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गुरुवार, 11 जनवरी 2018

8:10 pm

प्राकृतिक सौंदर्य और मनुष्य

विषय -प्राकृतिक सौंदर्य और मनुष्य में बढ़ता हुआ फासला

मानव जीवन पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर है | हम अपनी आवश्यकता की लगभग सभी चीजें प्रकृति से ही प्राप्त करते हैं |
मनुष्य और प्रकृति के बीच बहुत गहरा सम्बन्ध है। मानव द्वारा प्रकृति की रक्षा करने से प्रकृति में हरा भरा और वातावरण स्वच्छता होने से प्रकृति सौन्दर्यमयी का अनुभव करने लगती है।
सुबह के नर्म हवा घूमना स्वास्थ के लिए लाभदायक है और धूप में पेडों की छाया में बैठना कितना सुखद और आरामदायक लगता है लेकिन समय के बढते चक्र में प्रकृति मे प्रदूषण बढने लगा है ।
पर्यावरण में अब विषैली गैसें घुलने लगी है ।
वनों की अधाँधुध कटान के कारण तथा नदियों मे विषैले रसायन से प्रकृति मे प्रदूषण तथा नई नई बीमारीयाँ फैल रही है।
मनुष्य की आयु कम होने लगी। धरती एक-एक बूँद पानी के लिए तरसने लगी है, लेकिन यह वैश्विक तपन हमारे लिए चिन्ता का विषय नहीं बना।
तापमान में तेजी से बढ़ोत्तरी के कारण दुनिया भर में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। यही हाल रहा तो आगामी कुछ दशकों में हमारी धरती वन विहीन हो जाएगी। हमारे पड़ोसी देशों में जितने वृक्ष काटे जाते हैं, उतने परिमाण में लगाए भी जाते हैं। हमें इस बात पर विचार करना चाहिए ।
मनुष्य और प्राकृतिक के बीच बढता फासला हमें बतलाता है कि जब पाप अधिक बढ़ता है तो धरती काँपने लगती है। यह भी कहा गया है कि धरती घर का आंगन है, आसमान छत है, सूर्य-चन्द्रमाँ ज्योति देने वाले दीपक हैं, समुद्र पानी के मटके हैं और पेड़-पौधे आहार के साधन हैं।
ध्यान रखना होगा हमें कि प्रकृति किसी के साथ भेदभाव या पक्षपात नहीं करती। इसके द्वार सबके लिए समान रूप से खुले हैं, लेकिन जब हम प्रकृतिक संसाधनों से खिलवाड़ करते हैं तब उसका परिणाम भूकम्प, सूखा, बाढ़, सैलाब, तूफान की शक्ल में आता है, फिर लोग काल के गाल में समा जाते हैं।
हम कह सकते हैं कि प्रकृति से मनुष्य का सम्बन्ध अलगाव का नहीं है, सचमुच प्रकृति से प्रेम हमें उन्नति की ओर ले जाता है और इससे अलगाव हमारे लिए विनाशकाल के कारण बनते हैं।

विकास भारद्वाज 'सुदीप'
21 जुलाई 2017

मंगलवार, 1 अगस्त 2017

7:04 am

उत्तर प्रदेश के शिक्षा मित्रों का संघर्ष

सुप्रीम कोर्ट से शिक्षा मित्रों को एक बार फिर जबर्दस्त धोखा प्राप्त हुआ है । सुप्रीम कोर्ट ने कुछ देर सुनवाई करके दीपक मिश्रा जी ने शिक्षा मित्रों के समस्त मामले को 24 अगस्त के लिए नियत कर दिया है । अब ऐसा लगता है कि वास्तव मे देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था माननीय सुप्रीम कोर्ट भी उत्तर प्रदेश के शिक्षा मित्रों के साथ सौतेला व्यवहार या दुसरे शब्दों मे कोर्ट ने शिक्षामित्रों के साथ भद्दा मजाक किया है ।
शिक्षामित्र बेरोजगार कर दिये गए है स्कूलों में पढाई ठप होने लगी है । शिक्षामित्रों के दिल मे इतनी निराशा है कि अब तक कई शिक्षामित्र आत्महत्या कर चुके है
समायोजन रद्द करने से पहले समायोजित शिक्षामित्रों के परिवार के बारे में सोचना चाहिए था । मानवीय संवेदना होना सुप्रीम कोर्ट का दायित्व है। कुछ ऐसे भी है शिक्षामित्र है जो लगभग 50 वर्ष की उम्र होने को है और बढती उम्र में नये पाठ्यक्रम की परीक्षा कौन पास करेगा । धरना-प्रदर्शन के बाद शाम को घर चले जाते है उन्हें भविष्य, बच्चों की पढाई व आर्थिक संकट की गहरी चिंता सता रही है
सुप्रीम कोर्ट को नियमावली में संशोधन करके शिक्षामित्रों के पक्ष में कोई फैसला लाना चाहिए।

विकास भारद्वाज
बदायूँ (उ○ प्र○)
1 अगस्त 2017

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