हिंदी साहित्य वैभव

EMAIL.- Vikasbhardwaj3400.1234@blogger.com

Breaking

नमिता नज़्म लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
नमिता नज़्म लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 9 अगस्त 2018

1:02 am

मुहब्बत ग़ज़ल संग्रह में नमिता नज्म की कुछ ग़ज़लें

ग़ज़ल 1                         
2122 1212 22
                                         
मेरी आँखों के आब जैसा था ।
वो महकते गुलाब जैसा था ।।
               
उसकी  आँखों में वो नशा था ।
हां वो बिलकुल शराब जैसा था ।।

ख्वाहिशों के हुजूम बढते तब ।
वो तो रंगीन ख्वाब जैसा था ।।

 तू तो मेरी हदो से बाहर था ।
 कोई हीरा नायाब जैसा था ।।

 मेरी मंज़िल कभी नहीं था वो ।
 फिर भी मेरे जनाब जैसा था ।।
     
  नमिता "नज़्म"

ग़ज़ल 2

1222  1212  1222  1222

दिले नादान को न पूछ कैसे हमने समझाया ।
कभी मुट्ठी में आसमां थाली में चाँद दिखलाया ।।

गुज़ारी एक उम्र हमने तुम्हारे इंतज़ार में ।
न टूटे ख्वाब नींद से अजी खुद को न उठाया ।।

मचलती लहरों पे अक्सर तिरी तस्वीर बनती है ।
बड़ी शिद्द्त से ये हुनर मैनें आँखों को सिखलाया ।।

अलग ये बात है कि तुम निभा  पाए न कुछ वादे ।
तुम्हारे आने की आहट से हर पल दिल को धड़काया ।।

मेरी आँखों में तेरे वस्ल के मंज़र मचलते है ।
कहीं गिर जाए न मोती जो हर पल बचाया है ।।

 नमिता "नज़्म "

ग़ज़ल 3
212  212   212    22

मौसमों से बदल कैसे जाते हो ।
क्यों मुझे इतना तुम सताते हो ।।

मेरी सांसो को तुम रोक कर तुम अब ।
क्यों यूं रफ्तार दिल की घटाते हो ।

आँखों में ख्वाब भी अब नहीं यारा ।
क्यों मिरी अब नींदे तुम उड़ाते हो ।।

अपने ही दिल से की ये बगावत क्यों ।
कैसी चाहत ये जो तुम निभाते हो ।।

कतरा कतरा बचा है मिरे अंदर ।
क्यों उसे लहरों से तुम लड़ाते हो ।।

नमिता "नज़्म"

गज़ल  4
2122    2122   212

उल्फत  होनी  थी  इशारा  हो  गया ।
इक  कदम  ठहरें  किनारा  हो  गया ।।

हम तो थे तन्हा वो बन साथी आये ।
आसमाँ भी फिर हमारा हो गया ।।

चलती थमती जिंदगी तेरी खातिर ।
अब मुकम्मल वो सहारा हो गया ।।

दोस्तों में थे हम बहुत प्यारे अजी ।
तुमसे मिलकर दिल तुम्हारा हो गया ।।

साथ मेरे अब सफर में नज़्म है ।
खूबसूरत  सा  नज़ारा  हो गया ।।

नमिता "नज़्म"

ग़ज़ल  5
2212      1221   2122

पहचान  पर  जमी  गर्द  धुल  रही है ।
ख्वाहिश की बेड़ियाँ आज खुल  रही है ।।

मेरा  वजूद  अब  उभरने  लगा  है ।
अब जिंदगी यूँ ही चाक सिल रही है ।।

तेरी निगाहों में छिपती यही  मुहब्बत ।
यूँ हमसफ़र  की  खुशबु मिल रही है ।।


ये मेरा दिल धड़कता तेरे लिऐ ही ।
मैं राह में खड़ी धूप भी खिल रही है ।।

उससे मिला मेरा दिल यूँ नज़्म जैसे ।
अब प्यार की मिठास सी घुल रही है ।।

नमिता "नज़्म"

ग़ज़ल  6
1222    1222  1222   1222

ये जो उल्फत हैं अब सारे जमाने को बतानी है ।
उसी के साथ ही अब जिंदगी मुझको बितानी है ।।

ये दरख़्त मुहब्बत और जज़्बातो के है यारा ।
इन्ही की छाँव छोटी आशियाँ अपनी बनानी है ।।

अलग से तो कोई लम्हा नहीं   आयेगा अब अपना ।
सफर में ही सभी ख़्वाहिश यूँ ही मिलकर सजानी है ।।

ये तेरे मेरे ख्वाबो के चमकते  जुगनू है अब तो ।
इन्ही से अब हमें मिलकर अंधेरी को हरानी है ।।

हया तो मुश्किलें देती रहेगी "नज़्म" दस्तक पर ।             
इन्हें तो साथ मिल-जुल कर हमें ही तो निभानी है ।।

नमिता "नज़्म"

ग़ज़ल  7
2122    1222    1122  22

दिल की मानिंद कोई और मचलता क्यों है ।
है अगर संग तो वो मोम सा गलता क्यों है ।।

मेरे दिल में है क्या मै कैसे बताउ उसको ।
हमसफ़र वो नहीं तो साथ में  चलता क्यों है ।।

मेरा दामन भरा है चाँद सितारों से  पर ।
मेरी क़िस्मत में फिर अँधेरा ही दिखता क्यों है ।।

इंतजार कभी अब खत्म नहीं होगा पर ।                                आइना देख कर वो रोज सँवरता क्यों है ।। 

मैंने माना नहीं मिलना है तुझे अब मुझसे ।                 
तेरी नज़रो में इतना प्यार छलकता क्यों है ।।

नमिता " नज़्म "

ग़ज़ल  8
2122     1222       12   
                     
सारे  एहसास  तुझसे  मिलते  हैं ।   
तुझसे  ज़ज्बात   मेरे  मिलते  हैं ।।

 देख  बरसे है मुझपे अब बादल  ।
 तुझसे  बरसात  भी  तो  मिलते  हैं

 मेरे  क़दमो  को  तेरा  साथ  मिले ।
आओं  हालात  से हम  मिलते  हैं ।।

 मैं  करूँ  दिल  की  बातें  तुझसे सब ।
 अपने  ख्यालात  भी  तो  मिलते हैं ।।

 मर   के   भी   मैं  बनूगीं  तेरी  ही ।
 हर  ज़नम  में अगर  वो मिलते हैं ।।

 नमिता "नज़्म "
9 अगस्त 2018 

विशिष्ट पोस्ट

सूचना :- रचनायें आमंत्रित हैं

प्रिय साहित्यकार मित्रों , आप अपनी रचनाएँ हमारे व्हाट्सएप नंबर 9627193400 पर न भेजकर ईमेल- Aksbadauni@gmail.com पर  भेजें.