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रविवार, 17 मई 2020

2:25 pm

अपना हाथ तेरे हाथ में दें रही - ट्विंकल वर्मा

हमसफ़र
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अपना हाथ तेरे हाथ में दें रही 
थाम तो लोगे न? 

मजबूती से पकड़ कर रखोगे 
साथ छोड़ोगे तो नहीं न? 

पूरी खुशियाँ तुझ पर लुटा दूंगी 
मुझे गम तो नहीं दोगे न? 

कदम से कदम मिलाकर चलने की बात करते होl 
मुसीबत में पीछे नहीं हटोगे न? 

माँ-पिता, भाई-बहन, दोस्तों को छोड़ कर आउंगीl
सबका किरदार निभा पाओगे न? 

मेरी गलती पर डांटकर नहीं 
प्यार से समझाओगे न? 

सीता की तरह तुम्हें पूजूंगीl
राम की तरह पत्नीव्रता धर्म निभाओगे न? 

मन में डर है, तेरे दर पर कैसे आऊंगीl
मेरे डर पर काबू करके गृहप्रवेश करवा दोगे न? 
       -ट्विंकल वर्मा, आसनसोल(प,बं)

मैं ट्विंकल वर्मा हूँl मैं आसनसोल में रहती हूँl यह मेरी स्वरचित कविता हैl कृपया कर के आप अपने ब्लॉग में स्थान देंl🙏

मंगलवार, 5 मई 2020

6:24 am

भीड़ लगी मधुशाला में


भीड़ लगी मधुशाला में,
जान बसी अब मधुशाला में

नशा नहीं अब कोई बोतल में
नशा भरा है सब मधुशाला में

नाच नचाती ,भूख मिटाती
हर इलाज़ है इस मधुशाला में

बेच रहा हर ईमान अपना
मौज उड़ाता मधुशाला में

बच्चे भूखे रोते सोते हैं घर में
नवजीवन पाता वो मधुशाला में

आग लगा दो इस जग में सब
जाम न छलके जो मधुशाला में

भूल गया गरीब है वो बस्ती में,
अमीर बन बैठा है मधुशाला में

शिवम् मिश्रा
(शिक्षक)
मुंबई महाराष्ट्र 

मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

3:44 am

हास्य रचना/चुनाव का मौसम - प्रदीप ध्रुव


चुनाव का मौसम आया,नेताजी ने बुज़ुर्गो के पाँव छुए।और विजयश्री मिलते ही पाँच बरस को ईद के चाँद हुए।
फिर क्या...
ग़ुमशुदा नेता की तलाश में जनता ने जगह जगह इश्तहार लगवाया.।
कोई ज्योतिषियों के चक्कर तो कोई तांत्रिक के यहाँँ हवन करवाया।
पर हाय री किश्मत..
इन सबके बावजूद भी नेता लापता पाँच बरस नज़र न आया।
और अगला चुनाव आने की आहट भर से नेताजी फिर पधारे..
किसी ने कहा आप कहाँ से आ टपके,सभी ने कहा तुम स्वर्ग सिधारे.
अरे चुनावी मौसम के मेंढक फिर टर्र टर्र टर्राने आ गये..
मुझे पता है तुम्हारी दाल भर काली नहीं,सारी दाल ही खा गये..
अरे बुड़बक बेशरम मोटी खाल के तुम,न काम के न काज के तुम..
अब कौन सा मुँह ले कर तुम फिर से आशिर्वाद लेने आ गये..
***  ***  ***   ****   ****   ****  ***  ***   *****
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल म.प्र.दिनाँक.
08/02/2020
मो.09589349070
****   ****   ***   ****   ****   ***** 
3:43 am

हास्य रचना/आग किसने लगाई - प्रदीप ध्रुव


तुम शेर..हम..सवाशेर..गुलमटो..
ये आग किसने लगाई..
मै ने और मिश्रीलाल ने....
सालो को घोल घोल के ऐसा पिलाया..
अरे.हमने.तो कान में फुसफुसाया
हम हैं न..लगे रहो मुन्नाभाई..
स्सालों को बिरयानी किसने खिलाई..
मै ने और मिश्रीलाल ने...
आजादी के सत्तर सालों में,
रोंककर रखा बस मिश्री पिलाते रहे..और वो ज़हर उगलते रहे..
आज़ादी का..कहर बरपते रहे..
ये काम किसने किया...
मै ने और मिश्रीलाल ने..
अरे गर्व से सीना चौड़ा हो जाता मेरा.
साम्प्रदायिकता की आग किसने सुलगाई..
भारत तेरे टुकड़े होंगे,चिल्लाने की
घुट्टी किसने भर भर पिलाई
मै ने और मिश्रीलाल ने..
काम ग़ज़ब का किया हमने 
स्सालों को न मरने न जीने दिया हमने..
कसम कालेचोर की उसके सगे भाई निकले हम..
ये सब्सिडी फ्री बिजली पानी की आदत किसने सिखाई.
मै ने और मिश्रीलाल ने..
अरे हमने कहा लगे रहो रातदिन
साल में एक की जगह कैलेण्डर चार निकालो..
और ठीकरा इसपे उसपे फोड़ो...
सच भी है..ये काम किसने किया
मै ने और मिश्रीलाल ने..
अरे निकम्में के नातियों...
बैठे खा रहे सफेद हाँथियो़..
दिनरात काम हम करें,और तुम
रिजल्ट अपना बता रहे..
हमीं तो हैं,जो तुमको बसाया..
तुम्हारा बाज़ा हमने बजाया...
तभी तो सुर भी बेसुरा निकला
ये काम किसने किया..
मै ने और मिश्रीलाल ने..
अँधेरे के यारो,देश के.मक्कारो
कब तक तुम्हारा भार हम उठायेंगे
कम से कम अब तो हमारी जय बोलो..
वंदेमातरम् बोलकर मुँह खोलो
ज़मीन है नहीं पैरों तले हमारी है
टेंट भी हमारा बिरयानी हमारी है
आधे कैलेन्डर भी हमारे हैं
नारे लगाने वाले आधे हमारे हैं
आज़ादी सत्तर सालों बाद डूब मरना किसने सिखाया..
मै ने और मिश्रीलाल ने..
गुलामी पसंद नमकहरामों
अँधेरे के बाशिंदों खैरातियो
शर्म से डूब मरो,मेरा काम तुम्हारा नाम..
तुम्हारे चाँद मे चार चाँद किसने लगाया..
मैं ने और मिश्रीलाल ने
वो तो बताया नहीं,लगे रहे हम
किया था वादा तुमसे यहीं रहो
तुम्हें आगे न बढ़ने देंगे खैरातियो
न जीने न मरने देंगे...
दूसरो के टुकड़ो पे जीना किसने सिखाया
तुम्हें वोट बैंक किसने बनाया..
मै ने और मिश्रीलाल ने..
और खाओ रसमलाई, फोकट की
हुई न तुम्हारी जगहँसाई...
अब चिल्लाते रहो बस..
तुम्हें कहीं न रहने दिया...
ये काम आखिर किसने किया..
मैं ने और मिश्रीलाल ने....
अरे लात के भूतो,कम से कम अब तो सोते से जाग जाओ..
हम भी डूब गये तुम्हें डुबा दिया
सरेआम ये काम किसने किया..
मै ने और मिश्रीलाल ने...
***
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.09/02/2020
मो.09589349070
★★  ★★★  ★★  ★★  ★
3:33 am

दीप आओ जलाएं,हम कोरोना भगाएं - प्रदीप ध्रुव भोपाली


दीप आओ जलाएं,हम कोरोना भगाएं।
आ गया है जो संकट,हम उसको मिटाएं।

घर के रहकर सजग,देना मात हमें।
हो सेनेटाइज इसमें,देना साथ हमें।
दाल कोरोना की,न अब गल पाएगी,
हर मदत हाथों में,हाथ देना हमें।
हम-वतन से मोहब्बत,चलो हम निभाएं।
आ गया है जो संकट,हम उसको मिटाएं।

कहती सरकार जो,उसका पालन करें।
दूरी सामाजिक,उसका अनुपालन करें।
स्वच्छता रखना है,ये समाधान है,
आओ जीवन में,हम अनुशासन करें।
मिटे बीमारी ये,हर कदम हम उठाएं।
आ गया है जो संकट,हम उसको मिटाएं।

मास्क पहनें सभी,घर में ही हम रहें।
मन में रख धैर्य, विचारों से सम रहें।
ज़ंग कोरोना भयावह,बचें यत्न कर,
ताकि कल खुशियां हो,आंखें न नम रहें।
करना पालन नियम,आओ सबको बताएं।
आ गया है जो संकट,हम उसको मिटाएंं।

**************************
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल म.प्र.
दिनांक.05/04/2020
मो.09589349070
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सोमवार, 13 अप्रैल 2020

7:36 pm

नशा तेरे प्यार का - वीरेन्द्र कौशल


नशा  तेरे  प्यार  का 
देखो तो कितना अज़ीब 
हो गर कहीं रेंज़ से दूर 
कर देता मुझे मज़बूर
ऐसा होता यूं महसूस
हूँ  नहीं  मैं  महफूज़ 
हैं सिर्फ यह तड़पता 
हो गर कहीं आस पास य़ा करीब
फिर सुन ले मेरे रक्कीब 
तो दिल हैं यह धड़कता 
तेरा  ज़ो हो जाये दीदार 
तो  होता  हूँ  दिलदार 
न  हो  गर तेरा दीदार 
ये  दिल रोता  ज़ार ज़ार 
पुकारता  तुझे  बारम्बार 
तो  आजा  तो  एक  बार 
तेरी एक झलक को बेताब 
हर पल अा रहे तेरे ख्वाब 
नशा  तेरे  प्यार  का ....

आपका अपना ,
वीरेन्द्र  कौशल

रविवार, 12 अप्रैल 2020

11:07 am

घर के रिवाज सारे,देखो चूल्हे में पधारे - सुमित शर्मा

घर  के   रिवाज  सारे,
देखो  चूल्हे  में  पधारे,
नई  नई   रीतियों  का,
प्रावधान     हो    रहा।

दूसरों  की फसलों को,
चट   से   डकार   गए।
फिर  भी  चनैल  काहे,
खलिहान     हो   रहा?

जिनको कभी वो फूटी
आँख  न  सुहाए कभी,
किस  लालसा  से फिर,
गुणगान     हो     रहा?

हमको    संदेह    वाला,
कीड़ा  काटने  लगा  है।
बोल   बोल   कर  काहे
सम्मान      हो      रहा?

~पं० सुमित शर्मा 'पीयूष'

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