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अक्स बदायूँनी ( विकास भारद्वाज ) लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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सोमवार, 27 जुलाई 2020

7:09 pm

विकास भारद्वाज के जन्मदिन पर....

आज आपका जन्मदिवस है। ईश्वर तुम्हें वह सबकुछ दें जिसके आप योग्य हो। आपकी सभी इच्छाएं पूर्ण हो।  मुझे पता है, आप बहुत ही समझदार इंसान हो आपकी शायरी भी एक दिल को एक अलग एहसास कराती है और आपने कई बार बेहद नाजुक वक्त पर मुझे संभाला है। मेरे लिए एक अच्छे दोस्त और जिससे मै हर बात शेयर कर सकूँ वो आप हो।
यकीनन आपकी ग़ज़लें खूबसूरती और तग़ज़्जुल से लबरेज हैं। आपकी ग़ज़लों में , मुहब्बत और जिंदगी के फलसफे, ग़ज़ल की अपनी ज़ूमीन,अपनी फ़िक्र, अपना लहजा, अपना रंग और अपनी रवानी तो है पर वो जब दूसरों की जमीन छूते हैं तो उस पर भी अपना रंग आसानी से चढ़ा लेते हैं।
आपके प्रधान सम्पादकीय में "मुहब्बत ग़ज़ल संग्रह" सन् 2018 में प्रकाशित हुआ जिसमें देश के कुछ शायरों को भी सम्मलित किया गया और एक नया ग़ज़ल संग्रह आने वाला भी है...

आपकी ग़ज़लों से कुछ शेर जो मुझे अच्छे लगते है -

रेशमी ख्वाबों  में  अब  इक  रुत  सुहानी  भेजना ।
तुम   नये   खत   में   वही   बातें   पुरानी  भेजना ।।

दिल के रिश्तें में हरिक पल साथ हों हम तुम सुनों ।
जिंदगी  भर   खत्म  ना   हो  वो  कहानी  भेजना ।।

मुहब्बत के शायर विकास जी का एक शेर और -

इक नज़र मुझसे मिला लें जो तू फिर महफिल में ।
देखने   वालों    की    हैरत   नही   देखी   जाती ।।

आपने अपनी शायरी से आजकल के रिश्तों पर कहा -

मिलते  है  अब  कहाँ  रूहानी  रिश्तें  दुनिया  में  ।
लोग  अपना   होने   का  बस   दिलासा  देते  हैं  ।।

छोटी  छोटी  गलतीयाँ  हो  जाती  है ।
पर   तुम्हें   रिश्ता   बचाना   चाहिए ।।

जिंदगी के फलसफे क्या खूब शायरी में बाँधे है -

जिंदगी  से  इस  कदर  गम मिले है क्या कहूँ ।
जख्म, यादें और किस्मत का बहाना हो गया ।।

हो   गये   बेजुबाँ    खिलौने   से ।
अश्क  भर  के  रुला  गई  आँखे ।।
 
दिल है खामोश उम्र भर के लिए ।
राज  दिल  के  छिपा गयी आँखे ।।

जिंदगी    के    हैं    फ़लसफे़   ऐसे  ।
लिखते  लिखते   कई   कलम  टूटे ।।

मसलन— विकास जी कहते हैं—

मिला  धोखा  हमें  जब   लोगों  से  फिर भी ।
हमें    इंसाँ    परखना    क्यूँ    नहीं    आया ।।

बेअसर   हो   गया   था   ज़हर   जाने   क्यूँ ।
उसने  खाया  था  कल  खुदखुशी  के  लिए ।।

विकास जी महाकाल आपको यश, कीर्ति, वैभव, स्वास्थ्य और सद्बुद्धि दें। बहुत-बहुत शुभकामनाएं एवं बधाई💐💐🎂🎂😊🎁

हमारी तो दुआ है, कोई गिला नहीं,
वो गुलाब जो आज तक खिला नहीं,
आज के दिन आपको वो सब कुछ मिले,
जो आज तक किसी को कभी मिला नहीं.
दिल से मेरी दुआ है कि खुश रहो तुम,
मिले न कोई गम जहाँ भी रहो तुम,
समंदर की तरह दिल है गहरा तुम्हारा,
सदा खुशियों से भरा रहे दामन तुम्हारा।
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सरगम


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जन्मदिवस पर स्नेहिल शुभकामनाएं और मंगलमय बधाइयां प्रिय विकास जी
- कवि अभिषेक अन्नत (बदायूँ)
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जय हो आपकी
- कवि एवं पूर्व सांसद ओमपाल सिंह निडर
   फिरोजाबाद
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आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं ईश्वर आपको लम्बी उम्र प्रदान करें।
- राहुल माथुर (खितौरा)
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हार्दिक शुभकामनाएं जन्मदिवस की जय हो
- अनिल प्रजापति (मेरठ)
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जन्मदिन कि ढेरो शुभकामनायें
Happy birthday
- रोहित उपाध्याय (लखनऊ)
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खुश रहो ...जीते रहो ... शुभकामनाएं
- तनु युग भारद्वाज (दिल्ली)
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Happy birthday vikas babu
    ..God bless you...
- रोहित शर्मा (खितौरा)
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Happy wala b'day vikas.
- नीता कौर
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जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ
आज तुम्हारा Birthday है मुँह मीठा करो
- प्रवीणा दीक्षित
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Happy birthday beta
Khush rho
Kamyab rho
- सना परवीन
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जन्मदिन की अशेष बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ भैया
- सुनील नागर सरगम (म०प्र०)
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खट्टा सा मीठा सा रिश्ता है हमारा,
कभी रूठना, कभी मनाना,
लाओ एक मीठा सा केक,
मनाते है जन्मदिन तुम्हारा।
हैप्पी बर्थडे विकास भाई
- निधी दीदी
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जन्मदिन की हार्दिक बधाई संग शुभाशीष प्रिय अनुज
- छंदगुरू शैलेन्द्र खरे "सोम" (छतरपुर,म०प्र०)
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बधाई हो बधाई हो, बधाई हो बधाई हो,
जनमदिन आज जिनका है बधाई हो बधाई हो,,
- ग़ज़लकार भूपधर द्विवेदी "अलबेला"
(रीवा,म०प्र०)
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जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ प्रिय अनुज
- कवि दिलीप कुमार पाठक "सरस"
अध्यक्ष
विश्व जनचेतना ट्रस्ट बीसलपुर (उ०प्र०)
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जन्मदिन की अनन्त शुभकामनाएं व आर्शीवाद अनुज।
- ग़ज़लकार संतोष कुमार प्रीत
वाराणसी (उ०प्र०)
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जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं आपको
- नन्दनी श्रीवास्तव
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जन्मदिन की बेहद शुभकामनाएँ
शैली सिंह , बिल्सी (उ०प्र०)
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आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं
- कवि ओमपाल शर्मा "ओम"
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और बहुत से मेरे अजीजों ने जन्मदिन की मुबारकबाद दी

गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

11:17 am

महाराणा प्रताप भारत का परमवीर बलिदानी - विकास भारद्वाज


महाराणा प्रताप भारत का परमवीर बलिदानी ।
दुश्मनों को मारा था लेकर नाम जय माँ भवानी ।।
चले राणा का चेतक सामने कोई रुक न सका ।
चली तेज तलवार तो गद्दार कोई टिक न सका ।।

अकबर ने खेली थी चाल हल्दीघाटी के मैदान ।
राजपूत, मनला दिये थे, धोखा युद्ध के दौरान ।।
कई हजार मुगलसेना से लोहा लिया था प्रताप ।
उठा भाला भोंगे तो अकबर का बड़ा रक्तचाप ।।

देशहित के लिए कभी जीते जी संधि नही की ।
वीरयोद्धा महाराणा ने गद्दारों को धूल चटा दी ।।
जिसने माटी की रक्षा से कभी सौदा नही किया ।
ऐसा महान प्रतापी राजा  वीर भूमि को जिया ।।

देशभक्त महाराणा जैसा दूसरा प्रताप नही हुआ ।
हल्दी घाटी का युद्ध मानों महाभारत युद्ध हुआ ।।
घास की रोटी खाकर भी देश के लिए लडते रहे ।
युद्ध के बाद अकबर की आँखों से भी आँसू बहे ।।

विकास भारद्वाज
बदायूँ
23 अप्रेल 2020 


सोमवार, 6 अप्रैल 2020

6:53 pm

मिरी अहले वफा देखो सनम कैसी वफा दी है - विकास भारद्वाज


मिरी अहले  वफा   देखो   सनम   कैसी  वफा  दी  है ।
पुराना   जख्म   गहरा   हो   रहा   कैसी  दवा  दी  है ।।

मिरे  ये  जख्म  मरहम  से  नही  इल्जामों  से  भर कर ।
मुझे   उसने   न   जाने  इश्क   में  कैसी  सजा  दी  है ।।

लरजते   होठों   की   बढने   लगी   है  प्यास  परदेशी ।
कसक  मिलने  की  दिल  में आज ये कैसी उठा दी है ।।

नही मिलती है अब दिल को तुम्हारे ख्यालों से फुर्सत ।
मेरे   महबूब   तुमने   इश्क   की   कैसी   हवा  दी  है ।।

खुदा  ने  आपको  क्या  खूबसूरत  आँखें  दी  जानम ।
जो  भी   देखे   हुआ  मदहोश  ये  कैसी  अदा  दी  है ।।

©विकास भारद्वाज "अक्स बदायूँनी"
    15  दिसम्बर  2019




गुरुवार, 12 जुलाई 2018

9:50 pm

मुहब्बत ग़ज़ल संग्रह से अक्स बदायूँनी की जी कुछ ग़ज़लें

ग़ज़ल  क्र० 1

बहर-.हज़ज मुसद्दस सालिम
🌸 वज़्न - 1222  1222  1222
अरकान-  मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन
🌸 क़ाफ़िया— आ...स्वर
🌸 रदीफ़ --- क्यूँ नहीं आया...

नए    साँचे    में   ढलना   क्यूँ    नहीं  आया ।
हमें   खुद   को   बदलना  क्यूँ    नहीं  आया ।।
मिला  धोखा  हमें  जब   लोगों  से  फिर भी ।
हमें    इंसाँ    परखना    क्यूँ    नहीं    आया ।।
जिसे   देखो,   जुबाँ   पर   झूट   हैं, आखिर ।
हमें    सच   को   छुपाना   क्यूँ  नही  आया ।।
हरिक   पल   जिंदगी   तेरा    नया   किस्सा ।
हमें    काँटो   पे   चलना   क्यूँ   नहीं  आया ।।
किसी   ने   शूलों    की   राहें   बना   डाली ।
हमें   ज्वाला   में   तपना   क्यूँ  नही  आया ।।
हया   ए   राह,  मिलती   ठोकरें   फिर   भी ।
हमें   गिरकर   सभलना   क्यूँ   नही  आया ।।
समय    का   फेर   तो  देखो  हमें  अब  भी ।
कठिनता   से   निकलना  क्यूँ   नहीं  आया ।।

अक़्स बदायूँनी
    

ग़ज़ल क्र० 2

🌸 वज़्न - 212  212  212  212
बहर-मुतदारिक मुसम्मन सालिम
अरकान-फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन
🌸 क़ाफ़िया— आ स्वर
🌸 रदीफ़ ---  कर दिया

प्यार   में   उसने   मुझको   फ़ना  कर  दिया ।
ख़ाक  सा  था  मैं  मुझको  खुदा  कर  दिया ।।

उसके   लहजे   ने   कायल   हमें  था  किया ।
हक  मुहब्बत  का  उसने  अदा   कर   दिया ।।

चेहरे     पर     सदा     मुस्कराहट     रहे ।
प्यार  में  हमनें  दिल  आईना  कर  दिया ।।

इश्क   उसका   वफा   से    मुकर  ही  गया ।
जख़्म  दिल  का  यूँ  उसने  हरा  कर  दिया ।।

याद  कर   तुझको   आँखों  से  आँसू  बहें  ।
यार   तुम  ने  अज़ब  फासला   कर   दिया ।।

अब   कहाँ  मिलते  हैं  खुशमिजाजी  से  वो  ।
उम्र    भर    को   हमें   गमज़दा   कर   दिया ।।

हाँ  बहुत  गहरा  रिश्ता  था  इक  शक़्स  से  ।             
जिसको   चाहा  था  उसने  दगा  कर  दिया ।।

© अक़्स बदायूँनी


गजल क्र○ 3

बहर- 122 122 122 122
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
काफिया- आने
रदीफ़- लगे हैं

बिना  बात  के  मुस्कुराने  लगे  हैं ।
हमें  प्यार  वो  यूँ  जताने  लगे  हैं ।।

कभी  माँगते  थे  हमें  वो  दुआ  में ।
वही  होंठ  अब  गुनगुनाने  लगे  हैंं ।।

जिसे  हम  भुलाना  अजी चाहते पर ।
सुबह  शाम  वो  याद  आने  लगे  हैंं ।।

तरसते  रहें  फक्त  दीदार  को  हम ।
उसी   चेहरे   को   भुलाने   लगे  हैंं ।।

ढहाये  हैं जुल्मों  सितम  याद  करके ।
हमें   हाल   ए   दिल  बताने  लगे  हैंं ।।

गुजरने  लगी  रात  जबसे  तड़प  कर ।
वही  दर्द   दिल  का  छुपाने  लगे  हैंं ।।

किया  साथ  चलने  का  वादा  जिन्होंने ।
वही   आज   सब   हिचकिचाने  लगे  हैंं ।।

© विकास भारद्वाज "अक्स बदायूँनी"



गजल क्र○ 4

बह्र           :  २१२२ २१२२  २१२
अरकान   : फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
काफिया    : अा स्वर
रदीफ      :  छोड़िये

रोज   का    झूठा    बहाना    छोडिये ।
अब   हमारा   दिल   दुखाना  छोड़िये ।।

जो बनाये   दोस्त   पैसों   से  सुनो ।
दोस्ती   को   आजमाना    छोड़िये ।।
 
अब हमारे  दिल  की  तुम  हो  आरज़ू ।
ख्वाब   में   आकर   सताना   छोड़िये ।।

शाम  को   बागों  में  आ  हमसे  मिलों ।
आज   से   मैख़ाने    जाना    छोड़िये ।।
 
आज  से   सुनना   हमारी  भी  ग़ज़ल ।
गीत    अब   तो   गुनगुनाना   छोड़िये ।।

हाँ बहुत  ठोकर  मिली  मुझको सुनो ।
जिंदगी   अब   तो   रुलाना  छोड़िये ।।

लोग  अब  डरते  न  क्यूँ   भगवान  से ।
आग   घर - घर  अब  लगाना  छोडिये ।।

© विकास भारद्वाज "अक्स बदायूँनी"



गजल क्र○ 5

बह्र           : 1222  1222  1222  1222
काफिया    :  आ
रदीफ        :  लेना दिवाली पर
                                                       
दिलों   की   दूरियाँ   सबसे   मिटा   लेना  दिवाली  पर ।
सभी  को  अब  गले  से  तुम  लगा  लेना दिवाली  पर ।।

जरा  मन  के  अँधेरे  को  मिटा  इस   बार  तुम  देखो ।
मुहब्बत का  दिया  दिल  में  जला  लेना  दिवाली  पर ।।

पुराने   हो   गये  रिश्तें  नया  करके  दिखाओ  तुम  ।
बनाया  जो  कभी  रिश्ता  बचा  लेना  दिवाली  पर ।।

गली  में  आज  निकलेगा  चमकता  चाँद ए  गौरी ।
जला  के  दीप  थोड़ा  मुस्कुरा  लेना  दिवाली  पर ।।

रहा  ताउम्र   सबसे   दूर   घर   को   छोड़  परदेशी ।
जरा  तू  प्यार  लोगो  पर  लुटा  लेना  दिवाली  पर ।।

© विकास भारद्वाज "अक्स बदायूँनी"



ग़ज़ल  क्र० 6

वज़्न -1222 1222 122
🌸 क़ाफ़िया -आ स्वर
🌸रदीफ- हुआ हूँ

ग़में     तन्हाई     में     खोया    हुआ   हूँ ।
किसी   की   याद   का   मारा   हुआ  हूँ ।।

आते   वो   याद,   तन्हा   शाम,  यानी ।
अभी  तक  दर्दे - दिल  पाला  हुआ  हूँ ।।

किसी   पल   मौत   के  आगोश  में  ग़ुम ।
हो   कर   इक   टूटा  ही  तारा   हुआ  हूँ ।।

जहाँ   पर   छोड़कर   जो   वो   गये  थे ।
वहीं    पर    मैं   अभी   ठहरा   हुआ  हूँ ।।

उसी    ने    इश्क    में     की    बेवफाई  ।
समंदर   सा   मैं    तब   खारा   हुआ  हूँ ।।

© विकास भारद्वाज "अक्स बदायूँनी"



ग़ज़ल  क्र० 7

बह्र -  1222    1222     1222       1222
काफ़िया - अर
रदीफ -  अच्छा नहीं लगता

तुम्हारे  बिन  मुझे अपना ये घर अच्छा नही लगता ।
नही हो साथ तुम अब ये सफ़र अच्छा नही लगता ।।

युं  तो  चलते  रहे  थे साथ तुम कल तक हमारे पर ।
चुराते  हो  हमींं  से  अब  नज़र अच्छा नहीं लगता ।।

न  खेलों  तुम  किसी  की जिंदगानी से सितमगर बन ।
अमन  औ  चैन  के  बदले  कहर  अच्छा  नहीं लगता ।।

तेरी  यादों  के  साये  से अभी  दिल  को तसल्ली है ।
पुरानी  बातों  को अब  सोचकर अच्छा नहीं लगता ।।

परिंदे  अब   कहाँ  अपना  ठिकाना   ढूढेगें   लोगो ।
गर्मी  की  धूप  में  सूखा  शज़र  अच्छा नही लगता ।।

कभी  जो  झुग्गियों  पे आँधियाँ  रूठें तो सच हमको ।
गरीबों  की  निगाहों  में  ये  डर  अच्छा  नहीं  लगता ।।

© विकास भारद्वाज "अक्स बदायूँनी"

ग़ज़ल  क्र० 8
बहर-.हज़ज मुसद्दस सालिम
🌸 वज़्न - 1222  1222  1222  1222
अरकान-  मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन
🌸 क़ाफ़िया— आन..स्वर
🌸 रदीफ़ --- लगती हैं....
मुझे   तेरे   बिना   दुनिया   बहुत  वीरान  लगती  है ।
भली  ये  जिंदगी  लेकिन  मुझे  शमशान लगती  है ।।
बहुत कोशिश की  हैं  ये  जिंदगी  तुझको बचाने की ।
चले   ये   साँस   जो   मुझे   ही   अंजान  लगती  है ।।
जो   वृद्धाश्रम   में    बूढी   माँ   को  छोड़  आये  हैं ।
सुनों  वो  बूढी  महिलायें   मुझे  भगवान  लगती  हैं ।।
न  जाने  कब  गुजर  जाये  सफ़र  ए  जिंदगानी  का ।
मुझे  तो  एक  दो  दिन  की  ही  ये महमान लगती हैं ।।
मिले  जिसको  सही  राहें  जो  अब के दौर  में  लोगों ।
अजी  ये  जिंदगी  उसको  बहुत  आसान  लगती  हैं ।।
कभी  देखा  नही  मैंने - तुझे  पर  आज  देखा  तो ।
लगा  बर्षों  पुरानी  अपनी  तो  पहचान  लगती  है ।।
©विकास भारद्वाज "अक्स बदायूँनी"


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