शीतल प्रसाद
2:01 am
मुहब्बत ग़ज़ल संग्रह में शीतल प्रसाद की कुछ ग़ज़लें
ग़ज़ल 1
बहर- 212 212 212 212
काफ़िया- आ
रदीफ़- चाहिए
अब दुआ चाहिए ना दवा चाहिए ।
आशिकी की हमे तो हवा चाहिए।।
जिंदगी का सफर तन्हा कटता नही ।
उम्र भर के लिये हमनवा चाहिए ।।
देश को बेचकर चोर खा जाएंगे ।
देशद्रोही मरे बद्दुआ चाहिए ।।
बुझ सकी है न प्यास समुद्र से कभी ।
प्यास सबकी बुझे एक कुंआ चाहिए ।।
आसमा को झुकाना बड़ी बात नही ।
हौसला तो है माँ की दुआ चाहिए ।।
आ नही पाएगा ये बुढ़ापा कभी ।
दिल हमेशा हि रखना जवा चाहिए ।।
शीतल प्रसाद
ग़ज़ल 2
बह्र - 1222 1222 122
काफिया - ऐरा
रदीफ - हो गया है
गगन भी अब घनेरा हो गया है ।
बहुत गहरा अंधेरा हो गया है ।।
दिखा न कई दिनों से सूरज यहाँ ।
उजालों पर पहरा हो गया है ।।
जिंदगी वतन के नाम करदी है ।
कफ़न ही अब सेहरा हो गया है ।।
हमारी आदत न बदली अभी तक ।
भले दूजा बसेरा हो गया है ।।
जहाँ सजती रही पहले महफ़िलें ।
वहाँ भूतों का डेरा हो गया है ।।
चमक लेता है जुगनू हुनर उसका ।
इंसा कोशिश में दुहरा हो गया है ।।
शीतल प्रसाद
ग़ज़ल 3
बह्र - 1222 1222 1222
काफ़िया - ऐ
रदीफ - को
नही है साथ में कोई भी चलने को ।
रखूंगा आस तुमसे मैं ही मिलने को ।।
सुना है तू शमा है रोज जलती है ।
मचलता हूँ तू आकर देख जलने को।
तुम्हारे प्यार की चाहत सदा खींचे ।
न रस्ता है न मंजिल है ठहरने को ।।
बहुत ही आग सूरज अब उगलता है ।
लगी धरती सुबह ओ शाम जलने को ।।
जो पचपन से कभी सपने संजोये थे ।
यंहा वक्त कब मिलता ख्वाब बुनने को ।।
वन्देमातरम नारा कौन कहता है ।
मिले अब रोज मुर्दाबाद सुनने को ।।
फना हो जाऊंगा मैं देश की खातिर ।
तिरंगे का कफ़न देना पहनने को ।।
शीतल प्रसाद
ग़ज़ल 4
बहर-122 122 122 122
काफ़िया - आना
रदीफ़ - हुआ है
तुम्हे देखकर अब जमाना हुआ है ।
तुम्ही से मिरा दिल लगाना हुआ है ।।
मुहब्बत में कुछ सूझता ही नही है ।
जहां में सभी का फ़साना हुआ है ।।
चलो आज फिर दिल नया ढूंढ लाये ।
धड़कते हुये अब पुराना हुआ है ।।
पलक आपकी आज बोझिल हुई है ।
सुना है कि आंसू बहाना हुआ है ।।
जिसे ढूंढता रात काफ़िर रहा था ।
उसी का ही मस्जिद में आना हुआ है ।।
पंछी तू चलाजा जि चाहे जहाँ तक ।
लिखा पर यही देख दाना हुआ है ।।
शीतल प्रसाद
ग़ज़ल 5
काफ़िया:- आनी
रदीफ़:- नही है
बहर:- 122 122 122 122
जवां खून में अब रवानी नही है ।
मिटे देश पर वो जवानी नही है ।।
सताया गया हूं जमाने से फिर भी ।
किताबों में मेरी कहानी नही है ।।
बिखेरो न जलवा युं हुस्ने बहारो ।
सुना है अभी तू सयानी नही है ।।
मिलेंगे न मोहन किसी को जहां में ।
मीरा सी जगत मे दिवानी नही है ।।
सजी है दुकाने युं हर और लोगों ।
किसी की भी आंखों में पानी नही है ।।
उजाड़ी धरा मौन साधे खड़ी है ।
लहरती चुनर उसकी धानी नही है ।।
शीतल प्रसाद
ग़ज़ल 6
बह्र:- 222 221 122
काफ़िया:- आन
रदीफ़:- बहुत हैंं
कहने को इंसान बहुत हैं ।
पर दिल के शैतान बहुत हैं।।
पग पग में हैं धोखे मिलते ।
घर घर बेईमान बहुत हैं।।
पतझड़ जैसा मेरा जीवन ।
जीने का अरमान बहुत हैंं।।
माँ तुझको मैं भूलूं कैसे ।
मुझ पर तो अहसान बहुत हैं ।।
फुटपाथों पर भीड़ लगी है ।
कहने भर को मकान बहुत हैंं।।
ढोंगी देखो सन्त बने हैं ।
सजने लगी दुकान बहुत हैंं ।।
मुट्ठी में कर लूं आसमां को ।
इस दिल में अरमान बहुत हैंं।।
शीतल प्रसाद
ग़ज़ल 7
बह्र - 1222×4
काफ़िया:- आया
रदीफ़:- है
जमाने ने सताया है कि अपनों ने भुलाया है ।
जरा नादान दिल मेरा समझ अब तक न पाया है ।।
जिन्हें अपना बनाया था लिये हाथों मे खंजर हैं ।
किये हैं वार पीछे से हमें अक्सर रुलाया है ।।
करे जो प्यार से बातें वही दुश्मन हमारे हैं ।
पलट इतिहास को देखो कबीरा ने बताया है ।।
चले आओ शहर मेरे हमारा दिल नही लगता ।
वफ़ा की लाज तुम रखना तुम्हे हमने बुलाया है ।।
हमेशा दूर ही रखना दहकते इन चरागों को ।
बड़े मशहूर हैं किस्से इन्होंने घर जलाया है ।।
बड़े मगरूर बैठे हैं लुटेरे जो सिंहासन पर ।
कमीने भूल हैं शायद तुम्हें हमने बिठाया है ।।
नही भूला हूं तुझको माँ तुम्हारी याद आती है ।
नसीबे हिस्से का खाना सदा मुझको खिलाया है ।।
शीतल प्रसाद
ग़ज़ल 8
बह्र :- 212 212 212
काफ़िया:- आ
रदीफ़:- दे मुझे
यार अपना पता दे मुझे ।
यूं न अब तू सजा दे मुझे ।।
पीर है या खुदा वो ही है ।
कौन है तू बता दे मुझे ।।
कौन जाने कि कब निकले दम ।
मैखाने से ले आ शै पिला दे मुझे ।।
मयकदा मान बैठा तुम्हें ।
आँख से मय पिला दे मुझे।।
जंग जीती हमेशा मैंने ।
कौन है जो हरा दे मुझे ।।
चाहता हूं उसे भूलना ।
आज ऐसी दवा दे मुझे ।।
बेवफाई न करना कभी ।
राज दिल के बता दे मुझे ।।
प्यार में बहुत धोखे मिले ।
तू कही ना भूला दे मुझे ।।
शीतल प्रसाद
बहर- 212 212 212 212
काफ़िया- आ
रदीफ़- चाहिए
अब दुआ चाहिए ना दवा चाहिए ।
आशिकी की हमे तो हवा चाहिए।।
जिंदगी का सफर तन्हा कटता नही ।
उम्र भर के लिये हमनवा चाहिए ।।
देश को बेचकर चोर खा जाएंगे ।
देशद्रोही मरे बद्दुआ चाहिए ।।
बुझ सकी है न प्यास समुद्र से कभी ।
प्यास सबकी बुझे एक कुंआ चाहिए ।।
आसमा को झुकाना बड़ी बात नही ।
हौसला तो है माँ की दुआ चाहिए ।।
आ नही पाएगा ये बुढ़ापा कभी ।
दिल हमेशा हि रखना जवा चाहिए ।।
शीतल प्रसाद
ग़ज़ल 2
बह्र - 1222 1222 122
काफिया - ऐरा
रदीफ - हो गया है
गगन भी अब घनेरा हो गया है ।
बहुत गहरा अंधेरा हो गया है ।।
दिखा न कई दिनों से सूरज यहाँ ।
उजालों पर पहरा हो गया है ।।
जिंदगी वतन के नाम करदी है ।
कफ़न ही अब सेहरा हो गया है ।।
हमारी आदत न बदली अभी तक ।
भले दूजा बसेरा हो गया है ।।
जहाँ सजती रही पहले महफ़िलें ।
वहाँ भूतों का डेरा हो गया है ।।
चमक लेता है जुगनू हुनर उसका ।
इंसा कोशिश में दुहरा हो गया है ।।
शीतल प्रसाद
ग़ज़ल 3
बह्र - 1222 1222 1222
काफ़िया - ऐ
रदीफ - को
नही है साथ में कोई भी चलने को ।
रखूंगा आस तुमसे मैं ही मिलने को ।।
सुना है तू शमा है रोज जलती है ।
मचलता हूँ तू आकर देख जलने को।
तुम्हारे प्यार की चाहत सदा खींचे ।
न रस्ता है न मंजिल है ठहरने को ।।
बहुत ही आग सूरज अब उगलता है ।
लगी धरती सुबह ओ शाम जलने को ।।
जो पचपन से कभी सपने संजोये थे ।
यंहा वक्त कब मिलता ख्वाब बुनने को ।।
वन्देमातरम नारा कौन कहता है ।
मिले अब रोज मुर्दाबाद सुनने को ।।
फना हो जाऊंगा मैं देश की खातिर ।
तिरंगे का कफ़न देना पहनने को ।।
शीतल प्रसाद
ग़ज़ल 4
बहर-122 122 122 122
काफ़िया - आना
रदीफ़ - हुआ है
तुम्हे देखकर अब जमाना हुआ है ।
तुम्ही से मिरा दिल लगाना हुआ है ।।
मुहब्बत में कुछ सूझता ही नही है ।
जहां में सभी का फ़साना हुआ है ।।
चलो आज फिर दिल नया ढूंढ लाये ।
धड़कते हुये अब पुराना हुआ है ।।
पलक आपकी आज बोझिल हुई है ।
सुना है कि आंसू बहाना हुआ है ।।
जिसे ढूंढता रात काफ़िर रहा था ।
उसी का ही मस्जिद में आना हुआ है ।।
पंछी तू चलाजा जि चाहे जहाँ तक ।
लिखा पर यही देख दाना हुआ है ।।
शीतल प्रसाद
ग़ज़ल 5
काफ़िया:- आनी
रदीफ़:- नही है
बहर:- 122 122 122 122
जवां खून में अब रवानी नही है ।
मिटे देश पर वो जवानी नही है ।।
सताया गया हूं जमाने से फिर भी ।
किताबों में मेरी कहानी नही है ।।
बिखेरो न जलवा युं हुस्ने बहारो ।
सुना है अभी तू सयानी नही है ।।
मिलेंगे न मोहन किसी को जहां में ।
मीरा सी जगत मे दिवानी नही है ।।
सजी है दुकाने युं हर और लोगों ।
किसी की भी आंखों में पानी नही है ।।
उजाड़ी धरा मौन साधे खड़ी है ।
लहरती चुनर उसकी धानी नही है ।।
शीतल प्रसाद
ग़ज़ल 6
बह्र:- 222 221 122
काफ़िया:- आन
रदीफ़:- बहुत हैंं
कहने को इंसान बहुत हैं ।
पर दिल के शैतान बहुत हैं।।
पग पग में हैं धोखे मिलते ।
घर घर बेईमान बहुत हैं।।
पतझड़ जैसा मेरा जीवन ।
जीने का अरमान बहुत हैंं।।
माँ तुझको मैं भूलूं कैसे ।
मुझ पर तो अहसान बहुत हैं ।।
फुटपाथों पर भीड़ लगी है ।
कहने भर को मकान बहुत हैंं।।
ढोंगी देखो सन्त बने हैं ।
सजने लगी दुकान बहुत हैंं ।।
मुट्ठी में कर लूं आसमां को ।
इस दिल में अरमान बहुत हैंं।।
शीतल प्रसाद
ग़ज़ल 7
बह्र - 1222×4
काफ़िया:- आया
रदीफ़:- है
जमाने ने सताया है कि अपनों ने भुलाया है ।
जरा नादान दिल मेरा समझ अब तक न पाया है ।।
जिन्हें अपना बनाया था लिये हाथों मे खंजर हैं ।
किये हैं वार पीछे से हमें अक्सर रुलाया है ।।
करे जो प्यार से बातें वही दुश्मन हमारे हैं ।
पलट इतिहास को देखो कबीरा ने बताया है ।।
चले आओ शहर मेरे हमारा दिल नही लगता ।
वफ़ा की लाज तुम रखना तुम्हे हमने बुलाया है ।।
हमेशा दूर ही रखना दहकते इन चरागों को ।
बड़े मशहूर हैं किस्से इन्होंने घर जलाया है ।।
बड़े मगरूर बैठे हैं लुटेरे जो सिंहासन पर ।
कमीने भूल हैं शायद तुम्हें हमने बिठाया है ।।
नही भूला हूं तुझको माँ तुम्हारी याद आती है ।
नसीबे हिस्से का खाना सदा मुझको खिलाया है ।।
शीतल प्रसाद
ग़ज़ल 8
बह्र :- 212 212 212
काफ़िया:- आ
रदीफ़:- दे मुझे
यार अपना पता दे मुझे ।
यूं न अब तू सजा दे मुझे ।।
पीर है या खुदा वो ही है ।
कौन है तू बता दे मुझे ।।
कौन जाने कि कब निकले दम ।
मैखाने से ले आ शै पिला दे मुझे ।।
मयकदा मान बैठा तुम्हें ।
आँख से मय पिला दे मुझे।।
जंग जीती हमेशा मैंने ।
कौन है जो हरा दे मुझे ।।
चाहता हूं उसे भूलना ।
आज ऐसी दवा दे मुझे ।।
बेवफाई न करना कभी ।
राज दिल के बता दे मुझे ।।
प्यार में बहुत धोखे मिले ।
तू कही ना भूला दे मुझे ।।
शीतल प्रसाद