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मंगलवार, 9 जुलाई 2019

अच्छी सोच बुरी सोच

शब्बो अम्मा बड़े सब्र वाली और ठंडे मिज़ाज की औरत थी। रोज़ की तरह शब्बो अम्मा लकड़ियां बीनने  जंगल में गई। वहां जंगल में सर्दी,गर्मी और बरसात में बहस चल रही थी के कोन सा मोसम अच्छा है..सर्दी बोली देख वोह सामने एक बुज़ुर्ग औरत बैठी उससे पूछते हैं क्यूं के इंसान ही मोसम के असरात बता सकता है। शब्बो अम्मा के पास‌ पहले सर्दी  पहुंची और सलाम कर के पूछा अम्मा सर्दी का मोसम कैसा..? शब्बो अम्मा बोली सर्दी के मोसम का क्या  कहने, ना पसीने की झंझट,ना मच्छरों का हमला, खाने की चीज़ों के ख़राब होने का डर नहीं।। कभी गाजर और अंडे के हलवे बन रहे हैं, तो गज़क और तिल के लड्डू  के मज़े भी, कभी मूंगफली का सोंदापन ले रहे हैं,चाय की चुस्की के मज़े लिए जा रहे हैं, लम्बी रातों की वजह से नींद भी ख़ूब ले सकते हैं ..सर्दी में तो मज़े ही मज़े हैं। सर्दी ख़ुश होकर अम्मा को दो अशर्फ़ी देकर चली गई। अब गर्मी आई और पूछा अम्मा गर्मी का मोसम कैसा..शब्बो अम्मा बोली गर्मी की तो बात ही निराली है जब चाहे नहा लो, आंगन में खटिया पै सोने का मज़ा तो गर्मी में मिलता है। ठंडा शरबत, मलाई वाली लस्सी गर्मी की ख़ास सोग़ात है। गर्मी के क्या कहने। गर्मी भी ख़ुश होकर अम्मा को दो अशर्फ़ी देकर गई। अब अम्मा के पास बरसात का मोसम आया..सलाम के बाद बरसात ने पूछा अम्मा बारिश का मोसम कैसा? अम्मा ख़ुश होकर बोली बरसात तो ज़िंदगी है। बारिश शुरू होते ही किसानों के चेहरे खिल उठते हैं और खेती-बाड़ी में लग जाते हैं,अच्छी पैदावार की उम्मीदें जाग जाती  हैं। बारिश से पानी की क़िल्लत दूर हो जाती है नदियों में रवानी आ जाती है हर तरफ़ हरियाली छा जाती है। बाग़ों में झूले पड़ते हैं लोग तफ़रीह के लिए निकलते हैं। बरसात के बग़ैर ज़िंदगी का तसव्वुर भी नहीं किया जा सकता। बरसात भी ख़ुश होकर अम्मा को दो अशरफ़ियां देकर गई। अब शब्बो अम्मा के पास छे अशरफ़ियां हो गई और शब्बो अम्मा की ज़िंदगी मज़े से गुज़रने लगी। शब्बो अम्मा के पड़ोस में एक हुस्ना नाम की अम्मा भी रहती थीं बला की बद मिज़ाज और अक्खड़.. हुस्ना अम्मा भी एक दिन लकड़ियां बीनने जंगल गई तो जंगल में तीनों मोसम में फिर से बहस हो रही थी के सबसे अच्छा मोसम कोन सा है, तीनों मोसम ने देखा..
.. के एक दूसरी बुज़ुर्ग अम्मा जंगल आई है। चलो इन से पूछते हैं के कोन सा मौसम अच्छा है और कोन सा बुरा.. पहले सर्दी गई और उसने पूछा के अम्मा सर्दी का मोसम कैसा है हुस्ना अम्मा ग़ुस्से से बोली सर्दी का भी कोई मोसम है हर वक़्त नज़ला ज़ुकाम और खांसी, कांपते और धूझते रहो.. दांत बजने लग जाते हैं, सलीम के अब्बा को सर्दी में ही हवा (फ़ालिज,पेरालाईसिस) पड़ी थी,चल चल दूर हट। सर्दी नाराज़ होकर वापस चली गई। हुस्ना अम्मा के पास अब गर्मी पहुंची और सलाम कर के पूछा अम्मा गर्मी का मोसम कैसा है..अम्मा बड़बड़ाते हुई बोली गर्मी में तो बस परेशानी ही‌ परेशानी है.. बदन जलने लगता है हर वक़्त पसीना पोंछते रहो,रात को मच्छर सोने भी ना देवें हैं,कभी दूध फट जावे तो कभी सालन ख़राब हो जावे है..नदी तालाब सूख जाने से पानी की क़िल्लत..गर्मी तो अज़ाब होवे है। गर्मी मूंह बनाती हुई वापस चली गई। अब अम्मा के पास बरसात पहुंची और पूछा के अम्मा बरसात का मोसम कैसा है..हुस्ना अम्मा बोली बरसात का मतलब हर तरफ़ कीचड़ कीचड़ है, कभी छत टपक रही है तो कभी घर में पानी घुसा चला आवे..कभी ख़बर आवे है के फ़लां गांव बाड़ में घिर गया तो फ़लां गांव बह गया। पिछली बरसात में ही रसूलपुर में बहुत से लोग बाढ़ में बह गए थे। चल भाग यहां से कमबख़त मारी।

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