हिंदी साहित्य वैभव

EMAIL.- Vikasbhardwaj3400.1234@blogger.com

Breaking

शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

10:38 am

कवि जीतेन्द्र कानपुरी

स्वच्छ भारत अभियान - जीतेन्द्र कानपुरी

हमको हर दम कुछ ,कर्तव्य निभाना है ।
चाहे कुछ भी हो ,हमें स्वच्छ भारत बनाना है ।।
गांवों से शहरों तक ,पेड़ लगाना है।
चाहे कुछ भी हो, हमें स्वच्छ भारत बनाना है ।।
जनता को जागरूक कर ,सोया भाग्य जगाना है ।
चाहे कुछ भी हो ,हमें स्वच्छ भारत बनाना है ।।
बूढ़ों, बच्चों ,महिलाओं ,सबको हाथ बटाना है ।
चाहे कुछ भी हो ,हमें स्वच्छ भारत बनाना है ।। 
सुन लो अब भारत से ,भ्रष्टाचार मिटाना है ।
चाहे कुछ भी हो, हमें स्वच्छ भारत बनाना है ।।
लेखक कवि एवं गीतकार -
जीतेन्द्र कानपुरी (टैटू वाले)
10:34 am

कवि जीतेन्द्र कानपुरी

देश प्रेम से बढ़कर कोई प्रेम नहीं -

उस माटी का मान बढ़ाओ
जिस माटी का खाते हो ।
जिस माटी में रहकर
तुम आगे बढ़ते जाते हो ।।

उससे बढ़कर और 
भी गौरव क्या होगा ।
देश प्रेम से ज्यादा
 गौरव क्या होगा ।।

जिस देश में राम जन्मे
जिस देश में कृष्ण जन्मे ।
धर्म की रक्षा के खातिर
अवतारी तक दुख  सहते ।।

हम क्यों भूल रहे है फिर
विधि के, निर्धारित विधान को ।
इस देश के खातिर दे गए वीर
अपनी अपनी जान को ।।

जिसे निज मिट्टी से प्रेम नहीं
उसको गद्दार समझिए ।
भारत में उसका रहना
हरदम बेकार समझिए ।।

धन की या सत्ता की लालच
में जो देश गंवा बैठे ।
वीर नहीं वो कायर है 
जो निज मिट्टी को खो बैठे ।।

देश में रहकर जो भी
देश विरोधी बीज बोता ।
ऐसा मानव
मानव कहलाने के योग्य नहीं ।।

देश के लिए जो मिट जाए 
उससे बढ़कर धर्म नहीं ।
इससे बढ़कर कोई पुण्य नहीं
इससे बढ़कर संयोग नहीं ।।


दानव हैं ये कुटिल कपटी
जो वीरों का अपमान करे ।
ऐसे अपराधी पर क्या
हम भारतवासी अभिमान करें ।।

सुन लो प्यारे भारत वासी -

जहां ब्रम्हा विष्णु शिव की
 गाथाएं गाई जाती है
माटी की पवित्रता, उस देश से ज्यादा
कहीं न पाई जाती है ।।
लेखक कवि एवं कहानीकार -
जीतेन्द्र कानपुरी (टैटू वाले)
9118937179
10:20 am

कवि जीतेन्द्र कानपुरी

खबरों में रहो और खबरदार रहो-

लड़ भिड़ कर स्वयं न बेकार रहो ।
मौज में रहो मजेदार रहो ।।
जिंदगी भर असरदार रहो ।
खबरों में रहो ,खबरदार रहो ।।

जिंदगी है जूझने का नाम ,
जूझते रहो ।
जूझने से बनते हैं काम,
जूझते रहो ।।
इसलिए ,खून पसीना बहा ओ
जनाब ,किसी के बहकावे में न आओ ।।

खाली न बैठो, न बेकार रहो ।
न किसी के भरोसे , न लाचार रहो ।।
हरदम घोड़े की चाल पे सवार रहो ।
लहराती नदी को हर संभव पार करो ।।

जो खाली है वो तुम्हीं से लड़ जाएंगे ।
तुम्हारा समय भी नष्ट कर जायेंगे ।।
लड़ाकू लोगों से न बात करो ।
गधों और मूर्खों का न साथ करो ।।

जिंदगी है छोटी अपनी उन्नति को सोचो ।
सर्वगुण सम्पन्न होके अवगुणों को रोको ।।
तरक्की के लिए बस जीवन झोकों ।
फ़ालतू में इधर उधर किसी को न टोंको ।।


लड़ भिड़ कर स्वयं न बेकार रहो ।
मौज में रहो मजेदार रहो ।।
जिंदगी भर असरदार रहो ।
खबरों में रहो ,खबरदार रहो ।।

लेखक कवि एवं कहानीकार
जीतेन्द्र कानपुरी ( टैटू वाले)
10:08 am

जीतेन्द्र कानपुरी के उपन्यास का आखिरी भाग -

 - जीतेन्द्र कानपुरी के उपन्यास का आखरी भाग -
               (मिस्टर आरके सिंह ) 

तुम अपने बच्चो को पुलिस में भर्ती करवा देना फिर मेरी पिटाई करवाना ।
 और मुझसे मेरी मत पूछो ? 
"मै जब चाहूंगा तभी तोड़ दूंगा तुम्हे ।"
मेरा नाम है "आनंद सिंह राणा"
तुम्हारे जैसे कानून को जेब में डाल के घूमता हूं ।
जितने तुम्हारे रिश्तेदार हो मिलने वाले दोस्त यार हो सबको बुला लेना 
मेरे बार बनवा लेना ।
मै अकेला ही तुम्हारे खानदान की धज्जियां उड़ा ने में सक्षम हूं ।

और सुनो तुम आज से कल तक 
कल तक का मतलब है जिंदगी भर के लिए चुनौती देता हूं जो उखाड़ना हो उखाड़ लेना ।
मेरा नाम तो जानते ही हो - आनंद सिंह राणा है ।
मैंने किताबों में पढ़ा था  - अपराधी बनते नहीं है बनाए जाते है ।
लो आज देख भी लिया , मुझे मजबूरन तुम जैसे दुष्ट लोगों के खिलाफ हाथ उठाना पड़ रहा है 
क्योंकि मैं कानून के सहारे नहीं बैठ सकता , दस बीस साल तक इंसाफ होने में उसकी राह नहीं तक सकता ।
अब मै स्वयं ही इंसाफ करूंगा ।
मेरे भाइयों के कातिलों का मै सर्वनाश कर दूंगा ।
ये तुम्हे चेतावनी देने आया हूं मिस्टर आरके सिंह ।
तुमने अभी वो नजारा नहीं देखा 
जिसे आंखों देखी कतल कहते है 
उसे देखने में कुछ वक़्त लग सकता है मगर जो देखने को तुम्हारी आंखें तरस रही हैं वो तुम्हे देखने को अवश्य मिलेगा ।
अभी जिसके जिसके दूध के दांत उखड़ने बाकी है वो आज से "आनंद सिंह राणा" का इंतजार करना शुरू करे ।
दूध के दांत गिरेंगे  और छठी के चावल याद आ जाएंगे ।
तुम्हारे दिन ऐसे बहुरेंगे रॉकी, कि तुम्हारी  लाश को कुत्ते ही खा जाएंगे ।। 

आज से तुम अपनी जिंदगी बचाने का इंतजाम करो 
नहीं तो  मै तुम्हे जहन्नुम के दरवाजे में भेज दूंगा ।

रॉकी सिंह - तुम अभी अपने खाने पीने का इंतजाम करो राणा ।
घर में बच्चे भूख से बिलबिला रहे होगें ।
और ये कहावत तो सुनी ही होगी तुमने कि जो लोग ज्यादा बकबक करते है वो तो वैसे भी कुछ नहीं कर पाते । 
मुझे ज्यादा बोलने का शौक नहीं है ।
मुझे जो करना है वो मै करूंगा 
तुम अपना परिवार बचा सको तो बचा लेना राणा ।

आनंद सिंह राणा - मिस्टर अब तुम अपनी ओर अपने बीबी बच्चो की फिकर करो ।
मै तो तुम्हे बस इतना ही बताने आया था ।
बाकी का नजारा तुम खुद देखोगे ।
वो आदमी भी क्या जो सरेआम बेज्जत होता रहे और कुछ न कर सके ।
मै अपने भाइयों कि कसम खा के कहता हूं 
तुम्हारा अंत बिल्कुल निकट है ,
मुझे ये भी मालूम है कि तुम अपने बचने के बहुत सारे उपाय भी करोगे मगर याद रखना बच नहीं सकोगे ।
शहर का चप्पा चप्पा मैंने लॉक करवा दिया है मिस्टर आरके सिंह
तुम यूं ही नादान बच्चे की तरह ख्वाबों में उड़ रहे हो ।
अब इस वक्त कानून और कानून की वर्दी पहनने वाले वो सब सिपाही मेरी जेब में है मिस्टर रॉकी ।
देखो तुम्हारे महल के पीछे वाले दरवाजे में बंदूक की नोक दिख रही है ।
न न न न अभी नहीं 
अभी नहीं मारूंगा तुम्हे
अभी तो तुम्हे बताने आया था 
वैसे भी तुम बहुत चालाक बनते हो मिस्टर आरके ।
आरके - मुझे विश्वाश नहीं हो रहा 
ये क्या मजाक कर रहे हो तुम राणा ।
अगर तुम मुझे चेतावनी देने  आए थे तो फिर ये कानून के सिपाही लेकर क्यों आए हो ।
ये कहां का इंसाफ है ।
चेतावनी देने वाला व्यक्ति पहले अकेले आता है ।

आनंद सिंह राणा - वाह आरके वाह !
भाषण अच्छा दे लेते हो 
मतलब मै जो कुछ करूं तो तुम्हारे हिसाब से करूं 
मै चेतावनी देने अकेले आऊं वो भी तेरे घर ! जिससे कि तू मुझे भी मौत के घाट उतार सके ।
वाह बहुत खूब !
मुझे तो हंसी आ गई रे तेरे ऊपर ।
क्या बच्चों जैसी बात कर रहा है ।
लगता है बंदूक देख के सेठेया गया तू आरके ।
अब तेरे पास दम नहीं बची ।
तू कैसे सम्हालेगा परिवार अपना 
जब तू खुद ही इतना डर रहा है आरके ।
आरके - आरके ने नौकर को आवाज़ लगाई -
भोला जरा मंत्री जी को फोन मिला ओ ।
आनंद सिंह राणा - मिला लो -  मिला लो  ,  सबको मिला लो 
देखता हूं आज कौन मंत्री तुम्हारे डेरे में आता है ।
सारा डेरा तो इस मुल्क के सिपाहियों के कब्जे में है आरके ।
करलो तुम्हे पन्द्रह मिनट का मौका और देता हूं  क्योंकि समय समाप्त होने वाला है ।
 ये मानो कि तुम्हारी जिंदगी सिर्फ अब पन्द्रह मिनट कि बची है  ।
इसमें चाहे अपनी हिफाजत कर लो या अपने सगे संबंधियों की ।
कुल मिलाकर तुम्हारा विनाश निश्चित है ।
देखो चारो तरफ सिपाही खड़े है 
कहा था न मैंने कानून को अपने जेब में डाल रक्खा है ।
क्योंकि ईंट का जवाब मै पत्थर से देना जानता हूं मिस्टर आरके ।
असत्य आखिर कब तक और किसके बल पर टिकेगा आरके सिंह ।मिस्टर आरके सिंह - उपन्यास का आखरी भाग -

तुम अपने बच्चो को पुलिस में भर्ती करवा देना फिर मेरी पिटाई करवाना ।
 और मुझसे मेरी मत पूछो ? 
"मै जब चाहूंगा तभी तोड़ दूंगा तुम्हे ।"
मेरा नाम है "आनंद सिंह राणा"
तुम्हारे जैसे कानून को जेब में डाल के घूमता हूं ।
जितने तुम्हारे रिश्तेदार हो मिलने वाले दोस्त यार हो सबको बुला लेना 
मेरे बार बनवा लेना ।
मै अकेला ही तुम्हारे खानदान की धज्जियां उड़ा ने में सक्षम हूं ।

और सुनो तुम आज से कल तक 
कल तक का मतलब है जिंदगी भर के लिए चुनौती देता हूं जो उखाड़ना हो उखाड़ लेना ।
मेरा नाम तो जानते ही हो - आनंद सिंह राणा है ।
मैंने किताबों में पढ़ा था  - अपराधी बनते नहीं है बनाए जाते है ।
लो आज देख भी लिया , मुझे मजबूरन तुम जैसे दुष्ट लोगों के खिलाफ हाथ उठाना पड़ रहा है 
क्योंकि मैं कानून के सहारे नहीं बैठ सकता , दस बीस साल तक इंसाफ होने में उसकी राह नहीं तक सकता ।
अब मै स्वयं ही इंसाफ करूंगा ।
मेरे भाइयों के कातिलों का मै सर्वनाश कर दूंगा ।
ये तुम्हे चेतावनी देने आया हूं मिस्टर आरके सिंह ।
तुमने अभी वो नजारा नहीं देखा 
जिसे आंखों देखी कतल कहते है 
उसे देखने में कुछ वक़्त लग सकता है मगर जो देखने को तुम्हारी आंखें तरस रही हैं वो तुम्हे देखने को अवश्य मिलेगा ।
अभी जिसके जिसके दूध के दांत उखड़ने बाकी है वो आज से "आनंद सिंह राणा" का इंतजार करना शुरू करे ।
दूध के दांत गिरेंगे  और छठी के चावल याद आ जाएंगे ।
तुम्हारे दिन ऐसे बहुरेंगे रॉकी, कि तुम्हारी  लाश को कुत्ते ही खा जाएंगे ।। 

आज से तुम अपनी जिंदगी बचाने का इंतजाम करो 
नहीं तो  मै तुम्हे जहन्नुम के दरवाजे में भेज दूंगा ।

रॉकी सिंह - तुम अभी अपने खाने पीने का इंतजाम करो राणा ।
घर में बच्चे भूख से बिलबिला रहे होगें ।
और ये कहावत तो सुनी ही होगी तुमने कि जो लोग ज्यादा बकबक करते है वो तो वैसे भी कुछ नहीं कर पाते । 
मुझे ज्यादा बोलने का शौक नहीं है ।
मुझे जो करना है वो मै करूंगा 
तुम अपना परिवार बचा सको तो बचा लेना राणा ।

आनंद सिंह राणा - मिस्टर अब तुम अपनी ओर अपने बीबी बच्चो की फिकर करो ।
मै तो तुम्हे बस इतना ही बताने आया था ।
बाकी का नजारा तुम खुद देखोगे ।
वो आदमी भी क्या जो सरेआम बेज्जत होता रहे और कुछ न कर सके ।
मै अपने भाइयों कि कसम खा के कहता हूं 
तुम्हारा अंत बिल्कुल निकट है ,
मुझे ये भी मालूम है कि तुम अपने बचने के बहुत सारे उपाय भी करोगे मगर याद रखना बच नहीं सकोगे ।
शहर का चप्पा चप्पा मैंने लॉक करवा दिया है मिस्टर आरके सिंह
तुम यूं ही नादान बच्चे की तरह ख्वाबों में उड़ रहे हो ।
अब इस वक्त कानून और कानून की वर्दी पहनने वाले वो सब सिपाही मेरी जेब में है मिस्टर रॉकी ।
देखो तुम्हारे महल के पीछे वाले दरवाजे में बंदूक की नोक दिख रही है ।
न न न न अभी नहीं 
अभी नहीं मारूंगा तुम्हे
अभी तो तुम्हे बताने आया था 
वैसे भी तुम बहुत चालाक बनते हो मिस्टर आरके ।
आरके - मुझे विश्वाश नहीं हो रहा 
ये क्या मजाक कर रहे हो तुम राणा ।
अगर तुम मुझे चेतावनी देने  आए थे तो फिर ये कानून के सिपाही लेकर क्यों आए हो ।
ये कहां का इंसाफ है ।
चेतावनी देने वाला व्यक्ति पहले अकेले आता है ।

आनंद सिंह राणा - वाह आरके वाह !
भाषण अच्छा दे लेते हो 
मतलब मै जो कुछ करूं तो तुम्हारे हिसाब से करूं 
मै चेतावनी देने अकेले आऊं वो भी तेरे घर ! जिससे कि तू मुझे भी मौत के घाट उतार सके ।
वाह बहुत खूब !
मुझे तो हंसी आ गई रे तेरे ऊपर ।
क्या बच्चों जैसी बात कर रहा है ।
लगता है बंदूक देख के सेठेया गया तू आरके ।
अब तेरे पास दम नहीं बची ।
तू कैसे सम्हालेगा परिवार अपना 
जब तू खुद ही इतना डर रहा है आरके ।
आरके - आरके ने नौकर को आवाज़ लगाई -
भोला जरा मंत्री जी को फोन मिला ओ ।
आनंद सिंह राणा - मिला लो -  मिला लो  ,  सबको मिला लो 
देखता हूं आज कौन मंत्री तुम्हारे डेरे में आता है ।
सारा डेरा तो इस मुल्क के सिपाहियों के कब्जे में है आरके ।
करलो तुम्हे पन्द्रह मिनट का मौका और देता हूं  क्योंकि समय समाप्त होने वाला है ।
 ये मानो कि तुम्हारी जिंदगी सिर्फ अब पन्द्रह मिनट कि बची है  ।
इसमें चाहे अपनी हिफाजत कर लो या अपने सगे संबंधियों की ।
कुल मिलाकर तुम्हारा विनाश निश्चित है ।
देखो चारो तरफ सिपाही खड़े है 
कहा था न मैंने कानून को अपने जेब में डाल रक्खा है ।
क्योंकि ईंट का जवाब मै पत्थर से देना जानता हूं मिस्टर आरके ।
असत्य आखिर कब तक और किसके बल पर टिकेगा आरके सिंह ।

उपन्यासकार - कवि जीतेन्द्र कानपुरी ( टैटू वाले)

(विशेष सूचना - उपन्यास में लिखे हुए सभी पात्रों के नाम एवं कहानी काल्पनिक है इस कहानी का किसी के निजी जीवन से कोई संबंध नहीं है )

बुधवार, 16 सितंबर 2020

2:42 am

लुग़ात-ए-फ़िक्री: वो अनूठा ‘शब्दकोश’ जो लफ़्ज़ों का कुछ अलग ही अर्थ बताता है

फ़िक्र नामा, fikr nama, फ़िक्र तोनस्वी, fikr taunsvi


फ़िक्र तोनस्वी, जिनका अस्ल नाम राम लाल भाटिया था, उर्दू के विख्यात हास्य और व्यंग्य लेखक थे। 12 सितंबर 1987 को उनका निधन हुआ। फ़िक्र अपनी दीगर मज़ाहिया तहरीरों के साथ अपने अख़बारी कॉलम ‘प्याज़ के छिलके’ और विभाजन के समय के क़तल-ओ-ख़ून की रूदाद पर मुश्तमिल किताब ‘छटा दरिया’ के लिए जाने जाते हैं।

नीचे पेश की गई तहरीर फ़िक्र तोनस्वी की किताब ‘फ़िक्र-नामा’ से ली गई है। आप इसे पढ़ें, लुत्फ़-अंदोज़ हों, कुछ सीख हासिल करें और अगर किसी शब्द के बारे में आपका कोई ज़ाती ख़्याल हो तो कमेंट बॉक्स में लिख कर हमारे साथ साझा करें।

लुग़ात-ए-फ़िक्री

इलेक्शन: एक दंगल जो वोटरों और लीडरों के दरमियान होता है और जिसमें लीडर जीत जाते हैं, वोटर हार जाते हैं।

वोट: चियूंटी के पर, जो बरसात के मौसम में निकल आते हैं।

वोटर: आँख से गिर कर मिट्टी में रुला हुआ आँसू जिसे इलेक्शन के दौरान मोती समझ कर उठा लिया जाता है और इलेक्शन के बाद फिर मिट्टी में मिला दिया जाता है।

वोटर लिस्ट: जौहरी की दुकान पर लटकी हुई मोतियों की लड़ियाँ।

उम्मीदवार: बड़े-बड़े अक़लमंदों को भी बेवक़ूफ़ बनाने वाला अक़लमंद।

चुनावी  सभा: एक तम्बूरा जिस पर बेसुरे गाने गाये जाते हैं।

चुनावी घोषणापत्र: जिसमें बाद में तोड़ने के लिए वादे किए जाते हैं।

चुनावी भाषण: इलेक्शन के जंगल में गीडड़ों का नग़मा कि ‘मेरा बाप बादशाह था।’

चुनावी झण्डे: रंगा-रंग पतंगों की दुकान।

चुनावी पोस्टर: उम्मीदवार का शजरा-ए-नसब। उसके ख़ानदान की मुकम्मल तारीख़।

पोलिंग एजेंट: उम्मीदवार का चमचा।

इलेक्शन का ख़र्चा: जूए पर लगाई हुई नक़दी।

Fikr Taunsvi, Ram Lal Bhatia
फ़िक्र तोनस्वी, जिनका अस्ल नाम राम लाल भाटिया था, उर्दू के विख्यात हास्य और व्यंग्य लेखक थे।

महबूबा: एक क़िस्म की गै़र-क़ानूनी बीवी।

बीवी: महबूबा का अंजाम।

इश्क़: ख़ुदकुशी करने से पहले की हालत।

रिश्तेदार: एक रस्सी जो टूट कर भी सिर पर लटकती रहती है।

दिल्ली: जहाँ मकान बड़े हैं इन्सान छोटे।

बंबई: एक मंदिर जहाँ से भगवान निकल गया है।

साईकिल: क्लर्क बाबू की दूसरी बीवी।

क्लर्क: एक गीदड़ जो शेर का जामा पहन कर कुर्सी पर बैठता है।

बूढ़े: दीवालिया दुकान के बाहर लटका हुआ पुराना साइनबोर्ड।

अवाम: चौपाल पर रखा हुआ एक हुक़्क़ा जिसे हर राहगीर आकर पीता है।

बीवी: महबूबा की बिगड़ी हुई शक्ल।

ख़ुदा: वहम और हक़ीक़त के दरमियान डोलता हुआ पेन्डुलम।

बेरोज़गारी: इज़्ज़त हासिल करने से पहले बेइज़्ज़ती का तजुर्बा।

क्रप्शन: एक ज़हर जिसे शहद की तरह मज़े ले-ले कर चाटा जाता है।

सियासत: पैसे वालों की अय्याशी और बिन पैसे वालों के गले का ढोल।

बीवी: एक लतीफ़ा जो बार-बार दोहराने से बासी हो जाता है।

सच्चाई: एक चोर जो डर के मारे बाहर नहीं निकलता।

झूट: एक फल जो देखने में हसीन है। खाने में लज़ीज़ है। लेकिन जिसे हज़म करना मुश्किल है।

लोकतंत्र: एक मंदिर जहां भगत लोग चढ़ावा चढ़ाते हैं और पुजारी खा जाते हैं।

सूद: दूसरों का भला करने के लिए एक बुराई।

ग़रीबी: एक कश्कोल जिसमें अमीर लोग पैसे फेंक कर अपने गुनाहों की तादाद कम करते हैं।

शायर: एक परिंदा जो उम्र-भर अपना गुम-शुदा (खोया हुआ) आशियाना ढूंढता रहता है।

लीडर: दूसरों के खेत में अपना बीज डाल कर फ़सल उगाने और बेच खाने वाला।

क़ब्रिस्तान: मुर्दा इन्सानों का हाल ) वर्तमान(, ज़िंदा इन्सानों का मुस्तक़बिल (भविष्य)।

उम्मीद: एक फूल जो कभी बंजर ज़मीन को ज़रख़ेज़ बना देता है और कभी ज़रख़ेज़ ज़मीन को बंजर।

ये तहरीर फ़िक्र तोनस्वी की किताब ‘फ़िक्र-नामा’ से ली गई है।

ख़ुशामद: कमज़ोर की ताक़त और ताक़तवर की कमज़ोरी।

शराफ़त: एक ऐनक जिसे अंधे लगाते हैं।

तालीम: अनपढ़ लोगों को बेवक़ूफ़ बनाने का हथियार।

बहादुर: आग को पानी समझ कर पी जाने वाला कम-इल्म।

अंधेरा: शैतान का घर जिसे ख़ुदा अपने हाथ से तामीर करता है।

रसोई घर: गृहस्ती औरतों की राजधानी।

गृहस्ती औरत: गृहस्ती मर्द की गाड़ी का पैट्रोल पंप।

महल: झोंपड़ी के मुक़ाबले पर खींची हुई बड़ी लकीर।

छात्र: एक प्यासा जिसे समुंद्र में धक्का दे दिया जाता है और वो उम्र-भर डुबकियाँ खाता रहता है।

जेब-कतरा: एक शरारती छोकरा जो दूसरों की साईकिल में पिन चुभोकर उस की हवा निकाल देता है और भाग जाता है।

सड़क: एक रास्ता जो जन्नत को भी जाता है और जहन्नुम को भी।

जन्नत: एक ख़्वाब।

जहन्नुम: इस ख़्वाब की ताबीर।

पैसा: एक छिपकली जो इन्सान के मुँह में आ गई है। और अब उसे खाए तो कोढ़ी, छोड़े तो कलंकी।

दरिया: जिसके किनारे घर बनाओ तो उसे जोश आ जाता है और घर को बहा ले जाता है। लेकिन अगर इसमें डूबने के लिए जाओ तो हमेशा सूखा मिलता है।

ख़ुदकुशी: जायज़ चीज़ का नाजायज़ इस्तिमाल।

कुर्सी: जिस पर बैठ कर अक़लमंद आदमी बेवक़ूफ़ बन जाता है।

नेकी: जिसे पहले ज़माने में लोग दरिया में डाल देते थे। आजकल मंडी में बराए फ़रोख़्त (बेचने के लिए) भेज देते हैं।

अख़बार: एक फल जो सुकून के लिए खाया जाता है। मगर खाते ही बेचैनी पैदा कर देता है।

मय-गुसार (शराबी): रात का शहंशाह, सुबह का फ़क़ीर।

तवाइफ़: डिस्पोज़ल का माल जिसे औने-पौने दाम पर नीलाम कर के बेच दिया जाता है।

ख़ुदा: इन्सान की वो कमज़ोरी जिससे वो ताक़त हासिल करता है।

मेहमान: जिसके आने पर ख़ुशी और जाने पर और ज़्यादा ख़ुशी होती है।

ड़ॉक्टर: जो बीमारों से हंस-हंस कर बातें करता है मगर तंदरुस्तों को देखकर मुँह फेर लेता है।

जज: इन्साफ़ करने में आज़ाद मगर क़ानून का ग़ुलाम।

गवाह: झूट और सच्च के दरमियान लटकता हुआ पेन्डुलम।

कोशिश: अंधेरे में तीर चलाना। लग जाये तो वाह वाह, चूक जाये तो आह आह।

अंधेरा: बिजली कंपनी का सिर दर्द।

बिजली: चोरों का सिर दर्द।

चोर: एक जेब का माल दूसरी जेब में मुंतक़िल करने वाला आर्टिस्ट।

अंजान: जो वो चीज़ें ना जानता हो, जिन्हें जानने से दुख पैदा होते हैं।

उस्ताद: बेवक़ूफ़ों को अक़लमंद बनाकर अपने दुश्मन बनाने वाला बेवक़ूफ़।

कूड़ा कर्कट: इस्तेमाल शूदा चीज़ों का जनाज़ा।

कमज़ोरी: एक मुर्दा जिस पर ज़िंदा लोग हमला कर देते हैं और बड़े ख़ुश होते हैं।

क़त्ल: आँखों वालों की अंधी हरकत।

मकान: चिड़ियों, मक्खियों और इन्सानों का मुश्तर्का (साझा) रैन-बसेरा।

मुफ़्लिस: जो अगर मौजूद ना हो तो अहल-ए-दौलत ख़ुदकुशी कर लें।

लफ़्ज़: जो मुँह से अदा हो जाए तो बाहर जंग छिड़ जाये, अदा ना हो सके तो अंदर जंग छिड़ जाये।

मरीज़: जिसके बलबूते पर दुनिया-भर की मेडिकल कंपनियाँ चलती हैं।

क़ब्रिस्तान: लाशों का सोशलिस्ट स्टेट।

बदसूरत औरत: हसीनाओं को परखने का आला।

आदम: ख़ुदा की वो ग़लती जिसे वो आज तक ठीक नहीं कर सका।

ग़लती: माफ़ कर देने वालों के लिए एक नादिर (दुर्लभ) मौक़ा।

सरमाया-दार (पूंजीवादी): दूसरों की कतरनों से अपने लिए पतलून तैयार करने वाला एक माहिर टेलर मास्टर।

अमन: वह्शी लोगों की नींद का ज़माना।

बकरी: जिसकी अक़्ल ज़्यादा है दूध कम।

नंगा: टेक्सटाइल मिलों का मज़ाक़ उड़ाने वाला।

मक़रूज़: एक शहंशाह जो दूसरों की कमाई पर ऐश करता है।

हुकूमत: काँटों का ताज जिसे हर गंजा पहनना चाहता है।

अक़्ल: मुहब्बत और ख़ुलूस का क़ब्रिस्तान।

बेवक़ूफ़ी: एक ख़ज़ाना जो कभी ख़ाली नहीं होता।

विवाह: इश्क़ का अंजाम, बच्चों का आग़ाज़।

दिल: एक क़ब्र जिसके नीचे अक्सर ज़िंदा मुर्दे दफ़न कर दिए जाते हैं।

दिमाग़: शैतान और ख़ुदा दोनों का मुश्तरका (साझे का) घर।

पाँव: जो दूसरों को ठोकर मारता है, ख़ुद ठोकर खाता है।

काग़ज़: कोरा हो तो बे-ज़रर, लिखा जाये तो ज़रर-रसाँ।

ख़ुश-क़िस्मत: एक लाठी जो जिसके हाथ लग जाये उसी की हो जाती है।

विदेशी क़र्ज़: एक डायन जो बच्चे पैदा करती है, उन्हें खिलाती और पालती-पोस्ती है। और फिर ख़ुद ही उन्हें खा जाती है।

हिल स्टेशन: सेहत-मंद मरीज़ों का अस्पताल।

मंगलवार, 1 सितंबर 2020

4:03 am

जीतेन्द्र कानपुरी

शहरों में गांव वाली बात कहां ?? -

गमों की धूप में, साए ढूंढता हूं ।
मै पागल ही हूं,सूरज में तारे ढूढ़ता हूं ।।

शहरों में गांव की, नमी नहीं मिलती ।
वो पेड़ नहीं मिलते, वो जमीं नहीं मिलती ।।
महलों में कांश का ,छप्पर  ढूंढता हूं ।
मै पागल ही हूं, गुड़ में शक्कर ढूंढता हूं ।।

महानगरों में असली वाले, दोस्त नहीं मिलते ।
इंजेक्शन की सब्जी से,कभी चेहरे नहीं खिलते।।
मै व्यापार के ढेर में, व्यवहार ढूढता हूं ।
मै पागल ही हूं, दुश्मनों में प्यार ढूढता हूं ।।


मॉल मिलते है, मन्दिर नहीं मिलते ।
इस भीड़ भरे शहर में, खुशदिल नहीं मिलते ।।
पत्थरों में दिल के, अहसास ढूढता हूं ।
मै पागल ही हूं, धुएं में सांस ढूढता हूं ।।

और सुनो बसें, भरी है खचाखच ।
एक दूसरे को दाब कर ,चले हैं मचामच ।।
पसीने की बदबू में ,सुगंध ढूढता हूं ।
मै पागल ही हूं, जो आनंद ढूढता हूं ।।
लेखक कवि एवं कहानीकार -
जीतेन्द्र कानपुरी ( टैटू वाले)

विशिष्ट पोस्ट

सूचना :- रचनायें आमंत्रित हैं

प्रिय साहित्यकार मित्रों , आप अपनी रचनाएँ हमारे व्हाट्सएप नंबर 9627193400 पर न भेजकर ईमेल- Aksbadauni@gmail.com पर  भेजें.