कवि केदारनाथ सिंह के बारें ये बाते जरूर जानें.....
समकालीन भारतीय कविता के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर केदारनाथ सिंह का 19 मार्च 2018 को निधन हो गया. उन्हें 1989 में साहित्य अकादमी और 2013 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. नवंबर 1934 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में जन्मे केदारनाथ सिंह ने अपना शैक्षिक करियर पडरौना के एक कॉलेज से शुरू किया था. बाद में वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय चले गए. वे एक उम्दा कवि और अध्यापक के रूप में वहां मशहूर थे.
जैसे दुनिया के तमाम दानिशवर और कवि होते हैं, वैसे ही केदारनाथ सिंह भी थे- उन्हें भाषा पर भरोसा था. यह भी कि लोग बोलेंगे ही , वे क्यों चुप हैं जिनको आती है भाषा.
उनके लिए कविता कोई व्यक्तिगत किस्म की उपलब्धि नहीं थी, बल्कि वह दुनिया को बनाने का एक उष्मीय इरादा रखती थी.
मृत्यु बोध, बनारस और केदारनाथ सिंह
केदारनाथ सिंह की कविताओं में मृत्यु को लेकर एक विकल संवेदना सदैव व्याप्त रहती है. उन्होंने मनुष्य के ‘होने’ पर जितनी गहराई से सोचा-समझा और लिखा उतना ही उसके न होने पर लिखा,
जीवितों की लम्बी उदास बिरादरी में
सिर्फ़ कच्ची दीवारों
और भीगी खपरैलों से
किसी एक के न होने की
गंध आ रही थी.
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मुख्य कृतियाँ
कविता संग्रह
अभी बिल्कुल अभी
जमीन पक रही है
यहाँ से देखो
बाघ
अकाल में सारस
उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ
तालस्ताय और साइकिल
आलोचना
कल्पना और छायावाद
आधुनिक हिंदी कविता में बिंबविधान
मेरे समय के शब्द
मेरे साक्षात्कार
संपादन
ताना-बाना (आधुनिक भारतीय कविता से एक चयन)
समकालीन रूसी कविताएँ
कविता दशक
साखी (अनियतकालिक पत्रिका)
शब्द (अनियतकालिक पत्रिका)
ज्ञानपीठ पुरस्कार
मैथिलीशरण गुप्त सम्मान
कुमारन आशान पुरस्कार
जीवन भारती सम्मान
दिनकर पुरस्कार
साहित्य अकादमी पुरस्कार
व्यास सम्मान
प्रख्यात कवि केदारनाथ सिंह को मिला ज्ञानपीठ पुरस्कार
हिंदी की आधुनिक पीढ़ी के रचनाकार केदारनाथ सिंह को वर्ष 2013 के लिए देश का सर्वोच्च साहित्य सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। वह यह पुरस्कार पाने वाले हिन्दी के 10वें लेखक थे। ज्ञानपीठ की ओर से शुक्रवार 20 जून, 2014 को यहां जारी विज्ञप्ति के अनुसार सीताकांत महापात्रा की अध्यक्षता में हुई चयन समिति की बैठक में हिंदी के जाने माने कवि केदारनाथ सिंह को वर्ष 2013 का 49वाँ ज्ञानपीठ पुरस्कार दिये जाने का निर्णय किया गया। इससे पहले हिन्दी साहित्य के जाने माने हस्ताक्षर सुमित्रानंदन पंत, रामधारी सिंह दिनकर, सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय, महादेवी वर्मा, नरेश मेहता, निर्मल वर्मा, कुंवर नारायण, श्रीलाल शुक्ल और अमरकांत को यह पुरस्कार मिल चुका है। पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार मलयालम के लेखक गोविंद शंकर कुरुप (1965) को प्रदान किया गया था।