रोहिणी जो द्रोहिणी सी मदमाती हुई आई,
लाई घेर-घेर चमू सारंग-सुनील के.
कंस महलों में भीत था अतीत याद कर,
चूहा जैसे चोंच में दबा हुआ हो चील के.
कारा तोड़ कृष्ण को ले बढ़े वीर वसुदेव,
चढ़ी जलराशि वन, मार्ग, ग्राम लील के.
सोंधी-सोंधी गन्ध लिए हरषाई ब्रजधूल
फूल-फूल उठे पीत-पादप करील के.
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आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ.
(अर्थात - कंस के अत्याचार के विरुद्ध रोहिणी (नक्षत्र) बग़ावती तेवरों के साथ घने काले बादलों की बड़ी सेना लेकर आई। जिनके कारण कंस को अपने महलों में भी अतीत की घटनाओं को याद कर मृत्यु का ऐसा भय होने लगा जैसे कोई चूहा चील की चोंच में दबा हुआ हो। उसी समय कृष्ण के जन्म के बाद उनके पिता वसुदेव उनको लेकर जेल से बाहर निकले और इसके साथ ही यमुना की भयंकर विशाल जलराशि वनों, मार्गों, और ग्रामों को निगलती हुई विकराल रूप में आगे बढ़ी। दूसरी ओर इन भयंकर परिस्थितियों से दूर ब्रज क्षेत्र में वहाँ की धूल कृष्ण के स्वागत में सोंधी-सोंधी महक उठी और निपट कँटीले करील जैसे वृक्ष भी फूलों से लद गए।)
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आदित्य तोमर |
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