हिंदी साहित्य वैभव

EMAIL.- Vikasbhardwaj3400.1234@blogger.com

Breaking

सुमित शर्मा 'पीयूष' लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
सुमित शर्मा 'पीयूष' लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 12 अप्रैल 2020

11:07 am

घर के रिवाज सारे,देखो चूल्हे में पधारे - सुमित शर्मा

घर  के   रिवाज  सारे,
देखो  चूल्हे  में  पधारे,
नई  नई   रीतियों  का,
प्रावधान     हो    रहा।

दूसरों  की फसलों को,
चट   से   डकार   गए।
फिर  भी  चनैल  काहे,
खलिहान     हो   रहा?

जिनको कभी वो फूटी
आँख  न  सुहाए कभी,
किस  लालसा  से फिर,
गुणगान     हो     रहा?

हमको    संदेह    वाला,
कीड़ा  काटने  लगा  है।
बोल   बोल   कर  काहे
सम्मान      हो      रहा?

~पं० सुमित शर्मा 'पीयूष'

11:06 am

मैं उनकी दोहरी नीति - सुमित शर्मा

मैं  उनकी   दोहरी   नीति,
पकड़  बैठा  तो अपराधी।
जबदस्ती  पिता  की  गोद,
चढ़   बैठा   तो  अपराधी।

वो  हक  से  बोलते थे कि,
तुम्हारा  हक  बराबर  का।
मैं अपना हक भी पाने को,
जो लड़ बैठा तो अपराधी।

मैं शाखा जिस तरु का था,
उसे  चंदन  समझता  था।
मेरी  बगिया   भले   छोटी,
इसे  नंदन   समझता   था।

लिपट कर भ्रात की भाँति,
यहाँ  एक  साँप  बैठा  था।
मैं  उसके  दंश  को बेशक,
कोई  चुम्बन  समझता था।

के पहले विषवमन के, फन
जकड़  बैठा  तो  अपराधी।
मैं  अपना  हक  बचाने को,
जो लड़  बैठा तो अपराधी।
✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻

~पं०. सुमित शर्मा 'पीयूष'
अध्यक्ष : विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत, बिहार
संपर्क : 7992272252

11:04 am

आस न रखना - सुमित शर्मा


अब  कोई  अहसास  न रखना,
गलतफहमियां  पास न रखना।
धैर्य    तुम्हें    न    लेने    दूँगा।,
अंदर  गहरी   साँस  न  रखना।

तुम  कृतघ्न  थे,  छुपकर  बैठे,
मानवता   का   ओढ़   लबादा।
हर अवसर  पर,  हरेक हाल में,
तुमने  बस अपना  हित साधा।

तुम  अवसर  पर  काम न आये,
मैं   भी   काम   नहीं   आऊँगा।
तुमने  स्वार्थ   को   साधा,  फिर
मुझसे ईमान की आस न रखना।

तुम  साजिश   के   तीर  पजाते,
हमने    भी    तूणीर    सजाया।
आओ  दो-दो  हाथ   करें   अब,
अपना  पहलू    बहुत   बचाया।

छद्म   रूप   से   वार   करो  तो,
फिर  बिन-बाधा   वृष्टि   करना।
मैं   भी   अपना    दाँव   चलूँगा,
तुम  थोड़ा  अवकाश  न रखना।

✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻

~पं० सुमित शर्मा 'पीयूष'
अध्यक्ष : विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत (बिहार इकाई)
संपर्क : 7992272251

11:03 am

रोई घर की रोटी थी - सुमित शर्मा

सिसक रही डब्बों में भरकर
आई बोटी-बोटी थी।
चीख रहा था घर का चूल्हा,
रोई घर की रोटी थी।

रोती थी चीत्कार संगिनी,
धड़ से पृथक भुजाओं पर।
रोते थे सब बाल-सखा,
हर गलियों पर, चौराहों पर।

रोती थी संतान कि जिसने,
मुख ना ढंग से खोला था।
रोते सभी खिलौने थे,
रोता सुनसान हिंडोला था।

लिए अंजुरी में बेटे का 
मांस, वो मइया रोई थी।
टुकड़ों में, व्याकुल हो ढूंढती
सांस, वो मइया रोई थी।

दिल के सौ उद्गार छिपे थे,
बेबस पिता की आंखों में।
कितने ही चीत्कार दबे थे,
बेबस पिता की आंखों में।

बहना ने कमरे में खुद को,
बंद कर लिया भीतर से।
और दहाड़ें मार-मारकर,
रोने लगी वो भीतर से।

दो ही टुकड़ों में अपना,
अवतार ये कैसा भेज दिया?
राखी के बदले भइया,
उपहार ये कैसा भेज दिया?

तब समाज के रोम-रोम में,
क्रोध अतुल भर आया था।
जब उनका बेटा टुकड़ों में,
बंट कर के घर आया था।

पुरखों की परिपाटी पर,
औ पुलवामा की माटी पर।
घर का सुत कुर्बान हो गया,
काश्मीर की छाती पर।

✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
~पं० सुमित शर्मा 'पीयूष'
अध्यक्ष : विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत (बिहार)
संपर्क : 7992272251

11:02 am

शिव ही ज्ञानी, शिव कल्याणी - सुमित शर्मा

शिव ही ज्ञानी, शिव कल्याणी,
शिव जोगी, शिव औघड़दानी,
शिव संचालक, शिव परिपालक,
शिव ही पालनहार... कर ले शिवरात्रि त्योहार!!

शिव ही सुंदर, शिव ही सनातन,
शिव ही नूतन, शिव ही पुरातन,
शिव ही सृजन हैं, शिव ही पोषण,
शिव ही स्वयं "संहार"... कर ले शिवरात्रि त्योहार!!

शिव ही वाणी, शिव ही वंदन,
शिव करुणा और, शिव ही क्रंदन,
शिव ही अश्रु, शिव ही प्रमोदित,
शिव ही हर्ष अपार... कर ले शिवरात्रि त्योहार!!

शिव ही कामना, शिव ही प्रयोजन,
शिव ही क्षुधा, शिव-नाम ही भोजन,
शिव ही समन्वय, शिव ही समागम,
शिव ही सुखों के सार... कर ले शिवरात्रि त्योहार!!

शिव ही कथा और शिव ही कथानक,
शिव कविता, और शिव रस-कारक,
शिव साहित्य की सृजन-शिला हैं,
शिव संगीत के तार... कर ले शिवरात्रि त्योहार!!

मात-पिता शिव, और सखा शिव,
संकटक्षण में साथ सदाशिव,
शिव ही सरलतम समाधान हैं,
एक शिव ही उद्धार... कर ले शिवरात्रि त्योहार!!

~पं० सुमित शर्मा "पीयूष"
रचना : ७ मार्च २०१६

11:00 am

पाठकों पर छोड़ दो, खुद की - सुमित शर्मा

पाठकों  पर  छोड़  दो, खुद  की
समीक्षा  का  जरा  दायित्व तुम।
स्वयं   का   लिक्खा   हुआ,  गर
स्वयं को ही भा गया, तो दोष है।

रच दिया यौवन,  तो  फिर तन के 
उभारों  की  तनिक  चिंता न कर।
'मैं  ही  मूर्त्तिकार  हूँ',  यह  अहम्
मति  को  खा  गया,  तो  दोष  है।

सृजन से  वात्सल्यता का  बोध हो,
तबतलक इस प्रेम का रसपान कर।
श्रेष्ठता के भान का चिथड़ा चंदोआ,
खुल के सर पे आ गया, तो दोष है।

पाठकों का भी बड़ा दायित्व है, उन
का समीक्षा से ही बस अभिप्राय हो
मन  समीक्षा  से  उतर  कर,   अप-
हरण  पर   आ  गया,   तो  दोष  है।

क्षम्य  है,  जबतक  निहारा जाय
कवियों  की  तरह   सौंदर्य   को।
नज़र   का    टाँका   लुढ़क   कर,
स्तनों  पर  आ  गया  तो  दोष है।

पुत्र    की    तरह     सृजन     को 
पोषता  है,  हर  सृजनकर्त्ता सुनो।
हर   के   मौलिकता    किसी   की
कोई  दूजा  खा  गया  तो  दोष  है।

✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
~पं० सुमित शर्मा 'पीयूष'
अध्यक्ष : विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत (बिहार)
संपर्क : 7992272251

10:56 am

आखिर देखो सीख लिया, हमने ये सबक जमाने से - सुमित शर्मा

आखिर   देखो  सीख  लिया, हमने  ये  सबक   जमाने  से।
सत्य  पराजित  हो सकता है, बार    बार    झुठलाने     से।

यहाँ   खून   के  रिश्ते  मौका देख   दगा    कर    देते    हैं।
ये  कलयुग  है  यहां दुआं भी, जहर  मिलाकर     देते    हैं।

रिश्तों  की  बेबस  टहनी जब, काट  जला   दी   जाती   है।
उसपर  भी  स्वारथ  की खुली हथेली  सेंकी     जाती    है।

झोंकी   जाती    है    मर्यादा, ईर्ष्या    की     चिंगारी     में।
धुआँ-धुआँ  हो  जाते  रिश्ते, 'लिहाज'    की    लाचारी   में।
 
बड़ी  बेरुखी   से   फिर  भी, ये   कह   देती   भन्सारी   है।
"अगिये  के  है  शौक  तपाना, टहनी  दांव   के    यारी   है।"

अजी! दम्भ  के  आसमान पर, इतराते     मंडराते         हैं।
उन्हें   गर्व   है,  धरा   के  लिये, बादल  पूजे     जाते      हैं।

सर्व  विदित  है  धरती  का ही, जल   बादल   को   जाता  है।
इसी का हिस्सा खाकर बादल, जगह   जगह   बरसाता    है।

बड़ी   बेशर्मी   से   फिर   भी, कहती  "कुदरत महतारी"  है।
"बदरे  के   है   शौक  बरसना, धरती   दांव    के    यारी   है।"

~पं० सुमित शर्मा 'पीयूष'

विशिष्ट पोस्ट

सूचना :- रचनायें आमंत्रित हैं

प्रिय साहित्यकार मित्रों , आप अपनी रचनाएँ हमारे व्हाट्सएप नंबर 9627193400 पर न भेजकर ईमेल- Aksbadauni@gmail.com पर  भेजें.