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मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

6:58 am

बालकविता~"मेरे प्यारे-प्यारे पापा - दिलीप पाठक

मुझे दिखाओ मेला पापा|
वहाँ दिलाना केला पापा||

झूलूँगा मैं झूला पापा|
झूला फूला-फूला पापा||

बाइक पर बैठाओ पापा|
जल्दी से ले जाओ पापा||

कपड़े तो हो पहने पापा|
लगते हो क्या कहने पापा||

कर ली सब तैयारी पापा|
मइया की बलिहारी पापा||

लेना खेल खिलौने पापा|
लगते बड़े सलौने पापा|

मेरे प्यारे -प्यारे पापा|
सारे जग से न्यारे पापा||

दिलीप कुमार पाठक "सरस"


बुधवार, 8 अप्रैल 2020

2:02 am

घर प्यासे-प्यासे घर - दिलीप पाठक सरस

घर

प्यासे-प्यासे घर, 
बड़े उदासे घर|
अच्छे-खासे घर
गोल बतासे घर||
         आते-जाते घर, 
         कथा बताते घर|
         नेह जताते घर, 
          बहुत छिपाते घर||
छप्पर छानी घर,
टपकन पानी घर|
बड़ी परेशानी घर, 
मन-रजधानी घर||
            एक बनाते घर, 
            आस सजाते घर|
             दीप जलाते घर, 
              पर्व मनाते घर||

दिलीप कुमार पाठक "सरस"
1:57 am

दिलीप पाठक के महाशिवरात्रि दोहे

विषय~महाशिवरात्रि
दोहे~😊

कृपा आपकी शीश पर, जिसके भोलेनाथ |
उसका जीवन धन्य है, यश है उसके हाथ ||

नाथ आपकी है कृपा, खुशियाँ रहतीं साथ|
माँ के छूता जब चरण, माँ चूमे मम माथ||

एक हृदय शिव शक्ति है, अद्भुत-सा चलचित्र |
सुन्दरतम् वरदान है,पाया पत्नी-मित्र ||

एक साधना आपकी, योगी का विस्तार |
साध रही हर साध जो,एक आप आधार||

गणपति के प्यारे जनक, मेरे मन के ईश|
रखते भर निज नेह से, वरदहस्त मम शीश ||

दिलीप कुमार पाठक "सरस"
      संस्थापक 
विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत
1:55 am

रचना उत्तम आपकी, कुण्डलिया है छंद - दिलीप पाठक सरस

🙏कुण्डलिया छंद 🙏

रचना उत्तम आपकी, कुण्डलिया है छंद|
शब्द खौफ दहशत जहन, उर्दू के हैं चंद||
उर्दू के हैं चंद, नहीं छंदों में भाते|
हिन्दी तत्सम शब्द, सदा ही छंद सजाते||
कुछ तो करो उपाय ?शब्द उर्दू से बचना |
"सरस" निवेदन एक, छंद हिन्दी में रचना||

दिलीप कुमार पाठक "सरस"
1:39 am

दिलीप कुमार पाठक जी के कुछ छंद लिस्ट 3

कृष्ण /वपु छंद~221 1
रोये हम|
आँखें नम||
रातों अब|
सोते कब||
यादें मन|
आतीं तन||
होली रँग|
खेले सँग||
मेघा सुन|
प्यासी धुन||
देखूँ दर|
आओ घर||
तेरे बिन|
काटे दिन||
लम्बा दुख|
दे जा सुख||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक सरस
कृष्ण /वपु छंद~221 1
विषय~कोंपल~☘☘☘
हैं कोमल|
ये कोंपल||
हो चंचल|
वृन्तों दल||
हे जीवन|
सींचो मन||
झूमे तन|
वृन्दावन ||
स्नेहाजल|
दे दे चल|
तेरा बल|
मैं कोंपल||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊��
दिलीप कुमार पाठक सरस
देवी छंद~112 2
चल आ जा|
अब गा जा||
तुम मेरे|
हम तेरे||
कजरारी|
रतनारी||
सखियाँ हैं|
अँखिया हैं||
रस घोला|
जब बोला||
सुन प्यारे|
दिल हारे||
धुन ऐसी|
मधु जैसी||
जब आये|
तब गाये||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक सरस
देवी छंद~112 2
चल आ जा|
अब गा जा||
तुम मेरे|
हम तेरे||
कजरारी|
रतनारी||
सखियाँ हैं|
अँखियाँ हैं||
रस घोला|
जब बोला||
सुन प्यारे|
मन हारे||
धुन ऐसी|
मधु जैसी||
जब आये|
तब गाये||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक सरस
सुमति छंद~111 212 111 122
कलम हाथ में अब गह लीना|
सरस काव्य को सब नित पीना||
गुनत सोम पावन मन होता|
रटत नाम सुन्दर शुचि स्रोता||


दिलीप कुमार पाठक सरस


सुमति छंद~111 212 111 122
कलम हाथ में अब गह लीन्हा|
सरस काव्य को मन महुँ चीन्हा||
गुनत सोम पावन मन होता|
रटत नाम सुन्दर शुचि स्रोता||


दिलीप कुमार पाठक सरस

सुमति छंद
सरस सोम रोम बसत साँची|
लिखत सोम नाम सरस बाँची||
कहत सोम सोम मन शत बारा|
कबहुँ हो न ता घर बँटवारा ||

दिलीप कुमार पाठक सरस


रंगी छंद~212 2
लाउ तिल्ली|
देख बिल्ली||
दीपबाती|
आ जलाती||
पान पानी|
तान तानी||
रोड बिच्ची|
पिच्च पिच्ची||
बैठ पीढ़ी|
सुर्र बीड़ी||
ला तमाकू|
फट्ट थू थू||
है बजारू|
पी न दारू||
खैंच सुट्टा|
हैं न छुट्टा||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक सरस 😀
कदली छंद~112 1
भज साथ|
जग नाथ|
खिल प्रात|
जलजात||
वह मूल|
अनुकूल|
सब धूल|
प्रतिकूल|
हरियोग|
चख भोग|
हर रोग|
हँस लोग|
सब काम|
हरि नाम|
भज राम|
जय राम|
🖊🖊🖊💐🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
वसन्ततिलका छंद
221 211 121 121 22
आओ चले हृदय की गति है रुकी~सी|
प्यासे हुए नयन भी पलकें झुकी~सी||
बोले सदैव मुझसे तुमको पुकारूँ|
मैं भी उसे निरख के मन आज (वारूँ) हारूँ||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक सरस
वसंततिलका~छंद
221 211 121 121 22
बातें करें सरस लोग वही पुरानी|
मैया पुकारत सुनो ललना कहानी||
कौआ उड़ो पकड़ हार गले न पाया|
चीनी दही सब रखो नहिं लौट आया||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
राधारमण छंद
विधान - नगण नगण मगण सगण
१११  १११  २२२  ११२

नटखटपन छोड़ो आप सभी|
झटपट उठ बैठो आज अभी||
जलभर कर लाओ प्यास लगी|
अब सरस कमाओ आस जगी||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"

🌷 राधारमण छंद 🌷
[नगण नगण मगण सगण]
(111  111  222  112)
12 वर्ण, 4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत]
मन उलझन में है नाथ धँसा|
चरण शरण में लो आप बसा||
मम प्रभु सम प्यारा कौन कहो|
नटवर जग न्यारा नाम गहो||
समझत सबकी लीला मन की|
सुधिजन कहते वृंदावन की||
तनमन बसते कान्हा अपने|
सच सब मन के होते सपने||
प्रभु सम जग में को है कहतीं|
नटखट सँग राधा जी रहतीं||
सब समझत हैं लीलाधर जी|
हम सब कहते आना घर जी||

दिलीप कुमार पाठक "सरस"



1:37 am

दिलीप कुमार पाठक जी के कुछ छंद लिस्ट 2

रंजन छंद
विधान~2111111,2111111,2111111,21122|
चार चरण, दो दो चरण समतुकान्त|
तू अति नटखट, दौड़त सरपट,
आ अब झटपट, राज दुलारे|
पावन मन गुन, मंतर ध्वनि धुन,
 होत यजन सुन,आ बबुआ रे||
भावत चितवन, है सब मम धन,
आवत बन ठन, है छवि प्यारी||
अंजन अँखियन,है रस बतियन,
भागत विथियन, चंचलधारी||
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
      संस्थापक
जनचेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति ~226
बीसलपुर पीलीभीत (उ. प्र.)

छंद~रुचिरा
विधान~21122,111122|
चार चरण, दो दो समतुकान्त
💐💐💐💐💐💐💐💐
मौन हुआ हूँ ,खुटपुट भारी|
देत खड़ी है, जब तब गारी|
मात हमारी ,सब सच मानो|
ग्वालिन राधा,ठनगन जानो|
दूध पिलाती ,दधि नवनीता|
काम करावै,सब विपरीता|
घाघर चोली, मम पहनाती|
और सुनौ माँ, सरस नचाती|
बूझति बंशी, इत कित राखै|
चोर बड़ी है, समुझत भाखै|
लालन झूठी, कहत कहीं है|
माखन चोरी, करत नहीं हैं|
ग्वालिन गोरी,सब पथ बाधा|
माँ अति नीकी ,सुन वह राधा|
कोप दिखावै, कबहुँ न छोरी|
प्रीत जुड़ी है, सचमुच भोरी||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
छंद~रुचिरा
विधान~21122,111122|
चार चरण, दो दो समतुकान्त
💐💐💐💐💐💐💐💐
मौन हुआ हूँ ,खुटपुट भारी|
देत खड़ी है, जब तब गारी|
मात हमारी ,सब सच मानो|
ग्वालिन राधा,ठनगन जानो|
दूध पिलाती ,दधि नवनीता|
काम करावै,सब विपरीता|
घाघर चोली, मम पहनाती|
और सुनौ माँ, सरस नचाती|
बूझति बंशी, इत कित राखै|
चोर बड़ी है, समुझत भाखै|
लालन झूठी, कहत कहीं है|
माखन चोरी, करत नहीं हैं|
ग्वालिन गोरी,सब पथ बाधा|
माँ अति नीकी ,सुन वह राधा|
कोप दिखावै, कबहुँ न भोरी|
प्रीत जुड़ी है, सरगम मोरी||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
छंद~रुचिरा
विधान~21122,111122|
चार चरण, दो दो समतुकान्त
💐💐💐💐💐💐💐💐
मौन हुआ हूँ ,खुटपुट भारी|
देत खड़ी है, जब तब गारी|
मात हमारी ,सब सच मानो|
ग्वालिन राधा,ठनगन जानो|
दूध पिलाती ,दधि नवनीता|
काम करावै,सब विपरीता|
घाघर चोली, मम पहनाती|
और सुनौ माँ, सरस नचाती|
बूझति बंशी, इत कित राखै|
चोर बड़ी है, समुझत भाखै|
लालन झूठी, कहत कहीं है|
माखन चोरी, करत नहीं हैं|
ग्वालिन गोरी,सब पथ बाधा|
माँ अति नीकी ,सुन वह राधा|
कोप दिखावै, कबहुँ न भोरी|
चन्द्र समाना, वह बृज गोरी||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"

रंजन छंद
विधान~2111111,2111111,2111111,21122|
चार चरण, दो दो चरण समतुकान्त|
तू अति नटखट, दौड़त सरपट,
आ अब झटपट, राज दुलारे|
पावन मन गुन, मंतर ध्वनि धुन,
 होत यजन सुन,आ बबुआ रे||
भावत चितवन, है सब मम धन,
आवत बन ठन, है छवि प्यारी||
अंजन अँखियन,है रस बतियन,
भागत विथियन,क्यों बनवारी||
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"

तन्त्री छंद
😄🙏🏻😄
सरस गवैया, है अति भैया,
सुनत सुनत, सब के सब हारे|
शब्द हमारे, भाव तुम्हारे,
छोड़ हमें, फिर कौन पुकारे||
सोम सरल~से,हैं अविरल~से,
देख हमें, जब तब मुस्काते|
हँसी ठिठोली, मीठी बोली,
मिल जाते, अपने गले लगाते||

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

तन्त्री छंद
8,8,6,10 पर यति, प्रति चरण 32 मात्रा,दो दो चरण समतुकान्त|चरणान्त~22
आपै राघव, आपै माधव
मन भज ले, अब कृष्णा कृष्णा|
जो कलुषित अति, कर पावन मति,
ईश नाम, मेटे मन तृष्णा||
जय जय गिरधर,जय जय नटवर,
वंशीधर, हे रास रचैया|
मुरलीवाले, सुन रे ग्वाले,
चरण शरण, निज आप बसैया||
दिलीप कुमार पाठक "सरस"

*◆तंत्री छंद◆*
विधान~ प्रति चरण 32 मात्राएँ,8,8,6,10मात्राओं
पर यति चरणान्त 22 , चार चरण, दो-दो
चरण समतुकांत।
आओ आओ,गाओ गाओ,
         छंद रचे,सरस गुनगुनाओ|
मीठे बयना, प्यारे नयना,
        हरषाओ, आ रस बरसाओ||
आयी रैना, नाहीं चैना,
     चुप रहते, नित दुख  सहते जी|
राहें गहते, नैना बहते,
 तुम बिन हम ,किससे कहते जी||
तुम मेरा मन, मेरा जीवन,
       खुशियों के, आँगन में आना|
आँखों भरकर, देखूँ जीभर,
      मुझे हँसा,तुम आ हँस जाना||
आ मुस्काना, गले लगाना|
        सरस मिलन , वन कुंजन में हो||
अँखियन अंजन, बतियन रंजन|
          छंदों का,रस गुंजन में हो||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
तन्त्री छंद आधारित एक गीत
विधान~8,8,6,10 पर यति, 32मात्राएँ|
दो चरण समतुकान्त, चरणान्त~दो गुरु|
--------------💐------------------
भीगी अँखियाँ,अँसुअन जल से,
थक हारे, पग घर लौटाये|
उस दिन तुमने, कहा कि आना,
हम पहुँचे, तुम क्यों नहिं आये||
नैनन अंजन, आँझ प्रिये जब,
बन ठन के,मिलने तुम आतीं|
पैर पैंजनी,करती छम छम,
कुछ सुनतीं,कुछ तुम कह जातीं||
फूल मिलन के, खिलते गंधिल,
पथ लख थक, मन में मुरझाये|
उस दिन तुमने,कहा कि आना,
हम पहुँचे, तुम क्यों नहिं आये||
मन में सोचा, जब आयेगी,
खायेगी, है चाट चटोरी|
चार समोसा, मिर्च पकौड़ी,
लीं टिक्की, दो तीन कटोरी||
गरम गरम थीं, फिर सब ठंडी,
ठगे खड़े, कुछ समझ न पाये|
उस दिन तुमने, कहा कि आना,
हम पहुँचे, तुम क्यों नहिं आये||
फूल खिले सब, झरने लागे,
झूठे~से,मन टूटे वादे|
प्यास हृदय की ,घुट घुट बोली,
चल घर अब, सिर बोझा लादे||
मौन बुलाये,कौन सुनाये,
छंदों में, सरस गुनगुनाये|
उस दिन तुमने, कहा कि आना,
हम पहुँचे,तुम क्यों नहिं आये||
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"

राधारमण छंद
111 111 222 112
🙏🏻श्री गणपति स्तुति🙏🏻
-------------- 💐💐----------------
सुधिजन शुचिता सम्बोधक हैं|
गणपति मन प्यारे मोदक हैं||
सब दुख हरते कौतूहल में||
सब सुख सबको देते पल में||
पशुपति पटरानी के ललना|
खलदल बल को आके दलना||
सुन गजमुखधारी है विनती|
तव चरणन हो मेरी गिनती||
बचपन मन के प्यारे तुम हो|
छलबल जग से न्यारे तुम हो||
दुख हर सुख की मंजूषक है|
सब कहत सवारी मूषक है||
तड़फत मछली~सी है कहती|
मम मति अति माया में रहती||
तन मन भव व्याधा आप हरो|
उर सरस उजाला आप करो||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
🌹🌻 *राधारमण छंद* 🌻🌹
🔧विधान - नगण नगण मगण सगण
१११  १११  २२२  ११२
🌴🌹🌻🌺🌼🌺🌼
हर पल मन नाचे ज्यों तकली|
मुख पर मुख है दूजा नकली||
कथनि करनि भारी अंतर है|
जग धन बल जादू मंतर है||
नवल कमल जैसे है खिलता|
नित छलबल वैसे है मिलता||
सब कुछ जग की माया करती|
भ्रम जनमत नाहीं है डरती||
पिसत रहत दो पाटों चकली|
समझत असली होता नकली||
मृदुल बचन में आके कहना|
तन मन दुख क्यों देना सहना||
कह सुन लख पीड़ा जीवन की|
अब कुछ कर ले तू भी मन की||
कुछ हम कह लें आ जा सुन लें|
चल सुख दुख के साथी चुन लें||
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
         संस्थापक सचिव
जनचेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति ~226

*'कलाधर छंद'*
•~•~•~•~•~•~•
विधान - गुरु लघु की पन्द्रह आवृत्ति और एक गुरु |
हिन्दवीर का प्रहार,शत्रु कौ उखाड़ देत|
नेति~नेति है प्रणाम, हिन्द के सुवीर कौ|
हंस~सा विवेक पास,हिन्द विश्व का विजेत|
जान लेत पास आयि, नीर और क्षीर कौ||
पाक~चीन रोज~रोज, आँख हैं दिखात आज|
दाँत तोड़ पेट फाड़,मेटि हौ लकीर कौ||
 आँख दोउ फोड़फाड़,हाथ~पाँव तोड़ताड़|
चीरफाड़ फेंकि देउ, शत्रु के शरीर कौ|
दिलीप कुमार पाठक सरस

*◆सुमति छंद◆*
विधान-नगण रगण नगण यगण
(111 212 111 122)
2, 2 चरण समतुकांत,4 चरण।
सरस हाथ जोड़ नत पुकारे|
धरत सोम छंद पद हमारे||
हृदय शब्द भाव  रचत आया|
सरल प्रीत को हृदय लगाया||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक सरस

लघुगति छंद
💐🙏🏻💐
रघुवरयश हँस हँस कहते|
रघुपति उर हनुमत रहते||
रघुवर प्रिय हनुमत रसना|
हनुमत मम तन मन बसना||
सरस रमत प्रभु घर घर जी|
अँखियन बतियन रघुवर जी||
रघुवर रघुपति चख चखना|
रघुवर रघुवर नित रटना||
 रघुपति हर पल दुख हरते|
 हनुमत सब सुखमय करते||
जब-जब भजत अवधपति को|
हरत तुरत दुख दुरमति को||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक सरस
लघुगति छंद
धड़कन धड़कत सम धड़कें|
रघुवर हनुमत तन फड़कें||
भजत रटत गुण रघुवर के|
रहत हृदय नित हरि हर के||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक सरस
तिन्ना छंद~222 2
😄🙏🏻😄🙏🏻😄🙏🏻😄
लल्ला आ जा|
टॉफी खा जा||
ऐसी वैसी|
दूरी कैसी??
टिल्ली टूला|
झूलो झूला|
मिट्ठू गोलू|
आजा भोलू||
बोली म्याऊँ|
आऊँ खाऊँ||
बिल्ली आई|
जागी माई||
भिन्डी तोरी|
गोरी छोरी||
मोटा कद्दू|
लाये दद्दू||
फाड़ा कुर्ता|
आलू भुर्ता ||
चोखा बाटी|
खा ले नॉटी||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक सरस
तिन्ना छंद~222 2
बोलो भाई |
पाटो खाई||
प्यारा न्यारा|
भाईचारा||
तिन्ना मन्ना|
मीठा गन्ना||
आओ खाओ|
खेलो जाओ|
चीजें पाओ|
पैसा लाओ||
खाऊँ केला|
देखूँ मेला||
चाचा चच्ची
बातें सच्ची|
दादा दादी|
लाये खादी||
गर्मी आयी|
कुल्फी खायी||
दूल्हे राजा|
बाजे बाजा||😄😄😄😄😄
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक सरस
क्रीड़ा छंद~122 2
लला प्यारे|
हमारे रे||
सँवारे हूँ|
सहारे हूँ||
चले आना|
नहीं जाना||
रहा प्यासा|
बँधी आशा||
सुरीला~सा
रँगीला~सा
कि गा लेना|
सुना देना||
न आयेगा |
न जायेगा||
वही जीता|
पढी गीता||
दिलीप कुमार पाठक सरस
   बीसलपुर (पीलीभीत) उ. प्र.

  
*सुजान छंद*
[14,9मात्राओं पर यति,अंत में गुरु लघु]
कहीं खुशी है दुःख कहीं,कैसा संयोग|
करे प्रतीक्षा मिलन खड़ा,योग या वियोग||
तू तू मे मे घर घर है, खा ठोकर रोज|
छल बल से नित मिले यहाँ,छप्पन खा भोग||

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

◆ वीर/आल्हा छंद [सम मात्रिक]◆

 

विधान –[ 31 मात्रा, 16,15 पर यति,

चरणान्त में वाचिक भार 21 या गाल,

कुल चार चरण,

क्रमागत दो-दो चरणों पर तुकांत]

 

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

 धूप कहूँ नहिं देय दिखाई,

पाले की चहुँतरफा मार।

थर-थर,थर-थर तन है काँपै,

ठंडी-ठंडी चलै बयार।।

 

साँझ भई सब तापन बैठे,

बीड़ी हुक्का लियो उठाय।

पहले मसली है तम्बाकू,

फिर फटकारी दई लगाय।।

 

कुछ तौ सेंकत हाथ-पाँव हैं,

कुछ की होतीं आँखैं चार।

दद्दा बैठे गप्पैं हाँकैं,

होय ठहाकन की बौछार ।।

 

बहुत देर से भरकन कौ जौ,

ठंडो बिस्तर रहो बुलाय।

शीत लहर को झोंका आओ,

आगी सारी दई बुझाय।।

1:15 am

मत्त सवैया ~छंद ~ हृदयताल जब सूख गये फिर ~ दिलीप कुमार पाठक "सरस"

◆राधेश्यामी छंद या मत्त सवैया◆
शिल्प~[16,16मात्राओं पर यति
          चरणान्त में 2(गुरु),
         4 चरण ,दो दो चरण समतुकांत]
हृदयहार मैं हार गया सब,
       कर विहार जीत उपहार लो|
हार गले में डाल प्रिये तुम,
     निहार सरस कर गलहार लो||
बहार की फुहार है भीनी,
      आ जाओ यही मनुहार है|
समाहार हो मम जीवन का,
         हार हार करता गुहार है||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"

*मत्त सवैया ~छंद*
16,16 पर यति, चार चरण, दो दो समतुकान्त|
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
कागज सबको लुभा रहा है,
        कागज सबको नचा रहा है|
कागज में सब सिमट गया है,
     कागज सब कुछ पचा रहा है||
दोषारोपण अस्त्र शस्त्र सह,
             जंगी बैठे सब ट्वीटर में|
वही पुराना छलिया कागज,
       अब घुस आया कम्प्यूटर में||
दिलीप कुमार पाठक "सरस"

मत्त सवैया ~छंद
विषय~हार
हृदयताल जब सूख गये फिर,
आनंद कमल कैसे खिलते|
उथले पानी की डुबकी में,
हाथों को कब मोती मिलते||
थकित पथिक की प्यास बुझाकर,
तैयार उसे बस करना है |
मीठे पानी का झरना तुम,
तुमको तो प्रतिपल झरना है||
मन टूटा या हारे मन से,
या कह लो जीते जी मरना|
आगे बढ़के कुछ कर देखो,
पथ बाधा से कैसा डरना||
सब कुछ सम्भव है इस जग में,
कुछ करने की मन में पालो|
हार बुरी है हार न मानो,
लो खुशियों की जीत सँभालो||
बीत रहा है समय सुनहरा,
पल पल का कोई मोल नहीं है|
समझ रहा सब संकेतों को,
आत्मशक्ति की जीत यहीं है||
काम करो कुछ ऐसा जग में,
भोर अरुण~सा नित वंदन हो|
पग पग पर सब पलक बिछायें,
प्रतिपल अभिनव अभिनंदन हो||

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

*मत्त सवैया ~छंद*
16,16 पर यति, चार चरण, दो दो समतुकान्त|
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
कागज सबको लुभा रहा है,
        कागज सबको नचा रहा है|
कागज में सब सिमट गया है,
     कागज सब कुछ पचा रहा है||
दोषारोपण अस्त्र शस्त्र सह,
             हर जंगी बस ट्वीटर में है|
वही पुराना छलिया कागज,
       घुस आया कम्प्यूटर में है||
दिलीप कुमार पाठक "सरस"

मत्त सवैया ~छंद
विषय~हार
हृदयताल जब सूख गये फिर,
आनंद कमल खिलते कैसे|
उथले पानी की डुबकी में,
हाथों मोती मिलते कैसे|
थकित पथिक की प्यास बुझाकर,
तैयार उसे बस करना है |
मीठे पानी का झरना तुम,
तुमको तो प्रतिपल झरना है||
मन टूटा या हारे मन से,
है जीते जी मरने जैसा|
आगे बढ़के कुछ कर देखो,
पथ बाधा से डरना कैसा||
सब कुछ सम्भव है इस जग में,
कुछ करने की मन में पालो|
हार बुरी है हार न मानो,
लो खुशियों की जीत सँभालो||
बीत रहा है समय सुनहरा,
पल पल का कोई मोल नहीं है|
समझ रहा सब संकेतों को,
आत्मशक्ति की जीत यहीं है||
भोर अरुण~सा नित वंदन हो,
जग में कुछ ऐसा कर जायें|
प्रतिपल अभिनव अभिनंदन हो,
पग पग पर सब पलक बिछायें||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
मत्त सवैया ~छंद
विषय~हार
फिर हृदयताल जब सूख गये,
कैसे आनंद कमल  खिलते|
उथले पानी की डुबकी में,
कब हाथों को मोती मिलते||
है थकित पथिक प्यासा आया,
बस प्यास मिटा दुख हरना है |
तुम मीठे पानी का झरना,
प्रतिपल तुमको तो झरना है||
मन टूटा या हारे मन से,
या कह लो जीते जी मरना|
आगे बढ़के कुछ कर देखो,
पथ बाधा से कैसा डरना||
सब कुछ सम्भव है इस जग में,
कुछ करने की मन में पालो|
है हार बुरी हार न मानो,
लो खुशियों की जीत सँभालो||
पल पल बीते धीरे धीरे,
पल पल का कोई मोल नहीं है|
सब समझ रहा संकेतों को,
है आत्मशक्ति की जीत यहाँ||
कुछ काम करो ऐसा जग में,
नित भोर अरुण~सा वंदन हो|
पग पग पर सब पलक बिछायें,
प्रतिपल अभिनव अभिनंदन हो||
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दिलीप कुमार पाठक "सरस"
राधेश्यामी/मत्त सवैया~छंद
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दिन अति प्यारा अक्षय तृतीया,
लीन्हो परशुराम अवतारा|
है तेज धार फरसा हाथों,
जब तब दुष्टों को संहारा||
फरसाधारी तेजवान अति,
खलबल का रक्त बहाया था|
जो ऋषि मुनि को करे प्रताड़ित,
वह फरसा नीचे आया था||
वह दिन सबको याद अभी तक,
जब शिवधनु योद्धा देख रहे|
था सिया वरण का दिन प्यारा,
सब देख भाग्य की रेख रहे||
शिवधनु तो वह शिवधनु ही था,
सब लज्जित होकर बैठ गये|
सबकी मूछें झुकी झुकी सब,
जलके रस्सी सम ऐंठ गये||
सीता देख राम मुस्कायीं,
फिर देखा है उस शिवधनु को|
फिर देखा है पिता जनक को,
मानो यहु वर मेरे मनु को||
फिर छुअत राम के धनु टूटा,
फिर फरसाधारी आ धमके|
 फिर खचाखची थी फरसा की,
फिर लखन क्रोध में आ चमके||
क्रमशः ---------
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दिलीप कुमार पाठक "सरस"
राधेश्यामी /मत्त सवैया छंद
💐🙏🏻💐🙏🏻💐🙏🏻💐
बारह वर्ष गये कब कैसे,
 दूल्हा दुलहिन द्वय मिलवाये|
थीं एक घटा वह सावन की,
घनकेश सरस मुख पर छाये||
मम प्यास हृदय की बढ़ आयी,
फिर तन मन ने ली अँगड़ाई |
वह अधरों पर बूँद सोम की,
जाने कब की तृषा बुझाई||
वह विवाह की सरस रात थी,
थी एक छुअन पहली पहली|
जब नैन मिले नैनों से आ,
साँसों ने साँसों से कह ली||
 दोनों के हाथों जय माला,
धड़कन में थी तेजी आयी|
थी कभी परायी सकुचायी,
वह मम जीवन में मुस्कायी||
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
: राधेश्यामी /मत्त सवैया छंद

कब कैसे बारह वर्ष गये,
दूल्हा दुलहिन द्वय मिलवाये|
थीं एक घटा वह सावन की,
घनकेश सरस मुख पर छाये||
मम प्यास हृदय की बढ़ आयी,
फिर तन मन ने ली अँगड़ाई |
वह अधरों पर ज्यों बूँद सोम
तन में खिलती अति तरुणाई||
थी वह विवाह की सरस रात,
थी एक छुअन पहली पहली|
जब नैन मिले नैनों से आ,
साँसों ने साँसों से कह ली||
 दोनों के हाथों जय माला,
धड़कन में थी तेजी आयी|
थी कभी परायी सकुचायी,
वह मम जीवन में मुस्कायी||
दिलीप कुमार पाठक "सरस"

राधेश्यामी/मत्त सवैया ~छंद
राधेश्यामी छंद मनोहर,
यति सोलह सोलह पर होती|
समतुक वाले दो चरणों से,
जलती राधेश्यामी जोती||
यदि समकल से प्रारम्भ करो,
तो सुन्दर लय बन जाती है |
चार चरण में अंत गुरू हो,
राधेश्यामी कहलाती है ||
दिलीप कुमार पाठक "सरस"

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