ग़ज़लें
11:23 am
याद तुम्हें बस दिन भर करना कितना अच्छा होता था - उज्जवल वशिष्ठ
याद तुम्हें बस दिन भर करना कितना अच्छा होता था।
सारी दुनिया झूठी हो पर प्यार तो सच्चा होता था।
अब दुनिया भी कदमों में हो फिर भी सहमा रहता हूँ,
मेरी हर इक उलझन का हल तुमसे मिलना होता था।
आकर मेरी तन्हाई के किस्से सब पढ़ लेते थे,
उसकी यादों का सामां कमरे में बिखरा होता था।
आज अगर इक ठुकरा दे तो दूजे से जा मिलते हैं,
पहले आख़िर तक बस इक साये का पीछा होता था।
मैं छत से कूदा था तो इसमें मेरी क्या गलती थी,
जैसा जैसा तुम कहते थे वैसा वैसा होता था।
ख़ून के रिश्तों में भी अब अपना कोई हमदर्द नहीं,
पहले अपना कह देने से ग़ैर भी अपना होता था।
तुमको पाकर ग़ज़लें कहना उज्जवल को आसान हुआ,
तुमसे पहले तो हमसे मुश्किल से मिसरा होता था।
© Ujjawal Vashishtha
सारी दुनिया झूठी हो पर प्यार तो सच्चा होता था।
अब दुनिया भी कदमों में हो फिर भी सहमा रहता हूँ,
मेरी हर इक उलझन का हल तुमसे मिलना होता था।
आकर मेरी तन्हाई के किस्से सब पढ़ लेते थे,
उसकी यादों का सामां कमरे में बिखरा होता था।
आज अगर इक ठुकरा दे तो दूजे से जा मिलते हैं,
पहले आख़िर तक बस इक साये का पीछा होता था।
मैं छत से कूदा था तो इसमें मेरी क्या गलती थी,
जैसा जैसा तुम कहते थे वैसा वैसा होता था।
ख़ून के रिश्तों में भी अब अपना कोई हमदर्द नहीं,
पहले अपना कह देने से ग़ैर भी अपना होता था।
तुमको पाकर ग़ज़लें कहना उज्जवल को आसान हुआ,
तुमसे पहले तो हमसे मुश्किल से मिसरा होता था।
© Ujjawal Vashishtha