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मंगलवार, 31 मार्च 2020

11:23 am

याद तुम्हें बस दिन भर करना कितना अच्छा होता था - उज्जवल वशिष्ठ

याद तुम्हें बस दिन भर करना कितना अच्छा होता था।
सारी  दुनिया  झूठी  हो  पर  प्यार तो  सच्चा होता था।

अब दुनिया भी कदमों में हो  फिर भी सहमा रहता हूँ,
मेरी हर इक‌ उलझन का हल  तुमसे मिलना होता था।

आकर  मेरी  तन्हाई   के   किस्से  सब  पढ़  लेते  थे,
उसकी  यादों का  सामां  कमरे में  बिखरा होता था।

आज  अगर  इक ठुकरा दे  तो  दूजे से जा मिलते हैं,
पहले आख़िर तक बस इक साये का पीछा होता था।

मैं छत से  कूदा था  तो इसमें  मेरी  क्या  गलती  थी,
जैसा   जैसा  तुम  कहते  थे   वैसा  वैसा  होता  था।

ख़ून के रिश्तों  में भी अब  अपना  कोई हमदर्द नहीं,
पहले  अपना कह  देने से  ग़ैर भी  अपना होता था।

तुमको पाकर  ग़ज़लें कहना उज्जवल को आसान हुआ,
तुमसे  पहले तो हमसे मुश्किल से मिसरा होता था।

©  Ujjawal Vashishtha
11:20 am

ग़ज़ल :- मुहब्बत में बड़ा छोटा नहीं है - उज्ज्वल वशिष्ठ

मुहब्बत  में  बड़ा  छोटा  नहीं है।
मगर  ऐसा  कभी  होता  नहीं है।

अभी कैसे कहें हम बात दिल की,
अभी तो नाम भी पूँछा नहीं है।

न जाने  कब  बहा ले जायें आँसू,
किसी के बस में ये दरिया नहीं है।

अभी आसान है मुझको‌ डुबोना,
यकीं का पुल अभी टूटा नहीं है।

शजर सारे बरहना जिस्म क्यों हैं,
अभी मौसम तो पतझड़ का नहीं है।

तुम्हारे हाथ भी हैं आज खाली,
हमारे पास भी‌ काँसा नहीं है।

तुम्हारे शहर में मैं अजनबी हूँ,
यहाँ मुझको‌ कोई ख़तरा नहीं है।

मैं करता रहता हूँ ख़िदमत अदब की,
ये  मेरा  शौक  है  पेशा‌ नहीं  है।

© Ujjawal vasishth


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