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शनिवार, 9 मई 2020

4:06 am

महाराणा प्रताप :- मात्रभूमि पर मिटने वाला


मात्रभूमि पर मिटने वाला
वीर प्रताप महाराणा था
चेतक जिसका घोड़ा
चित्तौड़गढ़ का महाराजा था
हाथ में जिसके रहता भाला
शूरवीर वो मस्त मतवाला था
महा प्रतापी राजा वो
शूरवीर राज्य का रखवाला था
हल्दीघाटी की युद्धभूमि में
जो लड़ा वो महा प्रतापी था
जय भवानी जिसका नारा
हिन्दू शिरोमणि वो राणा था

शिवम् मिश्रा
मुंबई महाराष्ट्र 

गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

12:01 pm

भारत जिसका शौर्य सूर्य है दीप्तिमान सदियों से - आदित्य तोमर

भारत जिसका शौर्य सूर्य है दीप्तिमान सदियों से।
झलका जिसका गर्व पहाड़ों से, ममता नदियों से।।

कण-कण में छविचित्र राम के, पग पग तीर्थ अटे हैं।
जोकि समय के झंझावातों से भी नहीं मिटे हैं।।

इसने स्वर्णमयी वैभव भी, काला युग भी देखा।
उस वर्णन से भरा पड़ा है इतिहासों का लेखा।।

उन लेखों में परम पूज्य है नाम एक बलिदानी।
जोकि कभी स्वातन्त्र्य समर का रहा प्रथम सेनानी।

बेड़ी में जकड़ी जब भारत माँ की नर्म कलाई।
क्रूर अनय अत्याचारों की खिली वेल, लहराई।।

बर्बर चोर लुटेरे ही जब सत्तासीन हुए थे।
सच के नीति-नियन्ता सब उनके आधीन हुए थे।।

झूठे को झूठा, पापी को पापी कौन कहे फिर।
सच्चाई के साथ अडिग होकर भी कौन रहे फिर।।

चारो ओर भयंकर अत्याचार दिखाई देते।
शहर-गाँव में भीषण नरसंहार दिखाई देते।।

भारतीय योद्धाओं ने पहले भी युद्ध लड़े थे।
इतने अत्याचार न पहले होते दीख पड़े थे।।

तिल-तिल कर मरवाये जाते थे रणवीर अभागे।
आम हो गए थे जौहर के दृश्य दृष्टि के आगे।।

शिशुओं को भालों के नेज़ों पर उछालते थे वे।
खड़ी फसल के साथ गाँव को जला डालते थे वे।।

उस कुसमय में बढ़ प्रताप ने पूजा थाल उठाया।
तब माँ ने भी झुका हुआ सदियों का भाल उठाया।।

दे अगणित आशीष शीश को स्नेहमयी ने चूमा।
रोम-रोम राणा प्रताप का आनन्दित हो झूमा।।

पगरज से कर तिलक वीर ने तब तलवार उठा ली।
कहा समझ ले मात, रात अब बीत चुकी है काली।।

माँ-बहनों की लाज न जीते जी मैं लुटने दूँगा।
और चोटियाँ भी न हिन्दुओं की मैं कटने दूँगा।।

तेरे सुत का देखेंगे अब कायर मुग़ल जड़ाका।
मैं बतलाऊँगा उनको क्या होता है रण साका।।

यही वचन राणा प्रताप आजीवन रहे निभाते।
भर देता है हृदय नाम जिव्हा पर आते-आते।।

सहे घाव पर घाव, घाव को भले न मिली दवाई।
कभी न झुक पाई लेकिन रण में तलवार उठाई।।

कभी न दरवाज़ा देखा अकबरशाही महलों का।
कभी न लगने दिया दाग़ भी घोड़ों पर मुग़लों का।।

ढहा दिया गढ़ आतताईयों के बलशाली डर का।
सपना पूरा कभी न होने दिया मुग़ल अकबर का।।
-
आदित्य तोमर
वज़ीरगंज, बदायूँ (उ.प्र.)

11:17 am

महाराणा प्रताप भारत का परमवीर बलिदानी - विकास भारद्वाज


महाराणा प्रताप भारत का परमवीर बलिदानी ।
दुश्मनों को मारा था लेकर नाम जय माँ भवानी ।।
चले राणा का चेतक सामने कोई रुक न सका ।
चली तेज तलवार तो गद्दार कोई टिक न सका ।।

अकबर ने खेली थी चाल हल्दीघाटी के मैदान ।
राजपूत, मनला दिये थे, धोखा युद्ध के दौरान ।।
कई हजार मुगलसेना से लोहा लिया था प्रताप ।
उठा भाला भोंगे तो अकबर का बड़ा रक्तचाप ।।

देशहित के लिए कभी जीते जी संधि नही की ।
वीरयोद्धा महाराणा ने गद्दारों को धूल चटा दी ।।
जिसने माटी की रक्षा से कभी सौदा नही किया ।
ऐसा महान प्रतापी राजा  वीर भूमि को जिया ।।

देशभक्त महाराणा जैसा दूसरा प्रताप नही हुआ ।
हल्दी घाटी का युद्ध मानों महाभारत युद्ध हुआ ।।
घास की रोटी खाकर भी देश के लिए लडते रहे ।
युद्ध के बाद अकबर की आँखों से भी आँसू बहे ।।

विकास भारद्वाज
बदायूँ
23 अप्रेल 2020 


बुधवार, 22 अप्रैल 2020

7:58 am

आक्रोश :- फख्र से उठती वर्दी का तुमने सिर गिरवाया हैं - सत्यदेव श्रीवास्तव

.#आक्रोश# 

फख्र से उठती वर्दी का तुमने सिर गिरवाया हैं 
वसन सिंह के लेकिन तुम पर गीदड़ का साया हैं 
सिंहो की टोली में तुम श्रगाल बने बैठे थे 
जो सबका हित चाहें उनका काल बने बैठे थे

अब तुमको जब सब सच्चा  इंसान मानते हैं 
वर्दी में छुपा हुआ तुमको भगवान मानते हैं 
ऐसे समय में तुमने खुद से ही गद्दारी की हैं 
लगता है तुमने जाहिल लोगो से यारी की हैं

करके गद्दारी तुम बच जाओगे ये सोचा हैं 
अरे जाहिलो बतला दो खुद को कितने में बेचा हैं 
बिषधर की भांति तुमने फिर से अब फुफकारा हैं 
लेकिन अबकी दिल्ली में बैठा मोदी बाप तुम्हारा हैं

मांबलिचिंग का रोना रोने वाले नहीं दिखाई दिये 
पुरस्कार लौटाने वाले स्वर भी नहीं सुनाई दिये 
देश फसा संकट में तुमने ये कैसा शोर मचा ड़ाला 
सर्वस्व त्यागने वाले को तुमने चोर बता ड़ाला

शासन प्रशासन क्यो ये सभी विवेक खो बैठे 
जिनको था रक्षक समझा वो ही भक्षक बन बैठे 
वीर शिवा की धरती पर कैसा कृत्य रचाया हैं 
देख तुम्हारी कायरता को बैरी मन में हर्षाया हैं

नही अगर सुधरे तो एक-एक कर छांटे जाओगे 
राष्ट्रद्रोहियो सुन लो बुरी तरह तुम काटे जाओगे 

सत्यदेव श्रीवास्तव
 बदायूँँ
 8630446679..8923088669

सोमवार, 6 अप्रैल 2020

11:59 am

है अजीब सा मौन यहाँ पर! किस भाँति यह क्रंदन है - सुमित शर्मा "पीयूष"

है अजीब सा मौन यहाँ पर! किस भाँति यह क्रंदन है?
दृश्य बड़ा वीभत्स यहाँ, निर्जनता का अभिनंदन है।

एक नार सदा को सोई है, घर के रजयुक्त ओसारे पर।
कैसी धूसरित सी लेटी है! निश्तेज, निठुर, निश्चल होकर।

क्या बेसुध होकर सीख रही वह, मृत्यु-बाद सलीकों को?
या सूनेपन से सींच रही है, मन में उठती चीखों को?

अधर-स्निग्धता तार-तार, आंखों में शुष्क समाया है।
अध-खुले उरोजों पर उसने, आँचल तक नहीं चढ़ाया है।

कैसी यह पाँवों में जकड़न? दुस्तर जंघाओं का मुड़ना।
भयभीत करे हैं, भृकुटि पर, निष्प्राण से केशों का उड़ना।

अब देह में उसकी गति नहीं, मानस में उसके मति नहीं।
मृत्यु का तो आलिंगन है, पर जीवन से सहमति नहीं।

वह सँवर रही आखिरी बार, दूजों के दिये सहारे से।
है आज विदा होना उसको, इस आंगन से, ओसारे से।

मर कर भी उसके आनन पर, चिंता की कई लकीरें हैं।
कोई तो मजबूरी उसकी, कुछ तो अफसोस की पीरें हैं।

दो पल समेट रख लेने को, मातृत्व के उन अहसासों को।
करने नवजात का आलिंगन, वह तड़प रही है साँसों को।

थी आज बनी, क्षणभर जननी, पर लख न सकी दुलारे को।
एक जीवन रचकर धरती पर, वह लौट चली यम-द्वारे को।

कैसा कुदरत का नियम, हाय! कैसी "नियति का ढलना" है?
पलने में भूखा "ललना" है, और उसको "कफ़न बदलना" है!!

✍✍✍✍✍
~पं० सुमित शर्मा "पीयूष"
संपर्क : 8541093292
11:49 am

क्रंदन है उद्यानों में, पौधे अब न महफूज रहे - सुमित शर्मा 'पीयूष'

क्रंदन है उद्यानों में, पौधे अब न महफूज रहे!
उपवन में दो फूल मगर, माली कुल्हाड़ी पूज रहे।

पुष्प की अनदेखी कर, देखो,तना काटने चले गए।
अपने सुत की लाश लाँघ कर, प्रेम बाँटने चले गए।

चर्चा कर शत्रु से अपने, लश्कर के सब भेदों का।
तरस रहे गठबंधन को वह, ज्ञान जलाकर वेदों का।।

मेरी चिता की लकड़ी से, वह भँवर पाटने चले गए।
अपने सुत की लाश लाँघ कर, प्रेम बाँटने चले गए।।

जिसने सरे-राह गाली दी, मात-पिता और बहनों को।
उसके सिर पर खूब सजाया, रिश्ते वाले गहनों को।

अपना ही स्तर नीचा कर, थूक चाटने चले गए।
अपने सुत की लाश लाँघ कर, प्रेम बाँटने चले गए।।

खुद की बगिया उजड़ रही है, भान नहीं है माली को,
सींच रहे हैं लहू झाँककर, किसी पड़ोसिन-डाली को।।

हम तो थे निरवंश, उधर वो फसल काटने चले गए।
अपने सुत की लाश लाँघ कर, प्रेम बाँटने चले गए।

✍✍✍✍✍
~पं० सुमित शर्मा "पीयूष"

रविवार, 5 अप्रैल 2020

6:02 pm

वीरता के साथ ही गम्भीरता का थामो हाथ - आदित्य तोमर

वीरता के साथ ही गम्भीरता का थामो हाथ,
ताकि मार हम इस महामारी को सकें.
आपदा के बीच आपाधापी नहीं ठीक, सभी -
- से कहो कि सभी इस सीख को संजो सकें.
लहरें विनाशकारी हावी होना चाहती हैं,
सावधान, ये हमारी नाव न डुबो सकें.
दुनिया में गर्व से सदैव जो तनी रही हैं,
मूँछें कभी भारत की नीची नहीं हो सकें.
-
आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ (उ.प्र.)

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