ग़ज़ल - यूं हम दोनों' वादा वफा का निभा दें - अक़्स बदायूंनी
मुहब्बत भरा दिल तुम्हीं पे लुटा दें ।।
चलो आज सच दिल का' उसको बता दें ।।
बता दो जरा तुम कि कैसे भुला दें ।।
बीती हैं जो' दिल पर तुम्हें हम सुना दें ।।
इंसाँ छोड़ जाता' है निशानियाँ कभी कभी।
ख़त्म शो हो' खूब बजती' तालियाँ कभी कभी ।।
कुछ अलग करो तो हट के बनती हैं हमेशा ही ।
कुछ ही लोगों' की नई कहानियाँ कभी कभी ।।
धर्म के ही' नाम पर शहर में' हो रहे दंगे ।
तब इंसानों की' होती' तबाहियाँ कभी कभी ।।
अब गली में' शोर होता' ही नही पढाई' के ।
बोझ से बच्चों की खत्म छुट्टीयाँ कभी कभी ।।
जिंदगी में' लगता' है यहाँ आ' के खो' ही जाये ।
यूँ ही मिलती है हसीन वादियाँ कभी कभी ।।
पहले' होता इंतजार फोन का यूँ' अब तो' बस ।
मेरे' घर आती हैं' उसकी' चिठ्ठियाँ कभी कभी ।।
"अक़्स" उसका कोई' भी पता नही लगा अभी ।
बंद रहती' उसके' घर की' खिड़कियाँ कभी कभी ।।
© विकास भारद्वाज
9627193400
बदायूं (उ०प्र०)
आँखों' से आँखे' चार कर ले क्या ?
तुमपे' ही जाँ निसार कर लें क्या ?
रातों' को नींद ही न आये अब ।
उससे' दिल का क़रार कर लें क्या ?
नाम तेरा लबों पे क्या आया ।
दिल को हम बेकरार कर ले क्या ?
प्यार करना गुनाह है तो हम ।
ये ख़ता सच में' यार कर लें क्या ?
यूं मिले हैं ज़माने से धोखे ।
उसका' हम ऐतबार कर लें क्या ?
इक नज़र भर उसे देखा हमने ।
दिल को' फिर राजदार कर लें क्या ?
यार क्या सोचा वक्त हैं रुखसत ।
"अक़्स" बाहों को हार कर लें क्या ?
© विकास भारद्वाज "अक़्स बदायूँनी"
8 अप्रेल 2018
सुन जाना
घर आना
दिल गाया
मन भाया ।।
शिव भोले
मन डोले
जग सेवा
मिल मेवा ।।
© विकास भारद्वाज सुदीप
5 अप्रेल 2018
वफा की कसम वास्ता दे कर गया ।
वजह वो न कोई बता कर गया ।।
वो' रूठा किसी बात पर मुझसे' फिर ।
वो' हमसे ही' हमको जुदा कर गया ।।
जुबाँ बंद आँखे शायद कुछ कहे ।
वो' यूँ दो दिलों की सजा कर गया ।।
मेरा दिल न जाने कहाँ गुम हुआ ।
कोई तो है' जो बावरा कर गया ।।
मेरे दिल की' धड़कन कहें अब कि वो ।
गलतफहमी' से फासला कर गया ।।
बीती रात के बाद वो फिर न जाने क्यूँ ।
शहर छोड़ मुझको तन्हा कर गया ।।
उसे शाम ही मैं मिला था कि एक ।
सुबह "अक्स" खुद का खात्मा कर गया ।।
© विकास भारद्वाज "अक़्स बदायूँनी"
4 अप्रेल 2018
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