लिए स्क्रीनप्ले और कहानी लिखी। भारत के अंग्रेज़ों से स्वतंत्रता पाने के बाद वर्ष 1950 में रामानन्द सागर ने एक प्रोडक्शन कंपनी "सागर आर्ट कॉरपोरेशन" शुरू की थी और 'मेहमान' नामक फ़िल्म के द्वारा इस कंपनी की शुरुआत की। बाद में उन्होंने इंसानियत, कोहिनूर, पैगाम, आँखें, ललकार, चरस, आरज़ू, गीत और बग़ावत जैसी हिट फ़िल्में बनाईं। वर्ष 1985 में वह छोटे परदे की दुनिया में उतर गए। फिर 80 के दशक में रामायण टीवी सीरियल के साथ रामानंद सागर का नाम घर-घर में पहुँच गया।
स्रोत- गूगल 

धारावाहिक रामायण
रामानन्द सागर ने उस समय इतिहास रचा जब उन्होंने टेलीविज़न धारावाहिक "रामायण" बनाया और जो भारत में सबसे लंबे समय तक चला और बेहद प्रसिद्ध हुआ। जो भगवान राम के जीवन पर आधारित और रावण और उसकी लंका पर विजय प्राप्ति पर बना था।
स्रोत- गूगल 

निर्देशन और निर्माण
रामानन्द सागर ने कुछ फ़िल्मों तथा कई टेलीविज़न कार्यक्रमों व धारावाहिकों का निर्देशन और निर्माण किया। इनके द्वारा बनाए गए प्रसिद्ध टीवी धारावाहिकों में रामायण, कृष्णा, विक्रम बेताल, दादा-दादी की कहानियाँ, अलिफ़ लैला और जय गंगा मैया आदि बेहद प्रसिद्ध हैं। धारावाहिकों के अलावा उन्होंने आंखें, ललकार, गीत आरजू आदि अनेक सफल फ़िल्मों का निर्माण भी किया। 50 से अधिक फ़िल्मों के संवाद भी उन्होंने लिखे। कैरियर के शुरुआती दिनों में उन्होंने पत्रकारिता भी की। पत्रकार, साहित्यकार, फ़िल्म निर्माता, निर्देशक, संवाद लेखक आदि सभी का उनके व्यक्तित्व में अनूठा संगम था। और तो और, रामायण धारावाहिक की प्रत्येक कड़ी में उनके द्वारा रामचरित मानस की घटनाओं, पात्रों की भक्तिपूर्ण, सहज-सरस और मधुर व्याख्या ने उन्हें एक लोकप्रिय प्रवचनकर्ता के रूप में भी स्थापित किया।
स्रोत- गूगल 

लेखन
उन्होंने 22 छोटी कहानियां, तीन वृहत लघु कहानी, दो क्रमिक कहानियां और दो नाटक लिखे। उन्होंने इन्हें अपने तखल्लुस चोपड़ा, बेदी और कश्मीरी के नाम से लिखा लेकिन बाद में वह सागर तखल्लुस के साथ हमेशा के लिए रामानंद सागर बन गए। बाद में उन्होंने अनेक फ़िल्मों और टेलीविज़न धारावाहिकों के लिए भी पटकथाएँ लिखी
सम्मान और पुरस्कार
सन् 2001 में रामानन्द सागर को उनकी इन्हीं सेवाओं के कारण पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें फ़िल्म 'आँखें' के निर्देशन के लिए फ़िल्मफेयर पुरस्कार और 'पैग़ाम' के लिए लेखक का फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला।

निधन[सम्पादन
देश में शायद ही कोई ऐसा फ़िल्म निर्माता-निर्देशक हो जिसे न केवल अपने फ़िल्मी कैरियर में भारी सफलता मिली वरन् जिसे करोड़ों दर्शकों, समाज को दिशा देने वाले संतों-महात्माओं का भी अत्यंत स्नेह और आशीर्वाद मिला। डा. रामानन्द सागर ऐसे ही महनीय व्यक्तित्व के धनी थे। सारा जीवन भारतीय सिने जगत की सेवा करने वाले रामानन्द सागर शायद भारतीय फ़िल्मोद्योग के ऐसे पहले टी.वी. धारावाहिक निर्माता व निर्देशक थे, जिनके निधन की खबर सुनते ही देश के कला प्रेमियों, करोड़ों दर्शकों सहित हजारों सन्त-महात्माओं में शोक की लहर दौड़ गई। गत 12 दिसम्बर 2005 की देर रात मुंबई, महाराष्ट्र के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया। 87 वर्षीय रामानंद सागर ने तीन महीने बीमार रहने के बाद अंतिम साँस ली। जूहु के विले पार्ले स्थित शवदाह गृह में उनके बड़े पुत्र सुभाष सागर ने उनके पार्थिव शरीर को मुखाग्नि दी। इस अवसर पर उनके चाहने वाले सैकड़ों लोग, कलाकार, निर्माता- निर्देशक उपस्थित थे।

उनकी जनप्रियता का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हरिद्वार में आयोजित धर्मसंसद में शोकाकुल संतों, देश के चोटी के धर्माचार्यों ने उनकी स्मृति में मौन रखा। उनके द्वारा निर्मित और निर्देशित धारावाहिक "रामायण" ने देश में अद्भुत सांस्कृतिक जागरण पैदा किया।
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रामानंद की रामायण सीरियल से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
दुनिया के लाखों टेलीविजन पर छा जाने वाले रामानन्द सागर  के धारावाहिक "रामायण" को करीब 28 साल हो चुके हैं। मशहूर निर्माता निर्देशक रामानंद सागर 1987 में दूरदर्शन पर धाराविक 'रामायण' लेकर आए। रामानंद सागर ने जब रामायण का निर्माण किया था तो वह भी नहीं जानते थे कि रामायण लोगों के जीवन का अहम हिस्सा बन जाएगा। जानिए रामानंद सागर के जन्मदिन के मौके पर रामायण से जुड़ी दिलचस्प बातें।

सात्विक रहने का एग्रीमेंट
रामानंद सागर ने सीरियल शुरू करने से पहले ही सभी कलाकारों से सात्विक खान-पान, रहन-सहन का एग्रीमेंट किया था। सीरियल पूरे चार सालों में बना और कलाकारों को इस बीच नॉनवेज, स्मोकिंग, ड्रिंकिंग या अन्य दुव्र्यसनों से दूर रहना पड़ा। जो एक्टर इनके आदी थे, उन्हें रामानंद सागर के इस नियम से खीज होती थी। चार साल बाद वही एक्टर पूरी तरह सात्विक बनकर निकले और आज भी उन्हीं नियमों पर चल रहे हैं।

जाति के आधार पर किरदार
रामानंद सागर ने सीरियल को जीवंत बनाने के लिए मुख्य पात्रों के लिए जाति के अनुरूप किरदार तय किए थे। अरुण गोविल क्षत्रिय थे तो उन्हें राम बनाया गया। रावण ब्राह्मण कुल से थे, इसलिए इसके लिए अरविंद त्रिवेदी को चुना।
रोज़मरा के काम पर लग जाता था ब्रेक
रामायण देखने के लिए आलम यह होता था कि लोग रविवार की सुबह का बडी बेसब्री से इंतजार करते थे। एक टेलीविजन सेट पर गांव और मुहल्ले के लोगों का हुजूम उमड पडता था। बस और ट्रकों के ड्राइवर अपने वाहनों को ब्रेक लगाकर रामायण देखने के लिए किसी ढाबे में लगे टेलीविजन से चिपक जाते थे।

पवित्र बन गया सीरियल
निर्माता रामानंद सागर को एक महिला ने चिट्ठी लिखी कि जब भी 'रामायण' टी.वी. पर आता है, तो वह अपने अंधे बेटे को टी.वी. छूने को कहती है, इस विश्वास से कि उसकी आँखों की रोशनी लौट आएगी। यह सीरियल 'रामायण ग्रंथ' जैसा पवित्र माना जाने लगा।

विक्रम बना राम
टीवी पर इससे पहले रामानंद सागर 'विक्रम और बेताल' नाम का एक धाराविहक बना चुके थे। इसमें विक्रमादित्य की भूमिका निभाने वाले अरुण गोविल को उन्होंने 'रामायण' में राम के केंद्रीय पात्र के रूप में चुना।

सड़के और बस सुनसान
रामायण जब अपने लोकप्रियता के चरम पर था तो कहा जाता है कि प्रसारण के समय पूरा देश मानो रूक कर केवल रामायण देखता था। सड़कों पर बस नहीं चला करती थी क्योंकि उसके यात्री टीवी के सामने बैठकर रामायण देख रहे होते थे।

9:30 बन गया सबसे हिट
'रामायण' टीवी पर आने वाला ऐसा इकलौता धारावाहिक बना जिसे 45 मिनट का टीवी स्लॉट मिला। जबकि उन दिनों दूरदर्शन पर सिर्फ आधे घंटे और एक घंटे के स्लॉट ही कार्यक्रमों को मिला करते थे। दूरदर्शन ने रामानंद सागर को जब रविवार सुबह 9:30 बजे का टाइम दिया तो यह स्लॉट टीवी उद्योग में कम लोकप्रिय समय में गिना जाता था लेकिन रामायण के हिट होने के बाद इस स्लॉट को सबसे हिट स्लॉट के रूप में देखा जाता है।
निर्माताओं ने कहा था फ्लॉप
निर्देशक रामानंद सागर, रामायण बनाने का प्रस्ताव लेकर जिस भी निर्माता के पास गए उसने उन्हें वापसी का रास्ता दिखा दिया। टीवी के लिए 'रामायण' बनाने का सौदा किसी को फ़ायदा का नहीं लगा। इसपर पैसा लगाने से पैसा डूब जाएगा। हालांकि हुआ ठीक इसका उल्टा रामानंद सागर ने अपने ही प्रोडक्‍शन हाउस सागर आर्ट्स के बैनर तले इसका निर्माण किया ।

कमाई में अव्वल
एक अनुमान के मुताबिक रामायण के एक एपिसोड को बनाने का खर्च लगभग 1 लाख रुपये के आसपास था जो उस समय बहुत ज्यादा था। यह भारतीय टीवी इतिहास की सबसे कमाई करने वाली सीरियल में से एक है।

स्रोत- गूगल 

बुधवार, 25 दिसंबर 2019

5:40 am

सभी गीतकार बन्धुओं को सूचित करते हुए अपार हर्ष

सभी गीतकार बन्धुओं को सूचित करते हुए अपार हर्ष की अनुभूति हो रही है कि आदर्श सेवा संस्थानम् के तत्त्वावधान में 'राष्ट्रिय युवा गीत लेखन प्रतियोगिता' का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें प्रथम पुरस्कार विजेता को ₹ ५१००/-, द्वितीय पुरस्कार विजेता को ₹ २१००/-, तृतीय पुरस्कार विजेता को ₹ ११००/- की राशि प्रदान की जायेगी। ₹ ५०१/- के दो सान्त्वना पुरस्कार भी प्रदान किये जायेंगे। पुरस्कृत गीतकारों का सम्मान समारोह एवं काव्यपाठ लखनऊ में आयोजित कवि सम्मेलन में सम्पन्न होगा।

नियम एवं शर्तें

१. गीत २५ दिसम्बर २०१९ से १५ जनवरी २०२० के मध्य ही लिखा एवं फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट किया जाना आवश्यक है।
२. केवल एक प्रविष्टि ही स्वीकार्य है। गीत व्याकरण के मानक शिल्प के अनुरूप होना आवश्यक है।
३. निर्णायक मण्डल का निर्णय अन्तिम एवं मान्य होगा।
४. प्रतिभागी द्वारा किसी भी प्रकार की सिफ़ारिश या दबाव की स्थिति में प्रविष्टि तत्काल निरस्त कर दी जायेगी।
५. रचना यूनिकोड फ़ॉन्ट में dheerajkmish@gmail.com पर १५ जनवरी २०२० की मध्यरात्रि तक भेजना अनिवार्य है। विलम्ब से भेजी गयी प्रविष्टि को निरस्त कर दिया जायेगा।
६. प्रतिभागी की अधिकतम आयु ३० वर्ष होनी आवश्यक है।
७. किसी भी न्यायिक विवाद का क्षेत्र लखनऊ रहेगा।

निर्णायक मण्डल
श्री ज्ञान प्रकाश अवस्थी 'आकुल'
श्री राघव शुक्ल
श्री चन्द्रेश शेखर शुक्ल
श्री आदर्श सिंह 'निखिल'
श्री अमर नाथ 'ललित'
____________________________
हो सके तो पोस्ट साझा करते चलें।

सोमवार, 23 दिसंबर 2019

8:43 am

दिल जले मेरा धुआँ हो ये जरूरी तो नहीं

ग़ज़ल 1

दिल जले मेरा धुआँ हो ये जरूरी तो नहीं
दर्द भी सबको अयाँ हो ये जरूरी तो नहीं

हर सितम सह के भी चुपचाप रहें  हम यारा
जुल्म  का किस्सा बयाँ हो ये जरूरी तो नहीं

हर शजर को बचा लो आज तो कटने से तुम
बेजुबानों को जुवाँ हो ये जरूरी तो नह़ीं

मौसमे इश्क बदलता तो  है हर पल देखो
मेरे हिस्से में खिज़ाँ हो ये जरूरी तो नह़ीं

रात  रंगीन है अरमान भी तो हैं लाखों
दिल तो उनका भी जवाँ हो ये जरूरी तो नह़ीं

जिंदगी मत बिता देना तू खुराफातों में
मिलती खैरात वहाँ हो ये जरूरी तो नह़ीं

रब के हर फैसले पर सर को झुकाया मीना
सुनता मेरी वो यहाँ हो ये जरूरी तो नह़ीं

                    मीना भट्ट

मीना भट्ट

ग़ज़ल 2

प्यार के फेल सारे   गुमाँ  हो गये
और भी फासले दरमियाँ हो गये

कुछ  दिनों की है ये ज़िंदगानी सनम
जब सिकंदर के जैसे धुआँ हो गये

बोलने पर लगी इस क़दर बंदिशें
अब ज़ुबाँ वाले भी बेजुबाँ हो गये

आरजू इस फ़लक की हमें हैं कहाँ
इस ज़मीं पर तो हम कहकशाँ हो गये

आ गयी ज़िदगी की लगे शाम अब
हम जुदा होके भी कामराँ हो गये

हौसला चाहतों से हमें है मिला
फ़िक्रो ग़म अपने सारे धुआँ हो गये

ख़्वाब बेसुध पडे थे हमारे मगर
साथ मिलते ही सारे जवाँ हो गये

     मीना भट्ट

शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

7:34 am

ग़ज़ल -मुहब्बत की पहचान है आज जनचेतना से -विकास भारद्वाज "अक्स बदायूँनी"


मुहब्बत  की  पहचान  है  आज  जनचेतना से  ।
ये  साहित्य  की  जान  है  आज  जनचेतना से ।।

नई आशा की इक किरण को जगाना है हमको,
हमारी तुम्हारी  बनी शान है आज जनचेतना से ।।

यूँ  नित रोज लेखन को हमने बढाया तभी तो ।
ये  अनमोल  वरदान  है  आज  जनचेतना से ।।

यूँ तो लफ्जों में दिल के एहसास हमने लिखे हैं,
मिला  हमको  सम्मान  है  आज  जनचेतना से ।।

नवाँकुर कलमकारों अब तुम जरा आगे आओ ।
मंजिल पाना  आसान  है  आज  जनचेतना से ।।

©विकास भारद्वाज "अक्स बदायूँनी"
    29  नवम्बर  2019



मंगलवार, 8 अक्टूबर 2019

8:18 am

बदायूं :पिछले कुछ समय पहले शहर मे एक अखिल भारतीय कवि सम्मेलन आयोजित किया गया -- षटवदन शंखधार

कुछ इधर कई पढी ---------------------------------
कुछ इधर की पढी कुछ उधर की पढ़ी !
कैसे लगती भला तालियो की झड़ी !
एक श्रोता उठा और कहने लगा !
तुमने जब भी पढ़ी बाप की ही  पढ़ी !!

बदायूं :पिछले कुछ समय पहले शहर मे एक अखिल भारतीय कवि सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमे कई राष्ट्रीय स्तर के कवियो ने काव्य पाठ किया मंच का संचालन एक ओजस्वी कवि ने किया जिसने मंच की कलाकारी चलते हुये उस रचनाकार को सबसे पहले ही बुला लिया जबकि कई बार पहले उसने हमेशा ऐसे मंचो पर अपने आपको बीच मे पढने का निवेदन करते हुये देखा गया है लेकिन कुछ कवि शातिर दिमाग होते है कही शहर का व्यक्ति हिट न हो जाये इसलिए पहली बार मे ही बुला लो और फिर बेइज्जती करा दो !
उधर उस अकवि ने भी ऐसी रचना पढी जिसका जिसका वर्तमान परिस्थिति से दूर दूर तक कोई संबध नही था इतने मे ही एक बुजुर्ग श्रोता पीछे से झल्ला पढे और यह कहते हुये उठ गये कि इसने जब पढी बाप की ही पढी!
इतनी जब शहर के युवा कवि षटवदन शंखधार के कान मे पढी तो यह मुक्तक गढ दिया जिसकी चर्चा बहुत दूर दूर तक है

© षटवदन शंखधार
     बदायूँ (उ०प्र०)

षटवदन शंखधार

बुधवार, 2 अक्टूबर 2019

9:29 pm

अच्छा था मेरे दर से मुकर जाना तेरा - सलिल सरोज

1.
अच्छा था मेरे दर से मुकर जाना तेरा
आसमाँ की गोद से उतर जाना तेरा

तू लायक ही नहीं था मेरी जिस्मों-जाँ के
वाजिब ही हुआ यूँ बिखर जाना तेरा

मेरी हँसी की कीमत तुमने कम लगाई
यूँ ही नहीं भा गया रोकर जाना तेरा

तुझे हासिल थी बेवजह दौलतें सारी 
अब काम आया सब खोकर जाना तेरा

क्या आरज़ू करूँ तेरी तंगदिली से मैं
क्या दे पाएगा बेवफा होकर जाना तेरा

मैं सोचती रही कि हो जाऊँ तेरी फिर से
बुत बना गया हर बात पे उखड़ जाना तेरा

2.
जो तुम चाहते हो बस वही मान लेते हैं
झूठ को सच,सच को झूठ जान लेते हैं

अब तक अक्सों में ढूँढते रहे इक दूजे को
चलो आज हम खुद को पहचान लेते हैं

तिनका तिनका जोड़ के आशिया बनाएँ 
थोड़ा सा ज़मीन,थोड़ा आसमान लेते हैं

माँगों में सजे तुम्हारे भरी भरी हरियाली
अहसासों में गीता और कुरआन लेते हैं

खुशी की लहरें दौड़ा करें हमारे आँगन में
क्षितिज के आसपास कोई मकान लेते हैं

3.
वो मेरे दिए दर्द भी सम्भाल के रखती है
देखें जिगर उसका, कमाल के रखती है

कोई क़तरा भी जाया न हो आँसुंओं के
वो तो सपने भी देख - भाल के रखती है

क्या माँगा मैंने, उसने क्या क्या दे दिया
हर बात पे कलेजा निकाल के रखती है

जो चाहिए मुझे तो वो खुदा भी ला के दे
अपनी मुट्ठी में आकाश-पाताल रखती है

मैंने देखा ही नहीं उसे जी भर के कभी
खुद ही में मेरे प्यार का गुलाल रखती है   

लिखना है तो बादलों पे इबारत लिखो कोई
कभी शबनम तो कभी क़यामत लिखो कोई

कोहरों के बीच से  रास्ता निकल के आएगा
मंज़िलों के ख़िलाफ़ भी बगावत लिखो कोई

फसलें नफरतों की सब कट जाएँगी खुद ही
धरती के सीने पे ऐसी मोहब्बत लिखो कोई

कितनी सदी तक यूँ ही पिसती रहा करेगी
माँ के थके चेहरे पे अब राहत लिखो कोई

तुम कहाँ गुम हो,किस ख़्यालात में गुम हो
दो पल को  अपने लिए चाहत लिखो कोई

कुछ अनछुए पल, कुछ अनछुए अहसास
दिल के करीब से बातें निहायत लिखो कोई

सलिल सरोज
कार्यकारी अधिकारी
लोक सभा सचिवालय
संसद भवन ,नई  दिल्ली 

पता
मुखर्जी नगर
नई दिल्ली

9:23 pm

एक आदर्श माता -पिता

एक  आदर्श माता -पिता 

एक आदर्श  माता -पिता 
अपनी औलाद  के लिए 
सब कुछ  करता है 
कई बार  बस  अपना
ईमान छोड़
सब कुछ  बेचने को  तैयार 
यहाँ तक  कि  अपने आप को भी 
गिरवी रखनें  को हालात  के  हाथों  मज़बूर
ताकि 
उनके  बच्चे का  भविष्य 
और  आने  वाला  कल 
सुरक्षित सुनहरा व  उज्जवल हो 
बच्चों के हौसलों की  उड़ान 
कम  न  हो  और  वह 
बुलन्दियां छू  सके
इस  खातिर  उन्हें  चाहे  अपने ही  पंख 
क्यों  न  काटने  पड़े 
इतना  होने के  बाद भी 
अगर कोई  कमी  रह  गई 
तो वो  दोनों  वक्यी  ही 
बेबस  और  लाचार .....
बेबस और  लाचार ....
एक  आदर्श माता -पिता ........

आपका  प्यार 
वीरेंद्र  कौशल
9:21 pm

बेटियां मेरी बड़ी होनहार.....वीरेन्द्र कौशल

बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार  
रंजना छवि मानों  त्योहार 
दिल साफ  नीयत  साफ  
घर  आयी  ख़ुशियां अपार 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

बचपन  खेला घर महकाया  
हर किसी  से प्यार  पाया 
सब  की वो राजदुलारी 
चंचल स्वाभाव महकायें  क्यारी 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

 हर पल  करती  सब  की  सेवा 
ऐसा  मिले  सबको  मेवा 
बड़ी  गुणकारी   करें  परोपकार 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

पल में  माँ  सी  डांट पिलायें 
पर  कोई  चीज ना  बांट  पाये 
हर घर में हो  ऐसे त्योहार 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

 
चुटकियों  में  समास्या  सुलझायें 
जादू  इनका  सब पर छाये  
हर  जगह  हों  ऐसे संस्कार 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

पल में  सबका  मन  हर  लेती 
गैरों के  भी  पर  लगा  देती 
नानी  दादी  सी  त्योहार 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

घर  की  हैं  अलबेली  शान 
बहना अपनी  की  प्यारी  जान 
सब  पर  लूटाती अपना  प्यार 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

माँ  का  रूप पिता का  अंश  
रोशन  करेगी  नया  वंश 
एक नजर पहचानें सार 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

आवलें सी  हैं  कल्याणकारी 
हल्दी  सी  बहुत  गुणकारी 
बड़ी  भोली लिये  प्यार 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

सादा  जीवन  ऊँचे  ख़्वाब 
पार  किये  सभी  पडाव  
पूजा इबादत अरदास  गुलनार 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

सहेलियां  जैसे  खुशबू  द्वारा 
दूर  करे सदा  अंधियारा 
मेहकायें  जग सारा अपार 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

पिता  की जैसी मजबूरी 
पूरी  मानी  समझ  जरुरी
चेहरा सदा  प्रफुल्लित बारम्बार 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

दुर्गा की टोली बिमला की फौज 
ईश्वर की हवेली इन्द्रजीत की मौज 
संस्कारों  को  दे नयी रफतार  
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

उम्मीद  नहीं  ये  आरजू 
हाथ  नहीं  मेरी  बाजू 
इन  सहारे  समय  की  धार 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

आपका  प्यार 

वीरेन्द्र कौशल

9:17 pm

न दिल को जलाना अगर हो सके तो -बलजीत सिंह बेनाम

ग़ज़ल
न दिल को जलाना अगर हो सके तो
निग़ाहें मिलाना अगर हो सके तो

तुम्हे याद करते अगर मर भी जाऊँ
ख़बर को छुपाना अगर हो सके तो

तअल्लुक़ मिटाने से क्या फ़ायदा है
तअल्लुक़ बनाना अगर हो सके तो

जिसे है ख़ुदा पर बहुत ही अक़ीदत
उसे आज़माना अगर हो सके तो

किसी पर भी नेकी अगर तुम करो तो
न उसको जताना अगर हो सके तो

         बलजीत सिंह बेनाम
        103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी
        हाँसी(हिसार)
        मोबाईल:9996266210

मंगलवार, 9 जुलाई 2019

6:53 pm

हिंदी और उर्दू

हिंदी और उर्दू भले ही दो बहनें
दोनों ही बहुत खूबसूरत गहनें
हिंदी और उर्दू-------

दोनों पर ही है हमारी शान
फिर क्यों एक हिन्दू दूसरी मुसलमान
हिंदी और उर्दू--------

भाषा में इतनी मिठास 
फिर क्यों लगे कयास
हिंदी और उर्दू------

न गला तर होता
न बुझती है प्यास
हिंदी और उर्दू-------

यही है सगी बहनों की कहानी
जो मुझे है आपको बतानी
हिंदी और उर्दू------

एक है कंठस्त एक ज़ुबानी
एक शहीद एक क़ुर्बानी
हिंदी और उर्दू-------

भाषा न धर्म न मज़हब
दोनों की पकड़ है गज़ब
हिन्दी और उर्दू------

एक जोड़ती है एक मिलाती
एक संस्कार सिखाती एक निभाती
हिंदी और उर्दू-------
हिंदी और उर्दू-------

आपका प्यार
वीरेंद्र कौशल
6:47 pm

अच्छी सोच बुरी सोच

शब्बो अम्मा बड़े सब्र वाली और ठंडे मिज़ाज की औरत थी। रोज़ की तरह शब्बो अम्मा लकड़ियां बीनने  जंगल में गई। वहां जंगल में सर्दी,गर्मी और बरसात में बहस चल रही थी के कोन सा मोसम अच्छा है..सर्दी बोली देख वोह सामने एक बुज़ुर्ग औरत बैठी उससे पूछते हैं क्यूं के इंसान ही मोसम के असरात बता सकता है। शब्बो अम्मा के पास‌ पहले सर्दी  पहुंची और सलाम कर के पूछा अम्मा सर्दी का मोसम कैसा..? शब्बो अम्मा बोली सर्दी के मोसम का क्या  कहने, ना पसीने की झंझट,ना मच्छरों का हमला, खाने की चीज़ों के ख़राब होने का डर नहीं।। कभी गाजर और अंडे के हलवे बन रहे हैं, तो गज़क और तिल के लड्डू  के मज़े भी, कभी मूंगफली का सोंदापन ले रहे हैं,चाय की चुस्की के मज़े लिए जा रहे हैं, लम्बी रातों की वजह से नींद भी ख़ूब ले सकते हैं ..सर्दी में तो मज़े ही मज़े हैं। सर्दी ख़ुश होकर अम्मा को दो अशर्फ़ी देकर चली गई। अब गर्मी आई और पूछा अम्मा गर्मी का मोसम कैसा..शब्बो अम्मा बोली गर्मी की तो बात ही निराली है जब चाहे नहा लो, आंगन में खटिया पै सोने का मज़ा तो गर्मी में मिलता है। ठंडा शरबत, मलाई वाली लस्सी गर्मी की ख़ास सोग़ात है। गर्मी के क्या कहने। गर्मी भी ख़ुश होकर अम्मा को दो अशर्फ़ी देकर गई। अब अम्मा के पास बरसात का मोसम आया..सलाम के बाद बरसात ने पूछा अम्मा बारिश का मोसम कैसा? अम्मा ख़ुश होकर बोली बरसात तो ज़िंदगी है। बारिश शुरू होते ही किसानों के चेहरे खिल उठते हैं और खेती-बाड़ी में लग जाते हैं,अच्छी पैदावार की उम्मीदें जाग जाती  हैं। बारिश से पानी की क़िल्लत दूर हो जाती है नदियों में रवानी आ जाती है हर तरफ़ हरियाली छा जाती है। बाग़ों में झूले पड़ते हैं लोग तफ़रीह के लिए निकलते हैं। बरसात के बग़ैर ज़िंदगी का तसव्वुर भी नहीं किया जा सकता। बरसात भी ख़ुश होकर अम्मा को दो अशरफ़ियां देकर गई। अब शब्बो अम्मा के पास छे अशरफ़ियां हो गई और शब्बो अम्मा की ज़िंदगी मज़े से गुज़रने लगी। शब्बो अम्मा के पड़ोस में एक हुस्ना नाम की अम्मा भी रहती थीं बला की बद मिज़ाज और अक्खड़.. हुस्ना अम्मा भी एक दिन लकड़ियां बीनने जंगल गई तो जंगल में तीनों मोसम में फिर से बहस हो रही थी के सबसे अच्छा मोसम कोन सा है, तीनों मोसम ने देखा..
.. के एक दूसरी बुज़ुर्ग अम्मा जंगल आई है। चलो इन से पूछते हैं के कोन सा मौसम अच्छा है और कोन सा बुरा.. पहले सर्दी गई और उसने पूछा के अम्मा सर्दी का मोसम कैसा है हुस्ना अम्मा ग़ुस्से से बोली सर्दी का भी कोई मोसम है हर वक़्त नज़ला ज़ुकाम और खांसी, कांपते और धूझते रहो.. दांत बजने लग जाते हैं, सलीम के अब्बा को सर्दी में ही हवा (फ़ालिज,पेरालाईसिस) पड़ी थी,चल चल दूर हट। सर्दी नाराज़ होकर वापस चली गई। हुस्ना अम्मा के पास अब गर्मी पहुंची और सलाम कर के पूछा अम्मा गर्मी का मोसम कैसा है..अम्मा बड़बड़ाते हुई बोली गर्मी में तो बस परेशानी ही‌ परेशानी है.. बदन जलने लगता है हर वक़्त पसीना पोंछते रहो,रात को मच्छर सोने भी ना देवें हैं,कभी दूध फट जावे तो कभी सालन ख़राब हो जावे है..नदी तालाब सूख जाने से पानी की क़िल्लत..गर्मी तो अज़ाब होवे है। गर्मी मूंह बनाती हुई वापस चली गई। अब अम्मा के पास बरसात पहुंची और पूछा के अम्मा बरसात का मोसम कैसा है..हुस्ना अम्मा बोली बरसात का मतलब हर तरफ़ कीचड़ कीचड़ है, कभी छत टपक रही है तो कभी घर में पानी घुसा चला आवे..कभी ख़बर आवे है के फ़लां गांव बाड़ में घिर गया तो फ़लां गांव बह गया। पिछली बरसात में ही रसूलपुर में बहुत से लोग बाढ़ में बह गए थे। चल भाग यहां से कमबख़त मारी।

शुक्रवार, 5 जुलाई 2019

9:15 am

गमों को गले से लगाना पड़ेगा

गमों को गले से लगाना पड़ेगा।
जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा।

चिंता की तपन में जलते रहे हम,
दर्द-ए-हाल दिल का भुलाना पड़ेगा।

तेरे मेरे प्यार के चर्चे पूरे शहर में,
अब मम्मी-पापा को मनाना पड़ेगा।

चाहत की लौं कुछ ऐसी लगी कि,
शान-ए-शोहरत दिखाना पड़ेगा।

तेरे नाम की मैं सुंदर मेंहदी रचाऊँ,
पलकों को झुकाकर शर्माना पड़ेगा।

आईने में देख अपना अक्स निहारुँ,
चेहरे पर हँसी, मुस्कराना पड़ेगा।

बातों-बातों में तुम रुठ जाते कभी,
रुठे दिल को मनाऊँ हँसाना पड़ेगा।

तेरी वफाओं के चर्चे मेरी जुबां पर,
तेरे बिन जी न पाऊँ बताना पड़ेगा।

मेरे लवों पर बस तेरा ही नाम है,
तुम्हें अपने दिल में बसाना पड़ेगा।
                    सुमन अग्रवाल "सागरिका"
                          आगरा (यू.पी.)
                              स्वरचित

गुरुवार, 4 जुलाई 2019

10:41 pm

ग़ज़ल :- जीवन का सफर यूँ ही कट जाएगा

हँसते रहो सबको खूब हंसाते रहो।
जिंदगी में हर पल मुस्कराते रहो।

जीवन का सफर यूँ ही कट जाएगा,
स्वर ताल व लय से गुनगुनाते रहो।

कल कहाँ होंगे हमें कुछ नही पता,
सब के दिल में जगह बनाते रहो।

ये जिंदगी क्या खबर कब तक रहे,
मिल जुलकर वक़्त बिताते रहो।

जिंदगी में गम बहुत फिक्र न कर,
ग़मों के पलों को सब भुलाते रहो।

बीते हुए इन लम्हों को याद रखना,
डायरी में यादों को सजाते रहो।

मन में हो लगन कामयाब होंगे जरूर,
निरतंर कदम से कदम बढ़ाते रहो।








सुमन अग्रवाल "सागरिका"
     आगरा (यू.पी)
         स्वरचित
5:19 am

ग़ैरों की बेटी पर तो - वीरेंद्र कौशल

ग़ैरों की बेटी पर तो 
आप अपनी जान तक देते हो
लेकिन जब आपके 
अपने बेटी होने लगती है
तो उसकी जान क्यों लेते हो।

सदा जी भर मुस्कुराएं खुशियां फैलाएं
अपनी जान तक भी सदा देश पर लुटाएं
ताकि सबकी झोलियां भी लबालब भर जाएं
जाति-धर्म के बंधन से क्यों न मुक्त हो जाएं
देश-भक्ति छोड़ सभी क्यों न देश-प्रेमी हो जाएं


लगता आज हर शाख पर जल्लाद बैठें हैं
कर रहे जो घिनौने कर्म वो बेऔलाद बैठें हैं
सीमा के दायरों से निकल बाहर दोस्त वरना
सब समझेंगे हम नाहक मज़बूरियां लाद बैठें हैं


शब्दों के नए भंवर के साथ
एक बार फिर आप के पास

देश की ताज़ा घटना ने आईना दिखा दिया
कद्र क्या बेटियों की ऐसा माईना बता दिया
किस गहराई तक रह चुप समाज गर्त जाएगा
कानून मज़ाक निर्भया वक़्त मुआईना बना दिया

आपका प्यारा
वीरेंद्र कौशल


बुधवार, 3 जुलाई 2019

7:53 pm

बदलते रंग

गिरगिट और गिरहकिट दोनों रंग बदलते हैं।
कीड़े और लोग उनके झांसे में आ जातें हैं।
इस तरह असतर्क बेचारे बेमौत मारे जाते है।
क्या आप भी ऐसे तत्वों से सावधान रहते हैं।


मूलतः देव रचित
देवानंद सहा प्राध्यापक शासकीय महाविद्यालय लवन 
जिला बलौदाबाजार छत्तीसगढ़ पिन 493332
9669575823
9:15 am

ग़ज़ल :- ज़िंदगानी इक सज़ा है सोचिए

ज़िंदगानी इक सज़ा है सोचिए ।
दर्द  ही  इसकी दवा है सोचिए ।।

दुश्मनों  से  दोस्ती क्योंकर हुई ।
दोस्तों से क्या गिला है सोचिए ।।

सदियों से ही मज़हबी इस वैर में ।
ख़ूँ तो इन्सां का बहा है सोचिए ।।

उम्र भर की क़ुर्बतों का ये सिला ।
हर क़दम पर फ़ासला है सोचिए ।।

सब निग़ाहों से तो हमने कह दिया ।
और  क्या  बाक़ी  बचा  है सोचिए ।।

बलजीत सिंह बेनाम

बलजीत सिंह बेनाम

103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी
       हाँसी(हिसार)
  मोबाईल:9996266210

9:04 am

कविता:- माता

धरती हमारी माता है
गाय हमारी माता है
नदी हमारी माता है
हमारी माता भी हमारी माता है
जब तक इनके और हमारे बीच
पैसा नहीं आता है
उसके बाद कौन किसकी माता है
कौन किसका पुत्र!
कौन गाता
माँँ की महिमा कुत्र !

हम नहीं तो आख़िर कौन 
जो इनसे लाभ पाता
इनसे कमाता
इन्हें बेच खाता
वृद्धाश्रम भेज आता !
_______________
                                      केशव शरण
23-08-1960 
प्रकाशित कृतियां-
तालाब के पानी में लड़की  (कविता संग्रह)
जिधर खुला व्योम होता है  (कविता संग्रह)
दर्द के खेत में  (ग़ज़ल संग्रह)
कड़ी धूप में (हाइकु संग्रह)
एक उत्तर-आधुनिक ऋचा (कवितासंग्रह)
दूरी मिट गयी  (कविता संग्रह)
क़दम-क़दम ( चुनी हुई कविताएं ) 
न संगीत न फूल ( कविता संग्रह)
गगन नीला धरा धानी नहीं है ( ग़ज़ल संग्रह )
संपर्क एस2/564 सिकरौल
वाराणसी  221002
मो.   9415295137
9:00 am

विकास, भूख और प्यास

सिक्स लेन की
सड़कों के ऊपर से
गुज़र गए बादल
निकल गये जनपद से बाहर
बिन बरसे

वही सिक्स लेन सड़कें
जिनके लिए हज़ारों पेड़
हलाक हुए
और हो रहे हैं

बादलों के न टिकने से
जनपद सूखा है
विकास हो रहा है 
मगर धरती प्यासी
जन भूखा है
_______________
                                        केशव शरण
23-08-1960 
प्रकाशित कृतियां-
तालाब के पानी में लड़की  (कविता संग्रह)
जिधर खुला व्योम होता है  (कविता संग्रह)
दर्द के खेत में  (ग़ज़ल संग्रह)
कड़ी धूप में (हाइकु संग्रह)
एक उत्तर-आधुनिक ऋचा (कवितासंग्रह)
दूरी मिट गयी  (कविता संग्रह)
क़दम-क़दम ( चुनी हुई कविताएं ) 
न संगीत न फूल ( कविता संग्रह)
गगन नीला धरा धानी नहीं है ( ग़ज़ल संग्रह )
संपर्क एस2/564 सिकरौल
वाराणसी  221002
मो.   9415295137

रविवार, 30 जून 2019

7:13 pm

वाराणसी :- विश्व जनचेतना ट्रस्ट वाराणसी जिला ईकाई ने किया काव्य गोष्ठी का आयोजन

दिनांक 30.06.2019 को जिला पुस्तकालय मे काव्य गोष्ठी का आयोजन विश्व जनचेतना ट्रस्ट वाराणसी जिला ईकाई ने किया तथा ग़ज़ल संग्रह"मोहब्बत" का पुन: विमोचन हुआ। इससे पहले यह ग़ज़ल संग्रह छतरपुर मध्यप्रदेश में आयोजित कवि सम्मेलन एवं विमोचन समारोह  में 3 फरवरी 2019 को पाठकों के सामने आया


शुक्रवार, 21 जून 2019

6:41 pm

ग़म की घटा न घटती सी कहीं दीख रही -आदित्य तोमर

ग़म की घटा न घटती सी कहीं दीख रही,
अपना बिहार हार मृत्यु से छला गया.
उन परिवारों पर कैसी बीती होगी भला,
दूसरे के पीछे-पीछे पुत्र पहला गया.
"बम की भी धमकी से डरेंगे न" बोला जहाँ,
वहीं हाथ पर हाथ धर के मला गया.
दमकी सितम की तड़ित ऐसी यम की कि
चमकी ले चमकीले तारों को चला गया.
                         आदित्य तोमर,
                        वज़ीरगंज, बदायूँ.

5:40 am

योग दिवस पर योग करके बताये योग के फायदे

बदायूं जनपद के कस्बा खितौरा के पी.ओ.एच.चिल्ड्रेन स्कूल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं पतंजलि योगपीठ के सँयुक्त तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।
योग का प्रशिक्षण दे रहे योगाचार्य श्री दलवीर सिंह ने सभी लोगो को योग कराया और योग के फायदे बताए । योगाचार्य ने बताया कि योग हमारे शरीर को एक औषधि का काम करता है। योग करने से हमारे शरीर को ऊर्जा प्राप्त होती है व शरीर निरोगी बनाता है। योग हमारे जीवन में बहुत उपयोगी हैं। योग करने से हमारे शरीर में स्फूर्ति बनी रहती। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन योग करना चाहिए ।
  • इस मौके पर गौरव कुमार सिंह गुरु, आर डी शर्मा ,अरुण कुमार सिंह,सचिन,हेमन्त,संजीव भारद्वाज, विकास भारद्वाज, सुरेंद्र भारद्वाज ,अनिल शर्मा, रवि शंकर , रोहित भूपाल वन , प्रतीक, रिंकू भारद्वाज, रानू , उदित गुप्ता, मेघराज सिंह, सहित सैकड़ों लोग ने योग किया ।

मंगलवार, 4 जून 2019

सोमवार, 20 मई 2019

2:54 am

युद्ध की विभ्रान्तियाँ कब तक रहेंगी

हे सखे,
युद्ध की विभ्रान्तियाँ कब तक रहेंगी.
ये निरर्थक क्रान्तियाँ कब तक रहेंगी.
यह अथक मन्थन हमें क्या दे सकेगा.
अंततः संसार जिस पथ पर चलेगा.
वह सुनिश्चिततः हमारा प्रेम होगा.
सार इस संसार का फिर क्षेम होगा.
युद्ध का यह वृक्ष सदियों तक फले पर,
क्रोध का उन्माद यह वर्षों चले पर,
एकदिन आख़िर हमें झुकना पड़ेगा.
हारकर उस मोड़ पर रुकना पड़ेगा.
तब अनर्गल चाहना तजनी पड़ेगी.
प्रीति की दुनिया नई रचनी पड़ेगी.
-
आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ.

बुधवार, 24 अप्रैल 2019

12:16 am

जख्म भर जाये मेरा....

ग़ज़ल क्र० 66

मारना   चाहता   है   खुशी  के  लिए ।
शत्रु  है  आदमी,  आदमी   के   लिए ।।

कत्ल कर मेरा कातिल छुपा है अभी ।
कोई  तो  दे  पता  बन्दगी  के   लिए ।।

जख्म  भर  जाये  मेरा  सुनो  आपकी ।
बस  दुआ  चाहिए   जिंदगी  के  लिए ।।

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

11:40 pm

मेरी छतरपुर मध्य प्रदेश यात्रा - दिलीप कुमार पाठक "सरस"

मेरी छतरपुर मध्य प्रदेश यात्रा

मित्रों!

3 फरवरी 2019 दिन रविवार को छत्रशाल स्मारक न्यास, चौक बाजार छतरपुर में मुहब्बत साझा ग़ज़ल संग्रह का विमोचन एवं सम्मान समारोह के साथ अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का कार्यक्रम सुनिश्चित हुआ|कार्यक्रम की तैयारी प्रिय अनुज सुमित शर्मा पीयूष जी और प्रिय नीतेन्द्र परमार सिंह भारत जी के सहयोग से कई दिनों की कड़ी मेहनत से पूर्ण हो चुकी थी|

अब कार्यक्रम प्रकाश में आना था, सब अपने अपने घरों से एक दूसरे से मिलने के लिए आतुर हो घरों से निकल चुके थे|प्रिय अनुज विकास भारद्वाज 'सुदीप' जी जो कि मुहब्बत ग़ज़ल संग्रह के प्रधान सम्पादक हैं, खुशी के मारे 31 जनवरी को ही घर से चल पड़े|सबसे पहले छतरपुर पहुँचे भी वही|
झाँसी के किले की प्राचीर पर 
मेरा जाना एक फरवरी को सुनिश्चित था पर साथियों की और खुद की समस्याओं का बजह से 2 फरवरी की शाम को ही घर से निकलना हो पाया|मेरे साथ पहले तो सात साथी चलने को तैयार थे, जिसमें आ.  सुशीला धस्माना मुस्कान दीदी, आ.  अमित शर्मा जी, आ. अभयराज जी, आ. कौशल पाण्डेय आस दादाश्री, आ. राजेश मिश्र प्रयास जी ,आ. विकास भारद्वाज 'सुदीप' जी और मैं|सोंचा कि बड़ी गाड़ी कर लेंगे|परन्तु आ. अमित जी की रिश्तेदारी में किसी का स्वर्गवास हो गया, अभयराज जी भी मना कर गये, आ. सुशीला धस्माना मुस्कान दीदी का स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण साथ न चल सकीं, यद्यपि मन तो बहुत था जाने का |विकास जी को मैंने बोल दिया आप उल्टा क्यों आओगे ,उधर से ही सीधे निकलो |
अब बचे प्रयास जी, मैं और आस दादा|प्रिय मित्र आलोक सैनी जी को राजी किया साथ चलने को, सहर्ष तैयार हो गये पर 2 फरवरी को चलने की शर्त थी, विद्यालय कार्य पूर्ण करके|
 

प्रिय भाई आलोक सैनी जी तय समय पर गाड़ी लेकर घर पर आ गये |प्रयास जी और आस दादा को मँगाना पड़ा उनके घर से|शाम पाँच बजे घरर से निकल पड़े, हँसते हँसाते ,गाल बजाते, रास्ता भटकते, पूछते पाँछते, कोहरे से जूझते सुबह तड़के छतरपुर के बस स्टैण्ड पर हमारी गाड़ी पायी गयी |बाइक लिए मुँह पर मफलर लपेटे प्रिय अनुज नीतेन्द्र जी प्रकट हुए उनके एक साथी साथ में थे, मैं दुकान पर पान खा रहा था, ऐसा लगा कि प्रिय नीतेन्द्र जी हमारी किडनैपिंग करने आये हैं |खैर जैसे-तैसे एक निर्धारित स्थान पर पहुँचे, शटर खोला गया, जीना दिखा और ऊपर पहुँचा दिए गये|बिस्तर बिछाकर अन्य सभी साथियों को लिटा दिया गया, मुझे नीतेन्द्र जी अपने साथ ले गये अपने घर पर वहाँ घर के सभी सदस्यों से मिला|आपके पिता जी के स्वभाव ने बहुत प्रभावित किया, खूब बातें हुईं हम लोगों के मध्य |इसी बीच दैनिक क्रिया से निपटा, बहिन सुधा तब तक चाय जे आयी, चाय पी, बातों बातों में पता चला कि अनुज नीतेन्द्र जी का नाम छोटे राजा भी है|पापा जी स्नेह पगी बातें करते रहे और हाँ यहीं विकास जी भी प्राप्त हुए सोते हुए, जैसे तैसे जगाया |




फिर अतिथि ग्रह पर लाया गया |सब दैनिक क्रिया करते नज़र आये, मैं भी नहा लिया, कपड़े ही पहन पाया कि तब तक दूसरी खेंप भी नीतेन्द्र जी किडनैंप कर लाये, इस खेंप में आ. लियाकत अली जलज दादाश्री, आ. संतोष कुमार प्रीत दादाश्री, प्रिय अनुज सुमित शर्मा पीयूष जी, आ. राजेन्द्र प्रसाद बावरा दादाश्री , आ. बिजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश दादाश्री |
एेसा लगा कि मजा चलकर आ गया हो|सब पानी बहाने पर डट गये, आगरे गूँज आ रही थी और बनारस की खुशबू |
  

तब तक चाय भी तैयार होकर आ गयी और नाश्ता भी, बिहार बनारस और छतरपुर का नाश्ता हम सबने छका, मस्तियों को कैद किया मोबाइल में और खुजराहो का मंदिर देखने के लिए दो खेंपों में रबाना हो गये, आ. शैलेन्द्र खरे सोम दादाश्री से फोन पर बात हो गयी कि अनुज थोड़ी देर में आता हूँ |
मंदिर पहुँच गये, मंदिर की चित्रकारी पत्थरों पर देख मन रोमांचित होकर उठा|हम सब फोटो पर फोटो ले रहे थे |तीन बजे वापस आ गये थे,

सबसे पहले आ. सोम दादाश्री मिले, गले से लगा लिया और कहा कि मेरा अनुज शरीर में मेरी तरह ही है|
तब तक खाना तैयार हो गया था, सबने भोजन किया और कार्यक्रम स्थल पर पहुँचे|सबके स्नेह और सहयोग में कार्यक्रम सम्पन्न हुआ, भव्यतम् कार्यक्रम, मंच पर सुशोभित सोम दादाश्री के साथ अन्य स्थानीय वरिष्ठ साथी |संचालन का गुरुभार मुझे ही उठाना पड़ा|एक एक कर सभी को सम्मानित किया गया व काव्य पाठ हुआ|सबके स्नेह से पगी मुहब्बत ग़ज़ल संग्रह का विमोचन हुआ |
 


मुहब्बत साझा ग़ज़ल संग्रह को अपने स्नेह से ओतप्रोत करने हेतु प्रिय अनुज सुमित जी को 500₹ का पुरस्कार प्रदान किया गया, प्रधान सम्पादक प्रिय अनुज विकास भारद्वाज सुदीप जी को 500 ₹ की धनराशि पुरस्कार के रूप में नकद प्रदान की गयी |इसी बीच सुमित जी की ट्रेन थी, सो विदा लेकर अपने गन्तव्य की ओर बढ़ गये|
9:30 बजे कार्यक्रम समाप्त हो गया था|कार्यक्रम जल्दी समाप्त करने का कारण छतरपुर के एक वरिष्ठ बी. जे. पी नेता का निधन रहा|जिसे गोपनीय रखा गया|


फिर रुकने के स्थान पर आये, सारा समान प्रिय अनुज जयकांत जी, प्रिय अनुज अनंतराम जी और कई साथी से आये थे|थकान होने के बावजूद भी मैं और आलोक सैनी जी घूमने निकल गये |एक घण्टे बाद लौटकर आया, भोजन हो चुका था |वार्तालाप वर्षा हो रही थी|
पेट में गैस बन जाने के कारण भोजन न किया, कुछ खाकर भी आये थे|
 

 

आ. सोम दादाश्री और मैं देर रात तक बतलाते रहे|आ.शैलेश दादा की कविता सुनते रहे|आ.बावरा जी रात भर कुछ ढूँढ़ते रहे, जाने क्या खो गया था, मिला कि नहीं राम जानें|
कमरे की लाइट बुझा दी थी और फिर निद्रा की गोद में सब चले गये |आस दादाश्री सोये कि नहीं, पता ही नहीं |
सुबह उठा, दैनिकक्रिया का अभिवादन कर चाय नाश्ता किया, अन्य सभी साथियों को उनके हाल पर छोड़ ,आ. सोम दादाश्री और प्रिय अनुज नीतेन्द्र जी के साथ सभी से विदा ले हम निकल आये|



महोबा में चाय पकौड़ी ठूँसीं|फिर आगे बढ़े कबरई का बन्धा देखा, फिर आगे बढ़े, एक ढाबे पर खाना खाया,फिर आगे बढ़े |
हँसी मजाक, ठहाके के बीच, अँधेरा पाँव पसार चुका था|
अब कोहरे से जूझना था, रात के 1:00 बजे घर ने दर्शन दिए|
विकास जी साथ में थे, गाड़ी गैराज में खड़ी कराकर, घर आये, विकास जी का विस्तर तैयार था और मेरा विस्तर थकान खुद बिछा रहा था, सो झट से सो गया|
सुबह विकास जी को बस पर बिठाया और फिर मैं अपने कामधन्धे में लग गया|

जय जय
दिलीप कुमार पाठक "सरस"

विशिष्ट पोस्ट

सूचना :- रचनायें आमंत्रित हैं

प्रिय साहित्यकार मित्रों , आप अपनी रचनाएँ हमारे व्हाट्सएप नंबर 9627193400 पर न भेजकर ईमेल- Aksbadauni@gmail.com पर  भेजें.