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बुधवार, 11 अप्रैल 2018

8:44 pm

ग़ज़ल - यूं हम दोनों' वादा वफा का निभा दें - अक़्स बदायूंनी

यूं   हम   दोनों'   वादा   वफा   का  निभा  दें ।
चलो    जिन्दगी    को    मुहब्बत    बना    दें ।।

मेरी    रूह    है    अब    तुम्हारी    अमानत  ।
मुहब्बत   भरा    दिल   तुम्हीं    पे   लुटा   दें ।।

पागल  हैं   ये'  दिल  प्यार  में  उसके  यारों ।
चलो  आज  सच  दिल  का' उसको बता दें ।।

ये'   दिल   चाहता   है  उसे  हद  से'  ज्यादा ।
बता   दो   जरा   तुम    कि   कैसे   भुला  दें ।।

मैं   अब   रातों'  में  जाने'  क्या  सोचता  हूँ ।
बीती  हैं  जो'  दिल  पर  तुम्हें  हम  सुना  दें ।।

© विकास भारद्वाज "अक़्स" 


8:43 pm

ग़ज़ल


इंसाँ    छोड़   जाता'   है   निशानियाँ   कभी   कभी।

ख़त्म  शो  हो'  खूब  बजती'  तालियाँ  कभी  कभी ।।


कुछ  अलग  करो  तो  हट  के  बनती  हैं  हमेशा  ही ।

कुछ   ही   लोगों'  की   नई  कहानियाँ  कभी  कभी ।।


धर्म   के   ही'   नाम   पर   शहर   में'   हो   रहे   दंगे ।

तब   इंसानों   की'   होती'   तबाहियाँ   कभी  कभी ।।


अब    गली    में'   शोर   होता'   ही  नही  पढाई'  के ।

बोझ   से   बच्चों   की   खत्म   छुट्टीयाँ  कभी  कभी ।।


जिंदगी  में'  लगता'  है  यहाँ  आ'  के  खो'  ही  जाये ।

यूँ   ही   मिलती   है   हसीन   वादियाँ   कभी   कभी ।।


पहले'  होता  इंतजार  फोन  का  यूँ'  अब  तो'  बस ।

मेरे'  घर   आती  हैं'  उसकी'  चिठ्ठियाँ  कभी  कभी ।।


"अक़्स"  उसका   कोई'  भी  पता  नही  लगा  अभी ।

बंद  रहती' उसके'  घर  की' खिड़कियाँ  कभी कभी ।।


© विकास भारद्वाज

9627193400

बदायूं (उ०प्र०)

3:29 am

वह कि जिसे लिखना-कहना नामुमकिन है - आदित्य तोमर

वह कि जिसे लिखना-कहना नामुमकिन है,
वही नाम होंटों पर आने लगता है.
वह कि धूल बरसों से जिसे दबाए है,
आँखों में तस्वीर वही छा जाती है.
अभी-अभी बिजली चमकी, देखा तुमने ?
सुना ? अभी छन-छन-छन नूपुर ध्वनि गूंजी.
अभी-अभी इक महक हवा लेकर आई
अभी-अभी सिहरन सी तन में दौड़ पड़ी.
चलो ख़ैर, तुम क्या समझो यह मोहजाल
वह क्या जान सका जो व्यक्ति न मोहा हो.
वही हृदय यह कम्पन पहचाने जिसके
तार कसे हों विधि ने निरत संयोगों से.
रुदन-ठहाके-पीर और आनन्द गहन
सबका सम्मिश्रण करके जो सत्व बना,
उसी सत्व को सुधी प्रेम कहते शायद
अश्रु कहा जाता जिसका पहचान पत्र.
पल-पल कितनी यादों, कितनी बातों के
कितने चित्र सजे रहते तहखानों में.
कितने अश्रु-अनबहे बिखरे पड़ते हैं
रह जाती कितनी पीड़ा अनकही हाय,
मन के झंझावाती कठिन थपेड़े भी
द्वार डिगा पाते ही नहीं और इक दिन
जग पर धूल न पड़ पाती लेकिन हमको
उन चित्रों पर धूल डालनी पड़ती है.
-
आदित्य तोमर
वज़ीरगंज, बदायूँ (उ.प्र.)
9368656307
3:24 am

कटाई के ही मौसम में सदा आती रही बारिश - आदित्य तोमर

कटाई के ही मौसम में सदा आती रही बारिश
वक़्त पर जलदान का न निभा पाते फ़र्ज़,
आता तुम्हें कोई उपकार भी नहीं है मेघ.
गरज-गरज के डराना चाहते हमेशा
कैसा है हृदय जहाँ प्यार भी नहीं है मेघ.
जोकि तप्त मन की अगन का शमन करे
तुम पर ऐसी जलधार भी नहीं है मेघ.
हाड़तोड़ यत्न से ये पकी है फ़सल, तुम्हें-
नष्ट करने का अधिकार भी नहीं है मेघ.
भगवन अभी ज़हर है बारिश नहीं-नहीं रसवंती धारा
उधर खेत में पका पकाया भीग रहा है धान्य हमारा
यह मौसम अपने किसान का खुलेआम आखेट करेगा.
कितने ही मासूमों को फिर सोना भूखे पेट पड़ेगा.
-
आदित्य तोमर
वज़ीरगंज, बदायूँ

सोमवार, 9 अप्रैल 2018

9:09 pm

गजल- तुम पे ही जां निसार कर लें क्या

आँखों'   से   आँखे'   चार   कर   ले  क्या  ?
तुमपे'    ही    जाँ   निसार   कर   लें  क्या  ?  

रातों'     को    नींद    ही   न  आये   अब  ।
उससे'   दिल   का   क़रार   कर  लें  क्या  ?

नाम      तेरा    लबों    पे     क्या    आया  ।
दिल    को    हम   बेकरार   कर  ले  क्या  ?

प्यार     करना     गुनाह     है     तो    हम ।
ये   ख़ता   सच   में'   यार   कर   लें   क्या  ?

यूं      मिले      हैं     ज़माने     से     धोखे  ।
उसका'    हम    ऐतबार    कर    लें   क्या  ?

इक    नज़र     भर      उसे     देखा    हमने  ।
दिल   को'   फिर    राजदार   कर   लें   क्या  ?
 
यार    क्या     सोचा    वक्त    हैं    रुखसत ।
"अक़्स"  बाहों    को    हार   कर   लें   क्या ?

© विकास भारद्वाज "अक़्स बदायूँनी"
    8 अप्रेल  2018

बुधवार, 4 अप्रैल 2018

7:55 am

गजल

वफा   की   कसम   वास्ता   दे   कर   गया ।
वजह   वो    न    कोई    बता    कर   गया ।।

वो'  रूठा  किसी  बात   पर   मुझसे'   फिर ।
वो'  हमसे   ही'   हमको   जुदा   कर   गया ।।

जुबाँ    बंद    आँखे    शायद   कुछ    कहे  ।
वो'   यूँ    दो   दिलों   की  सजा  कर  गया ।।

मेरा   दिल    न    जाने   कहाँ    गुम  हुआ ।
कोई    तो    है'   जो   बावरा    कर   गया ।।

मेरे  दिल  की' धड़कन  कहें  अब  कि वो ।
गलतफहमी'    से    फासला   कर   गया ।।
                        
बीती  रात  के  बाद  वो  फिर  न  जाने  क्यूँ ।
शहर    छोड़    मुझको    तन्हा    कर   गया ।।

उसे    शाम    ही   मैं    मिला   था   कि  एक ।
सुबह  "अक्स" खुद  का   खात्मा   कर  गया ।।

© विकास भारद्वाज "अक़्स बदायूँनी"
    4  अप्रेल  2018

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