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रविवार, 12 अप्रैल 2020

10:18 am

घनाक्षरी:- पग पग चहुँ ओर, पंछी करते हैं शोर - खूशबू खुशी


पग पग चहुँ ओर, पंछी करते  हैं शोर ।
खुश इन्हें देख मेरी, आँख भर आई है ।।

अच्छे लगते हैं गाँव, नीम पीपल की छाँव
प्रकृति का ये श्रृंगार, क्या बहार छाई है ।।

मतभेद मिटा अब, मन से ही जुड़े सब
कोरोना ने सबको ये, बात सिखलाई है।

प्यारे हिंदुस्तान जैसा, और न वतन कोई
दुनिया में इसकी चमक लौट आई है ।।

खुशबू

बुधवार, 8 अप्रैल 2020

12:52 am

दिलीप कुमार पाठक की घनाक्षरी

मनहरण घनाक्षरी

तार तार तारतम्य,
गीत गान का गगन|
गन्धिला गोधूलि गोरी,
भाव भौंन भान में||
चमचमाती चाँदनी,
कामिनी सी कुमुदिनी|
उनींदी है उन्मादिनी,
धुन धरे ध्यान में||
अलसायी अँगड़ाई,
बाती बात से बड़ाई|
मंद मंद मुस्कायी,
मनमीत मान में||
प्रेम की पवन पाय,
सजनी सजन साथ |
साँझ शयन सेज सज ,
मगन मुस्कान में ||

दिलीप कुमार पाठक "सरस"


मनहरण~घनाक्षरी
तंग है बिछौना और ,पैर चादर निकाल|
खाली बैठ मत कुछ, काम धाम कर ले||
सुरसा-सी बढ़ रही, मँहगाई आज मीत|
काम धाम कर ले कि ,ऊँचा दाम कर ले|
आन वान शान गान, देश प्रेम है महान|
ऊँचा दाम कर ले कि,जग नाम कर ले||
तन पञ्च तत्त्व में से, उड़ जायेगा पखेरू|
जग नाम कर ले कि, राम राम कर ले||

©दिलीप कुमार पाठक "सरस"

मनहरण घनाक्षरी
तार तार तारतम्य,
गीत गान का गगन|
गन्धिला गोधूलि गोरी,
भाव भौंन भान में||
चमचमाती चाँदनी,
कामिनी सी कुमुदिनी|
उनींदी है उन्मादिनी,
धुन धरे ध्यान में||
अलसायी अँगड़ाई,
बाती बात से बड़ाई|
तम तमतमाता सा ,
मनमीत मान में||
प्रेम की पवन पाय,
सजनी सजन साथ |
साँझ शयन सेज सज ,
मगन मुस्कान में ||

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

मनहरण घनाक्षरी
अत्याचारी जब सिर, चढ़ बोलने लगी तो|
दाँत-पीस क्रान्तिकारी,लोहा लेने आ गया|
धरा-धानी, रक्त-सनी, अलफ्रेड पार्क बनी|
आँखों का उभर खून, तन में समा गया||
टप टप गिरे गोरे,और झटपटाये कई|
तड़ातड़ गोलियों का,ताण्डव दिखा गया||
सतत नमन मेरा,तुमको आजाद वीर|
स्वाभिमान-परिभाषा, हमको सिखा गया||

मनहरण-घनाक्षरी

करने शृंगार बैठी, आज मेरी प्राण प्यारी|
बिंदिया सुभाल लाल, होंठ लाली लाल है||
लाल लाल परिधान,लाल चूड़ियाँ हैं|
गंधवाली हिना हाथों,रची लाल लाल है||
हाथ में गुलाब लाल, लिए चकाचौंध लाल|
लालिमा निहार मन,हुआ लाल लाल है||
गाल लाल होंठ लाल,अंग-अंग लाल लाल|
 लाल लाल परिदृश्य, देख लाल लाल है ||

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

विधा-मनहरण-घनाक्षरी
विषय-सावन
तन-मन कौ जलाय,अंग-अंग झुलसाय,
बिन तेरे कहाँ जाय,जिया अकुलात है||
सावनी फुहार झरै,झरै झकझोरै मोहिं|
झूला पींग पींगने कौ,हेरि-हेरि जात है||
कारे-कारे मेघा नभ, उमड़-घुमड़ आये|
रैन भई है अँधेरी, मन सकुचात है||
सावन न जाये बीत,आजा पाऊँ तेरी प्रीत|
बोल परदेशी-मीत,काहे नहीं आत है||

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

विधा-मनहरण-घनाक्षरी
विषय-हमारे जवान

सीमा के प्रहरी आज, सीना ताने डटे सब |
देश बेटे सभी अब, सीना तान तनिए||
हो अनीति समझौता, छल-बल भ्रष्टाचारी |
शत्रु सदा शत्रु होता, शत्रु सदा हनिए||
स्वच्छ जल के समान, हैं हमारे ये जवान|
आन वान शान हेतु, पर्वतों से छनिए||
भारत सपूत बीर, आओ शत्रु-सीना चीर|
दुष्ट के दलन हेतु, नरसिंह बनिए||

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

मनहरण-घनाक्षरी
जय हनुमान

असुर पिशाच आदि ,नाम सुन काँपते हैं।
नाम लेता जो भी, बाधा आती नहीं मग में।।
रामराम रटते हैं,राम राम जपते हैं।
राम राम राम राम,राम रग रग में।।
करें दुष्ट का दलन ,रहें प्रेम में मगन।
प्रेम से पुकारेंगे तो,हैं हमारे संग में।।
गुणवान दयावान,ज्ञानवान बलवान।
हनुमान के समान,नहीं कोई जग में।।

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

विधा-मनहरण घनाक्षरी।

पढ़ो छंद प्यार भरा,नेह व दुलार भरा।
शब्द-शब्द भाव भरी,जहाँ बात करते।।
हरते हैं ताप सब,दिल का गुबार सब।
जहाँ एक दूसरे पे,हम आप मरते।।
तन मन को भिगोते,झरते फुहार-सम।
प्रेम पगे भाव हम,मिल साथ भरते।।
हँसते हँसाते खूब,दूब जैसे हरषाते।
आप होते साथ तब, हम नहीं डरते।।
दिलीप कुमार पाठक "सरस"

शहीद~ए~आजम भगत सिंह को  भावभरी श्रद्धांजलि समर्पित करते हुए ~
मनहरण घनाक्षरी

हिन्द देश की है शान, भगत महान वीर|
धूल ही चटायी सदा, बैरियों की चाल को||
जिसने छठी का दूध , गोरों को दिलाया याद|
खूब है छकाया ,काटा,जिय के जंजाल को||
चढ़ गया फाँसी फंदा,मातृभूमि हित हेतु|
 ललकारा ताल ठोक, हँस~हँस काल को||
हो गया शहीद वीर, किन्तु हार नहीं मानी|
नमन हजार बार ,भारती के लाल को ||

दिलीप कुमार पाठक सरस

विधा-मनहरण घनाक्षरी
पढ़ो छंद प्यार भरा,नेह व दुलार भरा।
शब्द-शब्द भाव भरी,जहाँ बात करते।।
हरते हैं ताप सब,दिल का गुबार सब।
जहाँ एक दूसरे पे,हम आप मरते।।
तन मन को भिगोते,झरते फुहार-सम।
प्रेम पगे भाव हम,मिल साथ भरते।।
हँसते हँसाते खूब,दूब जैसे हरषाते।
आप होते साथ तब, हम नहीं डरते।।

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

कलाधर घनाक्षरी छंद
     •~•~•~•~•~•~•~•~•
शिल्प - यह ऐक वार्णिक छंद है, इस में चार चरण होते हैं,
           प्रत्येक चरण में गुरु लघु  की पन्द्रह आवृत्ति और
         और अंत में एक गुरु मिलाकर ३१वर्ण होते हैं |
    
शत्रुमुण्ड काट-काट, माल डाल के विशाल|
चण्ड क्रोध में प्रचण्ड, रक्त की पिपासिनी||
दुष्ट दैत्य चीरफाड़, प्रेमभाव का प्रसार|
आदि शक्ति मातु आपु ,दम्भद्वेष की विनाशिनी||
लाल की सुनो पुकार, शेर पे सवार होय|
शैल छोड़ पास आउ,शैल की निवासिनी||
हाथ शीश फेरि मातु ,देउ लाल कौ दुलार|
बोल है अमोल मातु, आपु हैं सुभाषिनी||

दिलीप कुमार पाठक सरस


कलाधर घनाक्षरी छंद

फूल फूल से सुगन्ध, आ रही बयार बीच|
गन्धिला हुई बहार, प्रेमभाव खोलता||
डोलता सदैव पास ,भासमान है समीर|
मीत साथ की मिठास,प्यास मध्य घोलता||
प्रीत रीत है पुनीत,गीतगान बातचीत |
गूँजता सदैव छंद, शब्द शब्द बोलता||
एक सत्य और मीत, मौन साध लेत आज|
दर्द आह की कराह, कौन है टटोलता||

दिलीप कुमार पाठक सरस


शहीद~ए~आजम भगत सिंह को  भावभरी श्रद्धांजलि समर्पित करते हुए ~

मनहरण घनाक्षरी

हिन्द देश की है शान, भगत महान वीर|
धूल ही चटायी सदा, बैरियों की चाल को||
जिसने छठी का दूध , गोरों को दिलाया याद|
खूब है छकाया ,काटा,जिय के जंजाल को||
चढ़ गया फाँसी फंदा,मातृभूमि हित हेतु|
 ललकारा ताल ठोक, हँस~हँस काल को||
हो गया शहीद वीर, किन्तु हार नहीं मानी|
नमन हजार बार ,भारती के लाल को ||

दिलीप कुमार पाठक सरस

 हनुमत भक्ति
छंद~मनहरण घनाक्षरी

राम मेरे मन रमे, राम मेरे तन रमे|
रोम रोम पल पल,हुआ मेरे राम का||
राम को जो भजता है, राम को जो पूजता है|
वही मेरे काम का है, वही मेरे काम का||
श्रीराम वाल्मीकि प्यारे , तुलसी के न्यारे राम|
राम नाम प्यारा अति, अवध ललाम का||
राम नाम जपना है, राम नाम रटना है|
एक नाम राम राम, नाम सत्य धाम का||

दिलीप कुमार पाठक सरस


मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

9:14 pm

दिलीप कुमार पाठक की कुछ घनाक्षरीयाँ - दिलीप पाठक

सूर घनाक्षरी ◆

शिल्प~8,8,8,6,चार चरण समतुकांत

          चरणान्त लघु गुरु।

 

मेरी हे शारदे माता,

मइया तुझको ध्याता।

 

लाल तेरा है बुलाता।।

माँ मेरी आ चली।

 

छल बल बढ़ा अति,

भ्रष्ट हो गयी मति।

 

सरस काम की रति,

गयी फिर छली।।

 

अश्रु नैनों में भरे है,

पीत पातों से झरे हैं।

 

तेरे चरणों गिरे हैं,

 दु:खी मन कली।।

 

दुःख दूर करो तुम,

मन मोद भरो तुम।

 

हाथ शीश धरो तुम,

हरो खलबली।।


दिलीप कुमार पाठक "सरस


सूर घनाक्षरी ◆

शिल्प~8,8,8,6,चार चरण समतुकांत

          चरणान्त लघु गुरु।


सर्दियों में हिम गले।

शीतल लहर चले।

ठिठुरन अंग भरी।

चले आओ पिया।

तुम बिन तरसत

नैन मेरे बरसत

आपके ही दर्श हेतु

जले नैन दिया।।

निंदिया न आती अब

रात भी सताती अब

सर्दी न सुहाती अब

तड़पत जिया।।

घना है कुहासा गीत।

एक तुम आशा प्रीत

प्यार परिभाषा मीत

बसे तुम हिया।।

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

◆ सूर घनाक्षरी ◆

शिल्प~8,8,8,6,चार चरण समतुकांत

          चरणान्त लघु गुरु।

बीती बात भूल अब

नया झूला झूल अब

न चुभाना शूल अब

आये हर्ष नया ।।

 

स्नान कर मल-मल

रहे नहीं मन मल

पहनके मलमल

छू उत्कर्ष नया।।

 

अँखियन सुहाये जो

 जीवन को हर्षाये जो

औ मन को लुभाये जो

हो आदर्श नया।।

 

 

मन-पंछी उड़ जाना।

नये भाव भर लाना।

हितकारी सुखकारी

हो ये वर्ष नया।

दिलीप कुमार पाठक "सरस

 

 

◆ डमरू घनाक्षरी ◆

 

 शिल्प~8,8,8,8 लघु वर्ण प्रति चरण

   【बिना मात्रा के प्रति चरण 32 वर्ण,】

4चरण समतुकांत।



 

मन हरषत अब,

लखकर दरसन।

पहल पवन कर,

सर-सर चलकर।।

 

दरपन लखकर,

नयनन भरकर।

तन-मन फरकत,

महकत सजकर।।

 

 

झमझम बरसत,

सरस सघन घन।

सजन शयन कर,

उर घर बसकर ।।

 

बस कर,बस कर,

कह मत,मत कर।

कर-कर,कर-कर,

कर मन भरकर।।

 

 

✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

🏻🏻🏻🏻🏻🏻

 

 

◆ वीर/आल्हा छंद [सम मात्रिक]◆

 

विधान –[ 31 मात्रा, 16,15 पर यति,

चरणान्त में वाचिक भार 21 या गाल,

कुल चार चरण,

क्रमागत दो-दो चरणों पर तुकांत]

 



 धूप कहूँ नहिं देय दिखाई,

पाले की चहुँतरफा मार।

थर-थर,थर-थर तन है काँपै,

ठंडी-ठंडी चलै बयार।।

 

साँझ भई सब तापन बैठे,

बीड़ी हुक्का लियो उठाय।

पहले मसली है तम्बाकू,

फिर फटकारी दई लगाय।।

 

कुछ तौ सेंकत हाथ-पाँव हैं,

कुछ की होतीं आँखैं चार।

दद्दा बैठे गप्पैं हाँकैं,

होय ठहाकन की बौछार ।।

 

बहुत देर से भरकन कौ जौ,

ठंडो बिस्तर रहो बुलाय।

शीत लहर को झोंका आओ,

आगी सारी दई बुझाय।।


दिलीप कुमार पाठक "सरस"

 

 *माहिया -छंद*



माहिया ` पंजाब का प्रसिद्ध लोग गीत है . यूँ तो इसमें श्रृंगार रस के दोनों 

पक्ष संयोग और वियोग का समावेश होता लेकिन अब अन्य रस भी शामिल किये  जाने लगे  हैं . इस छंद में नायक और नायिका ( प्रेमी और प्रेमिका ) की अमूमन  नोंक - झोंक होती है . यह तीन पंक्तियों का छंद है . इसे ` टप्पा` भी कहते हैं . पहली और तीसरी पंक्तियों में 12 मात्राएँ यानि 2211222और दूसरी पंक्ति में 

 

10 मात्राएँ यानि 211222 होती हैं . तीनों पंक्तियों में सारे गुरु ( 2 ) भी आ सकते हैं . 

🏻🏻🏻🏻🏻🏻🏻

 

काहे गये परदेश।

लौटे नाहीं तुम।।

भेजौ सरस संदेश।।।

 

बहुत काम है सजनी।

दूर हमारो घर।।

जागैं सारी रजनी।।।

 

ऐसे कब तक सैहैं।

जुदाई यार की।।

तुम बिन नहिं रह पैहैं।।।

 

दूर मिलन है माना।

ओ सजनी मेरी।।

आकै नहिं अब जाना।।।

 

सुन लेना बनबारी।

भेजैं अधिकारी ।।

दूर करौ लाचारी ।।।

 

✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

 

 

◆तिलका छंद◆

 

           शिल्प:-

           [सगण सगण(112 112),

           दो-दो चरण तुकांत,

           6वर्ण प्रति चरण ]

 

            🏻🏻🏻🏻🏻

 

रस छंदन में।

मकरंदन में।।

लय ताल मिले।

मन-रूप खिले।।

 

कर काम सदा।

मत बोझ लदा।।

दुख दूर करें।

भव-रोग हरें।।

 

मन मोद भरो।

सब शोक हरो।।

मनमीत मिला।

दिल फूल खिला।।

 

घर आज सजा।

अब दूर न जा।।

हम साथ चले।

मन दीप जले।।

 

✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

 

   

🏻

 

जय माँ शारदे

वंदना के भाव-पुष्प



माता मेरी शारदे,

ममता का है कोष।

दूर करो सुत के सभी,

जो भी देखो दोष।।



बालक हूँ मैं आपका,

कर ममता-पय पान।

गुण गाऊँ मैं आपके,

रखना इतना ध्यान ।।



कोमल भावों की मिले,

जीवन में रसधार।

हे माता सबके लिए ,

दे दो सुख का सार।।



मैया मेरी मैं अभी,

बालक हूँ नादान ।

अंधकारमय जग दिखे ,

हरो तिमिर अज्ञान ।।



डर लगता है माँ मुझे,

आप न जाना दूर।

आपके चरणों में दिखे,

ज्योतिपुंज का नूर।।



 सदा वंदना मैं करूँ,

करूँ बंद न मात।

सबके सिर पर नेह का,

रखें सदा ही हाथ।।



✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

 

 

🏻माँ शारदे की वंदना🏻



घनाक्षरी छंद



 

नेह की कसौटी खरी,

हरी-भरी उर धरी।

 

जौहरी समान मूर्त,

भाव भर देना माँ।।

 

बालक अबोध तेरे,

जाने नहीं रञ्च-मात्र।

 

लेखनी चले निर्भीक,

  धार धर देना माँ।।

 

आतंक पे प्रहार हो,

सार का प्रसार हो।

 

प्रीति-रीति नीति का तू,

ऐसा वर देना माँ ।।

 

अधजल गगरी है,

छलक न जाये कहीं।

 

ज्ञान -रस परिपूर्ण,

इसे कर देना माँ।।

 

✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

 

सूर घनाक्षरी ◆

 

शिल्प~8,8,8,6,चार चरण समतुकांत

          चरणान्त लघु गुरु।

🏻🏻🏻🏻🏻🏻🏻

 

मेरी हे शारदे माता,

मइया तुझको ध्याता।

 

लाल तेरा है बुलाता।।

माँ मेरी आ चली।

 

छल बल बढ़ा अति,

भ्रष्ट हो गयी मति।

 

सरस काम की रति,

गयी फिर छली।।

 

अश्रु नैनों में भरे है,

पीत पातों से झरे हैं।

 

तेरे चरणों गिरे हैं,

 दु:खी मन कली।।

 

दुःख दूर करो तुम,

मन मोद भरो तुम।

 

हाथ शीश धरो तुम,

हरो खलबली।।

 

✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻

दिलीप कुमार पाठक "सरस

 

 

 

 

सूर घनाक्षरी ◆

 

शिल्प~8,8,8,6,चार चरण समतुकांत

          चरणान्त लघु गुरु।



 

 

सर्दियों में हिम गले।

शीतल लहर चले।

ठिठुरन अंग भरी।

चले आओ पिया।

तुम बिन तरसत

नैन मेरे बरसत

आपके ही दर्श हेतु

जले नैन दिया।।

निंदिया न आती अब

रात भी सताती अब

सर्दी न सुहाती अब

तड़पत जिया।।

घना है कुहासा गीत।

एक तुम आशा प्रीत

प्यार परिभाषा मीत

बसे तुम हिया।।

✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

[12/8/2016, 2:42 PM] SS SARAS DILIP KUMAR PATHAK:

 

 

◆ सूर घनाक्षरी ◆

शिल्प~8,8,8,6,चार चरण समतुकांत

          चरणान्त लघु गुरु।

🏻🏻🏻🏻🏻🏻🏻

 

बीती बात भूल अब

नया झूला झूल अब

न चुभाना शूल अब

आये हर्ष नया ।।

 

स्नान कर मल-मल

रहे नहीं मन मल

पहनके मलमल

छू उत्कर्ष नया।।

 

अँखियन सुहाये जो

 जीवन को हर्षाये जो

औ मन को लुभाये जो

हो आदर्श नया।।

 

 

मन-पंछी उड़ जाना।

नये भाव भर लाना।

हितकारी सुखकारी

हो ये वर्ष नया।

 

 

✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻

दिलीप कुमार पाठक "सरस

 

 

◆ डमरू घनाक्षरी ◆

 

 शिल्प~8,8,8,8 लघु वर्ण प्रति चरण

   【बिना मात्रा के प्रति चरण 32 वर्ण,】

4चरण समतुकांत।



 

मन हरषत अब,

लखकर दरसन।

पहल पवन कर,

सर-सर चलकर।।

 

दरपन लखकर,

नयनन भरकर।

तन-मन फरकत,

महकत सजकर।।

 

 

झमझम बरसत,

सरस सघन घन।

सजन शयन कर,

उर घर बसकर ।।

 

बस कर,बस कर,

कह मत,मत कर।

कर-कर,कर-कर,

कर मन भरकर।।

 

 

✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

🏻🏻🏻🏻🏻🏻

 

 

◆ वीर/आल्हा छंद [सम मात्रिक]◆

 

विधान –[ 31 मात्रा, 16,15 पर यति,

चरणान्त में वाचिक भार 21 या गाल,

कुल चार चरण,

क्रमागत दो-दो चरणों पर तुकांत]

 



 धूप कहूँ नहिं देय दिखाई,

पाले की चहुँतरफा मार।

थर-थर,थर-थर तन है काँपै,

ठंडी-ठंडी चलै बयार।।

 

साँझ भई सब तापन बैठे,

बीड़ी हुक्का लियो उठाय।

पहले मसली है तम्बाकू,

फिर फटकारी दई लगाय।।

 

कुछ तौ सेंकत हाथ-पाँव हैं,

कुछ की होतीं आँखैं चार।

दद्दा बैठे गप्पैं हाँकैं,

होय ठहाकन की बौछार ।।

 

बहुत देर से भरकन कौ जौ,

ठंडो बिस्तर रहो बुलाय।

शीत लहर को झोंका आओ,

आगी सारी दई बुझाय।।

 

✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

 

 *माहिया -छंद*



माहिया ` पंजाब का प्रसिद्ध लोग गीत है . यूँ तो इसमें श्रृंगार रस के दोनों 

पक्ष संयोग और वियोग का समावेश होता लेकिन अब अन्य रस भी शामिल किये  जाने लगे  हैं . इस छंद में नायक और नायिका ( प्रेमी और प्रेमिका ) की अमूमन  नोंक - झोंक होती है . यह तीन पंक्तियों का छंद है . इसे ` टप्पा` भी कहते हैं . पहली और तीसरी पंक्तियों में 12 मात्राएँ यानि 2211222और दूसरी पंक्ति में 

 

10 मात्राएँ यानि 211222 होती हैं . तीनों पंक्तियों में सारे गुरु ( 2 ) भी आ सकते हैं . 

🏻🏻🏻🏻🏻🏻🏻

 

काहे गये परदेश।

लौटे नाहीं तुम।।

भेजौ सरस संदेश।।।

 

बहुत काम है सजनी।

दूर हमारो घर।।

जागैं सारी रजनी।।।

 

ऐसे कब तक सैहैं।

जुदाई यार की।।

तुम बिन नहिं रह पैहैं।।।

 

दूर मिलन है माना।

ओ सजनी मेरी।।

आकै नहिं अब जाना।।।

 

सुन लेना बनबारी।

भेजैं अधिकारी ।।

दूर करौ लाचारी ।।।

 

✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

 

 

◆तिलका छंद◆

 

           शिल्प:-

           [सगण सगण(112 112),

           दो-दो चरण तुकांत,

           6वर्ण प्रति चरण ]

 

            🏻🏻🏻🏻🏻

 

रस छंदन में।

मकरंदन में।।

लय ताल मिले।

मन-रूप खिले।।

 

कर काम सदा।

मत बोझ लदा।।

दुख दूर करें।

भव-रोग हरें।।

 

मन मोद भरो।

सब शोक हरो।।

मनमीत मिला।

दिल फूल खिला।।

 

घर आज सजा।

अब दूर न जा।।

हम साथ चले।

मन दीप जले।।

 

✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

 

   

🏻

 

जय माँ शारदे

वंदना के भाव-पुष्प



माता मेरी शारदे,

ममता का है कोष।

दूर करो सुत के सभी,

जो भी देखो दोष।।



बालक हूँ मैं आपका,

कर ममता-पय पान।

गुण गाऊँ मैं आपके,

रखना इतना ध्यान ।।



कोमल भावों की मिले,

जीवन में रसधार।

हे माता सबके लिए ,

दे दो सुख का सार।।



मैया मेरी मैं अभी,

बालक हूँ नादान ।

अंधकारमय जग दिखे ,

हरो तिमिर अज्ञान ।।



डर लगता है माँ मुझे,

आप न जाना दूर।

आपके चरणों में दिखे,

ज्योतिपुंज का नूर।।



 सदा वंदना मैं करूँ,

करूँ बंद न मात।

सबके सिर पर नेह का,

रखें सदा ही हाथ।।



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दिलीप कुमार पाठक "सरस"

 

🏻माँ शारदे की वंदना🏻



घनाक्षरी छंद


नेह की कसौटी खरी,

हरी-भरी उर धरी।

 

जौहरी समान मूर्त,

भाव भर देना माँ।।

 

बालक अबोध तेरे,

जाने नहीं रञ्च-मात्र।

 

लेखनी चले निर्भीक,

  धार धर देना माँ।।

 

आतंक पे प्रहार हो,

सार का प्रसार हो।

 

प्रीति-रीति नीति का तू,

ऐसा वर देना माँ ।।

 

अधजल गगरी है,

छलक न जाये कहीं।

 

ज्ञान -रस परिपूर्ण,

इसे कर देना माँ।।


दिलीप कुमार पाठक "सरस"

 

शनिवार, 4 अप्रैल 2020

4:01 am

भारती की शान लिखो , देश का सम्मान लिखो - बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"

मनहरण घनाक्षरी
(8,8,8,7 अंत लघु गुरु)

भारती की शान लिखो , देश का सम्मान लिखो ।
एकता *अखंडता* न , मंद होना चाहिए ।।

नारियों को मान मिले , उन्हे स्वाभिमान मिले ।
पुरुषो के अत्याचार , बंद होना चाहिए ।।

वेद का विधि विधान , सभी करे गुणगान ।
हिन्दू राष्ट्र होने में न , संद होना चाहिए ।।

राम का चरित्र सुनो , कृष्ण उपदेश गुनो ।
जीवन का सार गीता , छंद होना चाहिए ।।

🌻🌻🌻🌻🌻 537🌻🌻
कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा

(संद-दरार, मतभेद)

शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

7:39 am

जिला हरदोई स्वाधार गृह से 19 महिलाएं लापता ----राजेश मिश्र प्रयास

----शव्द प्रहार-----------

जिला हरदोई बीच
               महिला स्वाधार गृह
महिलाएं लापता हैं
               गिनती उन्नीस है
सुर्पनखा ताड़का भी
               गृहों में डटी पड़ीं हैं
बड़ा भाई कर रहा
               इकट्ठी ये फीस है
धीरे धीरे खुली पोल
             गपला था गोल मोल
मुझको दिखाई दिया
             जिन्दा दसशीस है
जाँच में खुलासा हुआ
             दुष्टों में इजाफा हुआ
खा रहा है नारियों को
               कौन सा खब्बीस है

💐💐💐💐💐💐💐💐
    राजेश मिश्र प्रयास
   बीसलपुर पीलीभीत
यदि सच लगे तो आप सभी का आशीर्वाद चाहता हूँ

सोमवार, 25 जून 2018

6:18 am

दाती पर चढी साढे साती


पाप का कलश फूटा
              गुस्से में दिखाते दाँत
महाराज गजलों पे
                 चूर नाचने लगे
दिल्ली में जमाये पैर
               झाडियों के खट्टे बेर
भक्त सभी बाबा जी का
                 नूर बाँटने लगे
न्याय के भी देव को भी
             गच्चा दे रहे थे दाती
भारत की मीडिया से
             दूर भागने लगे
शनि का सवैया चढा
               चढ गयी साढ़े साती
धनाधिप आज देखो
              धूर चाटने लगे

   राजेश मिश्र प्रयास

शुक्रवार, 22 जून 2018

8:16 pm

मनहरण घनाक्षरी- बृजमोहन श्रीवास्तव


स्वस्थ यदि रहना है , बात यही कहना है ।
खुशहाल जीवन का ,योग गुरु मंत्र  है ।।

योग करे रोग दूर , खुशी मिले भरपूर ।
प्रकृति का रूप योग , ईश्वर का यंत्र है ।।

भोर मिले प्राण वायु , इससे बढ़े है आयु ।
सूरज का नमस्कार , मानो गणतंत्र है ।।

योग दिवस है आज , करो कुछ नया काज ।
छोड़ना है नशे सभी , फैलता अन्यंत्र है ।।

कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा

विशिष्ट पोस्ट

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