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मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

सोमवार, 13 अप्रैल 2020

11:04 am

मुक्तक :- गुलाबी जाम से ज्यादा , गुलाबी होठ कर दूंगा - पारस गुप्ता


गुलाबी जाम से ज्यादा , गुलाबी होठ कर दूंगा.....
मुझे  ना  चूमना  देखो ,  तुम्हें  बेहोश कर दूंगा.....

नशा कितना है मुझमें प्यार का देखो नयन में तुम....
तुम्हें भी प्यार में अपने, सनम मदहोश कर दूंगा......

#पारस_गुप्ता

11:01 am

मुक्तक :- ज़िन्दगी का मजा नहीं खोना है....पारस गुप्ता

मुक्तक

ज़िन्दगी का मजा नहीं खोना है....
दिल्लगी इक सजा नहीं रोना है....

कैसा  है  ये  नशा मोहब्बत का...
आपसे  अब जुदा नहीं होना है....

#पारस_शायर

10:58 am

मुक्तक :- नहीं यारों मेरी आदत किसी से इश्क करने की - पारस शायर दिल से


नहीं  यारों  मेरी  आदत  किसी  से  इश्क  करने  की.....
मगर इस दिल की हैं चाहत किसी से इश्क करने की.....
यहां   मैं   जी  रहा  कैसे  मेरे  दिल  से  कोई  पूछे...
भला  कैसी  है  ये  आफ़त  किसी से इश्क करने की.....

पारस गुप्ता 

10:55 am

मुक्तक :- आओ कभी इक बार तो, मिलने सजन सजनी से भी - पारस गुप्ता

आओ कभी इक बार तो, मिलने सजन सजनी से भी......
कब तक तकेगी राह को, रोते नयन रजनी में भी......
(रजनी=रात)

कैसी विरह की वेदना, कैसा तेरा ये प्यार है.....
कैसे पोछूं अपने नैना, छिपते नहीं ढकनी से भी......

पारस गुप्ता 

रविवार, 5 अप्रैल 2020

11:23 am

आदित्य तोमर की कुछ मुक्तकें

मुक्तक

खुशियाँ तो ज़िन्दगी में न जाने कहाँ रहीं.
बे-घर ही मेरी हसरतों की तितलियाँ रहीं.
रहने को तुम ही थे जो यहाँ कुछ बरस रहे,
आँखों में बाक़ी उम्र महज़ सुर्ख़ियाँ रहीं.
-
आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ.

जीवन का वह दौर सुनहरा फिर देखें.
नदियों के रस्ते से सहरा फिर देखें.
आँखों की ख़्वाहिश है बुझने से पहले,
एक बार वह दिलकश चेहरा फिर देखें.
-
आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ.

बेख़याली में भी इतना होश का पहरा रहा।
मुन्तज़िर आँसू पलक पर देर तक ठहरा रहा.
इक विवादित भूमि बनकर रह गया मेरा ये दिल,
नाम तो उसके हुआ कब्ज़ा मगर तेरा रहा।
-
आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ.

वक़्त से नज़रें चुराने का न सर इल्ज़ाम लेना.
दिनकरो ! थकने न रुकने का अभी से नाम लेना.
सीढ़ियों पर लड़खड़ाकर गिर रही है फिर सियासत,
फ़र्ज़ यह साहित्य का है, दौड़कर तुम थाम लेना.
आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ.

ढेर दौलत के भले हम न कमाएँ भगवन.
आपकी भक्ति के झरने में नहाएँ भगवन.
प्रार्थना है यही जीवन में हमारे कारण,
आँख में आँसू किसी के नहीं आएँ भगवन.
-
आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ.

शनिवार, 4 अप्रैल 2020

4:06 am

मुक्तक :- प्रिये कुछ दूरियाँ रख्खो , कोरोना को मिटाना हैं - बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"

बहर- 1222*4

प्रिये कुछ दूरियाँ रख्खो , कोरोना को मिटाना हैं ।
सबक ये प्यार का पहला , अभी सबको सिखाना हैं ।।
मिटा देगें सभी दूरी , रुको इक्कीस दिन तक बस ।
खिलेंगे फूल पतझड़ में , जमाने को बताना हैं ।।

🌻🌻🌻🌻587🌻🌻🌻
कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा

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