नसिमा निशा
3:05 am
ग़ज़ल :- मेरे दिल को यही तो खलता है - डा नसीमा निशा
मेरे दिल को यही तो खलता है ,
मेरा अपना ही मुझको छलता है l
वक़्त गुज़रा हुआ न आएगा ,
किसलिए अब वो हाथ मलता है l
ये ज़माना तो कामयाबी पर ,
हो किसी की भी पर ये जलता है l
क्या हुआ ,क्या नहीं मेरे घर में ,
ये पता दूसरों से चलता है l
तीरगी मुझ से रौशनी मांगे ,
मुझ में सूरज नया निकलता है l
धोखा अपनों से खा रही है 'निशा ',
इक नया दर्द मुझमें पलता है l
डा.नसीमा निशा