दिया है जख़्म ऐसा अब कहीं मरहम नही मिलता ।
तुम्हारे साथ मेरा कोई भी तो गम नही मिलता ।।
यूँही होती हैं बरसाते ये मौसम यूँ ही गुजरेगा ।
मरीज -ए इश्क़ को अकसर यहाँ हमदम नही मिलता ।।
तुम्हारी याद में ही ये समंदर हो गया खाली,
सबब है बस यही इसका कि सहरा नम नहीं मिलता |
मैं जानम जब कभी सोचूँ कि तुझसे राबता कर लूँ,
कभी तबियत नही मिलती, कभी आलम नही मिलता |
ये दुनिया हो गई वहशी दरिंदो से भरी आख़िर,
यहाँ हव्वा तो मिलती है मगर आदम नही मिलता |
- नेहा नज़ाकत
तुम्हारे साथ मेरा कोई भी तो गम नही मिलता ।।
यूँही होती हैं बरसाते ये मौसम यूँ ही गुजरेगा ।
मरीज -ए इश्क़ को अकसर यहाँ हमदम नही मिलता ।।
तुम्हारी याद में ही ये समंदर हो गया खाली,
सबब है बस यही इसका कि सहरा नम नहीं मिलता |
मैं जानम जब कभी सोचूँ कि तुझसे राबता कर लूँ,
कभी तबियत नही मिलती, कभी आलम नही मिलता |
ये दुनिया हो गई वहशी दरिंदो से भरी आख़िर,
यहाँ हव्वा तो मिलती है मगर आदम नही मिलता |
- नेहा नज़ाकत
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