हिंदी साहित्य वैभव

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मंगलवार, 9 जुलाई 2019

6:53 pm

हिंदी और उर्दू

हिंदी और उर्दू भले ही दो बहनें
दोनों ही बहुत खूबसूरत गहनें
हिंदी और उर्दू-------

दोनों पर ही है हमारी शान
फिर क्यों एक हिन्दू दूसरी मुसलमान
हिंदी और उर्दू--------

भाषा में इतनी मिठास 
फिर क्यों लगे कयास
हिंदी और उर्दू------

न गला तर होता
न बुझती है प्यास
हिंदी और उर्दू-------

यही है सगी बहनों की कहानी
जो मुझे है आपको बतानी
हिंदी और उर्दू------

एक है कंठस्त एक ज़ुबानी
एक शहीद एक क़ुर्बानी
हिंदी और उर्दू-------

भाषा न धर्म न मज़हब
दोनों की पकड़ है गज़ब
हिन्दी और उर्दू------

एक जोड़ती है एक मिलाती
एक संस्कार सिखाती एक निभाती
हिंदी और उर्दू-------
हिंदी और उर्दू-------

आपका प्यार
वीरेंद्र कौशल
6:47 pm

अच्छी सोच बुरी सोच

शब्बो अम्मा बड़े सब्र वाली और ठंडे मिज़ाज की औरत थी। रोज़ की तरह शब्बो अम्मा लकड़ियां बीनने  जंगल में गई। वहां जंगल में सर्दी,गर्मी और बरसात में बहस चल रही थी के कोन सा मोसम अच्छा है..सर्दी बोली देख वोह सामने एक बुज़ुर्ग औरत बैठी उससे पूछते हैं क्यूं के इंसान ही मोसम के असरात बता सकता है। शब्बो अम्मा के पास‌ पहले सर्दी  पहुंची और सलाम कर के पूछा अम्मा सर्दी का मोसम कैसा..? शब्बो अम्मा बोली सर्दी के मोसम का क्या  कहने, ना पसीने की झंझट,ना मच्छरों का हमला, खाने की चीज़ों के ख़राब होने का डर नहीं।। कभी गाजर और अंडे के हलवे बन रहे हैं, तो गज़क और तिल के लड्डू  के मज़े भी, कभी मूंगफली का सोंदापन ले रहे हैं,चाय की चुस्की के मज़े लिए जा रहे हैं, लम्बी रातों की वजह से नींद भी ख़ूब ले सकते हैं ..सर्दी में तो मज़े ही मज़े हैं। सर्दी ख़ुश होकर अम्मा को दो अशर्फ़ी देकर चली गई। अब गर्मी आई और पूछा अम्मा गर्मी का मोसम कैसा..शब्बो अम्मा बोली गर्मी की तो बात ही निराली है जब चाहे नहा लो, आंगन में खटिया पै सोने का मज़ा तो गर्मी में मिलता है। ठंडा शरबत, मलाई वाली लस्सी गर्मी की ख़ास सोग़ात है। गर्मी के क्या कहने। गर्मी भी ख़ुश होकर अम्मा को दो अशर्फ़ी देकर गई। अब अम्मा के पास बरसात का मोसम आया..सलाम के बाद बरसात ने पूछा अम्मा बारिश का मोसम कैसा? अम्मा ख़ुश होकर बोली बरसात तो ज़िंदगी है। बारिश शुरू होते ही किसानों के चेहरे खिल उठते हैं और खेती-बाड़ी में लग जाते हैं,अच्छी पैदावार की उम्मीदें जाग जाती  हैं। बारिश से पानी की क़िल्लत दूर हो जाती है नदियों में रवानी आ जाती है हर तरफ़ हरियाली छा जाती है। बाग़ों में झूले पड़ते हैं लोग तफ़रीह के लिए निकलते हैं। बरसात के बग़ैर ज़िंदगी का तसव्वुर भी नहीं किया जा सकता। बरसात भी ख़ुश होकर अम्मा को दो अशरफ़ियां देकर गई। अब शब्बो अम्मा के पास छे अशरफ़ियां हो गई और शब्बो अम्मा की ज़िंदगी मज़े से गुज़रने लगी। शब्बो अम्मा के पड़ोस में एक हुस्ना नाम की अम्मा भी रहती थीं बला की बद मिज़ाज और अक्खड़.. हुस्ना अम्मा भी एक दिन लकड़ियां बीनने जंगल गई तो जंगल में तीनों मोसम में फिर से बहस हो रही थी के सबसे अच्छा मोसम कोन सा है, तीनों मोसम ने देखा..
.. के एक दूसरी बुज़ुर्ग अम्मा जंगल आई है। चलो इन से पूछते हैं के कोन सा मौसम अच्छा है और कोन सा बुरा.. पहले सर्दी गई और उसने पूछा के अम्मा सर्दी का मोसम कैसा है हुस्ना अम्मा ग़ुस्से से बोली सर्दी का भी कोई मोसम है हर वक़्त नज़ला ज़ुकाम और खांसी, कांपते और धूझते रहो.. दांत बजने लग जाते हैं, सलीम के अब्बा को सर्दी में ही हवा (फ़ालिज,पेरालाईसिस) पड़ी थी,चल चल दूर हट। सर्दी नाराज़ होकर वापस चली गई। हुस्ना अम्मा के पास अब गर्मी पहुंची और सलाम कर के पूछा अम्मा गर्मी का मोसम कैसा है..अम्मा बड़बड़ाते हुई बोली गर्मी में तो बस परेशानी ही‌ परेशानी है.. बदन जलने लगता है हर वक़्त पसीना पोंछते रहो,रात को मच्छर सोने भी ना देवें हैं,कभी दूध फट जावे तो कभी सालन ख़राब हो जावे है..नदी तालाब सूख जाने से पानी की क़िल्लत..गर्मी तो अज़ाब होवे है। गर्मी मूंह बनाती हुई वापस चली गई। अब अम्मा के पास बरसात पहुंची और पूछा के अम्मा बरसात का मोसम कैसा है..हुस्ना अम्मा बोली बरसात का मतलब हर तरफ़ कीचड़ कीचड़ है, कभी छत टपक रही है तो कभी घर में पानी घुसा चला आवे..कभी ख़बर आवे है के फ़लां गांव बाड़ में घिर गया तो फ़लां गांव बह गया। पिछली बरसात में ही रसूलपुर में बहुत से लोग बाढ़ में बह गए थे। चल भाग यहां से कमबख़त मारी।

शुक्रवार, 5 जुलाई 2019

9:15 am

गमों को गले से लगाना पड़ेगा

गमों को गले से लगाना पड़ेगा।
जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा।

चिंता की तपन में जलते रहे हम,
दर्द-ए-हाल दिल का भुलाना पड़ेगा।

तेरे मेरे प्यार के चर्चे पूरे शहर में,
अब मम्मी-पापा को मनाना पड़ेगा।

चाहत की लौं कुछ ऐसी लगी कि,
शान-ए-शोहरत दिखाना पड़ेगा।

तेरे नाम की मैं सुंदर मेंहदी रचाऊँ,
पलकों को झुकाकर शर्माना पड़ेगा।

आईने में देख अपना अक्स निहारुँ,
चेहरे पर हँसी, मुस्कराना पड़ेगा।

बातों-बातों में तुम रुठ जाते कभी,
रुठे दिल को मनाऊँ हँसाना पड़ेगा।

तेरी वफाओं के चर्चे मेरी जुबां पर,
तेरे बिन जी न पाऊँ बताना पड़ेगा।

मेरे लवों पर बस तेरा ही नाम है,
तुम्हें अपने दिल में बसाना पड़ेगा।
                    सुमन अग्रवाल "सागरिका"
                          आगरा (यू.पी.)
                              स्वरचित

गुरुवार, 4 जुलाई 2019

10:41 pm

ग़ज़ल :- जीवन का सफर यूँ ही कट जाएगा

हँसते रहो सबको खूब हंसाते रहो।
जिंदगी में हर पल मुस्कराते रहो।

जीवन का सफर यूँ ही कट जाएगा,
स्वर ताल व लय से गुनगुनाते रहो।

कल कहाँ होंगे हमें कुछ नही पता,
सब के दिल में जगह बनाते रहो।

ये जिंदगी क्या खबर कब तक रहे,
मिल जुलकर वक़्त बिताते रहो।

जिंदगी में गम बहुत फिक्र न कर,
ग़मों के पलों को सब भुलाते रहो।

बीते हुए इन लम्हों को याद रखना,
डायरी में यादों को सजाते रहो।

मन में हो लगन कामयाब होंगे जरूर,
निरतंर कदम से कदम बढ़ाते रहो।








सुमन अग्रवाल "सागरिका"
     आगरा (यू.पी)
         स्वरचित
5:19 am

ग़ैरों की बेटी पर तो - वीरेंद्र कौशल

ग़ैरों की बेटी पर तो 
आप अपनी जान तक देते हो
लेकिन जब आपके 
अपने बेटी होने लगती है
तो उसकी जान क्यों लेते हो।

सदा जी भर मुस्कुराएं खुशियां फैलाएं
अपनी जान तक भी सदा देश पर लुटाएं
ताकि सबकी झोलियां भी लबालब भर जाएं
जाति-धर्म के बंधन से क्यों न मुक्त हो जाएं
देश-भक्ति छोड़ सभी क्यों न देश-प्रेमी हो जाएं


लगता आज हर शाख पर जल्लाद बैठें हैं
कर रहे जो घिनौने कर्म वो बेऔलाद बैठें हैं
सीमा के दायरों से निकल बाहर दोस्त वरना
सब समझेंगे हम नाहक मज़बूरियां लाद बैठें हैं


शब्दों के नए भंवर के साथ
एक बार फिर आप के पास

देश की ताज़ा घटना ने आईना दिखा दिया
कद्र क्या बेटियों की ऐसा माईना बता दिया
किस गहराई तक रह चुप समाज गर्त जाएगा
कानून मज़ाक निर्भया वक़्त मुआईना बना दिया

आपका प्यारा
वीरेंद्र कौशल


बुधवार, 3 जुलाई 2019

7:53 pm

बदलते रंग

गिरगिट और गिरहकिट दोनों रंग बदलते हैं।
कीड़े और लोग उनके झांसे में आ जातें हैं।
इस तरह असतर्क बेचारे बेमौत मारे जाते है।
क्या आप भी ऐसे तत्वों से सावधान रहते हैं।


मूलतः देव रचित
देवानंद सहा प्राध्यापक शासकीय महाविद्यालय लवन 
जिला बलौदाबाजार छत्तीसगढ़ पिन 493332
9669575823
9:15 am

ग़ज़ल :- ज़िंदगानी इक सज़ा है सोचिए

ज़िंदगानी इक सज़ा है सोचिए ।
दर्द  ही  इसकी दवा है सोचिए ।।

दुश्मनों  से  दोस्ती क्योंकर हुई ।
दोस्तों से क्या गिला है सोचिए ।।

सदियों से ही मज़हबी इस वैर में ।
ख़ूँ तो इन्सां का बहा है सोचिए ।।

उम्र भर की क़ुर्बतों का ये सिला ।
हर क़दम पर फ़ासला है सोचिए ।।

सब निग़ाहों से तो हमने कह दिया ।
और  क्या  बाक़ी  बचा  है सोचिए ।।

बलजीत सिंह बेनाम

बलजीत सिंह बेनाम

103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी
       हाँसी(हिसार)
  मोबाईल:9996266210

9:04 am

कविता:- माता

धरती हमारी माता है
गाय हमारी माता है
नदी हमारी माता है
हमारी माता भी हमारी माता है
जब तक इनके और हमारे बीच
पैसा नहीं आता है
उसके बाद कौन किसकी माता है
कौन किसका पुत्र!
कौन गाता
माँँ की महिमा कुत्र !

हम नहीं तो आख़िर कौन 
जो इनसे लाभ पाता
इनसे कमाता
इन्हें बेच खाता
वृद्धाश्रम भेज आता !
_______________
                                      केशव शरण
23-08-1960 
प्रकाशित कृतियां-
तालाब के पानी में लड़की  (कविता संग्रह)
जिधर खुला व्योम होता है  (कविता संग्रह)
दर्द के खेत में  (ग़ज़ल संग्रह)
कड़ी धूप में (हाइकु संग्रह)
एक उत्तर-आधुनिक ऋचा (कवितासंग्रह)
दूरी मिट गयी  (कविता संग्रह)
क़दम-क़दम ( चुनी हुई कविताएं ) 
न संगीत न फूल ( कविता संग्रह)
गगन नीला धरा धानी नहीं है ( ग़ज़ल संग्रह )
संपर्क एस2/564 सिकरौल
वाराणसी  221002
मो.   9415295137
9:00 am

विकास, भूख और प्यास

सिक्स लेन की
सड़कों के ऊपर से
गुज़र गए बादल
निकल गये जनपद से बाहर
बिन बरसे

वही सिक्स लेन सड़कें
जिनके लिए हज़ारों पेड़
हलाक हुए
और हो रहे हैं

बादलों के न टिकने से
जनपद सूखा है
विकास हो रहा है 
मगर धरती प्यासी
जन भूखा है
_______________
                                        केशव शरण
23-08-1960 
प्रकाशित कृतियां-
तालाब के पानी में लड़की  (कविता संग्रह)
जिधर खुला व्योम होता है  (कविता संग्रह)
दर्द के खेत में  (ग़ज़ल संग्रह)
कड़ी धूप में (हाइकु संग्रह)
एक उत्तर-आधुनिक ऋचा (कवितासंग्रह)
दूरी मिट गयी  (कविता संग्रह)
क़दम-क़दम ( चुनी हुई कविताएं ) 
न संगीत न फूल ( कविता संग्रह)
गगन नीला धरा धानी नहीं है ( ग़ज़ल संग्रह )
संपर्क एस2/564 सिकरौल
वाराणसी  221002
मो.   9415295137

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