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रविवार, 12 अप्रैल 2020

10:38 am

जिनपर जख्म दिया अपनों ने, मैं वो हिस्से भूल रहा हूँ - सुमित शर्मा

जिनपर जख्म दिया अपनों ने, मैं वो हिस्से भूल रहा हूँ।
जिनसे यदा-कदा विचलित था, मैं वो किस्से भूल रहा हूँ।।
भूल रहा हूँ उन लोगों को, जिसने अवसर खूब भुनाया।
जिन्हें रास मैं न आ पाया, मैं वो रिश्ते भूल रहा हूँ।।

भूल रहा हूँ उन यादों को, जिनके घाव नहीं भर पाते।
शनै:-शनैः सब भूल रहा हूँ, सने-स्वार्थ-में रिश्ते-नाते।।
चमक रहे थे सिर पर आकर, उनकी भी सच्चाई देखी।
गोधुल में सूरज को मद्धम, देख रहा हूँ मैं उतराते।।

प्रतिदिवस, प्रतिपहर चुकाई, सारी किस्तें भूल रहा हूँ।
जिन्हें रास मैं ना आ पाया, मैं वो रिश्ते भूल रहा हूँ।।

उन बंदों को भूल रहा हूँ, जिसने खंजर पीठ-पजाया।
मेरे नाम का इतर लगाकर, जिसने अपना हित चमकाया।।
जिसने बीज द्वेष के बो-कर, नैतिकता का दम्भ भरा है।
खाद खिन्नता के दे-देकर, अजी क्लेश का पौध उगाया।।

छल के सभी छुहाड़े और, प्रपंची-पिस्ते भूल रहा हूँ।
जिन्हें रास मैं न आ पाया, मैं वो रिश्ते भूल रहा हूँ।।

जिनसे मेरा हित न साधा, मैं वो बातें भूल रहा हूँ।
जिसने सुबह रोक रखी थी, मैं वो रातें भूल रहा हूँ।।
भूल रहा हूँ उस सर्दी को, जिसमें ठिठुर रही थी साँसें।
सब कीचड़-कीचड़ कर डाला, वो बरसातें भूल रहा हूँ।।

कल की बीती सारी बातें, आज, अभी-से भूल रहा हूँ।
जिन्हें रास मैं न आ पाया, मैं वो रिश्ते भूल रहा हूँ।।

✍✍✍✍✍✍✍
~पं० सुमित शर्मा 'पीयूष'
अध्यक्ष : विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत (बिहार)
संपर्क : 7992272251
10:36 am

हाँ माना, मैंने ना कर दी, मुझको इस निर्णय का हक था - सुमित शर्मा

हाँ माना, मैंने ना कर दी, मुझको इस निर्णय का हक था।
लेकिन तुम्हारा मुझ पर यूँ, इस तरह भड़कना नाहक था।

तुम एक तरफ़ा थे डूब गए, मेरे तन की सुंदरता पर।
इस चेहरे के गोरेपन पर, इस देह की स्निग्ध सुघड़ता पर।

वह रोज मेरा पीछा करना, उस कॉलेज के दरवाजे तक।
बेढंगा सा लगता था सब, तुम जो समझो उसको बेशक।

मैं नजर झुकाकर चलती थी, उसे प्यार समझते थे न तुम?
मेरे दिल पर एक अपना ही, अधिकार समझते थे न तुम?

अपने मित्रों को दिखला कर, तुम मोल लगाते थे मेरा।
वह माल मेरी है, यह कहकर, सम्मान बढ़ाते थे मेरा।

एक सीमा होगी, यह विचार, चुपचाप मैं ये सब सहती थी।
हर-रोज पीड़ित बन जाती थी,पर किसी से कुछ न कहती थी।

उस दिन तो तुमने हद कर दी, जब हाथ सड़क पर पकड़ लिया।
मेरा झटका दे देने पर, तुमने  मुझको  ही  जकड़  लिया।

तुमसे बचने का पास मेरे, न दूजा कोई सहारा था।
तब ना कहकर मजबूरी में ही तुम्हें तमाचा मारा था।

मैं मान रही थी तब तुमको, तो अक्ल जरा आई होगी।
मैं क्षमा माँग लूँगी फिर से, नुकसान की भरपाई होगी।

पर मद में चूर थे मर्द बड़े, तुम हार भला कैसे जाते?
अपना पौरुष दिखलाये बिना, बिसार भला कैसे जाते।

मैं ही तो बड़ी अभागी थी, अपनी किस्मत से छली गई।
जो तुम्हें समझ कर शर्मिंदा, मैं क्षमा माँगने चली गई।

तब वक्ष-वीथिका धरकर तुमने, मुझको परे धकेल दिया।
कुछ कहने से पहले तुमने, मुँह पर तेजाब उड़ेल दिया।

मैं लहर गई, हाँ लहर गई, औ कतरा-कतरा कतर गई।
मैं छुपा रही थी चेहरे को, चमड़ी हाथों में उतर गई।

मैं समझ सकी षड्यंत्र नहीं, अग्नि में मेरा अतीत गया।
मैं भौंचक सी जल रही थी बस, पुरुषार्थ तुम्हारा जीत गया।

अब देखो विकृत शक्ल लिए, मैं दर-दर ठोकर खाती हूँ।
जब करूँ सामना दर्पण का, मैं खुद से ही डर जाती हूँ।

जो पा न सके तो जला दिया, यह प्यार तुम्हारा कैसा था?
यह शक्ल मेरी, शरीर मेरा, अधिकार तुम्हारा कैसा था?

तुमने तो हमको जीते-जी, एक लाश बना कर छोड़ दिया।
हर पल ही घुटते रहने का, अहसास बना कर छोड़ दिया।

सब गई नीलिमा आँखों की, अधरों की स्निग्धता बिसर गई।
भौंहें टेढ़ी, नथुना टेढ़ा, चेहरे की चमड़ी सिकुड़ गई।

इस जलन की पीड़ा क्या लिक्खूँ? हर रोज ही तिल-तिल मरती हूँ।
शक्ल की अपनी देख विकृति, हर एक शाम हहरती हूँ।

मैं नहीं अकेली धरती पर, लाखों ने इसको झेला है।
सबपर बस एक ही मकसद से, नर ने तेजाब उड़ेला है।

है प्रेम उसे बस काया से, मिथ्या का प्यार जताता है।
जबरन अधिकार जताता है, फिर हमें शिकार बनाता है।

नर जो चाहे कर सकता है, उसके पौरुष का तोल नहीं।
नारी उपभोग की वस्तु है, उसकी पसंद का मोल नहीं।

अब सब्र की सीमा टूट गई, सब टूट गया है धैर्य मेरा।
तुमने किस हक से छीन लिया, प्रकृति मेरी, सौंदर्य मेरा?

गर अभी तुम्हें मैं हाँ कर दूँ! क्या रज में रस कर सकते हो?
इस बिगड़े शक्ल की आकृति, क्या तुम वापस कर सकते हो?

पर नहीं! तुम्हें तो बस जबरन, अधिकार जताना आता है।
औ पा न सके जबरदस्ती, तो उसे मिटाना आता है।

ईश्वर न करे, कि अनुभव हो, एक दिन ऐसी ही जलन तुम्हें।
तेजाब से जली दिखलाए, जब शक्ल तुम्हारी बहन तुम्हें।

🙏🌸🙏🌸🙏🌸🙏🌸🙏
✍✍✍✍✍✍✍
रचनाकार : पं० सुमित शर्मा 'पीयूष'
संपर्क : 7992272251
अध्यक्ष : ज.सा.सा.समिति (बिहार)
10:16 am

नज़्म:- शादी! हां शादीलोग कहते बर्बादी।पर लड़की बन जातीलड़के के दिल की शहज़ादी - खुशबू खुशी

शादी! हां शादी
लोग कहते बर्बादी।
पर लड़की बन जाती
लड़के के दिल की शहज़ादी।
अनछुए अहसास
दिल के पास
गहराते हैं, पास बुलाते हैं
अपने शौहर की
मिलन कि आस
ऐसा क्यों?
यह होता है विश्वास
उनपर जिनके संग
हमें रहना ज़िन्दगी भर
बहुत सुंदर रिश्ता है
बस लगे न किसी की नज़र
जरूरत है भावनाएं समझें
मत रखें ज्यादा आशाएं
फिर देखो इतना अथाह प्रेम
जो तुम्हें कभी न मिला हो
हाँ मैं खुश हूँ तुम्हें पाकर
मेरी हर ख्वाइश पर 
आपका सोचना, 
उसे पूरी करने की इच्छा
मेरी गलत बात पर मुझे डांटना, मनाना, समझाना
मेरा साथ देना,
मेरे साथ घुल मिल जाना
हाँ है अलग अहसास
जो शायद खुद में ही 
बहुत सुंदर है।।

खूशबू खुशी 

रविवार, 5 अप्रैल 2020

11:42 pm

नज़्म :- ये माना कि दुनिया ने माना नही - सना

यह सत्य है कि भारत आजाद हो चुका है।बदलते समय के साथ बहुत से परिवर्तन हुए लेकिन पुरातन रीति रिवाज आज भी हमारे देश मे व्याप्त हैं । नारी जो हमारे जीवन मे सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। किंतु आज भी कही कही नारी को बराबर का सम्मान नहीं दिया जाता है। कन्या भ्रूण हत्या भी एक ऐसा कारण है जो इंगित करता है नारी की ओर। 

आइये एक माँ ह्रदय से उपजे भाव को ह्रदय से समझने की कोशिश करें।

ये माना कि दुनिया ने माना नही
तभी मां भी कहती है आना  नही
ये रिश्ते ये नाते ये रश्मों की बातें
हकीकत है क्या तुमने जाना  नही।

 है बेटों की चाहत दिलों में यहाँ
नही प्यार तुझको मिलेगा यहाँ
मुहब्बत की हसरत जगांना नही
हकीकत है क्या तुमने जाना नही।

तुझे तेरे हक न मिलेंगे कभी
बराबर में चलने न देंगे कभी
इन आँखों मे सपने सजाना नही
हकीकत है क्या तुमने जाना नही।

दौलत का लालच यहाँ है सभी को
लेना है सबको न देना किसी को
पिता को तेरे सर झुकाना नही
हकीकत है क्या तुमने जाना नही।

बन कर सवँर कर न चल पाएगी
गहन रातोँ में कैसे निकल पाएगी
दाग अस्मत पे तेरी लगाना नही
हकीकत है क्या तुमने जाना नही।

मैं माँ हूँ मुझे याद सब है जबानी
गुजरे हुए दौर की मैं निशानी
झूठ अब कोई तुझसे छुपाना नही
हकीकत है क्या तुमने जाना नही।

सना मेहनाज़
हरदोई
5:39 pm

नज़्म - लम्हा लम्हा तुम्हें याद आएगी मेरी - आदित्य तोमर

एक नज़्म दोस्तों के लिए -
*
लम्हा लम्हा तुम्हें याद आएगी मेरी
लम्हा लम्हा तुम्हें याद करता रहूँगा
इन पलों की तुम्हें याद आती रहेगी
हर इक तस्वीर तुमको रुलाती रहेगी

कौन तुमको अब इतना सतायेगा बोलो
रूठ जाओगे तुम तो मनाएगा बोलो 
ये हसीं पल न ऐसी कोई बात होगी
बस ख्यालों में तुमसे मुलाकात होगी

बस मैं तन्हा तुम्हें याद करता रहूँगा
डूबता दिल में अपने उभरता रहूँगा
जब अंधेरे गमों के डराने लगेंगे
हौसले भी मेरे डगमगाने लगेंगे

तब मुझे इक किनारे की दरकार होगी
अपनेपन की सहारे की दरकार होगी
तीरगी में उजाले करोगे न बोलो
डूबते दोस्त को हाथ दोगे न बोलो

दोस्त बोलो मुझे तुम भुला तो न दोगे
अपनी यादों से मुझको मिटा तो न दोगे ?
अपनी यादों से मुझको मिटा तो न दोगे ??
************ ********* *********
इक खिलौना जो अपनी लड़ाई में टूटा
एक चेहरा जो कागज़ पे आधा है छूटा
फिर तुम्हारी छुअन को तरसते हैं देखो,
मेरी आँखों से आँसू बरसते हैं देखो,

दिन वे अन्दर ही अन्दर दबी आशिक़ी के
दिन रजिस्टर के पीछे लिखी शायरी के
दिन बेफिकरी के, यारी के, आवारगी के
दिन सभी से छिपाकर रखी डायरी के

इन दिनों भी कभी याद आते तो होंगे ?
बेवज़ह ही हँसाते, रुलाते तो होंगे ?
फूल पर बैठी तितली लुभाती तो होगी ?
याद मेरी भी तुमको दिलाती तो होगी ?

अपने कॉलेज की वे खिड़कियाँ याद हैं न ?
अपने कॉलेज की वे सीढ़ियाँ याद हैं न ?
अपनी यादों की किरचन अभी भी वहाँ है.
अपनी बातों की तड़पन अभी भी वहाँ है.

ये नज़ारे जो तुमको बुलाते बहुत हैं.
बिन तुम्हारे ये मुझको रुलाते बहुत हैं.
बिन तुम्हारे ये मुझको रुलाते बहुत हैं. ❤️❤️
-
आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ
5:11 pm

नज़्म - तेरी याद आ रही है हर शब जगा रही है - सना



तेरी याद आ रही है हर शब जगा रही है
मेरी चाहतें तुझे अब पल-पल बुला रही हैं

तुझे प्यार करना चाहूँ मेरे यार जुस्तजू है
तुझे दिल में मैं बसा लूँ मेरे दिल की आरजू है
गम ए हिज्र की ये रातें मुझको सता रही है।

मुझे छोड़कर न जाओ तुम्ही मेरे हमनवा हो
रहें साथ उम्र भर हम न कभी भी हम जुदा हों
मेरे होठों पे तबस्सुम ये खुशी दिला रही है।

तुझे याद आएगी ये मेरे साथ गुजरी रातें
मेरी वालिहाना चाहत ये मुहब्बतों की बातें
कहीं दूर हम चलें पर  रश्म ए जुदा रही हैं।

सना 
हरदोइ

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

12:03 am

नज़्म :- मुझसे बिछड़े हो कैसा लगता है - सत्यदेव श्रीवास्तव

मुझसे बिछड़े हो कैसा लगता है
याद आओ हमको अच्छा लगता है

सारी दुनिया से लड़ सकता हूँ मैं
तेरे बिन सब कुछ सूना लगता है

तुम भी वादे बहुत किये थे ना
सब देखो अब हमको सपना लगता है

जा रहा है वो छोड़कर तो जाये ना
मेरा रिश्ते मे कुछ नहीं लगता है

जिसकी खुशबू धड़कन से भी आये
वो रिश्ता मुझको सच्चा लगता है

हर किसी को मौका नही देता मै
अब तो तन्हा रहना बेहतर लगता है

       © सत्यदेव श्रीवास्तव

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