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शनिवार, 7 जुलाई 2018

12:57 am

कवि केदारनाथ सिंह के बारें ये बाते जरूर जानें.....

केदारनाथ सिंह 7 July 1934 – 19 March 2018), हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि व साहित्यकार थे। वे अज्ञेय द्वारा सम्पादित तीसरा सप्तक के कवि रहे। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा उन्हें वर्ष 2013 का ४९वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया था. वे यह पुरस्कार पाने वाले हिन्दी के १०वें लेखक थे
हिंदी साहित्य के संसार में केदारनाथ सिंह की कविता अपनी विनम्र उपस्थिति के साथ पाठक के बगल में जाकर खड़ी हो जाती है. वे अपनी कविताओं में किसी क्रांति या आंदोलन के पक्ष में बिना शोर किए मनुष्य, चींटी, कठफोड़वा या जुलाहे के पक्ष में दिखते हैं.
समकालीन भारतीय कविता के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर केदारनाथ सिंह का 19 मार्च 2018 को निधन हो गया. उन्हें 1989 में साहित्य अकादमी और 2013 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. नवंबर 1934 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में जन्मे केदारनाथ सिंह ने अपना शैक्षिक करियर पडरौना के एक कॉलेज से शुरू किया था. बाद में वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय चले गए. वे एक उम्दा कवि और अध्यापक के रूप में वहां मशहूर थे.
उनसे जुड़ी एक बात याद आती है. वे इलाहाबाद में 20 और 21 जून 2015 को ‘उजास- हमारे समय मे कविता’ नामक एक आयोजन में बोलने आए थे. सबसे पहले उन्हें ही बोलना था लेकिन इस कार्यक्रम के आयोजक ने कार्यक्रम का परिचय देने में बहुत समय ले लिया और श्रोताओं को घनघोर तरीके से उबा दिया.
जब कवि केदारनाथ सिंह बोलने आए तो उन्होंने अपने कुरते की जेब से एक पुर्जी निकाली और एक तिब्बती कवि की कविता का अनुवाद पढ़ा और मुकुटधर पाण्डेय की तीन-चार लाइनें कहकर अपनी सीट पर बैठ गए. यह एक कवि का दूसरे कवि के प्रति सम्मान भाव था, उससे ज्यादा एक निर्वासित समुदाय के कवि की पीड़ा को वह ‘हमारे समय में कविता’ के मंच पर उपस्थित सभी कवियों की साझा चिंता बना रहा था.
बीसवीं शताब्दी की रूसी कविताओं का एक अनुवाद साहित्य अकादमी ने ‘तनी हुई प्रत्यंचा’ के नाम से प्रकाशित किया है. इसे रूसी भाषा के जानकार वरयाम सिंह ने अनूदित किया था और संपादन केदारनाथ सिंह ने किया था. अपने एक संक्षिप्त संपादकीय में उन्होंने त्स्वेतायेवाकी की लोकबिंब से आधुनिक जीवन का तीखा द्रव्य निचोड़ लेने की क्षमता और मंदेल्स्ताम के चट्टान जैसे काव्य शिल्प की सराहना की थी. यह बात कमोबेश उनके लिए भी सही है.
उन्होंने अपनी कविता यात्रा में अपने मानकों में कोई ढील नहीं दी. लोकबिंब से आधुनिक जीवन का तीखा द्रव्य उनकी कविताओं लगातार व्याप्त है. अपनी कविताओं में किसी क्रांति या परिवर्तनकामी आंदोलन के पक्ष में बिना शोर किए वे मनुष्य, चींटी, कठफोड़वा या जुलाहे के पक्ष में खड़े हो जाते हैं.
उनकी कविता हिंदी साहित्य के संसार में अपनी विनम्र उपस्थिति के साथ अपने पाठक के बगल में जाकर खड़ी हो जाती है,
जैसे दुनिया के तमाम दानिशवर और कवि होते हैं, वैसे ही केदारनाथ सिंह भी थे- उन्हें भाषा पर भरोसा था. यह भी कि लोग बोलेंगे ही , वे क्यों चुप हैं जिनको आती है भाषा.
प्रेम के नितांत व्यक्तिगत क्षणों को वे जितनी आसानी से कविता में कह जाते थे, वह किसी उस्ताद के बस की ही बात थी. उनकी मृत्यु के बाद उनकी ढेर सारी कविताएं साइबर संसार में आसमान के नीले रंग की भांति फैल गयी हैं लेकिन उनकी एक कविता तो हिंदी संसार में विदा गीत का रूप ले चुकी है,
उनके लिए कविता कोई व्यक्तिगत किस्म की उपलब्धि नहीं थी, बल्कि वह दुनिया को बनाने का एक उष्मीय इरादा रखती थी.
मृत्यु बोध, बनारस और केदारनाथ सिंह
केदारनाथ सिंह की कविताओं में मृत्यु को लेकर एक विकल संवेदना सदैव व्याप्त रहती है. उन्होंने मनुष्य के ‘होने’ पर जितनी गहराई से सोचा-समझा और लिखा उतना ही उसके न होने पर लिखा,
यों हम लौट आए
जीवितों की लम्बी उदास बिरादरी में
कुछ नहीं था
सिर्फ़ कच्ची दीवारों
और भीगी खपरैलों से
किसी एक के न होने की
गंध आ रही थी.
++++
मुख्य कृतियाँ
कविता संग्रह
अभी बिल्कुल अभी
जमीन पक रही है
यहाँ से देखो
बाघ
अकाल में सारस
उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ
तालस्ताय और साइकिल
आलोचना
कल्पना और छायावाद
आधुनिक हिंदी कविता में बिंबविधान
मेरे समय के शब्द
मेरे साक्षात्कार
संपादन
ताना-बाना (आधुनिक भारतीय कविता से एक चयन)
समकालीन रूसी कविताएँ
कविता दशक
साखी (अनियतकालिक पत्रिका)
शब्द (अनियतकालिक पत्रिका)
सम्मान और पुरस्कार
ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रतीकः वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा
ज्ञानपीठ पुरस्कार
मैथिलीशरण गुप्त सम्मान
कुमारन आशान पुरस्कार
जीवन भारती सम्मान
दिनकर पुरस्कार
साहित्य अकादमी पुरस्कार
व्यास सम्मान
प्रख्यात कवि केदारनाथ सिंह को मिला ज्ञानपीठ पुरस्कार
हिंदी की आधुनिक पीढ़ी के रचनाकार केदारनाथ सिंह को वर्ष 2013 के लिए देश का सर्वोच्च साहित्य सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। वह यह पुरस्कार पाने वाले हिन्दी के 10वें लेखक थे। ज्ञानपीठ की ओर से शुक्रवार 20 जून, 2014 को यहां जारी विज्ञप्ति के अनुसार सीताकांत महापात्रा की अध्यक्षता में हुई चयन समिति की बैठक में हिंदी के जाने माने कवि केदारनाथ सिंह को वर्ष 2013 का 49वाँ ज्ञानपीठ पुरस्कार दिये जाने का निर्णय किया गया। इससे पहले हिन्दी साहित्य के जाने माने हस्ताक्षर सुमित्रानंदन पंत, रामधारी सिंह दिनकर, सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय, महादेवी वर्मा, नरेश मेहता, निर्मल वर्मा, कुंवर नारायण, श्रीलाल शुक्ल और अमरकांत को यह पुरस्कार मिल चुका है। पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार मलयालम के लेखक गोविंद शंकर कुरुप (1965) को प्रदान किया गया था।
-रमाशंकर सिंह

शनिवार, 23 जून 2018

12:52 am

सज़ल क्या है ---

आजकल "सजल "- नाम से भी साहित्य की एक विधा विकसित हो रही है ।
     इसका स्वरूप गजल जैसा ही होता है लेकिन गजल जैसे सख्त नियम  नही होते ।
      इसे लिखने के लिए --

1--किसी बहर की जरूरत नही पड़ती । पहली पंक्ति में जितनी मात्राएं होती है अंत तक अन्य पंक्तियों में भी उतनी ही मात्राएं होनी आवश्यक है ।
2--दो दो पंक्तियों का एक शेर होता है ।
3- हर शेर स्वतन्त्र होता है
4- इसमे उर्दू के शब्दों के स्थान पर हिंदी के शब्दों का प्रयोग होता है ।
5- गेयता गजल की तरह इसका भी आवश्यक तत्व होता है ।।

डॉ  अनिल गहलौत इस विधा के प्रवर्तक माने जाते है । उन्होंने ही इस सजल के रूप में प्रतिष्ठित किया है ।।

सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर

रविवार, 17 जून 2018

7:45 am

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*🌹🌹मुहब्बत🌹🌹*
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