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बुधवार, 2 अक्टूबर 2019

अच्छा था मेरे दर से मुकर जाना तेरा - सलिल सरोज

1.
अच्छा था मेरे दर से मुकर जाना तेरा
आसमाँ की गोद से उतर जाना तेरा

तू लायक ही नहीं था मेरी जिस्मों-जाँ के
वाजिब ही हुआ यूँ बिखर जाना तेरा

मेरी हँसी की कीमत तुमने कम लगाई
यूँ ही नहीं भा गया रोकर जाना तेरा

तुझे हासिल थी बेवजह दौलतें सारी 
अब काम आया सब खोकर जाना तेरा

क्या आरज़ू करूँ तेरी तंगदिली से मैं
क्या दे पाएगा बेवफा होकर जाना तेरा

मैं सोचती रही कि हो जाऊँ तेरी फिर से
बुत बना गया हर बात पे उखड़ जाना तेरा

2.
जो तुम चाहते हो बस वही मान लेते हैं
झूठ को सच,सच को झूठ जान लेते हैं

अब तक अक्सों में ढूँढते रहे इक दूजे को
चलो आज हम खुद को पहचान लेते हैं

तिनका तिनका जोड़ के आशिया बनाएँ 
थोड़ा सा ज़मीन,थोड़ा आसमान लेते हैं

माँगों में सजे तुम्हारे भरी भरी हरियाली
अहसासों में गीता और कुरआन लेते हैं

खुशी की लहरें दौड़ा करें हमारे आँगन में
क्षितिज के आसपास कोई मकान लेते हैं

3.
वो मेरे दिए दर्द भी सम्भाल के रखती है
देखें जिगर उसका, कमाल के रखती है

कोई क़तरा भी जाया न हो आँसुंओं के
वो तो सपने भी देख - भाल के रखती है

क्या माँगा मैंने, उसने क्या क्या दे दिया
हर बात पे कलेजा निकाल के रखती है

जो चाहिए मुझे तो वो खुदा भी ला के दे
अपनी मुट्ठी में आकाश-पाताल रखती है

मैंने देखा ही नहीं उसे जी भर के कभी
खुद ही में मेरे प्यार का गुलाल रखती है   

लिखना है तो बादलों पे इबारत लिखो कोई
कभी शबनम तो कभी क़यामत लिखो कोई

कोहरों के बीच से  रास्ता निकल के आएगा
मंज़िलों के ख़िलाफ़ भी बगावत लिखो कोई

फसलें नफरतों की सब कट जाएँगी खुद ही
धरती के सीने पे ऐसी मोहब्बत लिखो कोई

कितनी सदी तक यूँ ही पिसती रहा करेगी
माँ के थके चेहरे पे अब राहत लिखो कोई

तुम कहाँ गुम हो,किस ख़्यालात में गुम हो
दो पल को  अपने लिए चाहत लिखो कोई

कुछ अनछुए पल, कुछ अनछुए अहसास
दिल के करीब से बातें निहायत लिखो कोई

सलिल सरोज
कार्यकारी अधिकारी
लोक सभा सचिवालय
संसद भवन ,नई  दिल्ली 

पता
मुखर्जी नगर
नई दिल्ली

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