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बुधवार, 8 अप्रैल 2020

3:05 am

ग़ज़ल :- मेरे दिल को यही तो खलता है - डा नसीमा निशा

मेरे दिल को यही तो खलता है ,
मेरा अपना ही मुझको छलता है l

वक़्त गुज़रा हुआ न आएगा ,
किसलिए अब वो हाथ मलता है l

ये ज़माना तो कामयाबी पर ,
हो किसी की भी पर ये जलता है l

क्या हुआ ,क्या नहीं मेरे घर में ,
ये पता दूसरों से चलता है l

तीरगी मुझ से रौशनी मांगे ,
मुझ में सूरज नया निकलता है l

धोखा अपनों से खा रही है 'निशा ',
इक नया दर्द मुझमें पलता है l

डा.नसीमा निशा

3:02 am

ग़ज़ल :- तेरा ख्याल मुझे बेक़रार करता है - डा नसीमा निशा

तेरा ख्याल मुझे बेक़रार करता है ,
तुझे ही देखूं ,ये दिल बार -बार  करता है l

मेरा भी नाम लिखा जाये खुशनसीबो में ,
मेरा भी कोई कहीं इंतज़ार करता है l

ज़मीर बेचके ज़िंदा कहाँ रहा है कोई ,
जहाँ में झूठ का क्यों कार बार करता है l

तू अपने दिल की तमन्ना को रोक ले दिल में ,
मेरे लिए क्यों खुदी को बीमार करता है l

किसी की याद में उठते हुए समंदर को ,
हमारा दर्द 'निशा 'रोज़ पार करता है l

डा.नसीमा निशा

3:01 am

ग़ज़ल :- मोहताज़ दाने दाने को होता रहा किसान - डा नसीमा निशा

मोहताज़ दाने दाने को होता रहा किसान ,
बंज़र ज़मीं में ख्वाब को बोता रहा किसान l

सरकार हो किसी की भी धोखा ही मिला है ,
लाचारियों को अपनी बस ढ़ोता रहा किसान l

सूखा पड़ा कभी तो ,कभी बाढ़ आगयी  ,
बर्बाद इसतरह से भी होता रहा किसान l

बेटी हुई जवान तो तो सर उसका झुक गया ,
बेबस हुआ गरीबी में रोता रहा किसान l

कर्ज़ा हुआ तो मौत की आगोश में गया ,
अपनी ही लाश कांधे पे ढ़ोता रहा किसान l

अच्छी फसल हुई तो,मिले दाम कम उसे,
नीलाम इस तरह से भी होता रहा किसान l

कहते हैं अन्नदाता जिसे हमसभी 'निशा ',
सबको खिलाता भूख में सोता रहा किसान l

डा.नसीमा निशा

2:59 am

ग़ज़ल :- हम बुरे हैं ,तो ये बुरा है क्या - डा नसीमा निशा

हम बुरे हैं ,तो ये बुरा है क्या ?
कोई भी दूध का धुला है क्या ?

मुझको समझें ये तेरे बस में कहाँ ,
ये बता खुदको जानता है क्या ?

ज़हर पीना है , रोज जीना है ,
दूसरा और रास्ता है क्या ?

लड़खड़ा जाते हैं क़दम अकसर ,
इश्क जैसा कोई नशा है क्या ?

मुझपे मरते हो तो ,आओ फिर ,
साथ जीने का हौसला है क्या ?

ज़िन्दगी जी रही है  हंस के निशा ,
इससे बढ़कर कोई सजा है क्या ?

डा.नसीमा निशा

2:57 am

ग़ज़ल :- गर मिटानी है नफरत सदा के लिए - डा नसीमा निशा

गर मिटानी है नफरत सदा के लिए ।
खोल  दो  रास्ते सब वफ़ा के लिए ।।

ये गलाजत तो अपने ख्यालों में है ,
साफ मन चाहिए स्वछता के लिए  l

हम न सोचेंगे तो कौन सोचेगा फिर ,
पेड़ ,पानी ,व पर्वत ,हवा के लिए l

पेड़ बूढ़े जवां दोनों काटे गए ,
इक मका के लिए ,इक दवा के लिए l 

आदमियत के भी बारे में सोचो 'निशा ' ,
सोचती हो जो तुम देवता के लिए l

डा.नसीमा निशा

2:55 am

ग़ज़ल :- इश्क और जंग में मना क्या है - डा नसीमा निशा

इश्क और जंग में मना क्या है ,
दे दिया दिल तो सोचना क्या है l

मेरे हिस्से का वो अगर है गम ,
 तो मुझे देदे ,पूछना क्या है l

अपनी बनती नहीं सियासत से ,
फिर सियासत से जोड़ना क्या है l

अपनी क़ीमत ही जब नहीं कोई ,
सोने चांदी में तोलना क्या है l

लौट आएगा घर समय से वो ,
बारहा उसको टोकना क्या है l

ये फ़साना तेरा- मेरा है 'निशा ',
राज़ ये दिल का खोलना क्या है l 

डा.नसीमा निशा
2:54 am

ग़ज़ल :- हिम्मत की हौसले की वो दीवार है औरत - डा नसीमा निशा

ग़ज़ल 

हिम्मत की हौसले की वो दीवार है औरत ,
जो मुश्किलों को काटे वो तलवार है औरत l

इनके बगैर दुनिया का वजूद है कहाँ ,
मरियम ओ सीता फातिमा किरदार है औरत l

इनके मुकाबले में हुकूमत करे कोई ,
सुल्ताना लक्ष्मीबाई सी अवतार है औरत l

माँ है ,बहन है ,बेटी है ,बीबी ,सखी है ये ,
रब से मिला हुआ हंसी उपहार है औरत l

हर हाल में निभाती है रिश्ते तमाम ये ,
इज़्ज़त की और यक़ीन की हक़दार है औरत l

अब ज़ुल्म न सहेगी 'निशा गौर से सुनो ,
सच मानिये कि अब नहीं लाचार है औरत l

 डा.नसीमा निशा

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