हिंदी साहित्य वैभव

EMAIL.- Vikasbhardwaj3400.1234@blogger.com

Breaking

रविवार, 16 सितंबर 2018

6:36 am

जो कहते हिन्दी मन की अभिव्यक्ति नहीं कर पाती - आदित्य तोमर

जो कहते हिन्दी मन की अभिव्यक्ति नहीं कर पाती
लंगड़ी है बैसाखी बिन यह शक्ति नहीं भर पाती

हिंदी पर आरोप लगाते हैं मिश्रित भाषा के
झूठे-झूठे दाग थोपते अक्षम परिभाषा के

शब्द व्यञ्जना हिंदी की माँगी उधार की बोलें
हिंदी का सौंदर्य विदेशी भाषाओँ से तोलें

वे निज पगड़ी अंग्रेजी जूतों पर धरने वाले
स्वाभिमान का सुविधाओं से सौदा करने वाले

क्या जाने निज भाषा को सम्मान दिलाना क्या है
क्या जाने निज भाषा हित जीना मर जाना क्या है

आँख खोलकर दुनिया का इतिहास टटोलो, देखो
अंग्रेजों का बल-पौरुष अंग्रेजी बीच परेखो

जिसने जग के इतिहासों, भूगोलों को बदला है
जिसने दुनिया भर के फूलों-शूलों को बदला है

छिन्द्रनवेषी दृष्टि लिए निज भूलों को बदला है
जहाँ तहाँ कितने ही नामाकूलों को बदला है

जग को विवश किया है संस्कृति अंग्रेजी अपना लो
या अन्धकार में मिट जाओ अपना अस्तित्व गँवा लो

ऐसा दुस्साहस जग में भाषा ही कर सकती है
जो प्रतिमानों की प्रति-परिभाषा को गढ़ सकती है

और तनिक देखो चीनी जापानी संस्कृति तोलो
निज भाषा के सम्मानों के परिणामों को खोलो

दोनों ने अपनी तकनीकी का परचम फहराया
कम्प्यूटर निज भाषा में हो सकते हैं दिखलाया

वहां अगर रहना है तो पहले सीखो भाषाएँ
पीछे रखना व्यापारों, विद्याओं की आशाएँ

सिंगापुर, इंडोनिशिया जितना आगे जाओगे
निज भाषा के वैभव के प्रतिमानों को पाओगे

लेकिन एक ओर हिंदी पुत्रों की करुण कहानी
कब तक गाई जानी है यह कब तक और सुनानी

जो परिवादों संवादों का अन्तर नहीं समझते
वादों और विवादों का बहिर्न्तर नहीं समझते

कालांतर क्या समझें जोकि चिरंतर नहीं समझते
जंतर-मन्तर का स्पष्ट  जो तंतर नहीं समझते

वे बलहीन भले हों यह हिन्दी बलहीन नहीं है
यह दाता भाषा है भाषाओँ में दीन नहीं है

भारत की ये भाषाएँ हिंदी की हैं संतानें
कुछ बहनें, कुछ बहनों की बेटियाँ, सभी हैं मानें

बड़े घरों में कपड़े लत्तों में यह चल जाता है
एक-दूसरी अदल-बदल से काम निकल जाता है

जब अपने घर में बंटवारे वाला भाव नहीं है
कोई फूट नहीं मनभेदी कोई ताव नहीं है

तब बाहर वालों को इस एका से पीड़ा होगी
टुकड़े-टुकड़े कर देने की क्रूर क्रीड़ा होगी

अब तक इन्हीं बैर भावों की परिणति होती आई
एक-एक पीढ़ी ने कुत्सित यही नीति दोहराई

हिंदी ने निज मर्यादा पर कितने वार सहे हैं
विद्वत्जन के राजनीति प्रेरित संहार सहे हैं

टूट-टूटकर बिखरी है यह बिखर-बिखर कर निखरी
देवनागरी लिपि में सँवरी हिन्दी की यह नगरी

इसके पग-रज-कण-अणु-अणु से क्षण-क्षण अटे रहेंगे
हम हिन्दी के बिछुए-बिंदी बनकर डटे रहेंगे।।

आदित्य तोमर
वज़ीरगंज, बदायूँ


रविवार, 9 सितंबर 2018

8:24 pm

सुनो सुनो दुःशासन अब तो, साड़ी बाट रहा। - प्रदीप ध्रुवभोपाली

सुनो सुनो दुःशासन अब तो, साड़ी बाट रहा।
नयी नवेली देख परख के, उनको छाट रहा।

चीरहरण को भूल चला दुर्योधन से तकरार।
सुधर गया पड़ गयी है जबसे सौ कोड़ों की मार।

 धृतराष्ट्र के संग बैठा वो जड़ है काट रहा।
सबकी वो औकात देखकर उनको छाट रहा।

गर्ज पड़े जब जब उसको तो बाप कहे हर बार।
पाव पड़े और कहे कि अबकी कर दो बेड़ा पार।

धृतराष्ट्र किरपा से उसका हरदम ठाट रहा।
माल मसाला जमकर काटे सब को छाट रहा।

बरस पाच फिर मौसम आये सुन लो रे हर बार।
करे चरणस्पर्श कहे लाओ अपनी सरकार।

पलट चला पासा शकुनि का कल तक लाट रहा।
दुर्योधन का नहीं ठिकाना घर न घाट रहा।

★★★★★★★★★★★★
ओजकवि प्रदीप ध्रुवभोपाली,म.प्र
भोपाल,दिनाँक-31/08/2018
मो-09589349070
====================

8:21 pm

आरक्षण से देश सुलग रहा है - अनन्तराम चौबे

आरक्षण से
देश सुलग रहा है ।
देश के भविष्य में
गृह युद्ध दिख रहा है ।
देश में खतरा
विदेशी ताकतो
आतंकवादियो
से भी नही है  ।
आरक्षण की आग
से देश जल रहा है ।
नेताओ द्वारा बांटी
आरक्षण की रेवड़ियाँ
अब भारी पड़ रही है ।
आरक्षण की ये
बैसाखियाँ सबके
गले की फांस
बनकर रह गई हैं ।
नेता बोट बैंक की
राजनीति में फसे है ।
न्यायपालिका ही
कुछ हल निकाले
तभी देश की
समस्या का हल
हो सकता है ।
आरक्षण का कानून
अवैध हो सकता है ।

 अनन्तराम चौबे  * अनन्त *
 जबलपुर म प्र
1697/574
9770499027

8:17 pm

तेल का देखो खेल - राजेश पुरोहित

रोज - रोज तेल के भाव चढ़ रहे।
सियासत में तूफान भी मच रहे।।
विपक्ष के नेता हाहाकार कर रहे।
जनता के प्रदर्शन रोज ही हो रहे।।

आने वाले अब अगले  चुनाव पास है।
तेल जैसे मुद्दे भी बने आज खास है।।
सत्ताधारी व विपक्ष दोनों ही  हैरान है।
जनता का जीतना सबको विश्वास है।।

पेट्रोल डीजल आम जन की जरूरत है।
ये  महँगे तो जन  जीवन अस्त व्यस्त है।।
जनता के सामने किस मुँह जाये नेताजी।
देश की मंहगाई से आम जनता त्रस्त है।।

बढ़ती तेल कीमतों पर नियंत्रण कीजिये।
वरना अगले  चुनाव में हार मान लीजिए।।
जनता से झूंठे वादे अब तो मत  कीजिये।
पढ़ी लिखी जनता को सुविधाएं दीजिए।।

कवि राजेश पुरोहित

शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

5:51 am

दिया है जख़्म ऐसा अब कहीं मरहम नही मिलता - नेहा नजाकत

दिया है जख़्म ऐसा अब कहीं मरहम नही मिलता ।
तुम्हारे  साथ  मेरा  कोई  भी तो गम नही मिलता ।।

यूँही  होती  हैं  बरसाते  ये  मौसम  यूँ ही   गुजरेगा ।
मरीज -ए इश्क़ को अकसर यहाँ हमदम नही मिलता ।।

तुम्हारी याद में ही ये समंदर हो गया खाली,
सबब है बस यही इसका कि सहरा नम नहीं मिलता |

मैं जानम जब कभी सोचूँ कि तुझसे राबता कर लूँ,
कभी तबियत नही मिलती, कभी आलम नही मिलता |

ये दुनिया हो गई वहशी दरिंदो से भरी आख़िर,
यहाँ हव्वा तो मिलती है मगर आदम नही मिलता |

- नेहा नज़ाकत

मंगलवार, 4 सितंबर 2018

4:49 am

रोहिणी जो द्रोहिणी सी मदमाती हुई आई, लाई घेर-घेर चमू सारंग-सुनील के - आदित्य तोमर

जय श्रीकृष्ण

रोहिणी जो द्रोहिणी सी मदमाती हुई आई,
लाई घेर-घेर चमू सारंग-सुनील के.
कंस महलों में भीत था अतीत याद कर,
चूहा जैसे चोंच में दबा हुआ हो चील के.
कारा तोड़ कृष्ण को ले बढ़े वीर वसुदेव,
चढ़ी जलराशि वन, मार्ग, ग्राम लील के.
सोंधी-सोंधी गन्ध लिए हरषाई ब्रजधूल
फूल-फूल उठे पीत-पादप करील के.
-
आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ.

(अर्थात - कंस के अत्याचार के विरुद्ध रोहिणी (नक्षत्र) बग़ावती तेवरों के साथ घने काले बादलों की बड़ी सेना लेकर आई। जिनके कारण कंस को अपने महलों में भी अतीत की घटनाओं को याद कर मृत्यु का ऐसा भय होने लगा जैसे कोई चूहा चील की चोंच में दबा हुआ हो। उसी समय कृष्ण के जन्म के बाद उनके पिता वसुदेव उनको लेकर जेल से बाहर निकले और इसके साथ ही यमुना की भयंकर विशाल जलराशि वनों, मार्गों, और ग्रामों को निगलती हुई विकराल रूप में आगे बढ़ी। दूसरी ओर इन भयंकर परिस्थितियों से दूर ब्रज क्षेत्र में वहाँ की धूल कृष्ण के स्वागत में सोंधी-सोंधी महक उठी और निपट कँटीले करील जैसे वृक्ष भी फूलों से लद गए।)
आदित्य तोमर

रविवार, 2 सितंबर 2018

10:38 pm

कली कली से फूल बनता है फूलो से माला बनती है । बिना कली कोई फूल न होता बिना फूल नही माला बनती है

कली कली से फूल बनता है
फूलो से माला बनती है  ।
बिना कली कोई फूल न होता
बिना फूल नही माला बनती है ।
पेड़ पौधो से वाग  खिलते है ।
भंवरे गुन्जन उसमे करते है ।
फूल फूल का रस पीते है ।
भंवरे की गुंजन से वगिया के
फूल भी सहमें रहते है ।
फूलो का रस पान करना
भंवरो की आदत होती है ।
फूल और भवरे की जोडी
कुदरत का करिश्मा है ।
रस पान करे न फूलो का
भंवरा  नही रह सकता है  ।
कली कली का रस पान करे
भंवरा यही तो करता है
कली फूल और भंवरे का
आपस का यह रिश्ता है ।
रस पान करे न फूलो का
भंवरा जीवित नही
 रह सकता है ।

        अनन्तराम चौबे * अनन्त *
         जबलपुर म प्र
          1681/569
         9770499027

10:33 pm

पुस्तक समीक्षा :- खोजना होगा अमृत कलश (काव्य संग्रह)

पुस्तक समीक्षा
कृति :- खोजना होगा अमृत कलश (काव्य संग्रह)
कवि :- राजकुमार जैन "राजन"
पृष्ठ:- 120
मूल्य:- 240/-
प्रथम संस्करण:- 2018
प्रकाशक:- अयन प्रकाशन,1/20,महरौली, नई दिल्ली 110030
समीक्षक:- राजेश कुमार शर्मा"पुरोहित"
 कवि,साहित्यकार
    बाल साहित्यकार राजकुमार जैन "राजन "की कृति 'खोजना  होगा अमृत कलश" में कुल 50 कविताएँ हैं। अब तक कवि राजन की बाल साहित्य की 36 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। यह कृति उन्होंने अपने पिता श्री अम्बालाल जी हिंगड़ व माता श्रीमती इन्द्रा देवी हिंगड़ जी को समर्पित की है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी राजन जी आकोला जैसे गाँव से काव्य यात्रा प्रारम्भ करने वाले कवि एवम बाल साहित्यकार हैं। ये अंतराष्ट्रीय मंचों से सम्मानित है। प्रस्तुत कृति की भूमिका में पूर्व अध्यक्ष राजस्थान साहित्य अकादमी के वेदव्यास जी लिखते हैं कि राजन जी जैसे युवा कवि जैसी और समाज के प्रति ऐसी दीवानगी व बेचैनी आज बहुत कम दिखाई देती है। राजन जी संपादक ,प्रबंधक होने के साथ साथ राजस्थानी भाषा के एक अच्छे रचनाकार भी है।सुपरिचित साहित्यकार घनश्याम मैथिल अमृत ने इनकी रचनाओं के प्रति उपज अमूल्य अभिव्यक्ति दी है।
  इस कृति की प्रथम रचना लाखों संकल्प में कवि ने महाभारत के पात्रों को प्रतीक बनाते हुए कविता का सुन्दर सृजन किया है। मन का युद्ध का चित्रण देखते ही बनता है। वैचारिक शैली में है यह कविता जिसमें दुर्बल मन ही द्रोणाचार्य है। क्षुब्ध ह्रदय ही हस्तिनापुर है। शरशय्या पर पड़ा विवेक ही भीष्म है। मनुष्य की कल्पना ही अभिमन्यु है। कवि की अगली कविता "बन जायेगा इतिहास "में अर्वाचीन काल में बढ़ती दानवता पूर्ण घटनाओं पर पैनी कलम चलाई है। राजन की भावपूर्ण कविता व्यक्ति को सोचने के लिए विवश करती है। उनकी पंक्तियां देखिए-"दानवता के बीज बो मुस्कुरा रहा आदमी 
        ज़िंदगी का गीत कविता में लूट,हत्या, बलात्कार ,स्वार्थपरता ,भाईचारे की कमी, आज की मेहमाननवाजी का सजीव चित्रण किया है। अंतहीन अनुसंधान रचना में राजन लिखते है- जिंदगी एक अनुसंधान, अनवरत अंतहीन यात्रा, अंधकार के बीज में परम्परा ,संस्कृति ,संस्कार का समाज में धीरे धीरे समाप्त हो रहे विषयों पर लिखते हुए, वे कहते है अंधकार के बीज मत बोओ।
       तुम कौन हो ,हाथ में वसंत, नियति, हारा भी नही हूँ मैं, हाशिएं पर वह, अस्तित्व बोध, आशा की लो जलती रहेगी जैसी कविताएँ भी इस काव्य संकलन में कवि की आशावादी सोच को दर्शाती है। स्मृतिओं के पांव में कवि लिखता है मरु भूमि में भी खिलेगा अब आशा और विश्वास का गुलाब। व्यक्ति यदि ज़िंदगी में श्रम करे तो निश्चित रूप से रेगिस्तान भी हरा भरा हो सकता है। 
         अँधेरे के ख़िलाफ़ कविता में जुगनुओं के माध्यम से अज्ञान रूपी तिमिर के खिलाफ लड़ने की सीख देती हैं।'सभ्यता के सफर ' कविता में कवि ने गिरगिट की तरह आदमी को रंग बदलते हुए समाज में देखा है। वे लिखते है 'हर इंसान के चेहरे पर,एक नकली चेहरा है।
          खोजना होगा अमृत कलश इस संग्रह की शीर्षक कविता है इसमें कवि सत्यम शिवम सुंदरम का प्रकाश देश के हर व्यक्ति में देखना चाहता है। भारत की धरती पर सद्भाव व भाईचारे की भावना को संजोए वे लिखते है "खोजना होगा उस अमृत कलश को,भर दे धरा पर जो प्यार की ख़ुशबू"। सद्भाव के दीपक जलाएं,सत्यम शिवम सुंदरम का प्रकाश।
          राजन की कविताओं में आम बोल चाल की भाषा का प्रयोग किया गया है। कविता का उद्देश्य प्रत्येक रचना में स्पष्ट दिखाई देता है। इनकी कविताओं में सामाजिक सरोकारों से जुड़े विषय के साथ साथ संस्कार, संस्कृति,आर्थिक,सामाजिक गतिविधियों एवं सियासत के गलियारों में अंतर्द्वंद्व पर लिखने का अलग ही कार्य किया है। कवि इस कृति के माध्यम से समाज में जीवन मूल्यों की स्थापना करना एवं संवेदनशीलता के साथ सामाजिक विसंगतियों के प्रति चिंता जाहिर करता है। राजन ने अपनी छन्दमुक्त रचनाओं में आम आदमी की बात आम भाषा में ही लिखी है।
        "पीड़ा के दुर्गमपथ "कविता में रिश्तों में पड़ रही दरारों का सच लिखा है। बोन्साई पेड़ों की तरह छोटे हो गए रिश्ते। "खण्ड खण्ड अस्तित्व" कविता में कवि कहता है- लक्ष्य की पगडंडियाँ स्वयं ही मंज़िल छूने लगी। सफल होने के लिए एक लक्ष्य रखकर आगे बढे तो निश्चित रूप से मंज़िल मिलती है। इसी प्रकार इस काव्य संग्रह की अन्य कविताएँ अर्थ युग का चमत्कार, हथेली पर सूरज उगाओ,अंधेरे के खिलाफ़, सूखे फूलों की गंध,बेरोजगार,अर्थ खोते रिश्ते,व्यामोह,जिजीविषा, बचपन की बरसातआ आदि कविताएँ भी प्रेरणास्पद लगी। इन कविताओं से जीवन में नई ऊर्जा,उमंग का संचार होता है। इस कृति की अंतिम कविता "जीवन का चक्रव्यूह" है,इसमें कवि कहता है- 'हर ख़्वाब सूरज बन चमकेगा एक दिन।' यथार्थतः व्यक्ति संकल्प के साथ शिखर पर पहुंच सकता है। 
 इस कृति के  मराठी,पंजाबी,नेपाली,गुजराती भाषा मे अनुदित संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। शीघ्र ही असमिया,राजस्थानी,अंग्रेजी भाषा में भी  इसके संस्करण प्रकाशित होंगें।
             मेरी और से युवा कवि राजकुमार राजन जी को बहुत बहुत बधाई, हार्दिक शुभकामनाएं, साहित्य जगत में यह कृति अपना स्थान बनाएं। खोजना होगा अमृत कलश सामाजिक समस्याओं के समाधान का गुलदस्ता है।

98,पुरोहित कुटी 
श्री राम कॉलोनी
भवानीमंडी

10:22 pm

सुन कान्हा , तू फिर से आना बुलाये संसार रे , कर दे तू , हमारा बेड़ापार रे ....

सुन कान्हा , तू फिर से आना
बुलाये  संसार रे ,
कर दे तू , हमारा  बेड़ापार रे ....

माँ धरती कहती है , कान्हा आजा
हो रहा , अत्याचार रे 
तू आजा और , करजा बेड़ा पार रे ...
सुन कान्हा..........

लड़किया कहती है , कान्हा आजा 
हो रहे  , बलात्कार रे , 
तू आके दिखलाजा चमत्कार रे ।।
सुन कान्हा .........

जनता कहती है , कान्हा आजा
हो रहे , अत्याचार रे 
तू आके दिलाजा इंसाफ रे
सुन कान्हा........

माई बाप कहते है कान्हा आजा
हो रहे हम , लाचार रे
तू आके समझा दे हमारा प्यार रे
सुन कान्हा...........

गरीब कहता है कान्हा आजा
हो रहे  , बेरोजगार रे
तू आके दिलाजा रोजगार  रे
सुन कान्हा ...........

नारी कहती है कान्हा आजा
करो ना , अब विचार रे
तू आके दिलाजा राधासा प्यार रे
सुन कान्हा.............

"जसवंत" कहता है कान्हा आजा
करता  सुदामा , जैसी आस रे
तू आके बना दे मुझे  यार रे
सुन कान्हा ................


जसवंत लाल खटीक
💐रतना का गुड़ा ,देवगढ़

10:05 pm

गाय बचाओ,गाय पालो !! गाय विश्व कि गौ माता है इसका तुम सब ध्यान धरो!

🐄गावो विश्वस्य मातर:
      🐂गाय विश्व कि माता है🐂
    ***********************
  !! गाय बचाओ,गाय पालो !!
-------------------------------------
गाय विश्व कि गौ माता है
इसका तुम सब ध्यान धरो!
हिन्दु आस्थाँ ईससे जुडि है
सुनलो तुम गौ हत्यारो!!

यह ऊपयोगि एक पशु है
वैग्यानिक,आध्यात्मिक भी!
दुध है ईसका,अमृत माना
रोगियो और बच्चो को भी!!

करोडो हिन्दु ईसको पुजते
श्रध्दा से रोटी खिलाते है!
जब भी रोते छोटे बच्चे
गाय का दुध ही पिलाते है!!

गाय हमारि सिधी-साधी
सब-कुछ हमको देति है!
बदले मे बस चारा खाति
कुछ और ना पाति है!!

हिन्दुओ के त्योहारे मे
गोबर से हि लिपते है!
हिन्दु संस्कृति मे लिपना
बडा ही पावन मानते है!!

गोबर से ही खांद बने जो
फसल के काम मे आता है!
स्वस्थ,स्वादिष्ट फसल ऊगाने
ऊपयुक्त माना जाता है!!

गाय के एक चम्मच ही घि से
एक टन आँक्सिजन बनता है!
ईसिलिये होम,यग्य,हवन मे
गाय का घि-ही चलता है!!

दुध,दही,पनिर और मख्खन
सब गाय से ही मिलते है!
जिस के बलपर कई परिवार के
आज भी जिवन चलते है!!

गौ-मुत्र भी एक कारगर
आज औषधि हो गई है!
अच्छि पँकिंग,और दामो मे
मेडिकल मे बिक रही है!!

गाय खुर से,ऊडि धुलिको
जो सिर धारण करता है!
चारो धाम के तिर्थो से वह
पावन स्नान को करता है!!

पिछले खुरो के दर्शन का
भी एक बडा ही महत्व है!
अकाल मृत्यू से बच जाए वो
यह एक अटल ही सत्य है!!

करे गाय कि परिक्रमा जो
हर बडे लाभ को पाता है!
जो भी प्रतिदिन करे परिक्रमा
समझो वह  पुण्यात्मा है!!

हर-घर मे एक गाय को पालो
हर घर पावन हो जाएगा!
गौ-सेवा का पुण्य कमा वह
मरने पर मोक्ष को पाएगा!!
--------------------------------------
     !! गौ-माता कि जय !!
---------------------------------------
 हास्य,व्यंग,ओज,पँरोडि कवि
 एवं गितकार-धनंजय सिते(राही)
    Mob-9893415829
----------------------------------------

विशिष्ट पोस्ट

सूचना :- रचनायें आमंत्रित हैं

प्रिय साहित्यकार मित्रों , आप अपनी रचनाएँ हमारे व्हाट्सएप नंबर 9627193400 पर न भेजकर ईमेल- Aksbadauni@gmail.com पर  भेजें.