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सोमवार, 24 अगस्त 2020

6:39 pm

पाखी पब्लिशिंग हाउस' द्वारा पुस्तकाकार लाया जाएगा

 सूचनार्थ : 

#देश_विशेषांक एवं #पुरस्कार_योजना


'पाखी' का दिसम्बर अंक 2020 'देश' नामक संस्था को केंद्र बिंदु बनाते हुए लिखी गई नई कहानियों, कविताओं, गीत, ग़ज़ल , निबंध, लेख आदि पर केंद्रित विशेषांक होगा। सभी नवोदित एवं वरिष्ठ रचनाकारों से आग्रह है कि मौजू समय में सर्वाधिक ज्वलंत हो उठे विषय 'देश विशेष' पर अपनी रचनाएं भेजें।


इस अंक में प्रकाशित सभी सामग्री को 'पाखी पब्लिशिंग हाउस' द्वारा पुस्तकाकार लाया जाएगा तथा सर्वश्रेष्ठ तीन रचनाओं पर क्रमशः प्रथम पुरस्कार 21 हजार, द्वितीय  11 हजार एवं तृतीय 5 हजार रुपये सम्मान धनराशि होगी। साथ ही नए लेखकों के लिए यानी ऐसे लेखक जिनकी बीज रचना होगी, दो सांत्वना पुरस्कार 2100 रुपयों की धनराशि के होंगे।


रचनाएं भेजें - pakhimagazine@gmail.com

संपादक के नाम चिट्ठी लिखें - editor@pakhi.in

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फोन : 0120- 4692200

व्हाट्सएप - 7860920421


(पाखी के ऑफिसियल पेज से)


बुधवार, 19 अगस्त 2020

6:11 am
कविता
        POEM
                   खुशी
                   KHUSHI



मेरी ज़िंदगी में खुशी बहुत कम है, 
जो खुशी उसमे खुश बहुत हम है, 
मेरी गम भी बहुत बेरहम है
खुशी के सामने दिखाती बहुत दम है।
मेरी ज़िन्दगी में ख़ुशी बहुत कम है, 
जो खुशी है उसमे खुश बहुत हम है।



हार जाती है मेरी गम, 
मेरी खुशी में हैं इतनी दम, 
 किसी की खुशी की मोहताज नहीं हम, 
जो खुशी है उसमे खुश रहते हैं हरदम। 
मेरी ज़िन्दगी में खुशी बहुत कम है, 
जो खुशी है उसमे खुश बहुत हम है।


नहीं रहते उदास कभी हम, 
खुशी के सामने हार गई गम, 
 खुद से उम्मीद रखते हैं हम, 
दूसरों से उम्मीद रखते हैं कम, 
मेरी ज़िंदगी में खुशी बहुत कम है, 
जो खुशी है उसमे खुश बहुत हम है।।

             लेखक
           डॉ. रवि कुमार रंजन
        DR.RAVI KUMAR RANJAN
    बेलसंड 

मंगलवार, 11 अगस्त 2020

5:33 pm

राहत इंदौरी सहाब आपने ही कहा था। बुलाती है मगर जाने का नही औऱ खुद चल दिये..

शायरी के एक युग का अंत हो गया 😭 भावभीनी शायरी के एक युग का अंत हो गया 😭 भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
✨स्वर्गीय राहत इंदौरी जी श्रद्धांजलि अर्पित💐💐
✨ इंदौर के रहने वाले मशहूर शायर राहत इंदौरी का मंगलवार की शाम को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वो 70 साल के थे। सोमवार को ही उन्हें इलाज के लिए अरविंदो अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। राहत इंदौरी बॉलीवुड गीतकार और उर्दू भाषा के मशहूर कवि थे। वो उर्दू भाषा के पूर्व प्रोफेसर और चित्रकार भी रहे।
  ✨हम आपको बताएंगे राहत कुरैशी के राहत इंदौरी बनने और देश दुनिया में नाम कमाने की पूरी कहानी। साथ ही राहत इंदौरी के जीवन से जुड़ी हर खास जानकारी।उनका जन्म 1 जनवरी 1950 को इंदौर में हुआ था। उनका पूरा नाम राहत कुरैशी था। उनके पिता का नाम रफतुल्लाह कुरैशी और मॉ का नाम मकबूल उन निसा बेगम है। वो इनकी चौथी संतान थे। उनकी 2 बड़ी बहनें हैं जिनका नाम तकीरेब और तहज़ीब है। उनका एक बड़ा भाई है जिसका नाम एक्विल और एक छोटा भाई है जिसका नाम आदिल है। 
उनकी शिक्षा दीक्षा भी मध्य प्रदेश में ही हुई थी। ✨आरंभिक शिक्षा देवास और इंदौर के नूतन स्कूल से प्राप्त करने के बाद इंदौर विश्वविद्यालय से उर्दू में एम.ए. और उर्दू मुशायरा शीर्षक से पीएच.डी. की डिग्री हासिल की। उसके बाद 16 वर्षों तक इंदौर विश्वविदायालय में उर्दू साहित्य के अध्यापक के तौर पर अपनी सेवाएं दी और त्रैमासिक पत्रिका शाखें का 10 वर्षों तक संपादन किया। पिछले 40-45 वर्षों से राहत साहब राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर मुशायरों की शान बने हुए थे।

 ✨राहत इंदौरी उर्फ राहत कुरैशी ने दो शादियां की थी। उन्होंने पहली शादी 27 मई 1986 को सीमा रहत से की। सीमा से उनको एक बेटी शिबिल और 2 बेटे जिनका नाम फैज़ल और सतलज राहत है, हुए हैं। ✨उन्होंने दूसरी शादी अंजुम रहबर से साल 1988 में की थी। अंजुम से उनको एक पुत्र हुआ, कुछ सालों के बाद इन दोनों में तलाक हो गया था।राहत इंदौरी के शायर बनने की कहानी भी दिलचस्प है।
 वो अपने स्कूली दिनों में सड़कों पर साइन बोर्ड लिखने का काम करते थे। बताया जाता है कि उनकी लिखावट काफी सुंदर थी। वो अपनी लिखावट से ही किसी का भी दिल जीत लेते थे लेकिन तकदीर ने तो उनका शायर बनना मुकर्रर किया हुआ था। ✨एक मुशायरे के दौरान उनकी मुलाकात मशहूर शायर जां निसार अख्तर से हुई। बताया जाता है कि ऑटोग्राफ लेते वक्त राहत इंदौरी ने खुद को शायर बनने की इच्छा उनके सामने जाहिर की। तब अख्तर साहब ने कहा कि पहले 5 हजार शेर जुबानी याद कर लें फिर वो शायरी खुद ब खुद लिखने लगेंगे।

 तब राहत इंदौरी ने जबाव दिया कि 5 हजार शेर तो मुझे पहले से ही याद है। इस पर अख्तर साहब ने जवाब दिया कि फिर तो तुम पहले से ही शायर हो, देर किस बात की है स्टेज संभाला करो। उसके बाद राहत इंदौरी इंदौर के आस पास के इलाकों की महफिलों में अपनी शायरी का जलवा बिखेरने लगे। धीरे-धीरे वो एक ऐसे शायर बन गए जो अपनी बात अपने शेरों के जरिए इस कदर रखते हैं कि उन्हें नजरअंदाज करना नामुमकिन हो जाता।
 राहत इंदौरी की शायरी में जीवन के हर पहलू पर उनकी कलम का जादू देखने को मिलता था। बात चाहे दोस्ती की हो या प्रेम की या फिर रिश्तों की, राहत इंदौरी की कलम हर क्षेत्र में जमकर चलती थी।शायरी लिखने से पहले वह एक चित्रकार बनना चाहते थे और जिसके लिए उन्होंने व्यावसायिक स्तर पर पेंटिंग करना भी शुरू कर दिया था। 
इस दौरान वह बॉलीवुड फिल्म के पोस्टर और बैनर को चित्रित करते थे। यही नहीं, वह पुस्तकों के कवर को डिजाइन करते थे। उनके गीतों को 11 से अधिक ब्लॉकबस्टर बॉलीवुड फिल्मों में इस्तेमाल किया गया। जिसमें से मुन्ना भाई एमबीबीएस एक है। वह एक सरल और स्पष्ट भाषा में कविता लिखते थे। वह अपनी शायरी की नज़्मों को एक खास शैली में प्रस्तुत करते थे, इसलिए उनकी अलग ही पहचान थी।

 संकलनकर्ता!!!
💞साजिद इकबाल 
      राष्ट्रीय अध्यक्ष 
जी.डी फाउंडेशन लखनऊ ,भारत
7033066062

रविवार, 9 अगस्त 2020

6:23 am

प्रकाशन हेतु: बताने लगे हैं (नज़्म)


जब से आईने से नज़र मिलाने लगे हैं 
अपनी ही बातों से वो उकताने लगे हैं

अपने भी घर में जब होने लगा हादसा
वाइज़ नफरत की दीवार गिराने लगे हैं

अकेलेपन से जब घिर गए हर ओर से
फिर अपने पराए सबको मनाने लगे हैं

मन्दिर मस्जिद से जब  बात नहीं बनी
तब इन  किताबों से धूल हटाने लगे हैं

सब दंगे- फसाद जब हो गए  नाकाम  
बात-चीत को समाधान बताने लगे हैं

समझे जब देश बना है हर आदमी से
तो हर इंसान को इंसान बताने लगे हैं

वाइज़-उपदेश देने वाला

सलिल सरोज
नई दिल्ली

सोमवार, 3 अगस्त 2020

10:20 pm

कुछ दाग़ रह गए है धुलाई के बाद भी

अफसोस है कि इतनी सफाई के बाद भी
कुछ दाग़ रह गए है धुलाई के बाद भी

दुनिया तिरी लिखाई समझ मे न आ सकी
अनपढ़ रहे हम इतनी पढ़ाई के बाद भी

डाली थी तुमने पाओ में जंजीर जिस जगह
बैठे है हम वहीं पे रिहाई के बाद भी

ये हौसला भी इश्क़ ने हमको अता किया
ज़िन्दा है देख तेरी जुदाई के बाद भी

सहरा तिरा मिज़ाज समझना है इसलिए
हम चल रहे है आबला पाई के बाद भी

दिल को जकड़ के बैठा है ये कोन सा मलाल
हम खुश नही है तेरी बधाई के बाद भी


वसीम नादिर 
बदायूँ 
1:22 pm

शकील बदायूँनी के जन्मदिन पर विशेष लेख

बदायूँ...
   यूं तो बदायूँ हमेशा से इल्म ओ अदब की खुशबू से मुअत्तर सरज़मीं रही है,ये महबूबे इलाही ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया की जाए पैदाइश (जन्मस्थान), और शहज़ादाए यमन हज़रत सुल्तानुल आरफीन और हज़रत शाह विलायत (छोटे -बड़े सरकार) और तमाम औलिया अल्लाह का मैदाने अमल रहने के सबब इल्म ओ मारिफ़त की निगाह से मदीनतुल औलिया कहा गया,दूसरी तरफ मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूँनी(अकबर के नवरत्नों में से एक), फानी बदायूँनी,महशर बदायूँनी,अदा जाफरी,जीलानी बानो,शकील बदायूँनी,इरफान सिद्दीकी ब्रजेन्द्र अवस्थी,उर्मिलेश शंखधार जैसे अदब के नायाब नगीनों ने इस शहर की अज़मत को चार चांद लगाए।
    इनमें से एक शकील बदायूँनी जिनका आज यानी 3 अगस्त को यौम ए पैदाइश है,इनका कुछ ज़िक्र किया जाए।
  ग़फ़्फ़ार अहमद जिन्हें दुनिया ने शकील बदायूँनी नाम से जाना,बदायूँ में 3 अगस्त 1916 को पैदा हुए, इस्लामिया मिस्टन हाई स्कूल(अब इस्लामिया इण्टर कॉलेज )बदायूँ से 1935 में हाई स्कूल और अलीगढ़ से 1939 में एफ.ए.(इण्टर),यहीं से 1942 में बी.ए. किया। 
   अपने शेरी सफर की शुरुआत में इन्होंने सबा, फ़रोग़ और फिर बाद में शकील तखल्लुस इख़्तेयार किया। फिल्मों में इनकी नग़मा निगारी की शुरुआत 1948 में फ़िल्म दर्द के साथ हुई, शकील बदायूँनी ने तक़रीबन 100 फिल्मों में गीत लिखे जिनमे दर्द,मेला,दुलारी,दीदार,बैजू बावरा,उड़न खटोला,अमर,शबाब,मदर इंडिया,सोहनी महिवाल, चौदहवीं का चांद,कोहनूर,मुग़ल ए आज़म,घराना,गंगा जमुना,बीस साल बाद,साहब बीबी और ग़ुलाम,सन ऑफ इण्डिया, मेरे महबूब,दूर की आवाज़, लीडर,दिल दिया दर्द लिया,राम और श्याम,आदमी वगैरह कुछ बेहद मक़बूल फिल्में हैं जिनमे शकील बदायूनी के गीतों ने अपना जादू बिखेरा है।
   शकील बदायूँनी की शायरी के मजमूए 'रानाइयाँ','सनम व हरम", 'शबिस्तान', 'नग़मा ए फिरदौस'(नात व मनकबत),और उनके ज़रिए लिखे गए फिल्मी गीतों के मजमूए  'धरती को आकाश पुकारे'और 'कहीं दीप जले कहीं दिल' बेहद मक़बूल हुए।


   आइए इनके कुछ अशआर के साथ जुड़ा जाए और इस अज़ीम शायर और गीतकार को खिराज ए अकीदत पेश किया जाए-

      अक्सर तो दिल की गिरफ्तगी ए शौक़ की कसम
      मुझ  तक  वो  आ   गए   हैं  इरादा  किये   बग़ैर

      वो  अगर  बुरा न माने तो जहाने रंग ओ बू में
      मैं सुकूने दिल की खातिर कोई ढूंढ लूं सहारा

     आप  ख़ूने   इश्क़  का  इल्ज़ाम  अपने  सर न लें
     आप का दामन सलामत, अपने क़ातिल हम सही

      ज़िंदगी   के   आईने   को  तोड़   दो
      इसमें अब कुछ भी नज़र आता नहीं

      देखूं  उन्हें  तो  ताब ए नज़ारा  नहीं  मगर
      उनको न देखना भी क़यामत है क्या करूँ

      दीदा ओ दिल की तबाही मुझे मंज़ूर मगर
      उनका उतरा हुआ चेहरा नहीं देखा जाता
     
     ज़िंदगी आ तुझे क़ातिल के हवाले कर दूं
     मुझसे अब ख़ूने तमन्ना नहीं देखा जाता

     वही  कारवां,   वही  रास्ते,     वही  ज़िंदगी,   वही  मरहले
    मगर अपने अपने मक़ाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं
   
     ग़मे आशिक़ी से कह दो रहे आम तक न पहुंचे
    मुझे खौफ है ये तोहमत मेरे नाम तक न पहुंचे


                  --------**********-----------
                               -शराफ़त समीर
                               दातागंज-बदायूँ
                              9058033485

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