हिंदी साहित्य वैभव

EMAIL.- Vikasbhardwaj3400.1234@blogger.com

Breaking

सोमवार, 24 अप्रैल 2017

6:33 am

हाइकू- पानी

जल जीवन
यूँ व्यर्थ न बहाओं
मूल आधार

जल दूषित
रोग फैलते जब
सचेत रहो

गगन मेघा
बूँद बन बरसे
सावन भादों

झरना बन
नदी में जल बहें
पहाडों बीच

बारिश आयी
तिरक्षी तेज बूदें
बहार छाई

विकास भारद्वाज "सुदीप"
9627193400              24/04/2017

रविवार, 23 अप्रैल 2017

12:21 am

लघुकथा:- नारायणी

एक महिला थी उसका नाम नारायणी अर्थात् लक्ष्मी I उसके तीन बेटे और बेटियाँ थी सभी का विवाह हो चुका था और सभी बेटे अपना नया मकान बनाकर रहने लगे जिनमें उसका सबसे बडा बेटा उमेश केन्द्रीय कर्मचारी था । उमेश के दो बेटे थे वो अमेरिका मे विवाह कर वही के निवासी हो गये और उमेश से छोटा भाई अरविन्द प्राथमिक विधालय में शिक्षक था और नारायणी का सबसे छोटा बेटा अपना विजनिश  करता था I
नारायणी अब वक्त के साथ बूढी होने लगी बुढापा एक ऐसा कडवा सच है जिसे हर
  प्राणी को आना है समय बीतता गया अब वो बूढी माँ कमजोर और चलने फिरने में असमर्थ होने लगी I उसके बेटे उसको अपने पास रखने से कतराते थे आज के जमाने में ऐसा लगता है कि पैसे की अमीरी आने पर लोग अपने माँ बाप को ही भूला देते है उनको पैसो के अलावा कुछ नही दिखता I
लेकिन उस बुढी माँ को घर से निकाल दिया आज वही लोग समाज में खुद की शक्सयित को बडा दिखाने के लिए रिश्तों को तार तार कर देते है ऐसा कुछ नारायणी के साथ हुआ आज वो इधर-उधर रहकर बुढापा काट रही है  उस बुढी महिला की स्मरण शक्ति भी उम्र के साथ कम होने लगी उसके बेटे आँखों का चश्मा तक नही बनबा सके वो अपने बेटों और बहुओं के ताने और रोकटोक से परेशान हो गयी । उसके बेटे ही नही ना जाने कितने लोगों के किस्से जमाने में देखनो को आज भी मिल रहे है ।
माँ क्या होती है समझ जाओगे शायद तुम भी किसी रात को सबके खाने के बाद एक दिन रसोई में अपना खाना खुद ढूढों माँ तो वो भगवान है जिसे बुखार भी हो जाये और उसके बेटे को पता चले तो पता है क्या कहेगी कि बेटा खाना बना रही थी ना इसलिए गर्म हूँ I
गरीबी थी जो सबको एक आंचल में सुला देती थी
,
अब अमीरी आ गई तो सबने अलग मक़ान बना लिए I
लोग न जाने क्यूँ अपने हिन्दुस्तान की संस्कृति और सभ्यता को भूलते जा रहे है I


मेरी यह कहानी पूर्णतः मौलिक
, अप्रकाशित एंव अप्रसारित है।
©विकास भारद्वाज "सुदीप"
कस्बा-  मेन चौराहा खितौरा
बदायूँ-
243633  (प्र○)
दूरभाषा- +91 9627193400
ईमेल- vikasbhardwaj3400@gmail.com
ब्लॉग/साइट- www.vbsudeep.blogspot.in

शनिवार, 22 अप्रैल 2017

5:28 am

◆ जलहरण-घनाक्षरी ◆ विश्व पृथ्वी दिवस

पेडों को खूब लगाओ
भूमि से सोना उगाओ
पर्यावरण स्वच्छ हो
बीमारी से मुफ्त तन ।
                              नदी में दवा न छोडों
                              पेडों का दोहन रोकों
                              धरा पर फूल खिलें
                              शुद्ध हो मानव मन ।।
मलबा डालों खेतों में
कूडा न फेंक नालों में
दूषित जल से रोग
जल सदुपयोग कर ।
                              जीवन है जीना होगा
                              वन को बचाना होगा
                              जागरुक बन अब
                              प्रकृति की रक्षा कर ।।

विकास भारद्वाज "सुदीप"
9627193400               21/04/2017

मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

1:19 am

गंगा (सफाई)ऐक्शन प्लान/ठोस एवं जैव औषधीय कचरा प्रबंधन विधा- निबन्ध

विधा- निबन्ध

गंगा नदी भारत की प्राचीन नदियों में से एक है और इसका अपना एक इतिहास है ।
यह नदी सब भारतीयों की एक आस्था का भी प्रतीक माना जाता है इससे हमारी पहचान है
इसलिए यह सिर्फ एक नदी नहीं है।
यह नदी हिमालय की गोद से निकल कर मैदानी इलाको में आती है।

इन नदियों का हमारे जीवन में बहुत महत्व है क्योंकि इन नदियों से ही भूमि उपजाऊ बनती है। इसके इलावा इन नदियों के पानी से हमारी दिनचर्या भी पूरी होती है जैसे की पीने के लिए,नहाने के लिए, पेड़-पौधों के लिए,जीव-जंतुओं के लिए आदि ।

अब ये नदी प्रदूषित हो गई है । आज के समय में गंगा को मैली करने में हम सब का बहुत योगदान है। बच्चे के मुंडन से ले के की राख को इस गंगा नदी में बहाया जाता है।
तथा घर में होने वाले धार्मिक कार्यो की चीजे गंगा माँ की गोद में डाल देते है  इसके इलावा शहर का सारा गंद और कारखानो से निकलने वाले जहरीले पदार्थ और रसायन भी इस नदी में बहा दिए जाते है। अब इस गंगा नदी का पानी पिने लायक भी नहीं रहा है ।

सरकार और कई संस्थाये इसे साफ़ करने के कई उपाय निकाल रही है और तो और हर साल इसे साफ़ करने के लिए करोडों पैसे खर्च किये जाते है परन्तु इसकी स्थिति में कोई सुधार नहीं दिख रहा और अगर इस नदी का यही हाल रहा तो एक दिन ये नदी का पानी पूरी तरह से प्रदूषित हो जयेग।
हम सबको प्रण लेना चाहिए की हम इसे साफ़ रखने में अपना पूरा योगदान दे।

©विकास भारद्वाज "सुदीप"
9627193400          10/04/2017

सोमवार, 10 अप्रैल 2017

6:37 am

गंगा स्वच्छता/नमामि गंगे

विधा-तुकांत
नदियों का नहीं कोई रखवारा
हरा भरा स्वच्छ हो जग सारा
पापियों का हो उद्‌धार जिससे
पवित्र निर्मल बहती गंगा धारा

जन-जन में जब आस जागाएगा,
फिर यूँ गंदगी न कोई फैलाएगा।
जब मुर्दाघाट जब अलग बनेगा
तब कोई लाश नहीं दफनाएगा।

मति मारी छोडते कचरा सारा
नाले में फैक्ट्री का मलबा सारा
कीटाणुओं का संक्रमण फैलता
पवित्र निर्मल बहती गंगा धारा
©विकास भारद्वाज "सुदीप"
9627193400           10/04/2017

गुरुवार, 6 अप्रैल 2017

12:54 am

गजल:- इरादा जो किया उसको मुझे अब दिखाना है

गजल क्र○ 3

बह्र- 1222×4
इरादा जो किया उसको मुझे अब दिखाना है
मुहब्बत में मिला गम है वफा यूँही निभाना है
ढहाये जो सितम उसने अभी तक इस मुहब्बत में              
जिगर घायल हुआ मलहम उसे ही अब लगाना है
अगर उसको तर्के-उल्फत फ़साना था मुहब्बत में
जुदा होके सहर संगदिल-फरेबी को भुलाना है
बिछड जाओ बहारेँ भी कही होगी मुहब्बत में
उसी से प्यार है हमको गले उसको लगाना है ।
वो खुद ही चाँद है श्रृंगार की उसको जरूरत क्या
मुझे तो अब तुम्हारे खत कलम-ए-खूं लिखाना है
यही सोच ले डूबेगी उसे खुद पे गुमाँ रहा
मुझे तो अब सनम तन्हा सोच अश्कों को बहाना है
चलो उससे नया दर्द मिला हमदम खुशी से अब,,
नहीं कल हो ज़िंदा हमको खुदा के पास जाना हैं,,
©विकास भारद्वाज "सुदीप"

शनिवार, 1 अप्रैल 2017

6:12 am

गजल:- मुहब्बत लुटाने के दिन आ रहे है

गजल क्र○ 2

मुहब्बत लुटाने के दिन आ रहे है
नजर को चुराने के दिन आ रहे है
तुम्हारी निगाहें मुण्डेरे पे अटकीं
कबूतर उडाने के दिन आ रहे है
तुम्हारा बदन पैरहन ये गुलाबी
अदाऐं दिखाने के दिन आ रहे है
खतों से खुलासा हुआ है तुम्हारे
कि डोली सजाने के दिन आ रहे है
सितारें जमीं पे सुदीप ले उतारो
उन्हें आजमाने के दिन आ रहे है
©विकास भारद्वाज "सुदीप"
9627193400           28 मार्च 2017
5:56 am

मुक्तक- जीवन एक चुनौती

जीवन भर लक्ष्य चुनौती रहता है
जीवन दुखमय गागर मे रहता है
मंजिल मिल जाये संघर्ष करने से
जीवन सुखमय सागर में बहता है

©विकास भारद्वाज "सुदीप"
  9627193400           1 मार्च 2017

विशिष्ट पोस्ट

सूचना :- रचनायें आमंत्रित हैं

प्रिय साहित्यकार मित्रों , आप अपनी रचनाएँ हमारे व्हाट्सएप नंबर 9627193400 पर न भेजकर ईमेल- Aksbadauni@gmail.com पर  भेजें.