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शनिवार, 4 अप्रैल 2020

4:06 am

मुक्तक :- प्रिये कुछ दूरियाँ रख्खो , कोरोना को मिटाना हैं - बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"

बहर- 1222*4

प्रिये कुछ दूरियाँ रख्खो , कोरोना को मिटाना हैं ।
सबक ये प्यार का पहला , अभी सबको सिखाना हैं ।।
मिटा देगें सभी दूरी , रुको इक्कीस दिन तक बस ।
खिलेंगे फूल पतझड़ में , जमाने को बताना हैं ।।

🌻🌻🌻🌻587🌻🌻🌻
कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा

4:04 am

ग़ज़ल :- सच्चाई जो हरदम गले लगाता है - बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"

बहर- 22, 22, 22, 22, 22, 2

सच्चाई जो हरदम गले लगाता है ।
सच मानो इतिहास वही लिखवाता है ।।

लोग कहेंगे शब्द मिटाया जीवन से ।
मीरा तुलसी सा बनकर दिखलाता है ।।

जिसने मजहब और धर्म सेवा माना ।
वो ही बस रसखान यहाँ बन पाता है ।।

जिसने प्रभु पर अपना सब कुछ छोड़ दिया ।
ईश्वर उसको हरदम राह दिखाता है ।।

जिन्दा जिसने रखा जमीर यहाँ अपना ।
बन्दा वही कबीर यहाँ कहलाता है ।।

मीर तकी गालिब की बस्ती ये भारत ।
इश्क मुहब्बत केवल प्रेम सुनाता है ।।

अपना मन अलमस्त किया जिसने *साथी* ।
रब उसके घर खुद ही मिलने आता है ।।

🌻🌻🌻🌻🌻🌻482🌻
कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा

4:01 am

भारती की शान लिखो , देश का सम्मान लिखो - बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"

मनहरण घनाक्षरी
(8,8,8,7 अंत लघु गुरु)

भारती की शान लिखो , देश का सम्मान लिखो ।
एकता *अखंडता* न , मंद होना चाहिए ।।

नारियों को मान मिले , उन्हे स्वाभिमान मिले ।
पुरुषो के अत्याचार , बंद होना चाहिए ।।

वेद का विधि विधान , सभी करे गुणगान ।
हिन्दू राष्ट्र होने में न , संद होना चाहिए ।।

राम का चरित्र सुनो , कृष्ण उपदेश गुनो ।
जीवन का सार गीता , छंद होना चाहिए ।।

🌻🌻🌻🌻🌻 537🌻🌻
कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा

(संद-दरार, मतभेद)
4:00 am

ग़ज़ल :- दिल के हालात को दिलवर को सुनाया जाये - बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"

बहर- 2122, 1122 , 1122 ,22

दिल के हालात को दिलवर को  सुनाया जाये ।
दिल हुआ खाक तो फिर छाऱ दिखाया जाये ।।

बेवजह हिचकियाँ यूँ ही न भरा करते है ।
याद करके न उन्हे और सताया जाये ।।

खामियां मत गिनना आज बहकते  दिल की ।
तुम भी बहके तो थे हमसे न छुपाया जाये ।।

ये शराब पीता है बस याद  भुलाने के लिऐ ।
इस शराबी को शराबी  न बताया जाये ।।

प्यार इजहार किया चूँम के खत  होठो से ।
जी़ तो करता उन्हे सीने से लगाया जाये ।।

मिन्नतें करते  हुऐ  भूल गये खुद को ही ।
आँशियां कोई नया और बसाया जाये ।।

प्यार पर लिखते गज़ल क्वा़फी ये उलझते है ।
काँफियाँ फिर से नया कोई बनाया जाये ।।

चाँदनी रात में देखा यूँ कई बार  चमकते *साथी* ।
चाँद को चाँद से इक बार मिलाया जाये ।।

🌻🌻🌻🌻🌻508🌻🌻
कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा

3:58 am

ग़ज़ल :- यकींन जिन पर हमें बहुत था , वही तो खंजर चला रहे है - बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"

बहर- 12122, 12122, 12122,12122

यकींन जिन पर हमें बहुत था ,
         वही तो खंजर चला रहे है ।
यकींन जिन पर कभी नही था ,
       वही तो मरहम लगा रहे है ।।

हमें पता ये है उनकी फितरत ,
     छुपी नही है जनाब बिलकुल ।
गले मिले जब थी ईद उस दिन ,
       नज़र ईद पर ही आ रहे है ।।

बहुत जताते थे प्यार हमसे ,
    तभी तुम्हे तो ये दिल दिया था ।
जिन्हे समझते थे चाँद अपना ,
       वही अमावस दिखा रहे है ।।

है प्यार करना खुदा का सजदा,
           इसे इबादत तुम्ही बताते ।
मिजाज किसने तुम्हारा बदला ,
     गुनाह अब क्यो बता रहे हो ।।

नही समझता है प्यार मजहब ,
       नही मानता ये कोई सरहद ।
इन्ही अदाओ पे मर मिटे हम,
       तभी से सपने सजा रहे है ।।

हमें समझते तुम्ही तो *साथी*,
           ये रंग हुश्ने सभी तुम्हारा ।
नही समझते अगर हमें अब ,
    अभी जहां से लो जा रहे है ।। 

🌻🌻🌻🌻475🌻🌻🌻
कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा

3:55 am

अजब फितरत ये दुनियाँ की , कलम से हम सुनाते है - बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"

बहर- 1222*4

अजब फितरत ये दुनियाँ की ,
              कलम से हम सुनाते है ।
मिलाते जिसको मिट्टी में ,
               उसे काँधे बिठाते है ।।

 जवानी की यहाँ कीमत ,
            बुढ़ापा आंकलन करता ।
पिता की परवरिश बच्चे ,
                यहाँ खर्चा बताते है ।।

है गैरत मंद ये इन्सां ,
           हकीकत मानता ये कब  ।   
निकल जाती है जब बारिश ,
              तो छाते जंग खाते है ।।

बुलंदी छू रहे उनको ,
                   यही पैगाम दे देना  ।
जड़े मत खोदना उनकी ,
                 तुम्हे आगे बढ़ाते है ।।

रखो विश्वास बस खुद पर ,
              कभी मायूस मत होना ।
हमारे जो करीबी है ,
              वही हमको गिराते है ।।

समझते जिंदगी को जो ,
               यहाँ किरदार के जैसा ।
खुशी उनको मिले या गम ,
               सदा ही मुस्कराते है ।।

रखे इन्सानियत दिल में ,
               इरादे नेक हो जिसके ।
वही *साथी* मुकद्दर का
           सिकंदर बन ही जाते है ।।

🌻🌻🌻🌻🌻489🌻🌻
कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा
मो. 9981013061

3:53 am

ग़ज़ल :- परहित में सब सुख मिलता है - बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"

बहर- 22, 22, 22, 22

परहित  में सब  सुख मिलता है ।
गुणियो का अनुभव कहता  है ।।

पी  लेता    जो   जह्र   द्वेष का  ।
शिव   शंभू   जैसा   बनता   है ।।

हीरा    बनता     है  पत्थर   वो  ।
सदियों  तक जो दुख सहता है ।।

सदियों   तक   वो  याद  रहेगा  ।
संत  कबीरा   जो  लिखता  है ।।

चमक  अटल जी की सब देखो ।
*कुंदन*  भी फीका लगता है  ।।

तुलसी   गुरुनानक   वाणी   से ।
गंगा    में   अमृत    बहता  है  ।।

गीता    और  कुरान  सुनो सब  ।
मेल  मिलाप   तभी  बढ़ता  है ।।

जन्म   मिले  भारत  में   हरदम ।
*साथी* ये  हसरत   रखता है ।।

🌻🌻🌻🌻🌻547🌻🌻
कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा

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