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मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

5:16 am

★★★गीत-अंजुरी भर★★प्रदीप ध्रुव★


भावनाओं ने कहा तो अंजुरी भर गीत ले कर आ रहे हम।
विघ्न भी हैं सघन राह में निशिचर खड़े आघात को तम।
*
संगठित निशिचर हुए और भद्रजन में द्वेष है।
बुद्धि का अभिमान अतिशय नेह न अब शेष है।
भावनाएँ शून्य हैं अब वो स्वयंभू बन गये खुद,
बुद्धि का वो आचमन हैं दे रहे अतिशेष है।
दैव होने का है किंचित भाव उनको हो रहा भ्रम।-01
*
इन्द्र सम है आचरण पग हैं भ्रमित पावन बने ग़ुलनाग से।
मेनकाएँ और रम्भा की शरण में प्रेमरस हैं पी रहे अनुराग से।
मिल चुका आशीष सत्ता की शरण में गोद बैठे दिख रहे,
लिख रहे नूतन कथानक स्वर्ग सुख ज्यों खेलते वो फाग से।
चल रहा अनुकूल मौसम जा चुका अब जो रहा कल तक विषम।-02
*
आज प्रतिभा है उपेक्षित गढ़ रहे नूतन नवल प्रतिमान हैं।
नीतिगत मत पूँछिए जो वो कहें तो मानिए इंसान हैं।
टकटकी हम हैं लगाए आश जागी अंजुली भर आचमन की,
दैव समझा मतिभ्रमित खुद को नहीं वो मानते इंसान हैं।
कालजय की राह में वो जा रहे मुझको गिराकर है वहम।-03
*
★★★★★★★★★★★★
स्वरचित कापीराइट गीतकार,
प्रदीप ध्रुवभोपाली, भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.11/12/2019
मो.09589349070
★★★★★★★★★★★★
5:11 am

★★गीत-प्रीति न कीजिए★★ प्रदीप ध्रुव


प्रीति न कीजिए,है अदावत बहुत।
प्रीति है अब सियासी बग़ावत बहुत।
*
मुख में अमृत है,दिल में ज़हर जो भरा।
खोट वाले हैं मिलते,न मिलता खरा।
अब कहीं नहिं मिलेगी शराफत बहुत।
प्रीति है अब सियासी बग़ावत बहुत।-01
*
आज मिलते बहुत जो दग़ाबाज़ हैं।
काक हैं गिद्ध हैं वो कहें बाज़ हैं।
आचरण से कहें है शिकायत बहुत।
प्रीति है अब सियासी बग़ावत बहुत।-02
*
जो मिले लूट लें,ऐसे बटमार हैं।
कालनेमि के वो तो कि अवतार हैं।
नहिं करे छलियों से हम शराफत बहुत।
प्रीति है अब सियासी बग़ावत बहुत।-03
*
★★★★★★★★★★★★
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.24/01/2020
मो.09589349070
★★★★★★★★★★★★
5:10 am

★गीत-लहरा लो तिरंगा प्यारा★प्रदीप ध्रुव


तिरंगा पे हुए क़ुर्वान, शहीदों की अमानत है।
तिरंगा प्यारा लहरा लो,नहीं करना बग़ावत है।
*
न जाने कितनी माताओं की गोद भी हुई सूनी।
सुहागें उजड़ी बहनों की,गम बरसात भी दूनी।
शहीदों ने दी आज़ादी, हमें रखना सलामत है।
तिरंगा प्यारा लहरालो,नहीं करना बग़ावत है।-01
*
हुए आज़ाद पर इस मुल्क़ की बाहें कटी फिर जब।
सभी रोयें थे जब उन्मादियों में हवस आई तब।
लुटी थी लाज़ अपनों से,तो फिर रोई शहादत है।
तिरंगा प्यारा लहरालो,नहीं करना बग़ावत है।-02
*
कटे सर लाश रेलों में,पेशावर से इधर आई।
लिखा आज़ादी का तोहफ़ा,नहीं उनको शर्म आई।
चुकाया मोल है जिसका,उस आज़ादी से राहत है।
तिरंगा प्यारा लहरालो,नहीं करना बग़ावत है।-03
*
नहीं कोई था मज़हब तब कहलाते थे बलिदानी।
लड़ी थी ज़ंग़ मिलकर तब, नहीं की कोई नादानी।
बहे आंसू थे बलिदानों से,लेकिन दूर आफ़त है।
तिरंगा प्यारा लहरालो, नहीं करना बग़ावत है।-04
***
★★★★★★★★★★★★
स्वरचित,कापीराइट,गीतकार,
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.25/01/2020
मो.09589349070
★★★★★★★★★★★★
5:07 am

गीत-उपवन और झरने - प्रदीप ध्रुव


***
गीत उपवन और झरने नदी बह रही।
गीत पर्वत सदृश ये सदी कह रही।
*
पीर है इक सदी की जो संभाब्य है।
ये तो वृत्तांत लघु में महाकाव्य है।
गीत सुर में जो ढलती मचलती हुई,
गीत वो धूप और स्वेद का काब्य है।
गीत है जो ब्यथा ज़िन्दगी सह रही।
गीत पर्वत सदृश ये सदी कह रही।-01
*
गीत अल्लढ़ मचलती नदी धार है।
गीत केवट की अनुपम वो पतवार है।
जो लगा दे कि उस पार ये ज़िन्दगी,
गीत वो सौम्य नाविक की मनुहार ही।
काब्य की धार उर में है जो बह रही।
गीत पर्वत सदृश ये सदी कह रही।-02
*
गीत जो जो किला लाल बिन चल रही।
गीत मज़दूर कवि के हृदय पल रही।
गीत आभार है इस वतन के लिए,
राष्ट्र के भक्त उनके हृदय ढल रही।
अब बचाओ भी मर्यादा जो ढह रही।
गीत पर्वत सदृश ये सदी कह रही।-03
*
गीत कविता का ब्यापार बिल्कुल नहीं।
मात्र प्रियतम का मनुहार भर ये नहीं।
गीत है लोरियाँ माँ की वात्सल्य मय,
गीत जीवन का आसार भर ये नहीं।
ये सदृश जो विहंगम सरित बह रही।
गीत पर्वत सदृश ये सदी कह रही।-04
*
गीत टूटे हुए दिल का आसार है।
सुख की अनुभूति का गीत आगार है।
जो चरम कल्पनाओं में हो अग्रसर,
सृष्टि और ज़िन्दगी का परम सार है।
गीत है अस्मिता उर में जो रह रही।
गीत पर्वत सदृश ये सदी कह रही।-05
***
★★★  ★★★  ★★★  ★★
स्वरचित,कापीराइट,गीतकार,
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.27/01/2020
मो.09589349070
★★★★★★★★★★★★
4:59 am

गीत :-खुशियाँ ज़िन्दगी की - प्रदीप ध्रुव


मात्राभार-14-14
***
खूटियों पर टाँग खुशियाँ,हो गये परिवार के हम।
चैनसुख भूले सभी कुछ,बन मुसाफ़िर ख़ार के हम।
*
भूल हम बैठे स्वयं को,कर्मपथ चलते रहे बस।
त्याग का पर्याय देखा,आँख सब मलते रहे बस।
हम हुए हैं शून्य संग,साक्षवत संसार के हम।
चैनसुख भूले सभी कुछ,बन मुसाफ़िर खार के हम।-01
*
डूबकर संसार में हम,पी रहे सबका जो गम था।
आँसुओं से तरबतर थे,बाँट डाला जो सितम था।
हम बने कर्तव्य पालक,साक्ष्य थे अधिकार के हम।
चैनसुख भूले सभी कुछ,बन मुसाफ़िर खार के हम।-02
*
पर मिला निष्कर्ष ये भी,फल नहीं मिलता यहाँँ छल।
आज में जीते नहीं हम,और है आता नहींं कल।
यत्न नाहक क्यों करें गम,मोहरे ब्यापार के हम।
चैनसुख भूले सभी कुछ,बन मुसाफ़िर खार के हम।-03
*
आचमन पीते रहे हम,संग पिया हमने सितम है।
भाग्य से मिलता रहेगा,दिल में जो आया वहम है।
रात पूनम की अँधेरा,पर तमस में ही रहे हम।
चैनसुख भूले सभी कुछ,बन मुसाफ़िर खार के हम।-04
*
★★★★★★★★★★★★
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.31/01/2020
मो.09589349070
★★★★★★★★★★★★
4:53 am

गीत :-प्रेम क्या है - प्रदीप ध्रुव


प्रेम क्या है सुनो साथियों, प्रेयसी का मिलन साज है।
मीरा ने ज्यों किया कृष्ण से,बस वही नेक अंदाज़ है।
*
राग है रागिनी प्रेम स्वर,माँ का वात्सल्य शुचि प्रेम है।
राखियों में पगा प्रेम है,करती वो जो बहन नेम है।
ईश की साधना प्रेम है,मर्म या हम कहें राज है।
मीरा ने ज्यों किया कृष्ण से,बस वही नेक अंदाज़ है।-01
*
भ्रात का प्रेम अनुपम भरत,
लक्ष्मण का वो वनवास है।
जो सखी के मिलन के लिए,मन में जगती हुई आश है।
प्रेम निकले हृदयतल से जो,नेह की एक आवाज है।
मीरा ने ज्यों किया कृष्ण से,बस वही नेक अंदाज़ है।-02
*
प्रेम निर्बल नहीं है सबल,प्रेम तो एक आकाश है।
प्रेम संभावना सिद्धि की,ये भगीरथ की अभिलाश है।
प्रेम जो प्रेयसी के लिए,हद पे जाने का आग़ाज़ है।
मीरा ने ज्यों किया कृष्ण से,बस वही नेक अंदाज़ है।-03
*
बिन बताये जो मन जान ले,प्रेम पावन सा एहसास है।
हो कर जो न घटे फिर कभी,प्रेम मन का ये विश्वास है।
प्रेम का राज हरदम रहा,प्रेम सदियों से था आज है।
मीरा ने ज्यों किया कृष्ण से,बस वही नेक अंदाज़ है।-04
***
★★★★★★★★★★★★
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.16/02/2020
मो.09589349070
★★★★★★★★★★★★
4:52 am

गीत :-खुशबुओं की तरह - प्रदीप ध्रुव


खुशबुओं की तरह हम बिखरते रहे,
दिल में सबके मगर हम उतरते रहे।
वक्त के जो थपेड़े पड़े हम पे हैं,
उससे ज़्यादा और हम निखरते रहे।
*
कभी गुल सरीखे सजाये गये,
सजावट  से फिर हम हटाये गये।
कभी दौर था जब रहे अर्श पे हैं,
सरताज़ भी हम बनाये गये।
वही दौर था शेर मानिन्द हम या,
सदर की तरह हम ग़ुज़रते रहे।
वक़्त के जो थपेड़े पड़े हम पे हैं,
उससे ज़्यादा और हम निखरते रहे।-01
*
वक्त बदलाव का नाम है ज़िन्दगी,
ज़िन्दगी ने हमें आजमाया बहुत।
जब रहे अर्श पे तो हँसे भी बहुत,
ज़िन्दगी ने मगर फिर रुलाया बहुत।
हार माने नहीं तय हुई मंज़िलें,
अश्क़ संग और भी हम सँवरते रहे।
वक़्त के जो थपेड़े पड़े हम पे हैं,
उससे ज्यादा और हम निखरते रहे।-02
*
बात ईमान की और अदब संग चले,संग मेरा मुश्किलों नें निभाया बहुत।
कुछ मिले कालनेमि मगर राह पे,
बच निकलते रहे,पर लुभाया बहुत।
जब चले तो चले फिर रुके ही नहीं,देखने को असलियत ठहरते रहे।
वक्त के जो थपेड़े पड़े हम पे हैं,
उससे ज़्यादा और हम निखरते रहे।-03
*
टिमटिमाता दिया जल रहा अनवरत,कोशिसें आँधियों की बुझा न सके।
गर्त में डालने की रहीं कोशिसें,
उनके फन कुचला सर वो उठा न सके।
हम कभी टूटते नाम उसका नहीं,
मेरे अरमां और भी मचलते रहे।
वक्त के जो थपेड़े पड़े हम पे हैं,
उससे ज़्यादा और हम निखरते रहे।-04
***
★★★★★★★★★★★★
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.17/02/2020
मो.09589349070
★★★★★★★★★★★★

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