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शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

दिया है जख़्म ऐसा अब कहीं मरहम नही मिलता - नेहा नजाकत

दिया है जख़्म ऐसा अब कहीं मरहम नही मिलता ।
तुम्हारे  साथ  मेरा  कोई  भी तो गम नही मिलता ।।

यूँही  होती  हैं  बरसाते  ये  मौसम  यूँ ही   गुजरेगा ।
मरीज -ए इश्क़ को अकसर यहाँ हमदम नही मिलता ।।

तुम्हारी याद में ही ये समंदर हो गया खाली,
सबब है बस यही इसका कि सहरा नम नहीं मिलता |

मैं जानम जब कभी सोचूँ कि तुझसे राबता कर लूँ,
कभी तबियत नही मिलती, कभी आलम नही मिलता |

ये दुनिया हो गई वहशी दरिंदो से भरी आख़िर,
यहाँ हव्वा तो मिलती है मगर आदम नही मिलता |

- नेहा नज़ाकत

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